परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है।
मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गढ़वाल के सभी गढ़ों को जीतकर गढ़देश के संस्थापक पंवार नरेश अजै पाल के बारे में जानकारी दूंगा कि वे महान राजा आखिरकार अंत में जोगी क्यों बन...
केदारनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मन्दिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों...
यह प्रेम कथा विश्व की महान प्रेम कथाओं में से एक तो है ही अदभुद भी। गहरी नींद में देखे सपनों में भी प्यार हो सकता है। कहानी पन्द्रहवीं शताब्दी की है। कत्यूर राजवंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की कन्या राजुला की प्रेम कथा है। इस कथा के 40 रूप मौजूद हैं।
एक बार पंचाचूली पर्वत श्रृंखला के...
पहाड़ जैसा कठिन जीवन जी रहे हिमालयी लोगों के लिए अब तेंदुआ व गुलदार अब बहुत बड़ी मुसीबत बनकर सामने आए हैं। यह बात खुद केंद्र सरकार भी मानने लगी है। अकेले उत्तराखंड में ही पिछले एक दशक के दौरान तेंदुआ व गुलदारों ने 560 हमलों में 203 लोगों को मार डाला और खा गये।
इसलिए केंद्रीय पर्यावरण व वन...
तालिबान और उत्तराखंड के लैंड जेहादियों का एक ही है सूत्रधार
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
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अफगानिस्तान में आप लोग तालिबानियों की हरतकों तो देख रहे हैं। किस तरह से वे लोग अपने ही सजातीय व सधर्मी लोगों पर अपना खौफ बढ़ा रहे हैं याद कीजिए, लुटेरे गजनी, गौरी, बाबर, तैमूर लंग व अब्दाली का दौर। कल्पना...
बाठ गोडाई क्या तेरो नौं च,
बोल बौराणी कख तेरो गौं च?
बटोई-जोगी ना पूछ मै कू,
केकु पूछदि क्या चैंद त्वै कू?
रौतू की बेटी छौं रामि नौ च
सेटु की ब्वारी छौं पालि गौं च।
मेरा स्वामी न मी छोड़ि घर,
निर्दयी ह्वे गैन मेई पर।
ज्यूंरा का घर नी जगा मैं कू
स्वामी विछोह होयूं च जैं कू।
रामी थैं स्वामी की याद ऐगे,
हाथ कूटलि छूटण...
बग्वाल या बूढ़ी दीवाली (Diwali)का भगवान राम से कोई लेना-देना नहीं
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
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हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) और उत्तराखंड (UTtarakhand)में दीपावली के बाद लगभग ११ दिन से एक माह के दौरान फिर से दीवाली मनाई जाती है। इसे कहीं बूढ़ी दीवाली, कहीं इगास-बग्वाल कहा जाता है। इन दोनों राज्यों में प्रचारित किया...
हिमालय के गढ़ भाग-तीन
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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा गढ़वाल के गढ़-गढ़ियों के बाद अब कुमायुं के कोट यानी किलों (kot or fort of Kumaon) को लेकर जानकारी दे रहा हूं।
जब तक मैं आगे...
पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ के निर्माता पारासर गौड़ अब सात समंदर पार कनाडा में रहते हैं। 1983 में बनी इस फिल्म के आने के बाद उत्तराखंड में गढ़वाली और कुुमांउनी फिल्मों के निर्माण के दरवाजे खुल गये। अब तक दो दर्जन से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं।
पारासर को गढ़वाली फिल्मों के दादा साहेब फालके कहा जा सकता है। उनका...
प्राचीन ग्रंथों में तपोभूमि हिमवन्त बदरीकाश्रम, उत्तराखंड केदारखण्ड आदि नाम से प्रसिद्ध भू-भाग का नाम गढ़वाल सन् 1950 ई. के आसपास पड़ा। ख्याति प्राप्त इतिहासकारों का यह मत है कि उस वक्त इस प्रदेश में बावन या चौंसठ छोटे-छोटे सामन्तशाही ठाकुरगढ़ थे। ऋग्वेद में इन गढ़ों की संख्या 100 है। इसलिए अनेक गढ़ वाले देश अर्थात गढ़वाला या गढ़वाल...