बंदा सिंह बैरागी- एक पहाड़ी ब्राह्मण जो पहला सिख जनरल बना

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

इस बार आपको एक पहाड़ी ब्राह्मण  को लेकर जानकारी दे रहा हूं, जो पहला सिख जनरल बना । वह थे बंदा सिंह बैरागी। (Badnda singh Viragi) आक्रांता मुगलों ने इस महान सिख सेनापति के मुंह में उसके बेटे का दिल निकाल कर ठूंस दिया था और बाद में उस सेनापति के एक-एक अंग काट कर फेंक दिए थे। इस अत्याचार व क्रूरता के बावजूद उन्होंने मुसलमान बनने से इनकार कर दिया था। दुख की बात है कि इस महान योद्धा बंदा सिंह बहादुर  को इतिहास में वह दर्जा नहीं मिल पाया, जिसके वे हकदार थे।  उन्हें बन्दा बहादुर, वीर लक्ष्मण देव भारद्वाज, महंत माधो दास बैरागी और वीर बन्दा बैरागी (Badnda singh Viragi) के नाम से भी जाना जाता है। उनका मूल नाम लक्ष्मण देव भारद्वाज था। जो कि जम्मू के भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मण थे।

बाबा बन्दा सिंह बहादुर (Badnda singh Viragi) का जन्म कश्मीर के राजौरी क्षेत्र में 27 अक्टूबर 1670 को हिन्दू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ इतिहासकार उनको राजपूत बताने का प्रयास करते हैं, परंतु भारद्वाज टाइटल को ब्राह्मणों का होता है, नकि राजपूतों का। प्रसिद्ध सिख इतिहासकार जतिंद्र सिंह दत्त अपनी पुस्तक – कौन थे बंदा वैरागी- में लिखते हैं कि वे मोहयाल ब्राह्मण थे। (Badnda singh Viragi) मोहयाल ब्राह्मण अफगानिस्तान, सिंध और कश्मीर में शासक रह चुके हैं। वह यह भी कहते हैं कि भारद्वाज गोत्र के ब्राह्मणों का होता है, जबकि राजपूत तो सूर्यवंशी या चंद्रवंशी के तौर पर जाने जाते हैं। राजपूतों ने कभी दावा भी नहीं किया कि वीर बन्दा बैरागी (Badnda singh Viragi) उनके कुल के थे। इसी तरह सिख इतिहासकार बुद्ध सिंह भी उन्हें अपनी किताब चौवन रत्न में मोहयाल भारद्वाज ब्राह्मण लिख चुके है।

बहरहाल, लक्ष्मणदेव  भारद्वाज (Badnda singh Viragi)  को कुश्ती, शिकार आदि का शौक था। उन्होंने 15 वर्ष की आयु में उन्होंने एक गर्भवती हिरणी का शिकार कर दिया। इससे उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा और वह अपना घर-बार छोड़कर बैरागी (Badnda singh Viragi) बन गये। वे जानकी दास नाम के एक बैरागी के शिष्य हो गए और उनका नाम ‘माधोदास बैरागी’ पड़ा। उन्होंने रामदास बैरागी नाम के बाबा का भी शिष्यत्व ग्रहण किया और कुछ समय तक पंचवटी , नासिक  में भी रहे। इसके बाद वे नान्देड क्षेत्र चले गए।  तीन सितंबर, 1708 को डेरे नांदेड़ में माधो राम की भेंट गुरु गोबिंद जी से हुई। गुरु जी ने माधो दास की शारीरिक शक्ति, एकाग्र बल तथा अन्य शक्तियां देखकर उन्हें सिक्ख बनाया और उनका नाम बन्दा सिंह बहादुर रख दिया। जेएस गरेवाल ने अपनी पुस्तक – सिख्स ऑफ़ पंजाब- में लिखा है कि गुरु गोविंद सिंह ने बंदा सिंह को एक तलवार, पांच तीर और तीन साथी दिए। गुरु ने बंदा बहादुर को तीन साथियों के साथ पंजाब कूच करने का निर्देश दिया। उनसे कहा गया कि वो सरहिंद नगर पर जाकर क़ब्ज़ा करें और अपने हाथों से वज़ीर ख़ाँ को मृत्यु दंड दें।गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश पर ही बाबा बन्दा सिंह पंजाब गए और सिक्खों के सहयोग से मुग़ल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुए। बाबा बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 को भयंकर युद्ध में सूबेदार वजीर खां को मार दिया। वजीर खान ने ही गुरु गोबिंद सिंह  के दो साहिबजादों को जिंदा ही दीवार में चुनवा दिया था। बाबा बंदा बहादर ने वजीर खान और उसकी फौज को मात देकर इसका बदला लिया था। आज उसी जगह पर फतेह मीनार नजर आती है। वजीर खान को मारने के बाद उसकी लाश को घोड़े के पीछे बांधकर सरहिंद की गलियों में घुमाया गया था। तब लोगों के दिलों में मुगलों की काफी दहशत थी। वजीर खान का खात्मा कर बाबा बंदा सिंह बहादुर ने लोगों को उसके अत्याचारों से निजात दिलाई थी। 14 मई, 1710 ई को सिख विजयी बनकर सरहिंद में दाखिल हुए थे। उन्होंने सरहिंद कर सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की।

बंदा वैरागी क्रूर मुगलों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले प्रथम सिक्ख सैन्य प्रमुख थे। उन्होंने सिक्खों के राज्य का विस्तार भी किया। उन्होंने मुग़लों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा, छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह के संकल्पित प्रभुसत्तासम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में ख़ालसा राज की नींव रखी। बन्दा बहादुर ने गुरु नानक देव और गुरू गोबिन्द सिंह के नाम से सिक्का और मोहरे जारी कीं।

बन्दा बहादुर जी ने अति प्राचीन ज़मींदारी प्रथा का अन्त कर दिया था तथा कृषकों को बड़े-बड़े जागीरदारों और ज़मींदारों की दासता से मुक्त कर दिया था। उन्होंने मुसलमानों को भी अपने राज्य में पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता दी थी। पांच हज़ार मुसलमान भी उनकी सेना में थे।

बाद में 7 दिसंबर, 1715 को मुगल फौज ने गुरदास नंगल की गढ़ी पर कब्जा कर लिया। बाबा बंदा सिंह बहादुर मुगल फौज ने बंदा बहादुर को कैद कर लिया। उनको एक बड़े लोहे के पिंजरे में बंद कर दिया गया।  9 जून, 1716 को जुलूस की शक्ल में बाबा बंदा सिंह बहादुर (Badnda singh Viragi) तथा उनके चार वर्षीय पुत्र को अनेक सिखों के साथ कुतुबमीनार के समीप ले जाया गया। उनसे इस्लाम कबूल करने या मौत चुनने को कहा गया।बाबा बंदा सिंह बहादुर के पुत्र अजय का दिल निकाल कर उनके मुंह में डाला गया। 9 जून, 1716 को दिल्ली में अनेक कष्ट झेलते हुए बाबा बंदा सिंह बहादुर (Badnda singh Viragi) शहीद हो गए। बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु के दो साल बाद महान मराठों की मदद से सैयद भाइयों ने फ़र्रुख़सियर को गद्दी से हटाने के साथ ही उसकी आँखें फोड़ दीं। इसके बाद मुग़ल साम्राज्य का भी विघटन होता चला गया और एक दिन उसके वंशजों को लाल किले से भाग जाना पड़ा।

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यह थी एक पहाड़ी ब्राह्मण की गाथा, जिसने खलासा राज्य की नींव रखी। परंतु जिसे इतिहास में वह जगह नहीं मिल पाई जिसके वे हकदार थे। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। चैनल पसंद आए तो लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, जिन्होंने अब तक ऐसा नहीं किया है। हिमालयीलोग चैनल और हिमालयीलोग वेबसाइट हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए लाए गए हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। मेरे लिखे इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला—और अंतिम गीत – नदियों के गीत को भी सुन लेना। इसी चैनल में हैं। समाचार विश्लेषण पर हमारे चैनल संपादकीय न्यूज  को भी अवश्य देखिएगा। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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