गढ़वाली सिख  यानी सिख नेगियों की गाथा

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा 

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

 

इस बार आपको उत्तराखंडी, विशेष तौर पर गढ़वाली सिखों के बारे में जानकारी दे रहा हूं। वे वे सिख नहीं, जो कि पंजाब मूल के हैं और शहरों में रहते हैं। गढ़वाल के गांवों में रह रहे ये लोग सिख नेगी (Sikh Negi) कहलाते हैं और क्षत्रिय यानी राजपूत हैं। सिख गुरुओं का उत्तराखंड से विशेष संबध रहा है। प्रथम गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार के साथ ही उत्तराखंड की यात्रा की थी। जबकि दसवें गुरु गोविंद सिंह ने ब्रदरीनाथ धाम के निकट तपस्या की थी। आज वहां  हेमकुंड साहिब  गुरूद्वारा है। इस बारे में कभी विस्तार से बात करूंगा, अभी सिख नेगियों के बारे में बता रहा हूं। 

उत्तराखंड के पौड़ी जिलें में बिजौंली, हलूणी, पिपली आदि कई गांव हैं जहां सिख नेगी (Sikh Negi) रहते हैं। समेत कई गांव हैं जहां सिख नेगी रहते हैं। वे सहजदारी लोग हैं। केश, दाड़ी, पगड़ी नहीं रखते। वे स्वयं को गुरु नानकदेव का अनुयायी बताते हैं। सिख नेगियों के बारे में बताने से पहले मैं उत्तराखंड के नेगियों के बारे में कुछ जानकारी दे देता हूं। वैसे नेगियों पर पहले ही एक वीडियो हिमालयीलोग चैनल में है। उत्तराखंड में नेगी राजपूतों की प्रमुख जाति है। नेगी सरनेम लिखने वाले लोगों में कई उप जातियों के क्षत्रिय शामिल हैं। राजशाही के समय नेगी तब राजदरबार का एक पद होता था। डॉ शिव प्रसाद चारण  अपनी पुस्तक ‘उत्तराखंड का इतिहास में नेगी जाति को लेकर लिखते हैं कि प्राचीन संभ्रांत परिवारों के प्रतिनिधियों के रूप में उन्हें मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया था। नेगी का पद प्रायः वंश परंपरागत रहता था । राजा विशिष्ट सेवाओं के कारण किसी भी व्यक्ति को नेगी बना सकता था। हिमाचल में भी नेगी होते हैं। परंतु वे उत्तराखंड के नेगियों ने भिन्न हैं।  यह भी प्रचलित है कि आज के नेगी यहां की प्रमुख नाग जाति के वंशज हैं। यहां कभी नागों का एकक्षत्र राज्य था । वे श्रीकृष्ण की पूजा करते थे। आज भी कई जगह नाग मंदिर हैं। कुछ लोग एक अन्य  थ्योरी भी देते हैं। वे अनुमान लगाते हैं कि नेगी शब्द फारसी या तुर्की भाषा के नागी से निकला है। नागी का  अर्थ विशेषाधिकार प्राप्त होता है। नागवंशियों को कुलिंद, कत्यूर- खस और फिर पंवार राज दरबार में भी विशेषाधिकार प्राप्त होने से नेगी कहा गया।  पद सिविल पद था।

उत्तराखंड में इन्हीं नेगियों में शामिल हैं सिख नेगी। माना जाता है कि उत्तराखंड के सिख नेगी यहां लगभग तीन- चार सौ साल से रह रहे हैं। उनके पूर्वज गुरु नानक देव के अनुयायी  थे, जो पहाड़ आकर यहां के समाज में घुल मिल गए, यहां के समाज का अभिन्न हिस्सा बन गए। परंतु गुरु को नहीं भूले। इनके गांवों में एक पहले तो एक झंडे के तौर पर गुरु का निशान रहता था, लेकिन बाद में पंजाब के सिखों के संपर्क में आने पर गुरुद्वारे भी बनने लगे। सिख नेगियों के रोटी-बेटी के संबंध गढ़वाल के अन्य राजपूतों से ही होते हैं, उनके पंडित-पुरोहित भी होते हैं। उनके भी वही कुल देवी, कुलदेवता, ग्राम देवता, ईष्ट देवता हैं जो कि गढ़वाल के अन्य लोगों के हैं। यहां के बिजौली गांव की बात करें तो यहां एक गुरुद्वारा है। वहां प्रतिवर्ष गुरु नानक जयंती पर मेला लगता है । गुरु पूजा के साथ ही गांव के सभी लोग सभी हिंदू देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं। इन लोगों के  पुर्वजों के गढ़वाल में आने को लेकर कहा जाता है कि गुरु नानक देव गढ़वाल भ्रमण पर आए थे। उनके कुछ अनुयायी भी यहीं बस गए। इतिहास में गुरु नानक देव के हरिद्वार  व आज के नैनीताल –उधमसिंह नगर क्षेत्र में आने के प्रमाण मिलते हैं। माना जाता है कि धर्म के आधार पर अत्याचार करते वाले  मुसलिम आक्रांताओं से बचने के लिए सिख भी यहां आए होंगे। वैसे  उस कालखंड में हिंदू-सिख की ऐसी अलग-अलग पहचान नहीं थी, जैसी कि आज है। इसलिए गुरू को मानने के साथ ही सिख नेगी यहां हिंदू देवी-देवताओं को पूजते हैं।इतिहास साक्षी है कि गुरु गोबिंद सिंह जी भी देवी  यानी मां भगवती के भक्त थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने चार रचनाएं की। इनमें मां चंडी के अनेक गुणों का वर्णन किया। गुरु गोबिंद सिंह ने माता नैना देवी के मंदिर में तपस्या की थी और एक साल से अधिक समय तक मंदिर के हवन कुंड में हवन किया था। हिमाचल प्रदेश के  नैनादेवी पहाड़ के नीचे सतलज नदी के किनारे बैठ कर ‘रामावतार’ की रचना पूरी की थी।  इसी तरह गुरु गोबिंद सिंह ने उत्तराखंड के चमोली जिले के लक्ष्मण मंदिर के पास हेमकुंड के पास भी तपस्या की थी। आज वहां हेमकुंड साहिब गुरुद्वारा है।

बहरहाल, पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लॉक में सिख नेगियों के दो गांव बिजौली और हलूणी  हैं। कहा जाता है कि ये दोनों गांव दो सगे भाइयों के बसाए हैं। यहां के खुटेटा गांव में भी सिख नेगी रहते हैं। हलूणी गांव को लेकर कहा जाता है कि लगभग  चार सौ साल पहले पंजाब से दयाल सिंह नाम के व्यक्ति आए थे।  यहां गांव में गुरुद्वारा और मंदिर एक साथ हैं। गुरुद्वारे में अरदास और मंदिर में देवी देवताओं की पूजा होती है। इन सिख नेगियों के सभी रीति रिवाज गढ्रवालियों के ही हैं। इसी तरह  पौड़ी में सिख नेगियों के एक गांव पीपली भी है। यहां भी एक गुरुद्वारा है। कहा जाता है कि जब गुरु नानक देव गढ़वाल भ्रमण पर आए तो कुछ दिन तक रिठाखाल में एक  पेड़ के नीचे रहे। इसी तरह पीपली गांव में पीपल के गांव  पेड़ के नीचे बैठे थे। हालांकि रीठा वाली कहानी उत्तराखंड के गुरुद्वारा रीठा साहिब को लेकर है।

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