हिडिंबा के राज्य में थी एक बीरा बैण — नये अंदाज में उत्तराखंड की लोक-कथा

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हिडिंबा के राज्य में थी एक बीरा बैण /नये अंदाज में उत्तराखंड की लोक-कथा

परिकल्पना-डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति

दोस्तों, बीरा बैण की कहानी हम सभी दादी-नानी के समय से सुनते आ रहे हैं। यह कहानी सदियों से एक ही ढर्रे पर चल रही है। मैंने इस लोककथा को उसके कालखंड से जोड़ने तथा इसे नये तरीके से पेश करने का प्रयास किया है। यह एक प्रयोग मात्र है। चूंकि इस कथा में एक राक्षस भी है, इससे यह लगता है कि यह कालखंड महाभारत काल का है। तब राक्षस यानी नरभक्षण करने वाले लोग भी थे। हालांकि उनकी संख्या कम होने लगी थी। पहले राक्षसों के बारे में कुछ बता देता हूं। राक्षस एक प्रवृति है, जो समाज के नियमों और मित्रता में विश्वास नहीं रखता है और दूसरों की हर वस्तु को हडप लेना चाहता है। समाज में राक्षस आज भी हैं। वैसे राक्षस प्राचीन काल की एक प्रजाति का नाम है। रक्ष धर्म को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। माना जाता है कि इसकी स्थापना लंकेश रावण ने की थी।  राक्षस दो ऋषियों वैश्रव और पुलत्स्य ऋषि के के वंशज माने जाते  हैं। मानव सभ्यता के इस विकास में मानव की कई प्रजातियां नरभक्षण करती रही हैं। राक्षस भी इनमें शामिल रहे हैं। 19वीं शताब्दी तक  दक्षिण प्रशांत महासागरीय कुछ देशों की संस्कृति में नरभक्षण के प्रमाण मिलते हैं। कहा जाता है कि  मेलेनेशिया में तो  मानव मांस के बाजार लगते थे। फिजी को कभी ‘नरभक्षी द्वीप’ यानी कैंनिबल आइलैंड के नाम से जाना जाता था। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि निअडरथल लोग नरभक्षण किया करते थे।  क्रोएशिया में क्रापीना गुफा में  उनके मानव मांस खाने के सबूत भी मिले हैं। भीषण अकाल काल में भी कभी-कभी नरभक्षण करने की घटनाएं हुई हैं।

हिमालयी क्षेत्र समेत भारतवर्ष में आदिकाल में प्रमुख रूप से ये जातियां थीं। इनमें देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, भल्ल, वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, किरात, रीछ, नाग, विद्‍याधर, मानव, वानर आदि प्रमुख थे। राक्षस को अक्सर बदसूरत, भयंकर दिखने वाले और विशाल प्राणियों के रूप में चित्रित किया गया था, जिसमें दो नुकीले मुंह ऊपर से उभरे हुए और नुकीले, पंजे जैसे नाखूनों वाले होते थे। उन्हें जानवरों की तरह बढ़ता हुआ और अतृप्त नरभक्षी के रूप में दिखाया गया है। वे मानव मांस की गंध को सूंघ सकते थे। यह भी कहा जाता है कि वे उड़ सकते थे, लुप्त हो सकते थे और उनमें माया शक्तियां थीं। रामायण और महाभारत काल में राक्षस मौजूद थे।

महाभारत काल में हिमालय के आज के उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हिडिंब राक्षस का आतंक था।  महाबली भीम ने उसे मार कर उसकी बहन हिडिंबा से ब्याह किया था। हिडिंबा और भीम के पुत्र घटोत्कच ने इस क्षेत्र में राज किया। परंतु वह भी महाभारत युद्ध में मारा गया था। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू राजवंश की कुलदेवी यही हिडिंबा है। पाण्डुपुत्र भीम से विवाह करने के बाद हिडिंबा राक्षसी नहीं रही। वह मानव बन गई और कालांतर में मानव से देवी बन गई। भगवान श्रीकृष्ण ने हिडिंबा देवी को लोगों के कल्याण के लिए प्रेरित किया था। महाभारत काल में इस क्षेत्र में कुलिंद, किरात, नाग,खस, कोलीय लोग निवास करते थे। बीरा बैण के भाई जंगल में शिकार करने जाते हैं, वे पशुपालन या खेती के लिए नहीं जाते। इससे भी साफ है कि यह कहानी उस समाज की है जो कि पशुपालक नहीं था। खस यहां का पशुपालक समाज  था। यानी बीरा बैण खसों ने पहले यहां निवास कर रहे कुलिंद समाज के समय की कहानी प्रतीत होती है। तो आइए अब नये अंदाज में इस लोक कथा का आनंद लीजिए।

महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। हस्तिनापुर में महाराज युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के बाद राजसूय यज्ञ की तैयारी होने लगी थी। उसी समय हिमालय की उपत्यकाओं में कुलिंद, खस, नाग, और किरात राज कर रहे थे। यमुना घाटी के सूदूर जंगल में एक बुजुर्ग महिला अपनी बेटी और सात बेटों के साथ रहती थी। उसकी बेटी का नाम था बीरा। कुछ दिनों बाद जब बुढ़िया की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। इसलिए अब उन्हें अपने लिए भोजन खुद ही तलाशना था। मां से वे सुन  चुके थे कि राक्षसों का अब लगभग अंत हो चुका है, फिर भी मां उनको सतर्क रहने को कहती थी।

एक दिन सातों भाई भोजन की तलाश में  एक साथ शिकार के लिए निकले। उन्होंने चलते-चलते अपनी बहन बीरा से कहा-तुम हमारे लिए भोजन बनाकर रखना, हम जल्दी लौट कर आ जाएंगे। भाइयों के जाने के बाद झोंपड़ी में बीरा अकेली रह गई। बीरा ने आग जलाकर खीर बनाना शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद खीर उबल कर चूल्हे में गिर गई। इससे आग बुझ गई। बीरा बहुत परेशान हुई। उसके पास माचिस भी नहीं थी, वह आग कैसे जलाती? उसके आस-पास कोई घर भी नहीं था। अब वह आग कहां से मांग कर लाए? वह अपनी झोंपड़ी से निकल कर जंगल में दूर तक निकल गई। देखने लगी कि कोई घर मिले, तो वहां से आग मांग ले। बहुत आगे चले आने पर उसे एक बड़ा-सा मकान दिखाई दिया। उसने मकान के सामने जाकर उसका दरवाजा खटखटाया। दरवाजा एक औरत ने खोला। औरत ने बीरा को देखकर कहा-‘तुम यहां से चली जाओ। यह राक्षस का घर है। वह अभी आने वाला है। तुम्हें देखेगा, तो तुम्हें खा जाएगा।’

बीरा ने कहा-‘बहन! मुझे थोड़ी-सी आग चाहिए। खाना बनाना है। बड़ी जोर की भूख लगी है।’

वह औरत राक्षस की पत्नी थी, लेकिन जब बीरा ने उसे बहन कहा, तो उसे बीरा पर दया आ गई। उसने बीरा को जल्दी से थोड़ी-सी आग दे दी। उसने उसे चौलाई भी दी और कहा-‘तुम यहां से जल्दी निकल जाओ। ऐसा करना कि रास्ते में इस चौलाई के दानों को गिराती जाना। जहां भी दो रास्ते मिलें, वहां के बाद चौलाई मत गिराना। इससे राक्षस रास्ता भटक जाएगा और तुम्हारे घर तक नहीं पहुंच सकेगा। याद रखना इस चौलाई को अपने घर तक मत ले जाना, नहीं तो राक्षस वहीं पहुंच जाएगा।’

बीरा अपने साथ चौलाई ले गई और उसके दाने रास्ते में गिराती गई। वह जल्दी-जल्दी जा रही थी। वह राक्षस की पत्नी की बात भूल गई। उसने पूरे रास्ते पर चौलाई के दारे गिरा दिए। कुछ दाने अपने घर तक भी ले गई।

जब राक्षस अपने घर लौट कर आया, तो उसे मनुष्य की गंध आने लगी। वह समझ गया कि आज जरूर कोई मनुष्य मेरे घर आया है। उसने अपनी पत्नी से पूछा- ‘आदमी की गंध आ रही है, क्या कोई आदमी हमारे घर आया था?’

उसकी पत्नी ने कहा-‘नहीं तो। यहां तो कोई नहीं आया।’

राक्षस ने अपनी पत्नी को पहले तो खूब डांटा। फिर मारना-पीटना शुरू कर दिया। डर के मारे उसकी पत्नी ने राक्षस को बीरा के आने की बात बता दी। सुनते ही वह राक्षस बीरा की तलाश में निकल पड़ा। वह चौलाई के बीज देखता हुआ बीरा की झोंपड़ी तक पहुंच गया। झोंपड़ी में बीरा अकेली थी। तब तक उसके भाई नहीं लौटे थे। उसने अपने भाइयों के लिए खाना बनाकर सात थालियों में परोस कर रखा हुआ था। राक्षस को देखकर वह डर गई और पानी के पीपे में छिपकर बैठ गई। राक्षस ने सारा खाना खा लिया। खाने के बाद वह पानी के पीपे की ओर गया। सारा पानी पीने के बाद उसने खाली पीपे में बैठी बीरा को पकड़ लिया। वह बीरा को जीवित निगलने वाला ही था कि सातों भाई आ गए। उन्होंने मिलकर राक्षस को मार डाला। इस तरह उन्होंने अपनी इकलौती बहन को राक्षस का निवाला बनने से बचा लिया। इसके बाद वे भाई-बहन सुख पूर्वक रहने लगे। जब भी वे कभी बाहर जाते, तो कोई न कोई भाई बीरा के पास जरूर रह जाता था।

दोस्तों यह थीं बीरा बैण की कहानी, जो कि सत्य के करीब लगती है। आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं कि यह प्रयोग कैसा रहा। हम हिमालयी क्षेत्र की लोक कथाओं को नये अंदाज में पेश करते रहेंगे। यह चैनल हिमालयी लोगों की संस्कृति, इतिहास, लोग, सरोकार आदि को देश-दुनिया के सामने रखने का प्रयास कर रहा है। आपका सहयोग चाहिए। इसलिए हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलाना। अंत में एक बात और। इस वीडियों का टाइटल सौंग — हम पहाड़ औंला — मेरा ही लिखा है।  हिमालयी लोग चैनल में है। उसे एक बार अवश्य  सुनिएगा।

जै हिमालय- जै भारत।

 

 

 

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