सुल्ताना डाकू : उत्तर भारत का रॉबिन हुड यानी गरीबों का प्यारा

0
1207

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली/ www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com / E- mail- himalayilog@gmail.com

जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार सुल्ताना डाकू (Sultana Daku)के बारे में जानकारी दे रहा हूं, जिसे रॉबिनहुड और – गरीबों का प्यारा डाकू – कह के याद किया जाता है। जो उत्तराखंड समेत उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश से पंजाब तक अंग्रेजों को लूटकर गरीबों में बांटता रहा।

सुल्ताना डाकू की कहानी आगे बढ़ाने से पहले आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

 सुल्ताना डाकू। (Sultana Daku) वह एक डाकू था। परंतु कोटद्वार के निकट के शहर नजीबाबाद क्षेत्र के लोग उसकी पूजा करते थे। उसने हमेशा ही महिलाओं का सम्मान किया। वह मात्र ३० साल की उम्र ही जी पाया।  १९२० के दौर में वह गरीबों का मसीहा बनकर उभरा था। यह भी जानने लायक है कि जिस सुल्ताना डाकू को पकड़ने के लिए अंग्रेज पुलिस अफसर फ्रेडी यंग ने अपनी जान की बाज़ी लगा दी, उसकी कहानी सुन कर वही अफसर उसकी जान बचाने का प्रयास करने लगा था। वास्तव में वह गुलामी के दौर में अंग्रेजों से अपने तरीके से लड़ रहा था।

 प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक -माई इंडिया- के अध्याय -सुल्ताना: इंडियाज रोबिन हुड- में सुल्ताना की मौत के बाद उसे याद करते हुए  लिखा कि – एक डाकू के तौर पर अपने पूरे जीवन में सुल्ताना (Sultana Daku)ने किसी गरीब आदमी से एक कौड़ी भी नहीं लूटी। सभी गरीबों के लिए उसके दिल में एक विशेष जगह थी। जब-जब उससे चंदा मांगा गया, उसने कभी इनकार नहीं किया और छोटे दुकानदारों से उसने जब भी कुछ खरीदा, उसने उस सामान का हमेशा दोगुना दाम चुकाया। वे आगे लिखते हैं कि –मैं चाह सकता था कि न्याय कि यह मांग न हो कि उसे बेड़ियां पहनाए हुए सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाए और उन लोगों के मखौल का पात्र बनाया जाए जो उसके जीते जी उसके नाम से थर्राते थे। मैं यह भी चाह सकता था कि सिर्फ इस  आधार पर उसे थोड़ी कम कठोर सज़ा दी जाती कि उस पर पैदा होते ही अपराधी का ठप्पा लग गया था और उसे पूरा मौका नहीं दिया गया।  यह भी कि जब उसके हाथ में ताकत थी, उसने गरीबों को कभी नहीं सताया। जब बरगद के एक पेड़ के पास मेरी उससे मुलाकात हुई। उसने मेरी और मेरे साथियों की जान बख्श दी थी। और आखिर में इस बात के लिए कि जब वह फ्रेडी से मुलाक़ात करने गया तो उसके हाथों चाकू या रिवॉल्वर नहीं बल्कि एक तरबूज था।

सुल्ताना डाकू (Sultana Daku) को जिम कार्बेट ने इसलिए रॉबिन हुड की संज्ञा दी कि वह भी अमीरों व अंग्रेज सरकार के खजाने को लूट कर गरीबों में बांट देता था। अमीरों का माल लूटना और ग़रीबों में बांटने के कारण ही 14वीं सदी के नायक रॉबिन हुड को  याद किया जाता है। वह अपने साथियों  के साथ ब्रिटेन के काउंटी नॉटिंघम शायर में शेरवुड के जंगलों में रहता था। रॉबिन हुड को लेकर कई उपन्यास लिखे गए और कई फ़िल्में बनीं। सुल्ताना डाकू की कहानी भी लगभग ऐसी ही है। उसने अंग्रेजों को लूट कर उनकी नाक में दम कर रखा था। अपना लूट माल गरीबों में बांट देता था।सुल्ताना डाकू (Sultana Daku)की लोकप्रियता का अंदाजा इस घटना से लगाया जा सकता है कि उसकी बहादुरी, दिलेरी और गरीबों की मदद से प्रभावित होकर एक युवा अंग्रेज महिला उससे प्यार करने लगी थी। सुल्ताना  पर भी कई फिल्में बनी व कुछ पुस्तकें भी लिखी गईं।

कभी आप लोग कोटद्वार और नजीबाबाद के बीच यात्रा करें तो एक पुराना किला दिखेगा। इसे सुल्ताना डाकू का किला कहा जाता है। मैं अपने गांव से देहरादून व दिल्ली आते-जाते हुए कोटद्वार से नजीबाबाद के बीच यात्रा करते हुए  हमेशा ही इस किले की एक झलक पाने का प्रयास करता हूं। यह किला लगभग चार सौ वर्ष पहले रुहेला सरदार नवाब नजीबुद्दौला ने बनाया था। आज इस किले के अवशेष ही बचे हैं। सुलताना ने इसे अपना ठिकाना बनाया था। इसलिए इसे सुल्ताना डाकू का किला कहा जाने लगा। इसे प्राचीन पत्थर गढ़ किला भी कहते हैं।

बात अंग्रेजी राज में बीसदी के प्रारंभ की है। सुलताना का जन्म उत्तर प्रदेश के भांतू कबीले में हुआ। उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के लखनऊ  कार्यालय की एक पुरानी फाइल सुल्ताना डाकू के बारे में कुछ जानकारी देती है। इस फाइल के अनुसार सुल्ताना डाकू मुरादाबाद के हरथला गांव का निवासी था। वह 17 साल की उम्र में ही डकैत बन गया। 22 साल की उम्र में उसका इतना खौफ हो गया कि उसका नाम सुनते ही लोग कांपने लग जाते थे। स्थानीय लोगों में उसका बहुत बड़ा सम्मान था। यानी वह आम लोगों के लिए रॉबिनहुड था।

सुल्ताना स्वयं को महान देशभक्त महाराणा प्रताप का वंशज मानता था। भांतू समाज सदियों  से उत्तर प्रदेश के बिजनौर-मुरादाबाद इलाके में रहता है। यह एक घुमन्तू और बंजारा समाज है। भांतू समाज अपने को मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप का वंशज मानते हैं। इनका मानना है कि महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हल्दीघाटी युद्ध के बाद भांतू समाज के लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में चले गए। सुल्ताना महाराणा प्रताप को अपना आदर्श मानता था, पितातुल्य मानता था। वह अंग्रेजों को पसंद नहीं करता था। इसलिए उसने अपने घोड़े का नाम चेतक और कुत्ते का नाम राय बहादुर रखा था। यह उपाधि तब अंग्रेज़ सरकार अपने वफ़ादार भारतीयों को देती थी।

सुल्ताना (Sultana Daku ) के बारे में इतिहास के पन्नों में बहुत कम जानकारी मिलती है। उसका पूरा नाम सुल्तान सिंह था। सुल्तान नाम होने से कुछ इतिहासकारों में उसके धर्म को लेकर मतभेद हैं और उसे मुसलमान बता देते हैं। परंतु प्रमाण इस बात के अधिक हैं कि वह हिंदू था। एक तो वह भांतू समाज से था और ये समाज हिन्दू धर्म को मानता रहा है। इसके अलावा राणा प्रताप के प्रति उसका सम्मान इसका दूसरा प्रमुख प्रमाण है।

सुल्ताना गरीब परिवार से था और लगातार शोषण होने से उसने डकैती का रास्ता अपना लिया था। दरअसल, अंग्रेजों ने भांतू समाज को अपराधी जाति घोषित किया हुआ था। अंग्रेज इस समाज की गतिविधियों पर लगातार नजर रखते थे। सुल्ताना (Sultana Daku) का जन्म बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था इसलिए उसकी मां और दादा ने उसे नजीबाबाद के किला स्थित मुक्ति फ़ौज यानी साल्वेशन आर्मी के कैम्प में भेज दिया था। साल्वेशन आर्मी कैंप में घुमंतू परिवारों के बच्चों को रखा जाता था, ताकि वे अच्छे नागरिक बन सकें। इस तरह का कैंप सबसे पहले 1898 में इंग्लैंड में आयोजित किए गए थे।  इस कैम्प में सुल्ताना और उसके साथियों का धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाने का भी कई बार प्रयास किया गया। परंतु इसमें अंग्रेज पादरियों को सफलता नहीं मिल पाई। अंतत: सुल्ताना वहां से भाग गया। उसके बाद उसका आपराधिक जीवन का आरम्भ हुआ।  शुरू में वह चोरियां करता था, परंतु बाद में अंग्रेजों के खजाने  लूटने लगा था। वह निडर था, बहादुर था, निर्भीक था। कहा जाता है कि सुल्ताना अपने मुंह में चाकू भी छिपा सकता था और समय आने पर उसका इस्तेमाल भी कर सकता था।

अंग्रेजों के शोषण व अत्याचारों को देखते हुए वह सुल्ताना 17 साल की उम्र में ही डाकू बन गया था। वह गरीब लोगो को अंग्रेजों के इस चंगुल से मुक्त करवाना चाहता था। इस लिए गरीब लोग भी उनका साथ देने लगे थे। वह अंग्रेजों के खजाने लूटाता और गरीबों में बांट देता था। उसके गिरोह में लगभग सौ डकैत होते थे। उसे लेकर यह भी कहा जाता है कि वह पहले सूचना देता था और फिर डकैती डालता था। सुल्ताना गुलामी के दौर में अंग्रेजों से त्रस्त लोगों के लिए एक नायक के रूप में उभरा था। अंग्रेजों की संपति लूट कर गरीबों में बांट देने से उसके चाहने वाले बहुत हो गए। इसलिए अंग्रेज भी उसे लंबे समय तक पकड़ नहीं पाए।

यह विचारणीय प्रश्न है कि सुल्ताना भी वही कार्य कर रहा था, जो कि अन्य देशभक्त भारत को अंग्रेजों के चंगुल से निकालने के लिए कर रहे थे। सुल्ताना डाकू (Sultana Daku)को वही लोग पसंद नहीं थे, जो कि अंग्रेजों की मदद कर रहे थे। गरीब लोगों का शोषण करने वालों को भी  सुल्ताना लूट लेता था। इसिलए वह अपने कार्यों को सही ठहराता था । अंग्रेज अधिकारी भी उससे खौफ खाते थे। भारत को आजाद करवाने के लिए बहुत से नायकों ने अपना बलिदान दिया था। इसी तरह के नायकों में शामिल सुल्ताना अपने तरीके से अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रहा था।

सुल्ताना की एक प्रेम कहानी भी है। कहते है की एक गोरी महिला को सुल्ताना से प्यार हो गया था। सुल्ताना छोटे कद का सांवली रंग का व्यक्ति था। उसे पाने के लिए एक अंग्रेज महिला ने प्रयास किए। उसने सुल्ताना के सामने अपने प्यार का इजहार भी किया था। यह भी कहा जाता है कि उसने उस महिला का अपहरण कर लिया था। बाद में उस  महिला का नाम पुतलीबाई पड़ गया। वैसे अंग्रेजों के उसे प्यार के जाल में फंसा कर पकड़ना चाहा था, परंतु इस काम के लिए जिस अंग्रेज महिला को लगाया गया था, उसे सचमुच में सुल्ताना से प्यार हो गया था।

सुल्ताना (Sultana Daku) ने अंतिम समय में नजीबाबाद क्षेत्र को अपना ठिकाना बना लिया था। तब देहरादून और नैनीताल जाने का रास्ता नजीराबाद से होकर जाता था। उधर से जाने वाले सभी अंग्रेजो और अमीरों को लूट लिया जाता था। उसने मॉल गाड़ियों को लूटना शुरू कर दिया। धीरे धीरे सुल्ताना का खौफ फ़ैलता चला गया। कहा जाता है कि लूट करने के बाद माता को पशु बलि भी चढ़ाता था।

सुल्ताना (Sultana Daku)के आतंक से निजात पाने के लिए अंगेजों ने 300 लोगों की टीम बनाई थी।  ये 300 जवान आधुनिक हथियारों से सुसज्जित थे। इनमें 50 घुड़सवारों का एक दस्ता भी था। फिर भी सुल्ताना पकड़ में नहीं आ सका। उसके बाद टिहरी रियासत के राजा के अनुरोध पर ब्रिटिश सरकार ने सुल्ताना को पकड़ने के लिए एक कुशल और बहादुर अफसर फ्रेडी यंग को बुलाया। फ्रेडी यंग का नाम सुल्ताना के साथ इतिहास में दर्ज हो गया। लंबे संघर्ष के बाद फ्रेडी ने सुल्ताना को पकड़ने में सफलता पाई। दूसरी ओर उसने सुल्ताना की मौत के बाद उसके बेटे और उसकी पत्नी की जैसी सहायता की, वह अपने आप में एक मिसाल है।

सुल्ताना (Sultana Daku)को कैसे पकड़ा गया, इसकी भी कहानी है। फ्रेडी यंग ने भारत पहुंचकर सुल्ताना की सभी वारदातों का विस्तार से अध्ययन किया। फ्रेडी यंग (dacoit Sultana and  SP Freddy Young) इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि सुल्ताना की कामयाबी का राज उसके जासूसों का जाल है, जो पुलिस में भी फैला हुआ था। इसमें मनोहर लाल नामक एक पुलिस अधिकारी सुल्ताना का खास आदमी था, वह हर सूचना सुल्ताना तक पहुंचा देता था।फ्रेडी यंग ने मनोहर लाल का दूसरे क्षेत्र में तबादला कर दिया। इसके बाद वह  सुल्ताना के एक विश्वसनीय मुंशी अब्दुल रज़्ज़ाक़ को अपने साथ मिलाने में सफल हो गया। वह नजीबाबाद का था। फ्रेडी यंग (dacoit Sultana and  SP Freddy Young)ने गोरखपुर से लेकर हरिद्वार के बीच ताबड़तोड़ चौदह बार छापेमारी की। इधर, सुल्ताना ने खड़ग सिंह नामके एक जमींदार को लूट लिया था। इस पर खड्ग सिंह अंग्रेजों से  मिल गया। यह भी कहा जाता है कि सुल्ताना के गिरोह के ही तुलाराम भी फ्रेडी यंग से मिल गया था।  फ्रेडी यंग (dacoit Sultana and  SP Freddy Young)को जिम कार्बेट और खड्ग सिंह ने सुल्ताना को ढूंढने में सहायता की। इस तरह अपनों के धोखे के कारण अंतत: 14 दिसंबर 1923 को  सुल्ताना को नजीबाबाद जिले के जंगलों से गिरफ्तार कर  लिया गया।सुल्ताना के साथ उसके साथी पीताम्बर, नरसिंह, बलदेव और भूरे आदि भी पकड़े गए थे। इस सभी को हल्द्वानी जेल में बंद कर दिया गया।

नैनीताल की अदालत में सुल्ताना (Sultana Daku)पर मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे को ‘नैनीताल गन केस’ के नाम से जाना जाता है। कोर्ट ने सुनवाई के बाद सुल्ताना डाकू को फांसी की सजा सुनाई। 7 जुलाई 1924 को सुल्ताना और उसके पंद्रह अन्य साथियों को आगरा की जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।  अंग्रेजों ने सुल्ताना और उसके साथियो के आलावा उसकी मदद करने वाले परिवारों को काला पानी की सजा दे दी। इस तरह से भारत के रॉबिनहुड सुल्ताना का अंत हो गया। सुल्ताना को फांसी पर लटकाया गया तो वह तीस साल  की उम्र पूरी नहीं कर पाया था।

सुल्ताना (Sultana Daku)को तो फांसी  हो गई, परंतु उसे पकड़कर सजा दिलवाने वाले फ्रेडी यंग को प्रमोशन भी मिला था।परंतु  वह खुश नहीं था, बहुत दुखी था। वह सुल्ताना को बचा नहीं पाया था। जिम कॉर्बेट ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि– समाज मांग करता है कि उसे अपराधियों से बचाया जाय और सुल्ताना एक अपराधी था। उस पर देश के कानून के मुताबिक़ मुकदमा चला, उसे दोषी पाया गया और उसे फांसी दे दी गयी।  जो भी हो, इस छोटे से आदमी के लिए मेरे मन में बहुत सम्मान है जिसने तीन साल तक सरकार की ताकत का मुकाबला किया और जेल की कोठरी में अपने व्यवहार से पहरेदारों का दिल जीता।

जिम कॉर्बेट ने यह भी लिखा कि जब सुल्ताना पर मुक़दमा चलाया जा रहा था, उसकी दोस्ती फ्रेडी यंग (dacoit Sultana and  SP Freddy Young) से हो गई। फ्रेडी यंग सुल्ताना की कहानी से इतना प्रभावित हो गया कि उसने सुल्ताना को क्षमा करने के लिए अर्जी तैयार करने में मदद की थी। परंतु वह अर्जी रद्द हो गई थी। सुल्ताना ने फ्रेडी यंग से उसके सात साल के बेटे को उच्च शिक्षा दिलाने का आग्रह किया था। फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की इच्छा का सम्मान किया। फ्रेडी यंग (dacoit Sultana and  SP Freddy Young)सुल्ताना को तो बचा नहीं पाया परंतु उससे किया हुआ वादा उसने उम्र भर निभाया। सुल्ताना के बेटे को पढ़ने के लिए उसने इंग्लैंड भेजा। उसके पिता के नाम के कारण कोई उसे परेशान न करे, इसके लिए उसे अपना भी नाम(dacoit Sultana and  SP Freddy Young) दिया। उच्च  शिक्षा प्राप्त करने के बाद सुल्ताना का बेटा भारत वापस आया और आईसीएस परीक्षा पास करने के बाद पुलिस का बड़ा अफसर बनकर इंस्पेक्टर जनरल के पद से रिटायर हुआ।

सुल्ताना (Sultana Daku) अपने जीवनकाल में ही एक मिथक बन गया था।  बाद में सुल्ताना डाकू पर नौटंकी और नाटक खेले गए और देश-विदेश में फिल्में भी बनाई गईं।  साहित्यकारों और लेखकों को भी सुल्ताना पर अपनी कलम चलाई।

यह थी सुल्ताना डाकू (Sultana Daku)की कहानी। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

==================== 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here