नई दिल्ली।मोक्षदायिनी गंगा राष्ट्रीय नदी का दर्जा मिल जाने पर भी मैली ही है । इसे निर्मल व अविरल बनाने के लिए बाद में गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण भी बनाया गया, नमामि गंगे योजना भी चल रही है। तब से लगभग आठ हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा राज्यों को दे दिये गये, लेकिन आज भी कोई नहीं कह सकता है कि गंगा मैली नहीं है।
मोदी सरकार नमामि गंगे योजना भी चला रही है. इससे पहले यूपीए सरकार ने २००९ में लोकसभा की चुनाव जंग में जाने से पहले चार नवंबर २००८ को गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था। सत्ता में लौटने पर फरवरी २००९ में प्राधिकरण भी गठित कर दिया। लेकिन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाला प्राधिकरण फाइलों तक सिमट कर रह गया। पिछले ढाई दशक में गंगा के नाम पर पहले भी १०२० करोड़ रुपये फूंके जा चुके हैं। इस पर भी अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘विश्व वन्यजीव निधि’ की सूची में गंगा विश्व की १० सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल है।
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गंगा का प्रदूषण—
केन्द्र सरकार की तमाम रिपोर्टें गवाह हैं कि गंगा और उसके तटीय क्षेत्रों का भूजल लगातार जहरीला होता जा रहा है। गंगा में आर्सेनिक जैसे विषैले तत्व की मात्रा लगातार बढ़ रही है। गंगा की सहायक नदियों यमुना, रामगंगा, चंबल, गोमती-घाघरा, टोंस-कर्मनासा, गंडक-बूढ़ी गंडक, सोन, कोशी और महानंदा आदि नदियों का भी यही हाल है। मुरादाबाद से गंगा का पानी पीने योग्य नहीं है।जीवनदायिनी और पतितपावनी गंगा अब खुद गंभीर बीमार है। देश के बड़े भू-भाग की आस्था से जुड़ी पवित्र गंगा के पर्यावरण के उसके अपनों ने ही बिगाड़ कर रख दिया है। हाल ये है कि 12 फीसद बीमारियों का सबब गंगा का पानी बन रहा है। विश्व की सबसे प्रदूषित नदियां ब्रिटेन की टेम्स और फ्रांस की राईन को बचा लिया गया है, अब सवाल यह है कि करोड़ों लोगों के जीवन से जुड़ी गंगा की रक्षा हो भी पाएगी या नहीं। गंगा के किनारे सदियों से फल-फूल रही सभ्यता ने ही उसके पर्यावरण को खतरे में डालकर सबसे भद्दा मजाक कर डाला है। यह किसी क्षेत्र विशेष तक नहीं सिमटा, बल्कि उद्गम स्थल गंगोत्री से लेकर समुद्र में उसकी मिलन स्थली गंगा सागर तक हर कहीं नजर आता है। नदी की जलधारा से सींचकर पली-बढ़ी सभ्यता अब करोड़ों लीटर जैविक और अजैविक कचरा प्रवाहित कर उसकी जान लेने पर तुली है। हालात ये हैं कि नदियों का पानी पीने योग्य नहीं है। विश्व बैंक की रिपोर्ट की मानें तो उत्तर प्रदेश में 12 फीसद बीमारियों की वजह गंगा का पानी है। औद्योगिक और घरेलू कचरे के चलते इसका बॉयलॉजिकल ऑक्सीजन तीन डिग्री सामान्य से बढ़कर छह डिग्री हो गया है। गंगा में प्रतिदिन 2 करोड़ 90 लाख लीटर कचरा व गंगा बेसिन में 12000 एम.एल.डी. घरेलू सीवेज है।
उत्तराखंड में गंगोत्री, यमुनोत्री, बदरीनाथ और केदारनाथ से ही सीवेज गंगा और उसकी सहायक नदियों में बहाया जा रहा है। हरिद्वार और ऋषिकेश समेत तकरीबन 15 शहर सीवेज की गंदगी गंगा में प्रवाहित कर रहे हैं। इन शहरों की तकरीबन 150 एमएलडी गंदगी नदी में छोड़ी जा रही है। दशकों की कोशिशों के बाद भी इस गंदगी का तकरीबन 50 फीसद यानी 74.5 एमएलडी के ट्रीटमेंट की सुविधा जुटाई जा सकी है। शेष ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण की गति बेहद धीमी है। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नमामि गंगे ने गंगा शुद्धिकरण की उम्मीदें जगाई तो हैं, लेकिन सालभर से ज्यादा अरसा गुजरने के बावजूद गंगा को प्रदूषण से बचाकर पुनर्जीवन देने की ठोस रणनीति और रोडमैप तैयार नहीं हो सका है। अलबत्ता, गंदगी सीधे गंगा में न जाए, इसके लिए सीवर लाइन और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एकसाथ बनाने की योजना को बदला गया है। अब गंदगी को साफ करने के लिए पहले ट्रीटमेंट प्लांट बनेगा।
उत्तराखंड के 15 शहरों से गंगा में यूं प्रवाहित हो रही सीवेज (एमएलडी में):
-हरिद्वार-103, ऋषिकेश-18.43, मुनिकीरेती-4.32, गोपेश्वर-2.97, टिहरी-3.86, श्रीनगर-5.1, जोशीमठ-3.0, उत्तरकाशी-3.15, गौचर-1.26, कर्णप्रयाग-1.18, रुद्रप्रयाग-1.33, कीर्तिनगर-0.22, नंद्रप्रयाग-0.23, बदरीनाथ-1.95 व देवप्रयाग-0.84
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