कौंन हैं नेपाल के कुमई बाहुन ?

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नेपाली कुमई ब्राह्मणों का इतिहास

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

 नेपाल में बाहुन शब्द वहां के पहाड़ी ब्राह्मणों के लिए एक बोलचाल में प्रयोग किया जाता है। बाहुन शब्द ब्राह्मण ही से निकला है। नेपाल में उत्तराखंड, विशेष तौर पर  कुमायुं से गए ब्राह्मणों को कुमैं या कुमई बाहुन कहा जाता है।  नेपाली समाज के लगभग हर क्षेत्र में कुमई बाहुन छाए हैं। नेपाल में इनको चतुर, चालाक व तेज- तर्रार माना जाता है। नेपाली में एक कहावत है “कुमाई को घुमाई”। जिसका का अर्थ है कि कुमई का जाल। अर्थात कुमई बाहुन (Nepali hill Brahmin)के जाल में फंसने से बचिए।

 प्रथम नेपाली फिल्म के मैतीघर के हीरो कुमई बाहुन चिदंबर प्रसाद लोहानी यानी  सीके लोहानी थे।यह फिल्म १९६६ में आई थीं। हिंदी फिल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री माला सिन्हा  से उनका विवाह हुआ। इसी तरह नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री केपीएस ओली भी कमुई बाहुन हैं। कीर्ति निधि बिष्ट भी नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री थे। नेपाली  इतिहासकार डोरबहादुर  बिष्ट से लेकर मिस नेपाल 2013 रहीं प्रीति सितौला भी कुमई बाहुन हैं।  प्रधानमंत्री, मंत्री, राजनेता, न्यायधीश, लेखक, कलाकार, संगीतकार, पत्रकार समेत लगभग हर क्षेत्र में हैं। यह भी जानने लायक है कि यहां तक कि भारत के दार्जिलिंग से सांसद  राजू बिष्ट भी इसी समुदाय से हैं। (Nepali hill Brahmin)

नेपाल में बाहुन शब्द वहां के पहाड़ी ब्राह्मणों (Nepali hill Brahmin) के लिए एक बोलचाल में प्रयोग किया जाता है। बाहुन शब्द ब्राह्मण ही से निकला है। इनके अलावा नेपाल में पुरबिया, नेवार और मधेशी समाजों में भी ब्राह्मण हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार नेपाल की आबादी में लगभग  12.2 प्रतिशत बाहुन हैं। नेपाल में विभिन्न प्रकार के बाहुन हैं।  इनमें पहाड़ी बाहुन, नेवार बाहुन, पुरबिया बाहुन, मधेशी या तराई बाहुन हैं। पहाड़ी बाहुन दो श्रेणियों में  बंटे हैं। पूरबिया यानी पूरब से आने वाले और कुमई यानी कुमायुं से आने वाले। ये दोनों ही आगे उपाध्याय और जैशी उप-जातियों में बंटे हैं।

कुमई बाहुन मूलत: उत्तराखंड यानी कुमायुं और गढ़वाल से आज के नेपाल आए बाहुनों (Nepali hill Brahmin)को कहा जाता है। चूंकि पहले  भाात-नेपाल के बीच आज जैसी सीमा रेखाएं नहीं थीं। इसलिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में बसना सामान्य बात थी। यह भी माना जाता है कि कुमायुं में कत्यूरों के राज के समय उच्च पदों पर रहे ब्राह्मण उनका खत्म होने तथा चंदों का राज आने के बाद डोटी, कर्णाली क्षेत्र में चले गए। क्योंकि वहां कत्यूरों के वंशजों का राज था। इसके बाद वे धीरे-धीरे आज के नेपाल के सभी क्षेत्रों में बसते चले गए। गढ़वाल से गए लोगों में कुछ वे लोग भी हैं जिनके पूर्वजों को गोरखा राज में बंदी बनाकर ले जाया गया था। नेपाल के पश्चिमी क्षेत्र के साथ ही ये कुमई बाहुन (Nepali hill Brahmin)अन्य क्षेत्रों में भी बसे हैं। नेपाल के पूर्वी हिस्से में आज लोग आमतौर पर  बाहुन की पहचान जानने के लिए पूछते हैं कि क्या वे उपाध्याय, जैसी या कुमई हैं ? (Nepali hill Brahmin)कुमई बाहुन नेपाल के पश्चिमी क्षेत्रों के साथ ही पूर्वी जिलों जैसे झापा में बड़ी संख्या में  बसे हैं।  पहले का नेपाल काठमांडू घाटी तक सीमित थी। गोरखा नरेश पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल का एकीकरण शुरू किया था।

नेपाली ब्राह्मणों में लगभग 30 प्रतिशत कुमई बाहुन हैं।(Nepali hill Brahmin) इनमें अवस्थी, भट्ट, भेटवाल या भेटुवाल, बिष्ट, चिलुवाल , ज्ञावली, जोशी, कदेल या कंदेल या कडेल, खरेल, लोहानी,  मैनाली मेनेली, ओली, , पांडे , पनेरू, पंत, पाठक, प्रसाई, रेग्मी, संगरौला, सेढाई,, शिवकोटीया  शिवाकोटी, सिम्खाड़ा, सितौला या  सिटौला, थपलिया, उप्रेती, त्रिपाठी, सेदाई, उप्रेती, कुकरेती, सीतौला, खरेल, सिंकहाड़ा, कफले, मैनाली, बस्तोला, सुयाल आदि प्रमुख हैं।

 

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