कड़े परिश्रम से मिल पाया था हिमाचल,  हिमाचल दिवस की शुभकामनाएं

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

 सबसे पहले तो हिमाचलियों को हिमाचल दिवस (Himachal Diwas) की शुभकानाएं। प्रति वर्ष 15 अप्रैल को ‘हिमाचल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। देश की स्वतंत्रता के बाद इसी दिन 15 अप्रैल, 1948 को 30-31  पहाड़ी रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश के रूप में नया राज्य भारत के मानचित्र पर अस्तित्व में आया था। हालांकि पूर्ण राज्य का दर्जा पाने के लिए हिमाचलवासियों को 25 जनवरी 1971 की प्रतीक्षा करनी पड़ी। तब हिमाचल प्रदेश भारत का 18वां राज्य बना था। हिमाचल को एक राज्य के तौर पर गठित करने के लिए केंद्र सरकार सहमत नहीं थी। भारत सरकार हिमाचल की रियासतों को आसपास के बड़े राज्यों में शामिल करने के पक्ष में थी। परंतु हिमाचल के लोगों के अथक प्रयासों से यह एक अलग राज्य बन गया। यही इस वीडियो में है।

इससे पहले मैं हिमाचल नाम को लेकर एक वीडियो बना चुका हूं। उसे भी देख लीजिएगा। केंद्र सरकार ने 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश का गठन करते समय उसे चार जिलों महासू, सिरमौर, चंबा, मंडी में बांटा था। इससे पहले हिमाचल छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। देश की स्वतंत्रता के बाद सरदार बल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से रियासतों का भारत संघ में विलय हो पाया।  रियासतों के विलय के लिए देशभर में प्रजा मंडल गठित किए गए। हिमाचल में भी प्रजा मंडल बनाए गए थे। बघाट के राजा दुर्गा सिंह ने शिमला हिल्स की रियासतों के भारत संघ में विलय को लेकर अहम भूमिका निभाई थी। 26 जनवरी, 1948 को शिमला की सभी रियासतों के प्रजामंडल के नेताओं की बैठक राजा दुर्गा सिंह ने सोलन में बुलाई। हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इस सम्मेलन में की गई। (Himachal Diwas) 

लेखक शेरजंग चौहान एक लेख में लिखते हैं कि — राजा बघाट दुर्गासिंह की अध्यक्षता में सोलन की ऐतिहासिक बैठक में पहाड़ी रियासतों के जनप्रतिनिधि, प्रजामंडल के नेता तथा 26 राजा-राणाओं की ओर से चुने गए प्रतिनिधि राजा बघाट दुर्गासिंह शामिल थे। राजा बघाट ने अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए सभी राजा-राणाओं की ओर से रियासतों के अधिकार जनता के प्रतिनिधियों को सौंप दिए थे।  इस संविधान सभा ने सभी रियासतों को एक प्रशासनिक इकाई में गठित करने का प्रस्ताव पारित किया था। इस बैठक में सभी रियासतों के प्रजामंडलों के नेता जिनमें बुशहर से सत्यदेव बुशहरी, ठाकुरसेन नेगी तथा बिर्जानंद नेगी, जुब्बल से भागमल सोहठा तथा शालीग्राम तेजटा, ठियोग से सूरतराम प्रकाश, क्योंथल से बाबू हुमानंद, देवीराम तथा विजय कुमार, भज्जी से भास्करानंद, अर्की से हीरासिंह पाल, धामी से सीताराम, कुम्हारसेन से केवल राम तथा महलोग से चिंतामणी आदि शामिल थे। (Himachal Diwas) 

बहरहाल,  तत्कालीन समाचार पत्रों में इस आशय के समाचार भी प्रकाशित हुए थे कि इस पृथक राज्य की मांग से केंद्रीय नेता सहमत नहीं थे, वे इसे साथ लगते बड़े सूबों में मिलाने के हक में थे। उन्होंने सिरमौर को उत्तर प्रदेश में तथा बाकी रियासतों को पंजाब में मिलाने की योजना बना ली थी। सिरमौर, बिलासपुर, सुकेत, मंडी को छोड़ कर 26 छोटी बड़ी रियासतों ने भारत संघ में विलय होने की हामी भर ली थी। बस विलय पत्रों में हस्ताक्षर होने बाकी थे। इस कार्य की पूर्ति के लिए सभी रजवाड़ा प्रमुखों को दिल्ली बुलाया गया।  वहां मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट्स के कार्यालय में मंत्रालय के सचिव सीसी देसाई के साथ बैठक हुई। इसमें सर देसाई ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा तथा हस्ताक्षर न करने की सूरत में उन्हें प्रिवीपर्स एवं भत्तों से वंचित रहने की धमकी दे डाली।   राजा बघाट दुर्गासिंह  ने इस पर कहा कि पहाड़ी रियासतों का एक अलग राज्य बना दिया जाए तो हम कहीं भी हस्ताक्षर करने को तैयार हैं। इस बात पर देसाई सहमत नहीं हुए और राजा बघाट को खरीखोटी सुनाई। वे अपना अपमान न सहते हुए अपने सभी साथियों सहित सभागार से बाहर आ गए। चौहान लिखते हैं कि सत्यदेव बुशहरी भी दर्शक दीर्घा में बैठे इस वार्तालाप को सुन रहे थे। उन्होंने राजा बघाट दुर्गा सिंह व बाकी राजाओं-राणाओं को सरदार पटेल से मिलाया। सरदार पटेल के सामने भी यही बात रखी गई कि पहाड़ी रियासतों का पृथक राज्य बनाया जाए ताकि यहां के गरीब एवं भोले- भाले लोगों को किसी के रहमों करम पर न रहना पड़े। यह भी कहा गया कि उनके विलयपत्र में इस बात को लिखा जाए कि ‘हिमाचल प्रदेश’ एक पृथक राज्य रहेगा। ढ़ेर सारी  दलीलें सुनने के बाद सरदार  पटेल उनकी मांग मानने पर सहमत हो गए। सरमदार पटेल ने हिमाचल प्रदेश को मान्यता देने का आश्वासन दिया तथा शिष्टमंडल को वीपी मेनन से मिलने को कहा। मेनन ने पटेल के आश्वासनानुसार लिखित रूप से यह शर्त मान ली और लिखा कि ‘‘हिमाचल प्रदेश एक पृथक इकाई के रूप में आरंभ में केंद्र के अधीन चीफ कमीश्नर द्वारा प्रशासित होगा और फिर उसे उपराज्यपाल और राज्यपाल का पूर्ण राज्य बना दिया जाएगा।

बहरहाल, इसी क्रम में दो मार्च, 1948 को शिमला हिल स्टेट के राजाओं का सम्मेलन दिल्ली में भी हुआ। राजाओं की अगुवाई मंडी के राजा जोगेंद्र सेन ने की। इन राजाओं ने हिमाचल प्रदेश में शामिल होने के लिए 8 मार्च 1948 को एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके बाद 15 अप्रैल 1948 की हिमाचल प्रदेश चीफ कमिश्नर के राज्य के रूप में अस्तित्व में आया। लगभग 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। देश में अपना संविधान लागू होने के साथ ही 26 जनवरी 1950 को हिमाचल प्रदेश ‘सी’ श्रेणी का राज्य बन गया। 1950 में प्रदेश के पुनर्गठन के तहत इसकी सीमाओं का पुनर्निर्धारण किया बिलासपुर रियासत को 1948 ई. में प्रदेश से अलग रखा गया था। क्योंतब उस क्षेत्र में भाखड़ा-बांध परियोजना का कार्य चला रहा था। एक जुलाई, 1954 ई. को कहलूर रियासत को प्रदेश में शामिल करके इसे बिलासपुर का नाम दिया गया। उस समय बिलासपुर तथा घुमारवीं नामक दो तहसीलें बनाई गईं। यह प्रदेश का पांचवां जिला बना। एक मई, 1960 को छठे जिला के रूप में किन्नौर का बनाया गया। इस जिले में महासू जिले की चीनी तहसील तथा रामपुर तहसील के 14 गांव शामिल गए गए।

इधर, 1966 में संयुक्त पंजाब का पुनर्गठन करके पंजाब और हरियाणा दो राज्य बनाए गए। संयुक्त पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों को हिमाचल प्रदेश में शामिल कर दिए गए। इस तरह हिमाचल प्रदेश को 25 जनवरी 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा  दे दिया गया। (Himachal diwas)

इस तरह हिमाचल प्रदेश एक राज्य के रूप में भारतीय मानचित्र में आ गया। इसलिए १५ अप्रैल को हिमाचल दिवस के रूप में बनाया जाता है। यह थी हिमाचल प्रदेश के अस्तित्व में आने की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। आपसे अनुरोध है कि हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  कर दीजिए, जिन्होंने अब तक ऐसा नहीं किया है। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ औंला—अंतिम गीत- नदियों के गीत– को भी सुन लेना। मेरे ही लिखे हैं। इसी चैनल में हैं। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

 

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