तो इस कारण पद्म पुरस्कार से वंचित हैं  नरेंद्र सिंह नेगी !

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

 इस बार उत्तराखंड केप्रसिद्ध लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) से जुड़े एक मुद्दे पर बात करने जा रहा हूं। मैं उनका जीवन परिचय अथवा उनके बारे में कोई जानकारी नहीं दे रहा हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि वे किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उत्तराखंडी खासतौर पर वे हर गढ़वाली के घर-घर में पहचाने जाते हैं और लोग उनसे अपार प्यार और स्नेह करते हैं। असमी लोक गायक भूपेन हजारिका ने जिस तरह से अपने गीतों ने लाखों दिलों को छुआ। भूपेन दा के गाए गीत “दिल हूम हूम करे” और “ओ गंगा तू बहती है क्यों” जिस तरह से असमी जन मानस में छाए हैं, उसी तरह उत्तराखंडी समाज में नरेंद्र सिंह नेगी के गीत हैं।

नेगी जी के गीतों से आम लोग अपनापन महसूस करते हैं। उनके गीतों में प्यार भी है, श्रृंगार भी। दुख-दर्द  व पीड़ा भी, तो खुशी भी। हंसी-मजाक भी है। उत्तराखंडी समाज के हर पहलु को उन्होंने गीतों के माध्यम से संजोया है। उनके गीतों में सौन्दर्य, प्रेम, स्नेह, ममत्व, दुःख-दर्द के साथ ही देव स्तुति, पर्यावरण आदि सभी विधाएं मौजूद हैं।  उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन को लेकर गाए उनके गीतों ने लोगों को उद्वेलित किया।  इन सबसे बड़ी वे राजनीतिक कटाक्ष भी करते हैं, जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा है। गढ़वाली के गीत, लोक संगीत के क्षेत्र में वे ऐसा कुछ सृजन कर गए हैं कि भविष्य में दूसरा कोई शायद ही ऐसा कर पाए। वे कवि भी हैं,  गायक भी हैं और संगीतकार भी। यह कह सकते हैं कि नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) गढ़वाली के गीत-लोक संगीत के पर्याय हैं। इसलिए अप्रैल 2022 में नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) को लोक संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। परंतु, आज का मुद्दा यह है कि उनको आज तब पदम सम्मान क्यों नहीं मिला पाया है। जबकि लंबे समय से यह मांग हाती रही है। कांग्रेस शासन के समय 2015 में मुख्यमंत्री हरीश रावत के सम्मुख भी यह मांग उठी थी। उस दिन 12 अगस्त यानी  नेगी जी का जन्मदिन था। इसके बाद अगस्त २०२१ में भाजपा के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नेगी जी की उपस्थित में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि नेगी जी को पद्म पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए केंद्र सरकार को संस्तुति भेजी जाएगी। परंतु नतीजा सबके सामने है। भूपेन हजारिका को पदम भूषण, दादा साहब फालके से लेकर भारत रत्न तक मिला, परंतु नरेंद्र सिंह नेगी को क्या मिला?

अब पद्म पुरस्कारों के बारे में बता देता हूं। इन पुरस्कारों के तहत ऐसा कुछ नहीं दिया जाता है कि कलाकार मालामाल हो जाए। बस इससे उनकी कला को सम्मान मिलता है। पद्म पुरस्कार देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं। ये पुरस्कार भारत सरकार हर वर्ष भारतीय नागरिकों को उनके असाधारण कार्यों के लिए देती है। ये पुरस्कार, विभिन्न क्षेत्रों जैसे कला, समाज सेवा, लोक-कार्य, विज्ञान और इंजीनियरी, व्यापार और उद्योग, चिकित्सा, साहित्य और शिक्षा, खेल-कूद, सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में प्रदान किए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन पुरस्कारों की घोषणा की जाती है। सामान्यतः मार्च/अप्रैल में राष्ट्रपति भवन में आयोजित सम्मान समारोह में राष्ट्रपति ये सम्मान देते हैं। पद्म पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिए जाते हैं. इसमें पद्म विभूषण- असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए।  पद्म भूषण- उच्च क्रम की विशिष्ट सेवा और पद्म श्री – प्रतिष्ठित सेवा के लिए दिए जाते हैं। पद्म पुरस्कार पद्म पुरस्कार समिति द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर दिए जाते हैं। पद्म पुरस्कार आम व्यक्ति भी पा सकता है। इसके लिए पद्म पुरस्कार के पोर्टल padmaawards.gov.in पर जाकर कोई भी व्यक्ति इन पुरस्कारों के लिए अपना नामांकन कर सकता है।

अब बात करता हूं नेगी जीकी। नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) को यह सम्मान क्यों नहीं मिल पाया है। यह बताने से पहले आप को दो गीत याद हैं? जो मुख्यमंत्री रहते हुए नेताओं पर रचे गए थे। नौछमी नारैण और दूसरा –अब कतगा खैलू। कुछ देर इन गीतों को सुन भी लेते हैं। ————–

पहला गीत –नौछमी नारैण—कां तत्कालीन ग्रेस के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी पर रचा गया था। इस गीत में वही सब था जो कि आंध्र प्रदेश राजनिवास में तिवारी ने किया था। दूसरा गीत माना जाता है कि वह भाजपा के मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक पर केंद्रित था। अब यह जान लीजिए कि उत्तराखंड के दोनों प्रमुख दलों भाजपा व कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को कटघरे में खड़ा करने वाले नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi)  जी के नाम की पद्म पुरस्कारों के लिए भला इन दलों की सरकारें क्यों करेंगी। ऐसा नहीं है कि तिवारी या निशंक ने नेगी जी के नाम का विरोध किया हो, परंतु यह शासक वर्ग का चरित्र है कि वह अपने वर्ग के हितों की रक्षा करता है, भले ही सरकार किसी की भी हो। इसका उदाहरण नई दिल्ली में लुटेरे मुगलों के नाम पर प्रमुख सड़कों का नामकरण है। आजादी के बाद पाकिस्तान बन जाने पर भी भारत के तब के शासक वर्ग ने राजधानी की प्रमुख सड़कों का नाम लुटेरों के नाम पर रख दिए। एक बात और उत्तराखंड का राजनैतिक नेतृत्व अपने लोगों को उस तरह से मदद नहीं करता है, जैसा कि दूसरे राज्यों के नेता करते हैं। इसलिए कई प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पाई।

बहरहाल, बात नेगी जी की है। माना जाता है कि तिवारी और निशंक की कार्य शैली पर कटाक्ष करने वाले गीत रचने के कारण ही इतने महान लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi)  जी को अब तक पद्म पुरस्कार नहीं दिया गया। मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और रमेश पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री रहते हुए उनके कामकाज पर कटाक्ष करने वाले नेगी जी के नाम को लेकर बाद में आई इन दलों की सरकारों ने चुप्पी साध ली। आगे भी शायद ही ये सरकारें उनके नाम को पद्म पुरस्कार के लिए  भेजेंगी। हो सकता है भविष्य में जनता के दबाव में कर भी लें।

 यह कटु सत्य है कि ये दल तभी नेगी जी के नाम का संस्तुति करेंगे जब जनता का दबाव बढ़ेगा। अन्यथा ये नेता हमेशा की तरह वादे ही करते रहेंगे।नेगी जी को गढ़ रत्न कह कर पुकारा जाताहै। परंतु वे गढ़ रत्न , या भारत रत्न नहीं, बल्कि विश्व रत्न हैं। नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) को उत्तराखंडियों को जो प्यार व स्नेह मिलता है, वह हर सम्मान से बड़ा है।

तो यह है मुख्य कारण जिस कारण नरेंद्र सिंह नेगी (Narendra Singh Negi) को पद्म पुरस्कार नहीं मिल पाया है। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। आपसे अनुरोध है कि हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला—और अंतिम गीत – नदियों के जीत को भी सुन लेना। मेरे ही लिखे हैं। इसी चैनल में है। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

 

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