इस्लाम कबूल करने से पहले की जाति का इतिहास जानने की चाह में पाकिस्तानी लखेड़ा

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

हिमालयीलोग चैनल की एक वीडियो  पर एक दिन एक कमेंट देखा।  जिसमें  पाकिस्तान से ख्वाजा अर्सलन अरशद नाम के एक बंधु ने लखेड़ाओं पर भी एक वीडियो बनाने का आग्रह किया था। संभवत: वीडियो में मेरा सरनेम लखेड़ा सुनकर उन्होंने यह आग्रह किया होगा। मैंने इसकी वजह पूछी। इस पर उत्तर मिला कि वे भी लखेड़ा हैं। पाकिस्तान से हैं और वहां कुछ लोग अब भी लखेड़ा या लाखरा लिखते हैं, परंतु अधिकतर अब ख्वाजा या शेख लिखते हैं। मेरी जिज्ञासा बढ़ती चली गई। उन्होंने जो कुछ बताया उसके अनुसार — पाकिस्तान में भी लखेड़ा समाज है।  वे पंजाब में सबसे ज्यादा हैं ।  वे  सभी जानते हैं कि उनके पूर्वज लखेड़ा  थे। उन्हें पाकिस्तान में लाखरा कहा जाता है। इस समुदाय ने हजरत शाह शमीस तबरीज सूफी मुल्तान वाले के हाथों से इस्लाम कबूल किया था। इस्लाम कब कबूल किया, यह मालूम नहीं। पाकिस्तान में लखेड़ा समाज का प्रोफेशन बिजनेस है। इस्लाम कबुल  करने के बाद अब अपने नाम के साथ  ख्वाजा या शेख सरनेम  लिखते हैं। पाकिस्तान में  इस्लाम कबूल चुके चावला, गांधी, माति, अरोड़ा, बोहरा, पारचा आदि लोग भी अब अपने नाम के साथ ख्वाजा या शेख लिखते हैं। उन्हें यह मालूम नहीं कि वे वह लखेड्रा, ब्राह्मण थे या क्षत्रिय । उन्होंने यह भी बताया कि लखेड़ा  समाज की एक पहचान यह है कि उनमें गुस्सा बहुत होता है। अब बहुत कम लोग ही नाम के साथ लखेड़ा सरनेम लिखते हैं। सभी को यह मालूम है कि उनकी यह बात उनके पुरखों से लेकर अब तक सभी को मालूम है। यह भी मालूम है कि लखेड़ा सरनेम उन्हें उन्हें हिंदू देवी पार्वती ने दी थी।  ख्वाजा अर्सलन अरशद इसलिए लखेड़ाओं के इतिहास के बारे में जानना चाहते थे।

यह बताता है कि भले ही धर्म बदल लिया गया हो, परंतु मनुष्य में अपनी जड़ों को तलाशने की ललक कायम रहती है। पाकिस्तान में आज भी मुस्लिम क्षत्रिय व जाट आदि समाजों के संगठन हैं। कई ने तो अपने सरनेम भी वही रखे हैं, जो हिंदू रहते हुए थे।  तो पाकिस्तान के बंधु ख्वाजा अर्सलन अरशद के आग्रह पर लखेड़ा सरनेम की बात करता हूं। भारत में लखेड़ा सरनेम के लोग उत्तराखंड के साथ ही से राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, छतत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार के साथ ही असम में भी हैं।

यह साफ कर देता हूं कि ये सभी लखेड़ा एक कुल या वंश के नहीं हैं। यह संयोग मात्र है कि इनका सरनेम एक जैसा है। यह सरनेम विभिन्न –विभिन्न कारणों ने पड़ा। उत्तराखंड के लखेड़ा ब्राह्मण हैं और चमोली जिले के लखेड़ी गांव में बसने से लखेड़ा कहलाए। जबकि मैदानी क्षेत्रों के लखेड़ा लाख यानी लाक्ष का काम करने से लखेड़ा या लखेरा कहलाए। मैदानी क्षेत्रों के लखेड्रा हिंदू धर्म की वर्ण व्यवस्था के तहत क्षत्रिय हैं और अधिकतर आबीसी में आते हैं।  असम में भी लेखड़ा हैं, वे परंपरागत रूप से वैद्य हैं व सांप के काटे का इलाज करते हैं । वे भी ओबीसी की सूची में  हैं।

अब विस्तार से लखेड़ाओं के बारे में बताता हूं । प्रारंभ उत्तराखंड से करता हूं। मेरी पुस्तक — लखेड्रा वंश सागर से शिखर—उत्तराखंड के लखेड़ाओं पर मेरा एक लघु शोध ग्रंथ है।  इस पुस्तक में मैने उत्तराखंड के लखेड़ाओं के इतिहास को विस्तार से लिखा है। इस किताब के अनुसार उत्तराखंड के लखेड़ा चांदपुर गढ़ी में पंवार राजवंश के वैद्य व ज्योतिष के विद्वान थे। वे सरोला ब्राह्मण हैं। आज लखेड़ा परिवार के लोग मुख्यत: चार जिलों चमोली, अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी में हैं।। उत्तराखंड के गढ़वाल में जातियों खातसौर पर ब्राह्मणों के जातिनाम उनके प्रथम गांवों के नाम पर पड़े हैं। जैसे कि नौटी से नौटियाल, मैटवाणा से मैठाणी, खंडूड़ा से खंडूड़ी, रतूड़ा से रतूड़ी, थापली से थपलियाल कहलाए। उसी तरह लखेड़ी थान (स्थान) में बसने से जाति संज्ञानाम लखेड़ा पड़ गया। एक किवदंति यह भी है कि सरोला ब्राह्मण होने के कारण लखेड़ा पंडित भोजन बनाने से पहले लकडिय़ों को भी धोते थे। प्राचीन समय में हिंदुओं विशेषतौर पर ब्राह्मणों में जातीय शुद्धता का बहुत अधिक बोध था। इसलिए भोजन बनाने से पहले लकड़ी धोने का प्रचलन रहा होगा। पहाड़ में लकड़ी को लखड़ू भी कहा जाता है। लकड़ी धोने के कारण लखड़ू से लखेड़ा कहे जाने लगे।

उत्तराखंड के लखेड़ा परिवार के प्रथम पुरुष श्रद्धेय भानुवीर नारद जी गौड़ देश (अब पश्चिम बंगाल) के वीरभूम में जन्में, पले व बढ़े। युवा होते ही वे नारद नामक यात्री दल के साथ सागर (जगन्नाथ पुरी) से शिखर (हिमालय) की तीर्थयात्रा पर श्री बदरीनाथ धाम आए थे। वे एक तीर्थयात्री के तौर पर यहां आए थे लेकिन हिमवंत देश (केदारखंड) के हो कर रह गए। चांदपुर गढ़ी के पंवार राजवंश के आग्रह पर वे लखेड़ी गांव में बस गए थे। उनके वंशज लखेड़ा जाति नाम से जाने गए ।  वैद्यराज भानुवीर नारद जी ने संवत 1117 विक्रमी यानी सन 1060 में लखेड़ी गांव को अपना निवास बनाया। लखेड़ी गांव को लखेसी भी कहते रहे हैं। कई जगह यह भी लिखा गया है कि लखेड़ी और लखेड़ाओं को पहले ऋषि खेड़ा भी कहा जाता था। इसी गांव लखेड़ी के नाम से नारद जी के वंशजों का जाति नाम लखेड़ा पड़ा।

अब मैदानों के लखेड़ाओं के बारे में बताता हूं। इन्हें लखेड्रा, लखेरा, लाखरा, लक्षकार, लखारा, लक्षकर,लक्षकार, लखेरी, लखपति, लहेरी आदि नामों से भी जाना जाता है. आदि नामों से जाना जाता है। ये लोग पारंपरिक रूप से लाख  के कलात्मक आभूषण, चूड़ियां, कंगन और खिलौना बनाने और बेचने का कार्य करते हैं। इस समाज के लोग  अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में शामिल हैं, जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि वे क्षत्रिय हैं, परंतु कुछ लोग यह भी दावा करते हैं कि उनके पूर्वज कायस्थ थे।

मैदानों के लखेड़ाओं के सरनेम लखेड़ा या लखेरा की उत्पति को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलन में हैं। मुख्यत: यह कहा जाता है कि लखेरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द – लाक्षाकार, लक्षकार या लक्षकुरु- से हुई है, जिसका अर्थ है- लाख या लाह का काम करने वाला। लक्ष या लाक्षा संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ होता है-लाख।  लखेड़ा, लाखरा, लखेरा जाति की उत्पत्ति के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं।  प्रमुख मान्यता के अनुसार माता  पार्वती ने अपने विवाह के समय भगवान भोलेनाथ शंकर से कहा कि- मेरे हाथ खाली हैं, सुहाग का प्रतीक लाख का बना चूड़ा हमारे हाथ में पहना दो। इस पर  जिन क्षत्रिय जाति के लोगों ने भगवान शिव के आदेश पर अपने हथियार त्याग कर माता पार्वती के लिए लाख की चूड़ियां बनाने का काम प्रारंभ किया वे लखेरा या लखेडा कहलाए। एक मान्यता यह भी है कि  भगवान कृष्ण ने गोपियों और ग्वालिनों के लिए चूड़ियां बनाने के लिए लखेरा समाज का उत्पन्न किया था।  लखेराओं को पटवा समाज के समान माना जाता है।  एक मान्यता यह भी है कि ये लोग रूप से यदुवंशी राजपूत थे, जिन्होंने महाभारत काल में पांडवों को जलाकर मारने के लिए लाक्षागृह बनाने में कौरवों की मदद की थी। इस कारण उन्हें  क्षत्रिय से पदच्युत कर दिया गया और वे हमेशा के लिए लाख या कांच का काम करने पर विवश हो गए। वैसे सबसे अधिक प्रचलित मान्यता यही है कि  भोले नाथ के विवाह के समय उन लोगों ने मां पार्वती के लिए लाख की चूडियां बनाई थीं।

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