परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com E- mail- himalyilog@gmail.com सृष्टि की रचना को लेकर मानव सभ्यता में कई तरह की अवधारणाएं हैं। हर धर्म में अलग-अलग कहानियां हैं। सनातन धर्म में भी सृष्टि की रचना को लेकर वैष्णवों, शैवों व शाक्तों की अलग-अलग धारणाएं हैं। इसी तरह देश के विभिन्न  क्षेत्रों में भी अलग-अलग मान्यताएं हैं।...
हिडिंबा के राज्य में थी एक बीरा बैण /नये अंदाज में उत्तराखंड की लोक-कथा परिकल्पना-डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति दोस्तों, बीरा बैण की कहानी हम सभी दादी-नानी के समय से सुनते आ रहे हैं। यह कहानी सदियों से एक ही ढर्रे पर चल रही है। मैंने इस लोककथा को उसके कालखंड से जोड़ने तथा इसे नये तरीके से पेश करने...
पहाड़ के जजमानों में मात्र  २० प्रतिशत हैं मैदानी क्षत्रिय परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com उत्तराखंड में क्षत्रियों को जजमान भी कहा जाता है। गढ़वाल के जजमान यानी राजपूतों, यानी ठाकुरों यानी क्षत्रियों के बारे में बताने से पहले मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि यह जानकारी विभिन्न पुस्तकों से एकत्रित की गई है।...
एक गांव में एक दर्जी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी। उस दर्जी के तीन बेटे थे। वे दर्जी-पुत्र जब बड़े हुए तो दर्जी ने उन्हें बकरी चराने का काम सौंपा। वह बकरी दिन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दर्जी शाम को उस पर हाथ फेर कर उससे हाल...
हिमालय की पुरातन लिपि टांकरी - टांकरी में जौनसारी को लिखने का सफल प्रयोग कर चुके हैं रमेश जोशी नयी दिल्ली। कश्मीर से नेपाल तक के भू भाग में कभी टांकरी लिपि का प्रचलत था। इसी में वहां की भाषा-बोलियों को लिखा जाता था। यह हिमालयी क्षेत्र के ब्राह्मणों की पूजा की भाषा भी रही है।लेकिन क्रूर मुगलों और अंग्रेजों की...
गढ़वाली ब्राह्मणों का इतिहास -एक परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com मैं  पहले ही साफ कर देता हूं कि मेरा उद्देश्य इतिहास की जानकारी देना  मात्र है, नकि, किसी का महिमामंडन करना।  मेरा यह आलेख व वीडियो गढ़वाल के पहले प्रमाणिक इतिहास लिखने वाले पं. हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन, डा. शिव प्रसाद डबराल चारण, राय बहादुर...
 परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा  हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com  E- mail- himalayilog@gmail.com  पहाड़ में हंसी ठठा करते हुए अथवा चिढ़ाने के लिए ठाकुरों के लिए खसिया बोल दिया जाता है। बदले में ठाकुर भी ब्राह्मणों के लिए भाट शब्द का प्रयोग कर देते हैं। यह व्यंगवार सदियों से चल रहा है।   उत्तराखंड में खस या खसिया कहने पर कई...
कुमायुं के जजमानों का इतिहास परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com इस मामले में मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि मैं इतिहास का उल्लेख कर रहा हूं। किसी को महिमामंडित करने का मेरा कोई उद्देय नहीं है।  कुमायुं के जजमानों को लेकर इस आलेख का आधार कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे, इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल...
------------प्रो. हरिमोहन हिमालय विश्व का गौरव है। इसमें विशेष रूप से भारत और समूची भारतीय संस्कृति की विराटता एवं औदात्य एक साथ रूपायित होते हैं। इसलिए भारत और हिमालय दोनों एक-दूसरे के पर्याय हो गए हैं। सदियों से अपने धवल रूप में मौनद्रष्टा की भांति खड़ा यह गिरिराज भारतीय संस्कृति एवं जनजीवन में होने वाले परिवर्तनों का साक्षी रहा है।...
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश को यह नाम कैसे मिला। यह बात खुद हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की नयी पीढ़ी में भी बहुत कम लोग जानते होंगे। इस बार आपको यही बताने जा रहा हूं कि राज्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का नाम कैसे पड़ा और यह नाम किसने दिया।...
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