History of Himalaya
जीतू बगड़वाल को गढ़ नरेश मानशाह ने मरवाया अथवा सच में हर ले गई अछंरियां ?
admin -0
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
E- mail- himalyilog@gmail.com
गढ़वाल के भड़ जीतू बगड्वाल ( jeetu Bagdwal)और भरणा की प्रेम गाथा आज भी लोक में जीवंत है। इसका आज भी मंचन किया जाता है।
जीतू का कालखंड गढ़ नरेश मानशाह के समय है। मानशाह ने गढ़वाल पर सन 1591 से 1610 तक शासन किया। मान्यताओं के...
History of Himalaya
गढ़वाली जजमानों का इतिहास– कैसे बने गढ़वाल में क्षत्रियों के जाति संज्ञानाम
admin -
पहाड़ के जजमानों में मात्र २० प्रतिशत हैं मैदानी क्षत्रिय
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
उत्तराखंड में क्षत्रियों को जजमान भी कहा जाता है। गढ़वाल के जजमान यानी राजपूतों, यानी ठाकुरों यानी क्षत्रियों के बारे में बताने से पहले मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि यह जानकारी विभिन्न पुस्तकों से एकत्रित की गई है।...
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
E- mail- himalyilog@gmail.com
सृष्टि की रचना को लेकर मानव सभ्यता में कई तरह की अवधारणाएं हैं। हर धर्म में अलग-अलग कहानियां हैं। सनातन धर्म में भी सृष्टि की रचना को लेकर वैष्णवों, शैवों व शाक्तों की अलग-अलग धारणाएं हैं। इसी तरह देश के विभिन्न क्षेत्रों में भी अलग-अलग मान्यताएं हैं।...
एक गांव में एक दर्जी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी। उस दर्जी के तीन बेटे थे। वे दर्जी-पुत्र जब बड़े हुए तो दर्जी ने उन्हें बकरी चराने का काम सौंपा। वह बकरी दिन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दर्जी शाम को उस पर हाथ फेर कर उससे हाल...
हिमालय की पुरातन लिपि टांकरी
- टांकरी में जौनसारी को लिखने का सफल प्रयोग कर चुके हैं रमेश जोशी
नयी दिल्ली। कश्मीर से नेपाल तक के भू भाग में कभी टांकरी लिपि का प्रचलत था। इसी में वहां की भाषा-बोलियों को लिखा जाता था। यह हिमालयी क्षेत्र के ब्राह्मणों की पूजा की भाषा भी रही है।लेकिन क्रूर मुगलों और अंग्रेजों की...
गढ़वाली ब्राह्मणों का इतिहास -एक
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि मेरा उद्देश्य इतिहास की जानकारी देना मात्र है, नकि, किसी का महिमामंडन करना। मेरा यह आलेख व वीडियो गढ़वाल के पहले प्रमाणिक इतिहास लिखने वाले पं. हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन, डा. शिव प्रसाद डबराल चारण, राय बहादुर...
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
E- mail- himalayilog@gmail.com
पहाड़ में हंसी ठठा करते हुए अथवा चिढ़ाने के लिए ठाकुरों के लिए खसिया बोल दिया जाता है। बदले में ठाकुर भी ब्राह्मणों के लिए भाट शब्द का प्रयोग कर देते हैं। यह व्यंगवार सदियों से चल रहा है।
उत्तराखंड में खस या खसिया कहने पर कई...
------------प्रो. हरिमोहन
हिमालय विश्व का गौरव है। इसमें विशेष रूप से भारत और समूची भारतीय संस्कृति की विराटता एवं औदात्य एक साथ रूपायित होते हैं। इसलिए भारत और हिमालय दोनों एक-दूसरे के पर्याय हो गए हैं। सदियों से अपने धवल रूप में मौनद्रष्टा की भांति खड़ा यह गिरिराज भारतीय संस्कृति एवं जनजीवन में होने वाले परिवर्तनों का साक्षी रहा है।...
कुमायुं के जजमानों का इतिहास
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
इस मामले में मैं पहले ही साफ कर देता हूं कि मैं इतिहास का उल्लेख कर रहा हूं। किसी को महिमामंडित करने का मेरा कोई उद्देय नहीं है। कुमायुं के जजमानों को लेकर इस आलेख का आधार कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे, इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल...
भगवान बदरी विशाल और तिब्बत के थोलिंग मठ से जुड़ी है चंवरी गाय की कथा
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
www.himalayilog.com / www.lakheraharish.com
सुरा गाय (suragaay) का अर्थ देवताओं की गाय होता है। सुर यानी देवता। आज जानते ही हैं कि सनातन धर्म में गाय को मां का स्थान दिया गया है। हिन्दू (Hindu)धर्म के अनुसार गाय में...