कौंन हैं नेपाल के क्षत्रिय — नेपाली राजपूतों का इतिहास

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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भारत की तरह नेपाल के हिंदुओं में भी वर्ण व्यवस्था रही है।  नेपाल में क्षत्रिय (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur) तीन समाजों में हैं। खस छेत्री व ठकुरी, नेवार और मधेसी।  नेपाल में क्षत्रियों को राजपुत्र भी कहा जाता रहा है। नेपाल के कई सरनेम,, जैसे कि थापा, मल्ल, आदि को हिंदू राजपूतों के साथ ही मगर, लिंबू आदि भी प्रयोग करते हैं। परंतु यह सरनेम मुख्यत: हिंदू क्षत्रियों का रहा है। नेपाल में क्षत्रिय पौराणिक काल से रहे हैं। राज करते रहे हैं। इसलिए यह कहना गलत है कि नेपाल में सभी ब्राह्मण  और क्षत्रिय 12 वीं शताब्दी के बाद मुस्लिम आक्रांताओं से बचने के लिए ही नेपाल आए। पौराणिक व  ऐतिहासिक तौर पर प्रमाण कुछ और कहते हैं। बात पौराणिक तौर पर  प्रारंभ करता हूं। रामायण काल में भी नेपाल में क्षत्रिय थे। भगवान श्रीराम की अर्धांगिनी मां सीता के पिता राजा  जनक (Janak) के पूर्वज निमि (Nimi) या विदेह के वंश से थे। यह सूर्यवंशी और इक्ष्वाकु (Ikshvaku) के पुत्र निमि (Nimi) से निकली एक शाखा है। इस विदेह वंश के द्वितीय पुरुष मिथि जनक (Janak) ने मिथिला नगरी की स्थापना की थी। इसी वंश में निमि (Nimi) के नाम के राजा हुए। राजा जनक इन्हींनिमि के पुत्र थे। जनक का वास्तविक नाम ‘सिरध्वज’ था। महाभारत काल में नेपाल में गोपाल वंश की स्थापना हुई थी। इसी तरह भगवान बुद्ध भी क्षत्रिय थे। उनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनकी मां नाम महामाया था जो कोलीय क्षत्रिय वंश से थीं।

प्राचीन नेपाल काठमाडू घाटी को कहते थे।  नेपाल का पहला राजवंश गोपाल वंश को माना जाता है। उसके बाद किरातों का शासन आया। मान्यता है कि महाभारत काल में द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण ने नेपाल के लोगों को असुर दानासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए अपनी नारायणी सेना केसाथ  दानासुर से युद्ध किया था। दानासुर को परास्त करने के बाद उन्होंने अपने एक पुत्र को वहां का राजा घोषित कर दिया था। इस तरह  नेपाल में क्षत्रिय यदुवंशियों का राज्य स्थापित हो गया था।  गोपालावती या  गोपाल वंश के बाद काठमांडू घाटी पर महिपालाव या महिष चरवाहा राजवंश ने शासन किया। भुल सिंह नाम के गंगा घाटी के एक अहीर ने यह राज्य स्थापित किया था।  इसके बाद किरातों का शासन आया। किरात वंश के प्रथम राजा यलंबर थे, जो कि क्षत्रिय कुल के पांडव भीम व राक्षस कुल की हिडिंबा  के पौत्र  तथा घटोत्कच  के पुत्र बबरीक थे। इस तरह पौराणिक काल से काठमांडू घाटी में क्षत्रिय कुल के राजा राज कर रहे थे। अर्थात वहां ब्राह्मण व क्षत्रिय सदियों पहले से थे।(Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

नेपाल का मौजूदा स्वरूप गोरखा नरेश पृथ्वीनारायण शाह की देन है। उन्होंने अपने गोरखा राज्य की सीमाओं  में विस्तार कर नेपाल का एकीकरण किया। इससे पहले नेपाल विभिन्न राज्यों में बंटा था। प्राचीन नेपाल काठमांडू घाटी को ही कहा जाता था। इसी प्राचीन नेपाल में लिच्छवि वंश के राजपूतों का शासन भी रहा है। इतिहास में उल्लेख मिलता है कि लिच्छवी भारतीय मैदानी मूल के पहले नेपाली राजवंश थे जिन्होंने चौथी  या पांचवीं शताब्दी में शासन शुरू किया था।  लिच्छवी शासक सभी वैस क्षत्रिय थे। लिच्छवि शिलालेख स्वयं उन्हें राजपूत राजकुमारों के रूप में वर्णित करते हैं। मौजूदा नेपलियों में नेवार  काठमांडू घाटी के प्राचीन निवासी माने जाते हैं। नेवारों में अधिकतर हिंदू और कुछ बौद्ध भी हैं। आज के नेपाल में गंडक नदी से पश्चिम की ओर खसों का अधिपत्य रहा है। सूदूर पश्चिम आर कर्णाली प्रदेश की संस्कृति बाकी नेपाल की बजाए उत्तराखंड से ज्यादा मिलती है। उत्तराखंड की तरह नेपाल में भी खस रहे हैं। वैदिक आर्यों के साथ रोटी-बेटी के रिश्ते होने से वे भी क्षत्रिय समाज का हिस्सा बन गए।  इसलिए पश्चिमी नेपाल और उत्तराखंड की क्षत्रिय जातियों के सरनेम भी मिलते हैं। नेपाल के डोटी के कत्यूर और उत्तराखंड के कत्यूर एक ही राजवंश था। माना जाता है कि नेपाल में रावत, नेगी, बिष्ट, आदि जातियों के लोग उत्तराखंड से गए।(Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

काठमांडू घाटी में 12वीं, 14वीं सदी में मुस्लिम आक्रांताओं के कारण जो कोई राजपूत मैदानों से आए वे काठमांडू घाटी तथा पश्चिमी-मध्य नेपाल में बसे थे। पश्चिमी नेपाल में इन राजपूतों ने खस मल्ल साम्राज्य कमजोर होने पर वहां बड़ी संख्या में अपने राज्य स्थापित किए। उन्हें बाइस राज्य और चौबीसी राज्य कहा गया।  खस मल्ल वंश के राजा क्रचल्ला या क्रचल्लादेव ने बालेश्वर शिलालेख में स्वयं  कहा है कि वे पहाड़ी राजपूत पृष्ठभूमि के एक बौद्ध जीना परिवार से थे।  शिलालेख में रावत राजाओं के रूप में उनके दो मंडलिकराजाओं  का भी उल्लेख है। (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

इधर,  काठमांडू घाटी में नेवारों का राज था। नेवार मल्ल वंश का शासन लगभग 12वीं सदी से काठमांडू उपत्यका में आरम्भ हुआ। उनका शासन नेपाल का स्वर्णयुग माना जाता है। मल्ल राजाओं के शासनकाल में ही काठमाण्डू घाटी और उसके आसपास के क्षेत्रों में रहने वाले लोग ‘नेवारी’ कहलाए। नेपाल भाषा में  ये नेवामी भी कहे जाते हैं। संस्कृत में ‘मल्ल’ शब्द का अर्थ ‘योद्धा’ होता है।  पश्चिमी नेपाल के मल्ल राजा इनसे अलग हैं। वे भी क्षत्रिय थे, परंतु खस मल्ल थे। (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

माना जाता है कि काठमाडू घाटी में राजपूत 14 वीं शताब्दी में कर्नाट राजा हरि सिंह देव  के साथ आए। नेवार के मल्ल वंश तथा सिहतवार  वंश के शासकों ने 12वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक नेपाल में शासन किया। मल्ल तथा साइंथवार क्षत्रिय राजवंश है। नेवारों में नेवार राजपूत, नेवार मल्ल, ठाकुर और चतरिया राजपूत हैं। नेपाल में 1380 ईस्वी में अंतिम बैश ठाकुरी राजा अर्जुन देव या अर्जुन मल्ल, को उनके मंत्रियों ने हटा दिया था । उनकी जगह एक राजपूत स्थिति मल्ल को राजा बनाया गया। स्थिति मल्ल ने स्वयं को सूर्यवंशी क्षत्रिय घोषित कर दिया। स्थिति मल्ला के बाद के राजा ज्योर्ति मल्ल और उनके उत्तराधिकारियों ने उत्तर प्रदेश और बिहार के राजपूत परिवारों को नेपाल घाटी आमंत्रित किया और उनके साथ वैवाहिक संबंध शुरू किए। इस तरह नेवारों ने मैदानी क्षेत्रों से राजपूत परिवारों को काठमांडू घाटी में  नियमित रूप से आमंत्रित किया  था। जिन्हें अब ठाकू या  ठाकुर कहा जाता है । नेवार मल्ल शासकों के साथ इन राजपूतों ने वैवाहिक संबंध स्थापित किए थे।  इन राजपूत दामादों को मल्ल शासकों के गोत्र में शामिल कर लिया गया। मल्ल ससुर के साथ रहने वाले दामादों को उपनाम- सिंह- दिया गया। इस तरह राजपूत परिवार नेपाल के दरबार का हिस्सा बन गए और एक नया अंतर्विवाही दरबारी (भरादारी = भरो) वर्ग बन गया। इस तरह नेपाल में सदियों से राजपूत आते रहे। (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

इसके बाद 14 वीं शताब्दी में कर्नत राजा हरि सिंह देव के साथ भी राजपूत आए।  इन राजपूतों ने मल्ल राज वंश के साथ विवाह संबंध स्थापित किए।  ये मल्ल और उसके दरबारी कुल अब नेवार क्षत्रिय जाति के तौर पर एक क्षत्रिय जाति समूह में शामिल हो गए हैं।  जिसे स्थानीय रूप से चथरोय कहा जाता है। इसे ‘क्षत्रिय’ शब्द से उत्पन माना गया है। राजा हरि नरसिंह देव के साथ आए राजपूतों को चथरोय या चतुर्य उपनाम मिला। इनमें रघुवंशी, रावल , रैठौर, चौहान, चंदेल और हाडा आदि शामिल हैं । 14वीं सदी में आए राजपूत वंश के सरनेम आज भी यहां मिलते हैं। इनमें रघुवंशी, Raghubanshi, रावल , रायथोर , चौहान , चंदेल , और हाड़ा आदि प्रमुख हैं। राजपूत वंशज, जिन्हें वर्तमान के चतरहिया जाति के रूप में जाना जाता है। इनमें  मल्ल, प्रधान (Pradhan), श्रेष्ठ, प्रधानगंगा, पटरबंश, Patrabansh, भरो, रघुबंशी , राजबंश, Rajbansh, राजभंडारी, Rajbhandari, ओन्ता, Onta, मास्की,  मुंशी, अमात्य, Amatya, रायथोर, राजवंशी, राजभंडारी, राजवैद्य, राजलावत, भरो, चौहान, राठौर,Raithor आदि सरनेम मिलते हैं। इनको ठाकुर या  ठाकू कहा जाता है। यहां भी क्षत्रिय उच्च व निम्न में बंटे हैं। यहां क्षत्रिय को बोलचाल की भाषा में चथरिया  भी कहा जाता है।  इनमें  पंचथारिया या बोलचाल की भाषा में श्रेष्ठऔर चरथारिया हैं। (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

 अब गोरखाली राजपूतों की बात करते हैं। नेपाल में गोरखाली क्षत्रियों में ठकुरी और छेत्री आते हैं। नेपाल देश अठारहवीं सदी में गोरखा के शाह वंशीय राजा पृथ्वी नारायण शाह के प्रयत्नों का फल है। नेपाल में खस, नेवार, मगर, गुरुंग, दलित, मधेसी आदि समाजों के लोग रहते हैं।  नेपाल के संविधान में खस आर्य जातियों के तहत  बाहुन (ब्राह्मण), क्षेत्री, ठकुरी, और सन्यासी लोग ही माने गए हैं। दलित खसों को इसमें शामिल नहीं किया गया है। नेपाल के  क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले योद्धा वर्ण के मूल निवासी हैं, इन्हें पहाड़ी राजपूत, खस राजपूत, नेपाली या गोर्खाली क्षत्रिय भी कहा जाता है।  नेपाल में राजा  को सत्ता से हटाने के बाद जब प्रधानमंत्री जंगबहादूर राणा के  1950 के दशक में सत्ता हथियाई तो उन्होंने घोषणा कर दी थी कि अब कोई भी खस खुद को खस नहीं कहेगा। खस स्वयं को क्षेत्री यानी छेत्री कहेंगे। क्षेत्री यानी क्षत्रिय। तब से छेत्री सरनेम प्रचलन में आ गया। भारत के दार्जिलिंग क्षेत्र, सिक्किम से लेकर पूर्वोत्तर के राज्यों तथा म्यांमार में रह रहे कई गोरखा भी इस सरनेम का प्रयोग करते हैं। (Nepali kshtariya, Rajput, chhetri, Thakuri, Thakur)

ठकुरी नेपाल की वह क्षत्रिय जाति है, जिसने लोकतंत्र ने तक यहां राज किया  ये नेपाल के अंतिम राजशाही व शासक वर्ग से रहे हैं।नेपाली संविधान में इनको खस माना गया है, परंतु ये खुद को राजस्थान से आए राजपूतों के वंशज बताते हैं। माना जाता है कि ये राजस्थान से गए राजपूतों और खस राजपूतों के वंशज हैं।  ठकुरी के सरनेम में शाह, राणा, शाही, खांण, चन्द, देउवा, मल्ल, सिंह, सेन, उचाई आदि प्रमुख हैं। ठकुरी और ठाकुर एक नहीं हैं। वे दोनों अलग हैं। ठकुरी नेपाल के शासक वंशी हैं। जबकि ठाकुर नेवारों के राजपूतों को कहा जाता है। ये दोनों ही क्षत्रिय हैं।  परंतु नेपाल में ठाकुर नेवारों के एक जाति को कहते हैं।  ठकुरी के तहत शासक जातियां शाह, राणा आदि प्रमुख हैं। इनके पूर्वज राजस्थान से नेपाल में आए। हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की तरह पश्चिमी नेपाल में मैदानों से आए राजपूतों ने यहां छोटे- छोटे राज्य स्थापित कर दिए थे। शाह वंश समेत ठकुरी वंश इसी के तहत हैं।  राजपूत छेत्री (Chhetris) विशेष रूप से थापा, रावल, कुंवर , बिस्ट , बासनेत और खड़का आदि पश्चिमी नेपाल क्षेत्रों से आए थे और उसके राज्य में बस गए। हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड की तरह नेपाल में भी गलत धारणा है कि मैदानों में मुस्लिम आक्रांताओं के कारण ही ब्राह्मण व क्षत्रिय यहां आए। जबकि सतत प्रवास के कारण यहां  ब्राह्मण व क्षत्रिय आते रहे। 

इसी तरह खसों में  छेत्री राजपूत बहुत प्रभावशाली रहे हैं। छेत्री, संस्कृत शब्द क्षत्रिय से निकला है।नेपाल में लोकतंत्र से पहले अधिकतर प्रधान मंत्री इसी पुराने गोरखाली अभिजात वर्ग से थे। क्षेत्री या छेत्री नेपाल के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले योद्धा वर्ग के क्षत्रिय हैं। इन्हें पहाड़ी राजपूत भी कहा जाता है। । क्षेत्री या छेत्री या क्षथरीय सब क्षत्रिय के अपभ्रंश हैं। ये नेपाल में  मूल रूप से सैनिक, राजा और प्रशासनिक क्षेत्र में सबसे आगे  रहे हैं। नेपाल के खस राजवंश से संबंधित हैं। नेपाल की सीमाओं को विस्तार देने में शामिल थापा, बस्नेत, कुंवर और पांडे, आदि सभी  क्षेत्री या छेत्री जाति में आते हैं। अधिकतर छेत्री नेपाल सरकार और नेपाली सेना में कार्यरत रहे हैं।

गोरखा-आधारित कुलीन छेत्री परिवारों में पांडे , बस्नेत या बसन्यत, थापा, और कुंवर  प्रमुख थे। इनमें  कुंवर में राणा और अन्य कुंवर शामिल हैं।   क्षेत्री या छेत्री और ठकुरी के जाति के प्रमुख संज्ञानाम इस तरह हैं। Air (ऐर), अधिकारी,  Kathayat(कठायत), Basnet/Basnyat (बस्नेत/बस्न्यात), Bisht/Bista (विष्ट/बिष्ट्), Banshi (बन्सी), Barma (बर्मा), Baruwal (बरुवाल),  Baniya (बानियां), Bam (बाम),  Budathoki (बुढाथोकी), Budha (बुढा),  बोहरा (Bohara), भंडारी, Chand (चन्द), Chauhan (चउहान/चुहान), Chhetri/Kshetri (छेत्री/क्षेत्री), खत्री / खत्री,  छेत्री (केसी), चौहान, Dangi (डांगी), Dani (दानी), Dhami (धामी), Gharti (घर्ती), Hamal (हमाल),  Karki (कार्की), Katuwal (कटुवाल),  Kunwar (कुंवर), कार्की, Khadka (खड्का), Khatri(खत्री),  Khati (खाती), खुलली, घर्ति, ,Malla (मल्ल), Mahat (महत), Pande/Pandey(पाँडे/पाण्डे), Paal (पाल), Rana (राणा), Rajaghat (रानाभाट) Raut/Rawat (राउत/रावत), Rawal (रावल), Rathore (राथौर/राठौर), Raya (राया), Rayamajhi (रायमाझी) , Roka/Rokka/Rokaya (रोका/रोक्का/रोकाया) , Samal (समाल), Sanjel (सन्जेल) . Singh (सिंह), Silwal (सिलवाल)  Sen(सेन) , shakya (साक्य), Shah (शाह), Shahi (शाही), Thapa (थापा), Thakuri (ठकुरी) आदि हैं। इनके साथ ही पांडे  भी हैं। ये  ब्राह्मण पांडे नहीं हैं।

इसी तरह मधेशियों में भी क्षत्रिय हैं। ये उसी तरह के हैं, जैसे की उत्तर प्रदेश व बिहार में हैं। इनमें मैथिली, बाजिका, भोजपुरी और अवधी बोलने वाले प्रमुख हैं। इनके सरमेन भारत के क्षत्रियों से मिलते हैं।

 

 


 

 

 

जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार उत्तराखंड के बाद अब नेपाल के क्षत्रियों के इतिहास पर प्रकाश डाल रहा हूं। इसके बाद नेपाल के मगर, राय, लिंबू, तमांग, कामी आदि जातियों के बारे में भी जानकारी दूंगा। इसके  साथ ही  हिमाचल प्रदेश की जातियों के इतिहास का भी उल्लेख करूंगा।यह था नेपाली क्षत्रियों का इतिहास । 

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