जीतू बगड़वाल को गढ़ नरेश मानशाह ने मरवाया अथवा सच में हर ले गई अछंरियां ?

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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गढ़वाल के भड़ जीतू बगड्वाल ( jeetu Bagdwal)और भरणा की प्रेम गाथा आज भी लोक में जीवंत है। इसका आज भी मंचन किया जाता है।

जीतू का कालखंड गढ़ नरेश मानशाह के समय है। मानशाह ने गढ़वाल पर सन 1591 से 1610 तक शासन किया। मान्यताओं के अनुसार जीतू गढ़ देश की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव का रहने वाला था। जीतू ( jeetu Bagdwal)के पिता का नाम गरीबू था। गरीबू के दो बेटे जीतू और शोभन तथा एक बेटी शोभनी थी। जीतू अन्नमत्त, धनमत्त और यौवनमत्त था। वह देखने में सुंदर था वह फूलों का आकांक्षी और सुन्दरियों का रसिक था। वह मुरली बजाने में अद्वितीय था। वह अपनी बहिन की ननद भरणा या वरूणा की सुन्दरता पर मुग्ध था।करई जगह भरणा को गम्मी भी कहा गया है। लोक मान्यता है कि  भड़ जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)को अछरियां अपने साथ हरण कर ले गई थे। हालांकि ऐतिहासिक तथ्य कुछ और कहानी  कहते हैं। जीतू के जीवन को लेकर दो कथाएं प्रचलित हैं। आप किसे सत्य मानते हैं, यह आपके विवेक पर निर्भर करता है।

पहले लोक मान्यता वाली कहानी का उल्लेख कर लेता हूं। गढ़वाल के गमरी पट्टी के बगुड़ी गांव में भड़ जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)रहता था। उसकी तांबे की खानों के साथ कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। राजा ने उसे बजुड़ी का सेरा उपहार स्वरूप दिया था। सेरा धान के उपजाऊ व सिंचित खेतों को कहते हैं। राजा ने खुश होकर उसे सामंत भी बना दिया था। कहा जाता है कि इससे वह घमंडी हो गया था। डा. दिनेश चंद्र बलूनी अपनी पुस्तक —   उत्तराखंड की लोकगाथाएं — में लिखते हैं कि – जीतू ने सामंत के पद का दुरपयोग करते हुए बांझ भैंसों, अविवाहित कन्याओं तथा बंद पड़ी पन चक्कियों पर भी टैक्स लगा दिया था। वह रानियों का रसिक न गया था। जीतू बगड्वाल को पंवार बताया जाता है। किसी जगह उसे बिष्ट भी बताया गया है। ग्राम बगोड़ी जिसे जीतू की बगोड़ी कहा जाता है। कहा जाता है कि गढ़वाल के किसी राजा ने बगड़ा नामक व्यक्ति को श्रीकोट, श्रीनगर से अपनी तांबे की खानों का कारोबार देखने भेजा था। बगड़ा के नाम से गांव का नाम बगोड़ी पड़ गया और उसके वंशज बगड्वाल कहलाए। जीतू बगड्वाल ( jeetu Bagdwal)की कथा में राजा मानशाह का उल्लेख मिलता है। प्रसिद्ध इतिहासकार श्री हरिकृष्ण रतूड़ी ने राजा मानशाह का शासनकाल सन् 1591 से 1610 माना है।  जीतू की घटना इसी कालखंड की मानी जाती है।

उत्तराखंड की लोककथा जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)की यह कहानी आंछरियों पर केंद्रित है। लोककथा और लोक गाथों की बात अलग है, परंतु क्या आप यह जानते हैं कि आंछरियों के नाम पर राजा व उनके सामंत अय्यासी  भी करते थे। मैं इस विवाद में नहीं पड़ रहा हूं कि आंछरियां-मांछरियां होती हैं या नहीं। मैं तो सिर्फ यह कहता रहा हूं कि आंछरियों के नाम पर सत्ता में काबिज लोग किस तरह से अय्यासी करते थे। इस बारे में एक वीडियो इस चैनल में पहले से ही है। उत्तराखंड में लोक विश्वास है कि अंछरियां, सुंदर युवकों, नवविवाहित युवतियों को अपने वश ले लेती हैं। लोक मान्यता है कि गढ़वाल के भड़ जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)का हरण आंछरियों ने ही किया था । इन अंछरियों यानी परियों की छाया से मुक्ति के लिए हर साल  भादो मास में पूजा की जाती है तथा इसको नचाया जाता है । अंछरियों  के जागर भी लगाए जाते हैं।

भड़ जीतू ( jeetu Bagdwal) को बारिश का मौसम शुरू होने पर उसे अपने सेरों में धान रोपाई करने की याद आई। धान की रोपाई के लिए शुभ मुहूर्त निकालने के लिए वह ब्राह्मण के पास गया। पंडित  ने कहा कि इस बार रोपाई का मुहूर्त जीतू की बहिन शोभनी के हाथ से निकला है। इस पर जीतू अपनी बहिन को लाने के लिए उसकी ससुराल जाने को तैयार होने लगा। तभी उसकी तीला बकरी ने छींक दिया।इस पर उसकी  मां ने जीतू को वहां जाने से रोकने का प्रयास किया। परन्तु जीतू नहीं रूका। उसे वहां सोबनी की ननद भरणा से मुलाकात जो करनी थी। जीतू और भरणा एक दूसरे से प्रेम करते थे। कहा जाता है कि भरणा अलौकिक सौंदर्य की मालकिन थी। जीतू और भरणा के बीच एक अटूट प्रेम संबंध था। भरणा के गांव पहुंचने पर दोनों मिले। एक दिन भरणा के कहने पर जीतू शिकार के लिए वन में गया। वह एक कुशल बांसुरी वादक था। वहां वह बांसुरी बजाने लगा। उसकी बांसुरी की तान पर मोहित होकर आंछरियां यानी परियां वहां पहुंच गई। आंछरियों ने उसे अपने साथ चलने को कहा।

हालांकि कई जगह इस कथा को कुछ बदलाव के साथ सुनाया जाता है। कहा जाता है कि जब वह अपने गांव से जा रहा था तो उसकी मां ने कहा था कि बेटा पहाड़ की चोटी पर बांसुरी मत बजाना।  जीतू जब रैथल के जंगल में पहुंचा तो  फूलों से  भरी पहाड़ियों देखकर उसका मन उनकी सुंदरता में खो गया। वह आराम करने के लिए एक पेड़ की छाया में बैठ गया और बांसुरी बजाने लगा। रैथल का जंगल खैट पर्वत में है। वहां आंछरियां यानी परियां निवास करती हैं। जीतू की बांसुरी की मधुर तान पर आछरियां यानी परियां खिंची चली आईं। वे सात बहिन आंछरियां थी। वे बांसुरी की धुन पर नृत्य करने लगीं। कहीं-कही का गया है कि छरियां उसका लहू चुसने लगी थी। इस पर जीतू ने अपने भैरव देवता को याद किया। भैरव के प्रताप से वह आछरियों से उस समय तो बच गया।। जीतू के बांसुरी बंद करते ही आंछरियों ने कहा कि हमारे साथ चलो। जीतू ने उनसे कहा कि इस समय छोड़ दो, वह छह गते आषाढ़ को चलेगा,  तब उसके खेत में आना। इसके बाद   जीतू उदास रहने लगा। वह वह अपनी बहिन के घर भी गया और भरणा से उसका प्रेम चलता रहा। वह समझ गया था कि अब यह आखिरी समय है- फिर तो इस शरीर से मिलना नहीं होगा। कुछ दिनों के पश्चात् वह अपनी बहिन  को साथ लेकर अपने गांव लौट आया।

जीतू की रोपाई की तिथि छह गते अषाण की रोपणी का दिन आ गया। रोपणी लगाते समय आंछरियां जीतू बगडवाल को अपने साथ ले जाने के लिए आ गई।  आंछरियों ने उसका हरण कर लिया। जीतू अपने बैलों की जोड़ी समेत भूमि में समा गया। जीतू ( jeetu Bagdwal)के शव के साथ उसकी पत्नी भरणा सती हुई। जीतू के मृत्यु के बाद उसके परिवार पर आफतों का पहाड़ टूट पड़ा।कहा जाता है कि जीतू के भाई शोभना की हत्या करवा दी गई। राजा ने उसके परिवार पर बहुत अत्याचार किए। बाकी परिजनों को कारागार में बंद करवा दिया।

कहा जाता है कि जीतू की मृत्यु के बाद राजा पर घोर संकट आने लगे। इस पर राजा ने जीतू की पूजा-अर्चना कराई गई। उसके परिजनों को सम्मान सहित मुक्त किया गया। उसी समय से जीतू बगड्वाल गढ़वाल में देव-रूप में पूजा जाता है।कहा जाता है कि इसके बाद जीतू ( jeetu Bagdwal)अदृश्य रूप में परिवार की मदद करता है। तत्कालीन राजा को भी एहसास होता है कि जीतू एक अदृश्य शक्ति बनकर गांव की रक्षा कर रहा है। यह सब कुछ भांपकर राजा ने जीतू को पूरे गढ़वाल में देवता के रूप में पूजने का आदेश दे दिया। जीतू की वीरता, सुन्दरता, बांसुरी वादन और आछरियों से उसके हरण कर लिए जाने की घटना को पवांडों और जागरों में गाया जाने लगा। यह प्रथा आज भी गढ़वाल में प्रचलित है।

जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)को लेकर दूसरी कथा भी है। इसके अनुसार जीतू की बुद्धि एवं चातुर्य से गढ़नरेश मानशाह अति प्रसन्न था। राजा ने उसे अपना दरबारी नियुक्त कर दिया। बाद में गढ़नरेश ने जीतू को कर वसूलने का कार्य सौंप दिया। राजा से  निकटता हो जाने के कारण वह बेरोकटोक राजमहल में आने-जाने लगा था। वह सुंदर तो था ही। उसके आकर्षक कद काठी के कारण राजघराने की बहू-बेटियों से उसकी निकटता हो गई। कई से उसके संबध भी बन गए। यह बात जानकर गढ़ नरेश गुस्से से तिलमिला पड़ा। आरोप है कि क्रुद्ध होकर राजा ने नारायण चौधरी व भट्ट बिनायक के हाथों श्रीनगर के निकट शीतला की रेती मे जीतू का वध करवा दिया। अकाल मृत्यु के कारण वह भूत बन गया।  उसकी मृत आत्मा राज दरबार में डरावने करतब दिखाने लगी। अन्ततः मृत आत्मा को प्रसन्न करने के लिए गढ़ नरेश ने आदेश  दिया कि  गढ़वाल के प्रत्येक गांव में जीतू को नचाया जाए। इसके बाद भूत बने जीतू बगड़वाल को पूजा जाने लगा।

यह था भड़ जीतू बगड़वाल ( jeetu Bagdwal)की गाथा। जै हिमालय, जै भारत।

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