गढ़वाल में आकर गांवों से इस तरह बने ब्राह्मणों के जातिसंज्ञा नाम

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गढ़वाली ब्राह्मणों का इतिहास -एक

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

मैं  पहले ही साफ कर देता हूं कि मेरा उद्देश्य इतिहास की जानकारी देना  मात्र है, नकि, किसी का महिमामंडन करना।  मेरा यह आलेख व वीडियो गढ़वाल के पहले प्रमाणिक इतिहास लिखने वाले पं. हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन, डा. शिव प्रसाद डबराल चारण, राय बहादुर पातीराम समेत कई  लेखकों की पुस्तकों पर आधारित है।  गढ़वाल में ब्राह्मण  सदियों पहले से आने लगे थे। उत्तराखंड में सदियों पहले से ब्राह्मण व क्षत्रिय आकर यहीं बस जाते रहे हैं। पौराणिक काल में भी ब्राह्मण आए। महाभारत काल में महाराज पांडु के साथ भी ब्राह्मण गढ़वाल आए थे।  पांडव भी वनवास के समय जब केदारखंड आए तब भी यहां ब्राह्मणों के होने का उल्लेख मिलता है। गढ़वाल में ब्राह्मण जातियां विभिन्न श्रेणियों में विभक्त रही हैं। हालांकि अब समय के साथ ये सभी भेद मिट गए हैं। टिहरी रियासत के मंत्री रहे पं. हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार गढ़वाल में ब्राह्मण सरोला, गंगाड़ी और नाना गोत्री या खस ब्राह्मण में विभक्त रहे हैं। सरोला व गंगाड़ी वे ब्राह्मण हैं, जिनके पुरखे मैदानों से गढ़वाल गए। इसे लेकर एक वीडियो पहले से ही इस चैनल में है। अब यह जानकारी दे रहा हूं कि ये ब्राह्मण  कब और कहां से गढ़वाल आए। अभी तक उन ही ब्राह्मणों का  इतिहास मिलता है, जिन्हें हम सरोला व गंगाड़ी कहते हैं और वे 8वीं से 9वीं सदी से गढ़वाल आने शुरू हुए थे। दरअसल, गढ़वाल व कुमायुं में बड़ी संख्या में खस ब्राह्मण भी रहे हैं परंतु इनमें से अधिकतर ने वही जाति संज्ञानाम अपना लिए जो कि सरोला व गंगाड़ी अपनाते रहे हैं। खस, नानागोत्री, देवप्रयागी पंडे आदि ब्राह्मणों में भी सरोला व गंगाड़ी जातिनाम मिलते हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों के सरनेम वाले ब्राह्मण भी यहां हैं। ये वे ब्राह्मण हैं, जिन्हें उत्तर प्रदेश के राजा या धनिक लोग अपनी बदरीनाथ-केदारनाथ धाम की यात्रा के दौरान अपने पुरोहित के तौर पर साथ लाते थे और यहीं बसा देते थे, ताकि अगली यात्रा में भी वे पुरोहित का काम कर सकें।  यहां के अधिकतर ब्राह्मणों की जातियों के नाम उनके प्रथम गांवों के नाम पर पड़े, परंतु १५ या १६वीं सदी के बाद आए ब्राह्मणों के जाति नाम  वही हैं जो कि उनके पुराने स्थानों पर थे।

 गढ़वाल में सरोला और गंगाड़ी 8 वीं और 9वीं शताब्दी के दौरान मैदानी क्षेत्रों से केदारखंड आए थे। पंवार शासक के राजगुरु, राजपुरोहित, मंत्री, वैद्य, रसोइया आदि के रूप में काम करने वाले ब्राह्मण सरोला कहलाए। पंवार राजवंश के वजीर रह चुके हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार सरोला जाति पहले 12 थान (स्थान) अर्थात 12 जातियों में विभक्त थीं। अर्थात इनके 12 थान (स्थान)1- नौटी, 2-मैटवाणा, 3- खंडूड़ा, 4- रतूड़ा, 5-थापली, 6-चमोला , 7- सेमा, 8-लखेसी या लखेड़ी, 9 -सेमल्टा, 10-सिरगुरौ , 11 कोटी और 12- डिम्मर थे। कोई नवं स्थान सेमल्टा के बजाए गैराला बतलाते हैं। इन गांवों के नाम पर ही यहां के ब्राह्मणों का जाति संज्ञानाम पड़ गया। सरोलाओं के शुरू में 12 थान यानी स्थान थे। अर्थात सरोला मुख्यत: यही जातियां थीं। अन्य जातियों को बाद में मिलाया जाता रहा। महाराजा महीपत शाह (1629- 1646ई.) ने इनमें और जातियों को शामिल कर दिया।इस तरह पहले तो 12 से बढ़कार  सरोला के 21 थान (स्थान) बने। बाद में और बढ़ाई गई। अब कुल 33 जातियां सरोलाओं की पाई जाती हैं।  चांदपुर गढ़ी में राजधानी रहने पर पंवार राजवंश के राजगुरु, राजपुरोहित, मंत्री, वैद्य, रसोइया आदि सरोला ब्राह्मण कहलाए। जबकि  हिमालय के निचले क्षेत्रों यानी गंगा आदि नदियों की घाटियों यानी गंगाड़ क्षेत्र में रहने वाले ब्राह्मण गंगाड़ी कहलाए। नाना जाति के ब्राह्मण वहां के मूल आदिम निवासी हैं जिन्हें खस ब्राह्मण कहा जाता है। गढ़वाल में आने के बाद जिन सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मणों ने नाना गोत्र के ब्राह्मणों से भी शादी की, उनकी संतानें नाना गोत्र के ब्राह्मण कहलाए।

  गढ़वाल को तब केदारखंड कहा जाता था। सरोला और गंगाड़ी ब्राह्मणों के  जाति संज्ञानाम उनके प्रथम पैत्रिक गांवों के नाम से पड्रे हैं, जहां उनके प्रथम पुरुख पुरुष बसे थे। इस क्रम में मैं पहले बारह-थोकी सरोलाओं की जानकारी दे देता हूं। इसके तहत अपनी लखेड़ा जाति से प्रारंभ कर रहा हूं।

लखेड़ा— इनके प्रथम पुरुख  श्रद्धेय भानुवीर नारद और श्रद्धेया भारती जी थे। ये आद्य गौड़ ब्राह्मण हैं। बंग देश यानी बंगाल के वीरभूम क्षेत्र के  मिदिनापुर  के कंसावती नदी के किनारे बसे गांव से आए। वैद्यराज भानुवीर नारद बदरी विशाल के दर्शनों के लिए तीर्थ यात्रा पर आए थे। ब्रदीनाथ धाम में गढ़ नरेश की पुत्री का इलाज करने पर तत्कालीन पंवार नरेश ने वैद्यराज भानुवीर नारद जी से  चांदपुर क्षेत्र में बसने का आग्रह किया। नरेश के आग्रह पर संवत 1117 यानी सन 1060 में वे लखेड़ी गांव में बसे। उनका विवाह डिमरी परिवार की भारती उर्फ हंसा जी से हुआ था। लखेड़ी गांव में बसने के कारण लखेड़ा कहलाए। ये गढ़वाल के साथ ही कुमायुं में भी बसे हैं।

डिमरी –  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय राजेन्द्र बलभद्र थे। वे द्रविड़ ब्राह्मण हैं और कर्नाटक के संतोली से आकर गढ़वाल डिम्मर गांव में बसे। इसलिए डिमरी कहलाए। राजेन्द्र बलभद्र जी आदि शंकराचार्य के साथ अर्चक के तौर पर आए थे।

नौटियाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय देवीदास नीलकंठ थे।  चांदपुर गढ़ी में पंवारों का शासन रहने पर नौटियाल उनके कुल पुरोहित थे। वे भी पंवार वंश के संस्थापक कनकपाल के साथ संवत 945 में मालवा के प्राचीन राज्य धारा नागरी से आए थे। नौटियाल गौड़ ब्राह्मण हैं।  चांदपुर के नौटी गांव में बसने से नौटियाल कहलाए। नौटियाल की छह शाखाएं हैं। इनमें ढंगाण, पल्याल, मंजखोला, गजल्डी, चान्दपुरी और बौसोली शामिल हैं।

 मैठाणी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय रुपचंद त्रयंबक चांदपुर के मैटयाणा  गांव में बसने के कारण मैठाणी कहलाए। ये गौड़ देश यानी बंगाल के छखात से  संवत 957  में आए थे। वे आद्य गौड़ हैं।

खंडूड़ी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  सारंधर महेश्वर थे। ये गौड़ ब्राह्मण हैं। संवत 945 में वीरभूमि बंगाल से आकर खंडूड्रा गांव में बसे।

रतूड़ी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय सत्यानंद राजबल थे। रतूड़ा गांव में बसने से रतूड़ी कहलाए। ये आद्य गौड़ ब्राह्मण  हैं और गौड़ देश से संवत 980 में आए।

थपलियाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय जयचंद मयचंद जयपाल थे। ये आद्य गौड़ हैं। संवत 980 में गौड़ देश से आकर चांदपुर क्षेत्र के थापली गांव में बसे। इस कारण थपल्याल कहलाए। जो कि अब थपलियाल कहे जाते हैं।

चमोली – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  धरणीधर, हरमी, बिरमी थे। चमोली द्रविड़ ब्राह्मण हैं। वे  रामनाथ विल्हित  से संवत 924 में आए। चमोला गांव में बसने से चमोली कहलाए।

 सेमवाल – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  प्रभाकर थे। सेमवाल आद्य गौड़ हैं और  संबत 980 में बंगाल के वीरभूमि से आए। सेम गांव में बसने से सेमवाल कहलाए।

सेमल्टी- – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय गणपति थे। वे आद्य गौड़ ब्राह्मण हैं और बंगाल के बीरभूम से संबत 965 में आए। सेमल्टा गांव में बसने से सेमल्टी कहलाए।

कोठियाल –  गौड़ ब्राह्मण हैं। चांदपुर क्षेत्र के कोटी  गांव में बसने से कौट्याल कहलाए। जो कि बाद में कोटियाल अथवा कोठियाल कहलाए।

गैराला – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  जयानन्द, विजयानन्द थे। ये आद्य गौड़ हैं संवत 972 में आए।  गैरोली गांव में बसने के कारण गैरोला कहलाए।

बिजल्वाण –  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  बिज्जू थे। ये गौड़ ब्राह्मण हैं।  प्रथम पुरुष बिज्जू के नाम से ही बिजल्वाण कहलाए।

सती – गुजरात से आए। ये  गुजरात से आए। नऊनी, नौनी और नवानी इनकी ही शाखाएं हैं। नौन या नऊन गांव में बसने से ये जित संज्ञानाम मिला।

कंडवाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  श्रीकंठ च उनके वंशज निगमानंद और आगमानद थे। कंडवाल लोग  कुमायुं से गढ़वाल आए।  कहा जाता है कि कुमायुं के कांडपाल ही गढ़वाल में कंडवाल कहलाए। कांडई गांव में बसने से कंडयाल  व फिर कंडवाल कहलाए।

सिरगुरौ भी सरोला ब्राह्मण हैं।

हटवाल-  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय   सुदर्शन, विश्वेश्वर थे। ये गौड़ ब्राह्मण हैं और बंगदेश के वीरभूम से संवत १०५९ में आए। हाट गांव में बसने से हटवाल कहलाए।

मराडूड़ी खुद को खंडूड़ी की ही शाखा मानते हैं। मडूंड गांव में बसने से मराडूड़ी कहलाए।

पुज्यारी – वे संवत 1772 में दक्षिण भारत से आए भट ब्राह्मण हैं। चंद्रबदनी की पूजा करने के पुज्यारी कहलाए।

मैराव के जोशी-  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय बीरसेन भ्रादासेन थे। ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। संवत 1812  में कुमायुं से आए।

श्रीगुरु – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय बीरसेन भद्रासन थे।

ड्योंडी- ये ड्योंड गांव में बसने से ड्योंडी कहलाए।

इनके साथ ही भद्वाल, जैस्वाल, सिलोड़ा, मालीवाल,जसोला, कैलाखोरा, धम्वाण, नैन्याल, मालगुड़ी, चौक्याल भी बाद में सरोला में शामिल किए गए।  भट्ट जाति के लोग सरोला, गंगाड़ी व नानागोत्री, तीनों में शामिल  हैं। कुछ डोभाल भी सरोला है। कहा जाता है कि वे डोभालों के धर्मपुत्र सरोलों के वंशज हैं।

 

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अब गंगाड़ी की बात करते हैं। गंगाड़ी ब्राह्मणों में  चार जातियों को चौथोकी कहा जाता था। इनमें बहुगुणा, डंगवाल,  डोभाल, और उनियाल शामिल हैं।

 

बहुगुणा – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  कृष्णानंद, अच्युतानंद थे। बहुगुणा जाति को पहले बुघाणा कहा जाता

रहा है। ये आद्य गौड़ हैं और संवत 980 में गौड़ बंगाल से  आकर गढ़वाल के बुघाणी गांव में बसे। इसलिए

बहुगुणा कहलाए। ।

डोभाल – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय कर्णजित थे। डोभा गांव में बसने से डोभाल  कहलाए। वे संवत 945 में आए। वे कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं।

उनियाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय जयानंद, विजयानंद थे। वे दो पृथक गोत्री मैथिली ब्राह्मण ममेरे-फुफेरे भाई ओझा और झा थे। दरभंगा मगध-बिहार वोणी गांव में बसे। थे।  कहा जाता है कि उनको ओनी में जागीर देने से वे उन्याल कहलाए। जो कि अब उनियाल कहे जाते हैं।

घिल्ड्याल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय लुत्थमदेव, गंगदेव थे। वे आद्य गौड़ हैं और संवत 1100 में घिल्डी में बसने से घिल्डयाल या घिल्डियाल कहलाए।

नैथानी –  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय कर्णपाल, इंद्रपाल थे। इनको नैथाणी भी कहा जाता है। वे कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं । संवत 1200 में कन्नौज से आकर गढ़वाल के नैथाणा गांव में आकर बसेस इसलिए नैथाणी कहलाए।

जुयाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय बसुदेव, विजयानंद थे। वे संवत 1700 में महाराष्ट्र के वलहित से आए। जूया गांव में बसने से जुयाल कहलाए।

 

सकलानी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय नागदेव थे। इनको सकल्याणी भी कहा जाता है। वे कान्यकुब्ज हैं। संवत 1700 में अवध के डौडियाखेड़ा से आकर सकलाना गांव में बसे। इसलिए इन्हें व इनकी पट्टी को  सकलाना नाम पड़ गया। इनको पुजारी भी कहा जाता है।

पैन्यूली –  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय ब्रह्मनाथ थे। वे गौड़ ब्राह्मण हैं । संवत 1207 में  दक्षिण भारत से आकर पान्याला गांव रमोली में बसे। इसलिए पैनुली या पैन्यूली कहलाए।

चंदोला- इनके प्रथम पुरुष  श्रद्धेय लूथ राज  थे। ये सारस्वत है। ये पंजाब से आकर चंदोसी में बसे। वहां से संवत 1633 में गढ़वाल आए।

ढौंडियाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय रूपचंद थे। ये गौड़ ब्राह्मण हैं। राजपूताना से संवत 1713 में  आकर ढौंड गांव  में बसे। इसलिए ढौंडियाल कहलाए।

नौड़ियाल- इनके प्रथम पुरुष  श्रद्धेय शशिदर थे। वे गौड़ ब्राह्मण हैं। भृंग चिरंग से संवत 1600 में गढ़वाल के नौड़ी गांव में बसे।  इसलिए नौड़ियाल या नौडियाल या नौरियाल कहलाए।

ममगाईं- गौड़ ब्राह्मण हैं। उज्जैन से आकर गढ़वाल में अपने मामा के गांव में बसने के कारण ममगाईं कहलाए।

बड़थ्वाल- इनके प्रथम पुरुष  श्रद्धेय सूर्यकमल मुरारी थे। ये  गौड़ ब्राह्मण हैं ।  संवत 1500 में गुजरात से आकर बड़ेथ गांव में बसे। इसलिए बड़थ्वाल कहलाए।

कुकरेती- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय गुरूपति थे। वे द्रविड़ ब्राह्मण हैं। विलहित से संवत 1409 में आकर कुकरकाटा गांव में बसे। इसलिए कुकरेती कहलाए।

धस्माना- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय हरदेव, वीरदेव, माधोदास थे। ये गौड़   हैं। उज्जैन से संवत 1723 में आए। धस्मण गांव में बसने से धस्माना कहलाए।

कैंथोला- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय राम  वितल  थे। ये भट्ट हैं और गुजरात से संवत 1669 आकर कैंथोली गांव में बसे थे। इसलिए कैंथाला कहलाए।

सुयाल-  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय दजल, बाज नारायण थे। ये भट्ट हैं और गुजरात से अकर सूई गांव में बसे। इसलिए सुयाल कहलाए।

बंगवाल- बंगवालः ये गौड़ वंश के हैं। सम्वत 1725 में ये मध्यप्रदेश से आए। ये यहां बांगा गांव में बसे।

अण्थवाल – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय रामदेव  थे। ये सारस्वत ब्राह्मण हैं और संवत 1555 में पंजाब से गढ़वाल आए। अणेथ गांव में बसने के कारण अणथ्वाल कहलाए।

बौखंडी- वे अपने को भुकुण्ड कवि के वंशज बतलाते हैं। वे महाराष्ट्र विलहित से संवत 1700 में आए।

जुगड़ाण- ये मूलत: पांडे हैं। कुमायुं से संवत 1700 में आए। जुगड़ी गांव में बसने से जुगडाण कहलाए। अब जुगराण कहे जाते हैं।

मालकोटी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय बालकदास थे। ये  गौड़ हैं। संवत 1700 में यहां आए।

बलोदी- ये द्रविड़ हैं। संवत 1400 में दक्षिण से आए। यहां बलोद गांव में बसने से बलोदी कहलाए।

घणसाला- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय मग्नदेव थे। ये गौड़ हैं और संवत 1600 में गुजरात से आए। घणसाली गांव में बसने से घणसाला कहलाए।

मडवाल – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय  राजदास थे। ये अल्मोड़ा के द्वाराहाट से संवत 1700 में आए। महड़ गांव में बसने से मडवाल कहलाए।

देवराणी- ये भट्ट  हैं और गुजरात से संवत 1500 में यहां आए।

पोखरियाल- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय गुरुसेन थे। इनकी पूर्व जाति विल्वल है। ये संवत 1678 में विलहित से यहां आए। पोखरी गांव में आकर बसने से पोखरियाल कहलाए।

डबराल – इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय रघुनाथ, विश्वनाथ  थे।महाराष्ट्र वंश के हैं। ये दक्षिण भारत से संवत 1433 में आकर डाबर गांव में बसे। इसलिए डबराल कहलाए।

सुंद्रयाल-  ये दक्षिण भारत से संवत 1711 में यहां आए। ये कर्नाटक वंश के हैं। सुन्द्रोली गांव में बसने से सुंद्रयाल कहलाए। इनको सुंदरियाल भी कहते हैं।

कलसी- ये भट्ट हैं। संवत1300 में गुजरात से आकर यहां बसे।

किमोटी-  इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय रामभजन थे। ये गौड़ हैं। संवत1617 में बंगाल से आकर किमोटा गांव में बसे। इसलिए किमोठी कहलाए।

कवि- ये कान्यकुब्ज हैं और कविता रचने के कारण कवि कहलाए। ये संवत 1730 में कन्नौज से आए।
पूर्बिया-  कुमायुं से आई कई जातियों को  यह जाति नाम दिया गया।

कुठारी या कोठारी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय कुमार देव थे। ये शुक्ल हैं। संवत 1791 में बंगाल से आकर कोठार गांव में आकर बसे थे। इसलिए कोठारी कहलाए।

बडोला- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय उज्जल थे। ये गौड़ वंश के हैं। संवत 1798 में उज्जैन से आकर बडोली गांव में बसे थे। इसलिए बडोला कहलाए।

पांथरी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय कुमार देव  अन्थु पन्थराम थे।  ये सारस्वत हैं। संवत 1600 में जालंधर से आकर  पांथर गांव में बसे थे।  इसलिए पांथरी कहलाए।

बलोणी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय जीवराम थे। ये  सारस्वत हैं और जालंधर से संवत 1500 में आकर बलोण गांव में बसे।  इसलिए बलूनी या बलोणी कहलाए।

 

पुरोहित- ये पुरोहिताई करने के कारण  पुरोहित कहलाए। ये  खजीरी वंश के हैं। संवत  1813 में जम्मू से आकर यहां बसे।

बडोनी- ये गौड़ ब्राह्मण हैं। संवत 1500 में बंगाल से कर बडोन गांव में बसे। इसलिए बडोनी कहलाए।

रुडोला- ये तैलंग हैं। सिंध हैदराबाद से यहां आए।

 सुन्याल या सोन्याल- यहां सोनी गांव में बसने से सुन्याल कहलाए।

कोटनाला- वे गौड़ है। बंगाल से संवत 1725 में आकर कोटी गांव में बसे। इसलिए कोटनाला कहलाए।

काला – ये काली कमायुं से संवत 912 में आए। इसलिए काला कहलाए।

कौंसवाल- ये गौड़ हैं। संवत 1722 में यहां आकर कंस्याली गांव में बसने से कौंसवाल कहलाए।

वैरागी- ये गृहस्थ वैरागी हैं।

मलासी- ये गौड़ हैं और मलासू गांव में बसने से मालासी कहलाए।

फरासी- ये द्रविड़ हैं। संवत 1791 में दक्षिण से आकर यहां फरासू गांव में बसे और फरासी कहलाए।

बदाणी-  ये कान्यकुब्ज हैं। संवत 1722 में कन्नौज से आकर बधाण परगने में बसने से बदाणी कहलाए।

कोटवाल- कोट गांव में बसने से कोटवाल कहलाए।

सैल्वाल-सैल गांव में बसने से सैल्वाल कहलाए।

कुड़ियाल- ये गौड़ हैं। संवत 1600 में बंगाल से आकर कूड़ी गांव में बसने से कुड़ियाल कहलाए।

भट्ट- ये भट्ट जाति से हैं। दक्षिण भारत से आए। ये गढ़वाल की एकमात्र जाति है जो सरोला, गंगाड़ी और नागपुरी ब्राह्मणों की सूची में शामिल है।

 

बौराई- ये  गौड़ हैं। संवत 1500 में यहां बौधर या वीर गांव में बसने से बौराई कहलाए। इनको बौड़ाई भी कहा जाता है।

मकोटी (दूसरे)- ये कान्यकुब्ज हैं। कन्नौज से संवत 1622 में आकर मैकोटी गांव में बसे। इसलिए मकोटी कहलाए।

बिजोला- ये द्रविड़ ब्राह्मण हैं।

गोदूडा- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय गोदू थे। ये भट्ट वंश के हैं। संवत 1718 में दक्षिण से आए।

भदोलाः ये द्राविड ब्राह्मण हैं। दक्षिण भारत से आए।

मुसडा- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय भागदेव थे।  ये गौड़ हैं। बंगाल से आकर मुसड़ गांव में बसने से मुसडा या मुसुडा कहलाए।

व्यासुड़ी- इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय व्यास थे। ये भट्ट हैं। दक्षिण भरत से संवत 1600 में आए।

सिल्वाल- ये द्राविड हैं। बनारस से आकर सिल्ला गांव में बसने से सिल्वाल कहलाए।

मिस्सर- ये कुमायुं से आए।

मुन्नाद्यूली भी गंगाडी हैं।

बेंजवाल –ये कान्यकुब्ज हैं। ये 11 वीं शताब्दी में बीजमठ महाराष्ट्र से यहां आकर अगस्त्यमुनि क्षेत्र के बेंजी गांव में बसे। इसलिए बेंजवाल कहलाए।

पन्त –कुमायुं से यहां आए। इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय जयदेव पन्त थे। वे कोंकण महाराष्ट्र से 10 वीं सदी में  कुमायुं आए। वहां से उनके  कुछ वंशज गढ़वाल आए।

कुनियाल – ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण हैं। कन्नौज से यहां कुनि गांव में बस गए। इसलिए कुनियाल कहलाए।

खंतवाल- खनेता गांव में बसने से खनेतवाल व फिर खंतवाल कहलाए।

जोशी- ये कुमायुं से संवत 1700 में आए।

इनके अलावा इन सभी जातियों में से कई जातियां नागपुरी में आती हैं। इनमें किमोठी, मैकोटा, बिंजोला, सिलवाल, कंडयाल, सेमवाल, दरमवाड़ा,गुगलेता, मंगवाल, खौली, थलवाल, थालसी, धमकवाल, जमलागी, बरमवाल, गरसारा,  बमोला, संगवाल, पुरिबया, फलाता, पलोड़ी, ध्यालखी व मिस्सर प्रमुख हैं। ये केदारनाथ क्षेत्र में रहते थे। इनके अलावा देवप्रयाग के पंडों की जातियां भी हैं। इनमें मालिया, टोडरिया, कोटियाल, पुरोहित, ध्याणी, अर्जुना, पल्याल, वावलिया, अलखणियां, रैवानी, तिवाड़ी, भट्ट, द्राविड, कर्नाटक, तैलंग, महाराष्ट्र, गुजराती व ज्योशी प्रमुख हैं। इनमें कुछ ऐसी जातियां हैं, जो कि सरोला और गंगाड़ी में भी मिलती हैं। यह घर्मपुत्र या घर जंवाई रखने के कारण ऐसा हुआ। इनमें डोभाल, डंगवाल, नौटियाल, खंडूड़ी, बुघाणा, मिस्सर, उन्याल, खगसाल, डबराल, थपलियाल, बलोणी भी हैं।  कुमायुं से आई कई जातियों पांडे, पंत, मिस्सर, तिवाड़ी, जोशी, जोगड़ी आदि को पुर्बिया कहा जाता है।

इनके अलावा दर्जनों ऐसी जातियां हैं, जिनके बारे में जानकारी जुटाना बाकी है।


जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालय की  जातियों के इतिहास के क्रम में इस बार उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के ब्राह्मणों के इतिहास की दूसरी कड़ी के साथ आया हूं।  गढ़वाल में ब्राह्मण किस क्षेत्र से आए। इस वीडियों में यही बताने जा रहा  हूं। हिमालयी क्षेत्रों की विभिन्न जातियों को लेकर  इस चैनल में पहले से कई वीडियो हैं। अब इस बारे में बताने से पहले आप सभी  हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।

दोस्तों यह था  गढ़वाल के ब्राह्मणों का कुछ इतिहास । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै

 

 

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