परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली दोस्तों, हिमालय के खसों, कोलीयवंशियों और थारुओं के बाद अब इसी क्षेत्र की एक और प्राचीन जाति किरात को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। इस साहसी और   परिश्रमी जाति को लेकर  भारतीय पौराणिक साहित्य के पन्ने भरे हैं। खसों के आने से पहले कभी हिमालयी के पूर्वोत्तर क्षेत्र में किरातों का...
  परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली बंधुओं इन बार आपके लिए हिमालयी क्षेत्र में रहने वाली प्राचीनतम जातियों विशेषतौर पर राक्षसों को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। इस वीडियो में वैदिक व पौराणिक काल सहित प्राचीन कालखंड की बात करुंगा। आज राक्षसों के बारे में पहले तो पौराणिक तौर पर और फिर इतिहास की दृष्टि से जानकारी...
परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली दोस्तों, इस बार आपके लिए उत्तराखंड की राजनीति के एक महत्वपूर्ण पहलू को लेकर आया हूं।   9 नवंबर 2000 को भारत के  27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आए इस हिमालयी राज्य को मुख्यमंत्री तो बहुत मिले, लेकिन एक भी ऐसा नहीं मिला, जो राजनीतिक व सार्वजनिक जीवन के मानदंडों...
परिकल्पना- डा. हरीशचंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति/ नयी दिल्ली दोस्तों, इस बार आपके लिए हिमालयी लोगों की सादगी, ईमानदारी और भोलेपन को लेकर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ जानकारी लेकर आया हूं। यह अदभुद जानकारी है। इस जानकारी को मैंने पहाड़ के लोगों के सरोकारों से जोड़ने का प्रयास किया है। जब भारत में अंग्रेजों का शासन था, तब मध्य हिमालयी क्षेत्र...
तो इस तरह बनें ब्वेई और ईजा शब्द -डा. हरीश चंद्र लखेड़ा शोध और आलेख- डा हरीश चंद्र लखेड़ा   दोस्तों, मांजी -पिताजी के लिए विश्वभर में जो भी संबोधन होता है, उसमें से अधिकतर देशों में मां शब्द की ध्वनि अवश्य होती है। परंतु उत्तराखंड के  गढ़वाल में मां के लिए ब्वेई तथा कुमायुं में ईजा संबोधन है। नेपाल में आमा कहा...
आचार्य चाणक्य और सम्राट चद्रगुप्त मौर्य को क्यों प्रिय थे हिमालयी वीर परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति नयी दिल्ली आप इसे हिमालयीलोग यूट्यूब चैनल मंे भी सुन सकते हैं। दोस्तों इस बार आपके लिए इतिहास के पन्नों से गायब हुए उन हिमालयी  वीरों की जानकारी दे रहा हूं, जिनकी भारत के प्रथम विशाल मौर्य साम्राज्य के गठन में प्रमुख भूमिका रही...
नेपाली मूल की नहीं, पूरे हिमालयी खसों का साझा शस्त्र है खुंखरी परिकल्पना - डा.हरीश चंद्र लखेड़ा / हिमालयीलोग की प्रस्तुति / www.himalayilog.com /नयी दिल्ली दोस्तों इस बार मैं आपके लिए हिमालयी क्षेत्र के परंपरागत हथियार खुंखरी के बारे में जानकारी लेकर आया हूं। आप लोग इससे संबंधित लेख को वेबसाइट हिमालयीलोग डॉटकॉम पर पढ़ सकते हैं। / आप लोग इस...
जीवट के धनी हैं उत्तराखंड के खसिया - प्रोफेसर (डॉ ) गोविन्द सिंह उत्तराखंड के खसिया यानी ठाकुर, मतलब क्षत्रिय जातियों का समूह। हालांकि इसमें यहां की अनेक ब्राह्मण जातियां भी शामिल रही हैं, लेकिन अब यह संबोधन यहां के ठाकुरों के लिए रूढ़ हो गया है। बाहर से आकर यहां बसे ब्राह्मण इस संबोधन का इस्तेमाल उन्हें नीचा दिखाने के...
प्राकृतिक संपदा से भरपूर होने के बावजूद हिमालयी क्षेत्रों के बच्चे भी कुपोषण के शिकार हैं। देश में अवरुद्ध विकास वाले औसतन ४४.९ फीसदी बच्चे, २२.९ फीसदी ठिगने बच्चे तथा ४०.४० कम वजन वाले बच्चे हैं। हिमालयी राज्यों में भी इन श्रेणी के बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। इसकी एक बड़ी वजह पहाड़ी लोगों का अपने स्वास्थ्य के ...
विलुप्त हो रही है गोरैया (घंड्यूड़ी) ---नंंदनी बड़थ्वाल नई दिल्ली। गोरैया, जिसे उत्तराखंड में घंड्यूड़ी कहा जाता है, आज विलुप्त होती जा रही है। दिल्ली में तो बहुमंजिला इमारतें बन जाने से इसका आशियाना ही छिन गया है। इसलिए यहां कबूतर तो बढ़ रहे हैं, लेकिन गोरैया बहुत कम दिखती है। दिल्ली सरकार ने इस राज्यीय पक्षी घोषित तो किया है, लेकिन...
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