विलुप्त हो रही है गोरैया (घंड्यूड़ी)

—नंंदनी बड़थ्वाल

नई दिल्ली। गोरैया, जिसे उत्तराखंड में घंड्यूड़ी कहा जाता है, आज विलुप्त होती जा रही है। दिल्ली में तो बहुमंजिला इमारतें बन जाने से इसका आशियाना ही छिन गया है। इसलिए यहां कबूतर तो बढ़ रहे हैं, लेकिन गोरैया बहुत कम दिखती है।
दिल्ली सरकार ने इस राज्यीय पक्षी घोषित तो किया है, लेकिन इसे बचाने के ज्यादा ठोस प्यास शुरू नहीं हुए हैं। कभी घर-आंगन में चारों ओर चहकने वाली यह प्यारी चिडिय़ा उत्तराखंड के लोकमानस में बसी है। यह दुख सुख की साथी है, इसे लेकर कई गीत रचे गए हैं और लोककथाओं में भी है।
इस बार 15 नवंंबर को  बर्ड गणना दिवस के तौर पर मनाया गया है। दरअसल, बर्ड मैन के नाम से पुकारे गए डा सलीम अली  का जन्म 12 नबंबर 1896 को हुआ था। उनकी याद में इस वर्ष 15 नवंबर को पूरे भारत वर्ष में बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने बर्ड गणना दिवस के रूप में मनाया है । इसलिए हमें भी गोरैया की याद आ गई है।
गोरैया जिसे घंड्यूड़ी भी कहा जाता है, एक समय हर घर के आस पास उड़ती देखी जाती थी। पहाड़ी घरों के अंदर अपना छोटा सा घोसला बनाया करती थी। लगभग हर मौसम में इसका घरों में आना जाना रहता था। खेत में लगे पेड़ पर अनगिनत घोंसले देखे जाते थे। खासकर कीकर के पेड़ इसके घोंसले से भरे पड़े रहते थे। हर सुबह इसकी सुरीली आवाज मन मोह लेती थी। यह एक सामाजिक पक्षी है जहां जहां इंसान गया यह भी उसके साथ वहीं चली गयी। एक साथ धूल उड़ाना, चहचहाना तथा दाना चुगना अक्सर देखने को मिलता था।एक घोंसला बनाने के लिए ना जाने कितने चक्कर लगाना और तिनका तिनका जोड़ कर अपना आशियाना बनाना किसी सपने से कम नहीं लगता। शायद यह अपना घर बदलती रहती है इसीलिए समाज में लडक़ी को भी चिडिय़ा कहा गया है। पंजाब का एक गीत ‘साडा चिडिय़ाँ दा चम्बा है बाबुल असां उड़ ओह जाना’ इसकी लम्बी उड़ान और एक जगह से दूसरी जगह पलायन बताती है।
घरेलू गौरैया (पासर डोमेस्टिकस)  जोयूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया तथा नगरीय बस्तियों में अपना घर बनाया।  यह शहरों में भी ज्यादा पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है। लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं।

गोरैया एक छोटी चिडिय़ा है। यह हल्की भूरे रंग या सफेद रंग में होती है। इसके शरीर पर छोटे-छोटे पंख और पीली चोंच व पैरों का रंग पीला होता है। नर गोरैया का पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है। 14 से 16 से.मी. लंबी यह चिडिय़ा मनुष्य के बनाए हुए घरों के आसपास रहना पसंद करती है। यह लगभग हर तरह की जलवायु पसंद करती है पर पहाड़ी स्थानों में यह कम दिखाई देती है। शहरों, कस्बों गाँवों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पाई जाती है। नर गौरैया के सिर का ऊपरी भाग, नीचे का भाग और गालों पर पर भूरे रंग का होता है। गला चोंच और आँखों पर काला रंग होता है और पैर भूरे होते है। मादा के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता है। नर गौरैया को चिड़ा और मादा चिड़ी या चिडिय़ा भी कहते हैं।
आज पूरे भारतबर्ष में यहां बहुमंजिला इमारतों का चलन हो जाने से इस नन्ही सी चिडिय़ा को पुराने घरों की तरह अपना घोंसला बनाने के लिए जगह नहीं मिल पा रही है। जिसके कारण आज इसकी संख्या कम होती जा रही है।आज गांव में भी पक्के मकान आ गए हैं जिसके कारण बहा भी इसका मुश्किल से गुजारा हो रहा है। इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिडिय़ा की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है। पक्के मकान बनने और बाग-बगीचों के उजडऩे से इस पक्षी की संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है। ग्रामीण परिवेश के बदल जाने से यह पक्षी पहले घरों से बेदखल हुआ और अब इसके ओझल हो जाने के संकेत मिल रहे हैं।  माना जाता है कि इस चिडिय़ा की कमी के लिए आधुनिक कीटनाशकों एवं भोजन की कमी बहुत हद तक जिम्मेदार हैं। आधुनिक उपकरणों से उत्पन्न रेडियो तरंगों के विनाशकारी विकिरण के प्रभाव से इसके अंडों से बच्चे निकलने बंद हो गए हैं। वायुमंडलीय प्रदूषण से भी इसकी आबादी नष्ट हो रही है। मानव आबादी के आस-पास, घर की छत पर और पेड़ों की टहनियों पर घोंसला बनाकर मनुष्य के बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त रहने वाली गोरैया अब अस्तित्व के संकट से जूझने पर विवश है।  गोरैया को घास के बीज काफी पसंद होते हैं जो शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में आसानी से मिल जाते हैं। ज्यादा तापमान गौरेया सहन नहीं कर सकती। प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है।  खाना और घोंसले की तलाश में गौरेया शहर से दूर निकल जाती हैं और अपना नया आशियाना तलाश लेती हैं। आज गोरैया की कम होती जनसंख्या को देखते हुए दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया है।


फॉरेस्ट्री में  M Sc नंदनी बड़थ्वाल दिल्ली में  रहती  हैं , इकोलॉजी पर खूब लिखती हैं.  नंदनी बड़थ्वाल ने गोरैया को लेकर जानकारी दी है, नंदनी का आभार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here