नेपाली मूल की नहीं, पूरे हिमालयी खसों का साझा शस्त्र है खुंखरी

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नेपाली मूल की नहीं, पूरे हिमालयी खसों का साझा शस्त्र है खुंखरी

परिकल्पना – डा.हरीश चंद्र लखेड़ा / हिमालयीलोग की प्रस्तुति / www.himalayilog.com /नयी दिल्ली

दोस्तों इस बार मैं आपके लिए हिमालयी क्षेत्र के परंपरागत हथियार खुंखरी के बारे में जानकारी लेकर आया हूं। आप लोग इससे संबंधित लेख को वेबसाइट हिमालयीलोग डॉटकॉम पर पढ़ सकते हैं। / आप लोग इस लेख का वीडियो यूट्यूब के हिमालयीलोग चैनल पर देख सकते हैं।आमतौर पर लोग खुंखरी को नेपाल का परंपरागत हथियार मान लेते हैं, लेकिन ऐसा है नहीं। खुंखरी तो नेपाल की तरह बहुत पहले से उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू के खसों का भी प्रमुख परंपरागत हथियार रहा है। नेपाली गोरखों के आक्रमण से समय खुंखरी चर्चा में आई। चूंकि हिमालयी राज्यों में सिर्फ नेपालियों से ही अंग्रेजों का युद्ध हुआ, और १८१४-१५ के दौरान अंग्रेजों ने नेपालियों को खुंखरी चलाते पहली बार देखा।  इसलिए अंग्रेजों ने मान लिया कि यह  हथियार नेपाली लोगों का है। अंग्रेजों ने खुंखरी को गोरखा रेजीमेंट के जवानों के लिए मान्य कर दिया।  इसलिए भी यह धारणा बनती चली गई कि  यह शस्त्र नेपाली  है। जबकि खुंखरी भारतीय सेना की विभिन्न रेजिमेंटों और पैरा मिलिट्री की कई इकाइयों से भी जुड़ी है। खुंखरी, गोरखा रेजीमेंट ही नहीं, असम राइफल्स, कुमाऊं रेजिमेंट, गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट में भी प्रयोग होती है।

लेकिन इसके इतिहास में जाने के लिए हमें यूनान के परंपरागत हथियार कोपिस के बारे में भी जान लेना चाहिए। जिसका प्रयोग यूनानी योद्धा सिकंदर की सेना करती थी। खुंखरी को लेकर यह भी जान लेना आवश्यक है कि यह नेपाल ही नहीं बल्कि भारत हिमालयी राज्यों में सदियों से प्रचलन में है और इसी से मिलते रूप में यूनान में भी कोपिस के नाम से प्राचीन काल से  प्रयोग होती रही है। आप कोपिस और खुंखरी को देखेंगे तो पाएंगे कि दोनों में बहुत सी समानता है। सिकंदर की सेना कोपिस का इस्तेमाल करती थी। यूनान के उत्तर में स्थित मेसिडोनिया के सिकंदर ने भारत पर भी हमला किया था।  पुरु यानी पोरस  के साथ सिकंदर का युद्ध में 326 ई.पू. हुआ था। सिकंदर की सेना के पास एक हथियार था, जिसे कोपिस कहते थे।  कोपिस  यूनानी  भाषा का शब्द है और इसका  बहुवचन कोपिड्स  है। इसका अर्थ काटने के लिए से लिया जाता है। इसी तरह पौराणिक मिश्र  की भाषा में एक शब्द  खोपेश है। इसका अर्थ भी  काटने की तलवार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है।  प्राचीन ग्रीस में कोपिस का अर्थ एक घुमावदार ब्लेड के साथ एक भारी चाकू से लिया जाता रहा है। यह  मुख्य रूप से मांस काटने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग किया जाता था। इसके साथ ही अनुष्ठान वध तथा पशु बलि के लिए भी इसका प्रयोग किया जात रहा। प्राचीन यूनानी  युद्ध में इस धारधार वाले हथियार का इस्तेमाल करते थे।यूनानी शब्द कोपिस के साथ ही एक शब्द  मचैरा भी है।इसका अर्थ चॉपर या शॉर्ट तलवार, डैगर है। इसलिए एक मत यह भी है कि यूनानी योद्धा सिकंदर की सेना के कोपिस का ही भारतीय उप महाद्वीप का रूप खुंखरी है।

हालांकि हिमालयी खसों की खुंखरी को देखकर भी कहा जाता है कि यह अस्त्र तब से उनके पास है, जब उन्होंने कैस्पेनियन सागर के किनारे से भारत की ओर प्रस्थान किया था। वहीं से यूनानियों के पास भी यह हथियार गया। क्योंकि खस और कोपिस शब्दों में बहुत समानता है। वैसे भी जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल से लेकर सिक्किम तक सभी पहाड़ी लोगों का यह साझा  हथियार है । अंग्रेजों को आज भी देहरादून से खुंखरी भेजी जाती है।खुंखरी का पहाडी समाज में धार्मिक महत्व भी है। शादी, ब्याह से लेकर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में इसे पूजा में शामिल किया जाता है। खसों का परंपरागत अस्त्र इसलिए कह रहा हूं कि जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से लेकर नेपाल में जहां भी खस हैं, वहां खुंखरी रही है। हालांकि भारत में अब बिना लाइसेंसी हथियार रखना गैरकानूनी बना देने से लोग इसे रखने से परहेज करने लगे हैं। नेपाल में खुंखरी का निर्माण खस दलित कामी की करते हैं।सोने का काम करने वाले सोनार कामी और लोहे का काम करने वाले लोहार कामी कहलाते हैं। कामी को नेपाल में विश्वकर्मा भी कहते हैं। इस जाति की उप जातियों में बिश्कर्मा (बीके), लुहार (लोहार) स्केंचुरी, रासेली, गजमेर, घाटनी, बरेली, तिर्वा, सेटेसुरवाल, कलिकोट, घिमिरे, सहशंकर  शामिल हैं। कपकोट, लोहागुन, घाटराज, गोटेम, लमगडे, गदल, खाती आदि 50 से अधिक उपनाम भी कामी समुदाय में उपयोग किए जाते हैं। कामी समुदाय के  उपनाम नेपाल के ब्राह्मणों के समान भी हैं। कामी ९८ प्रतिशत हिंदू हैं, जबकि २ प्रतिशत बौद्ध।

नेपाल का एकीकरण करने वाले राजा पृथ्वीनारायण शाह को लेकर नेपाल में जनश्रति है । कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ ने राजा पृथ्वीनारायण शाह को दिव्य दर्शन देने के साथ ही उन्हें नेपाल के एकीकरण का आदेश दिया। तब गुरु गोरखनाथ ने राजा को एक खुंखरी भी भेंट की थी।  इस खुंखरी से गोरखे पूर्व में सिक्किम और पश्चिम में कांगड़ा तक पहुंच गए। परंतु  कांगड़ा किले के पास पंजाब के ऊंची  कद के तगड़े सिखों और  उनकी लंबी तलवारों के सामने उनकी यह छोटी सी खुंखरी नहीं चल पाई। सिख सरकार हरिसंह नलवा ने गोरखा सरदार अमर सिंह थापा की पलटन को हरा दिया था।  अंग्रेजों ने 1814-16 के एंग्लो-गोरखा युद्ध के  दौरान पहली बार खुंखरी को देखा था। जहां भी गोरखा लड़े, खुंखरी उनके साथ रही।  एक भी लड़ाई ऐसी नहीं हुई जहां उन्होंने का इस्तेमाल नहीं किया हो। इसलिए खुंखुरी को नेपालियों से जोड़ दिया गया। तब की गोरखों की सेना में खस क्षेत्री, ठकुरी के साथ ही मगर और गुरुंग भी थे, लेकिन खुंखरी के निर्माण कार्य शुरू से ही  खस लोहारों यानी कामी समुदाय करते रहे हैं। यदि कोई मगर व गुरुंग आदि नेपाली दावा करते हैं कि कि खुंखरी उनकी है तो यह गलत होगा। यदि ऐसा होता तो खुंखरी भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के नगा, मिजो आदि  जनजातियों के पास भी होनी चाहिए थी। यह तथ्य और सत्य है कि खुंखरी उन्हीं क्षेत्रों में है जहां खस हैं। उत्तराखंड में भी हथियार शिल्पकार यानी दलित जाति के लोग बनाते रहे हैं। उत्तराखंड में दरांती और थमाली भी होती है जिसे यहां के लोहारी बनते हैं ।  दरांती  घास काटने के काम आती है, जबकि थमाली से लकड़ी काटी जाती हैं। इनकी बनावट खुंखरी जैसी है, परंतु ये ज्यादा घुमावदार होती हैं। खुंखरी एक पारंपरिक हथियार है। यह आगे से झुका हुआ एक चाकू जैसा होता है। यह दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों में  मिलती है।

भारत में इसका ७वीं शताब्दी से प्रयोग का उल्लेख मिलता है। खुंखरी को कुकरी, खुकरी, खुकुरी और कुकरी  भी कहा जाता है। तो दोस्तों यह थी खुंखरी की कहानी।  आपको कैसी लगी, हमें कमेंट में अवश्य लिखें और हिमालयलोग  चैनल को लाइक और सब्सक्राइब करना ना भूलना । और अंत में एक बात और। इस वीडियो का टाइटल सॉन्ग मेरा ही लिखा है। यह गीत  पर्यावरण को समर्पित है । इसी चैनल में है। इस गीत को अवश्य सुनिएगा। जय हिमालय जय भारत

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1 COMMENT

  1. Very well presented by the author. Congratulation on treating every khukureeuser’s sentiment at par. This weapon was the most treasured ,revered as well as a fast- using killer weapon)’of all the weapons of the Khas-people whose progeny live either on this Great Himalayas areas such as the Gorkhas of India, Gorkhas of Nepal or the other Himalayan areas like Garwal, kumoun ,Kashmir etc and may be living in other places too.
    As the author perhaps spelt that destiny chose the Gorkhas of GorkhaEmpire to show to the World for the first time how efficiently this marvellously curved weapon could be used particularly in a face to face war-field combat. However. had it not been for indomitable courage , extreme sharpness of presence of mind and master targeting quality of the Gorkhas the Weapon Khukuri or give any other name for the weapon, would have no suchtreasure in history.
    However,the term Khukuree
    has nothing to connote to
    the “Nepali” nomenclature .
    So the term Khukuree is not synonymous with the nomenclature NEPALI. Nepali means a citizen of Nepal whether it is the Gorkha Dr Baburam Bhattarai or the Madhesi Dr Ram baran Yadavji.
    However the term Khukuree is a life for the Gorkhas no matter where they live.and all khas have equal day on it
    Vande Bharat Mataram
    13062021

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