ऐसे बनें ब्वेई और ईजा शब्द -डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

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तो इस तरह बनें ब्वेई और ईजा शब्द

-डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

शोध और आलेख- डा हरीश चंद्र लखेड़ा

 

दोस्तों, मांजी -पिताजी के लिए विश्वभर में जो भी संबोधन होता है, उसमें से अधिकतर देशों में मां शब्द की ध्वनि अवश्य होती है। परंतु उत्तराखंड के  गढ़वाल में मां के लिए ब्वेई तथा कुमायुं में ईजा संबोधन है। नेपाल में आमा कहा जाता है। यह वीडियो इसी विषय पर है कि ये संबोधन कैसे आए। मैं खुद मां के लिए ब्वेई व पिताजी के लिए बबाजी बोलता रहा हूं। इस विषय पर यह मेरा शोध है।  आज इस शोध को आपके सामने रख रहा हूं। इसमें आपके सुझावों और तथ्यों समेत जानकारी का स्वागत है।

आप जानते ही हैं कि प्राचीनतम भाषा संस्कृत में मां के लिए मातर: शब्द है। इसके अलावा इस शब्द के  पर्यायवाची शब्द मात, मातृ, जननी, जनयित्री,  अंबा, अम्बिका, अम्मा, धात्री, प्रसू, प्रसूता, प्रसविनी, प्रसवित्री, मैया, जन्मदायिनी आदि हैं।  वेद और पुराणों में मां को देवी स्वरूपा माना गया है।  इनमें मां को अंबा, अम्बिका, दुर्गा, देवी, सरस्वती, शक्ति, ज्योति, पृथ्वी आदि नामों से भी पुकारा गया है। माता का संस्कृत मूल मातृ है। उत्तराखंड के निवासी जानते हैं कि गढवाली में मां के लिए ब्वे और पिता के लिए बबा, बबाजी कहा जाता है। कुमायुंनी में मां को ईजा तथा पिता के लिए बुबाजी, बौज्यू आदि शब्द हैं। इसी तरह गढ़वाली में छोटे भाई को भुला व बड़े भाई को भैजी या दादा कहा जाता है। कुमायुंनी में बड़े भाई को दाज्यू कहते हैं।

आपको यह भी बता बता दूं कि डोगरी में बुगुर्ज महिलाओं को बे और बहुबचन में बेआं कहते हैं। यह शब्द गढ़वाली की ब्वे से मिलता है। उत्तरकाशी से सटे हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में उत्तराखंड के जैनसार की तरह मां के लिए ईजी भी कहा जाता है। उत्तरकाशी में बई कहा जाता है। गढ्रवाल में पिता के लिए बबाजी, बुबा जी, कुमायुं में बाबूजी,बौज्यू कहते हैं। नेपाल में खस लोग मां के लिए आमा और पिता के लिए बुआ, बाऊजी बुआ जी हुजूर कहते हैं। जबकि मगर समुदाय बाऊजी कहता है। तमांग, शेरपा व गुरुंग आदि आपा कहते हैं।

आप के मन में भी यह बात अवश्य आती होगी कि आखिरकार गढवाली में मां के लिए ब्वे और कुमायुंनी में ईजा तथा नेपाली में आमा क्यों कहते हैं। और उनकी ध्वनि मां से क्यों नहीं जुड़ी है। कुछ लोगों का तर्क है कि मां को मराठी में -आई-  कहा जाता है। चूंकि पहाड़ में महाराष्ट्र से लोग आए तो अपने साथ यह शब्द लाए। इससे ही ब्वेई और ईजा शब्द निकले। लेकिन यह तर्क सहीं नहीं लगता है।  क्योंकि महाराष्ट्र से तो कुमायुं में पंत, जोशी जैसी गिनी चुनी जातियां ही आईं। वे भी बहुत बाद में आए। जबकि ब्वेई और ईजा शब्द उनके आने से बहुत पहले से प्रचलन में रहे हैं। इसलिए यह सोचने का विषय है कि यह कैसे संभव है कि कुछ लोगों के प्रयोग किए शब्द को एक झटके में सभी लोग प्रयोग करने लगें और पुराने संबोधन के भूल जाए।

आज भारत के शहरी क्षेत्रों में मां के लिए मम्मी या मम्मा शब्द का प्रयोग हो रहा है, लेकिन मां, अम्मा, आदि संबोधनों का महत्व कम नहीं हुआ है। उत्तराखंड में भी कुलिंद, कत्यूर व चंदों के शासन में मां के लिए प्रयोग हो रहा शब्द भी तो आज प्रचलन में होता। इससे साफ है कि उत्तराखंड में मां के लिए ब्वेई और ईजा संबोधन सदियों से हो रहा है।महाराष्ट्र से यह शब्द नहीं आया है।

उत्तराखंड में बंगाल, राजस्थान,महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश गंगा-यमुना के मैदानी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारतीय राज्यों से भी बहुत से लोग आए। जबकि यहां मूलत: कोलीय, किरात, नाग, कुलिंद, खस, तंगण, परतंजण आदि जातियां बहुत पहले से रहती आई हैं। ये सभी जातियां मां के लिए क्या बोलते थे। यह बताने से पहले मां-पिता को लेकर विश्वभर में जो संबोधन हैं उनमें से प्रमुख भाषा- समुदायों की जानकारी दे रहा हूं, उसके बाद ब्वेई और ईजा पर आऊंगा।

हिन्दी का माता शब्द इंड़ो-यूरोपीय भाषा परिवार के सबसे पुराने शब्दों में एक है। इस शब्द की छाप आज भी इस कुल  की ज्यादातर भाषाओं पर देखी जा सकती है। मां के लिए संस्कृत में मातृ व मातर: है। अंग्रेजी में मदर, जेंद अवेस्ता में मातर, फारसी में मादर, ग्रीक में मेटर,  लैटिन में मैटर,  यूनानी और जर्मन में मुटेर  स्लाव में मटी, डच में मोइडर, अरबी में वालिदा,  जैसे शब्द हैं। मां शब्द संस्कृत के  मां धातु से निकला है। इसका अर्थ है, जो निर्माण करे वह मां है। मां के लिए हिंदी में मां,माता आदि शब्द हैं। इसी तरह तमिल में ताय व अम्मा, उर्दू में अम्मी, मराठी  में आई  कहते हैं।

शहरों में आज अधिकतर बच्चे मां के लिए मम्मी या मम्मा कहते हैं। यह प्रचलन गांवों तक पहुंच गया है। यह भी जानने लायक है की मां के लिए यह  ‘मम्मी’ शब्द किसी भी भाषा में उपलब्ध नहीं है। कम से कम भारतीय भाषाओं की  डिक्शनरी में ऐसा कोई शब्द ही नहीं है।  कहा जाता है की यह मम्मी शब्द मां से ही निकला है।  हिंदी में मां और अम्मा शब्द है। यही शब्द  उर्दू में अम्मी बन गया। इन शब्दों से ही मम्मी सामने आया है। जबकि अंग्रेजी के मम्मी शब्द का अर्थ तो कुछ और ही होता है।

पिता के लिए संस्कृत में पितर: कहा जाता है। पिता शब्द ‘पा रक्षणे’ धातु से निकला है।  ‘यः पाति स पिता’ जो रक्षा करता है, वह पिता कहलाता है। इससे वह पिता अर्थात् हमारी रक्षा की भूमिका में होते हैं। अतः पिता एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है। संस्कृत में जनकः भी कहते हैं। उर्दू  में अब्बू तथा बांग्ला में बाबा कहा जाता है। अंग्रेज में फादर, डैडी, डैड व पॉप, कहते हैं। अफ्रीकी  में  वादेर, पुर्तगाली में पईब्रेटन, चीनी में बा क्री,  कनाडा में पापा, क्रोएशियाई  में ओटैकचेक  तथा इंडोनेशियाई में  बापा अयाह या पाक पुकारते हैं।

अब मां के संबोधन के लिए गढ़वाल में ब्वेई, कुमायुं में ईजा तथा जौनसार क्षेत्रकी ईजी तथा नेपाल के आमा शब्दों पर आ रहा हूं। जैसा कि मैंने पहले भी कहा की मां के लिए गढ़वाल में ब्वेई या ब्वे  कहा जाता है। ब्वे वास्तव में ब्वेई का संक्षिप्त रूप है। अब आप ब्वेई और ईजा को एक सामने रखिए और देखिए कि कहीं न कहीं ये शब्द एक ही  शब्द से तो नहीं निकले हैं। ब्वेई के साथ जी लगा दें तो ब्वेईजी हो जाता है। यदि ब्वेईजी से ब्वे साइलेंट हो जाने पर ईजी हो गया। ईजी में जी की जगह जा कह दें तो यह  ईजा हो जाता है।

भारतीय जन संचार संस्थान नयी दिल्ली में प्रोफेसर डा.गोविंद सिंह कहते हैं कि वे मानते थे कि यह ईजा शब्द महाराष्ट्र के लोगों के साथ आया होगा। क्योंकि महाराष्ट्र में मां को आई कहते हैं तथा पंजाब में मां को जाई कहते हैं। जाई को उल्टी ओर से पढ्रें तो यह ईजा हो जाता है। लेकिन उत्तराखंड में ईजा शब्द बहुत प्राचीन लगता है। प्रसिद्ध साहित्यकार शिवानी ने अपनी रचनाओं में ईजा का खूब प्रयोग किया। इससे इस शब्द को प्रतिष्ठा मिली। जौनसार निवासी भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी रमेश चंद्र जोशी कहते हैं कि उनके क्षेत्र में मां को ईजी कहते हैं। वे कहते हैं कि इन शब्दों को परिभाषित करने की आवश्यकता है। अब तो गांवों में भी यह शब्द गायब होने लगा है। टिहरी मूल के दिल्ली में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार कलूड़ा अभिनव कहते हैं कि मां के लिए ब्वेई गढ़वाली शब्द है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसके उच्चारण की शैली, लहजा भिन्न -भिन्न हो सकता है, लेकिन अर्थ एक ही है।अब नयी पीढ़ी ब्वेई बोलने से शर्म महसूस करती है। गांवों में भी अब मां- पिता भी नहीं, मम्मी-पापा कहने लगे हैं। भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी के रिटायर अफसर सुधीर तिवारी भी कहते हैं कि ये शब्द बहुत प्राचीन हैं।

अब सवाल यह है की ब्वे, ईजा, ईजी, आमा शब्द कहां से आए होंगे।  जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि संस्कृत में मां के लिए अंबा शब्द का भी प्रयोग किया जाता है। कनार्टक में कन्नड़ भाषा में आज भी मां के लिए अंबा का संबोधन होता है। अम्बा शब्द का मूल आधार संस्कृत धातु अम्ब् है। अम्बिका, अम्बालिका आदि शब्द भी इससे ही बने हैं जिनका अर्थ भी माता या देवी है। मां पार्वती को भी अम्बिका कहते हैं। भगवान गणेश जी का एक नाम आम्बिकेयः भी है। यानी अंबा जी का पुत्र।  अम्ब् से ही बने अम्बः शब्द को पिता, आंख, जल आदि के लिए भी प्रयोग किया जाता है। त्र्यंबक या त्र्यंबकेश्वर भगवान भोलेनाथ शिव का ही नाम है। इस शब्द का अर्थ त्रिनेत्र भी है। जो कि तीन आंखों वाले भगवान शिव के लिए प्रयोग होता है। इसी अंबा शब्द से निकला शब्द अम्मा तमिलनाडु में मां के लिए प्रयोग होता है। उत्तर भारत के कई हिस्सों में मां को अम्मी या अम्मा भी कहा जाता है। उर्दू  भाषी लोग भी  ‘अम्मी’ ही कहते हैं। हिन्दी, उर्दू समेत  कई भारतीय भाषाओं में मां के लिए अम्मा व इससे  मिलते जुलते शब्द चलते है । ये सभी संबोधन वास्तव में अंबा से ही निकले हैं। यह भी कह सकते हैं कि ये शब्द संस्कृत के अम्बा से निकले हैं जिसका अर्थ मां है। भाषा विज्ञानियों के मुताबिक ऊर्दू का शब्द अम्मी  भी इससे ही निकला है। नेपाली में आमा भी अंबा से ही निकला है। कुमायुं में भी आमा शब्द का प्रयोग होता है, लेकिन यह मां की बजाए दादी, नानी आदि के लिए सम्मान सूचक शब्द के तौर पर प्रयोग होता है।

दोस्तों, अब ब्वेई और ईजा शब्दों को देखिए। ये शब्द भी अंबा यानी अंबाजी से ही निकले प्रतीत होते हैं। अंबा को अंबे जी भी कहा जाता है। जैसा कि भाषा विज्ञानी भी मानते हैं कि  सदियों की यात्रा में शब्द अपना रूप व अर्थ भी बदलते रहते हैं। उत्तराखंड में भी ये मां के लिए शब्द अंबा जी से निकले हैं।  अंबेजी या अंबाजी कुछ अक्षर साइलेंट होने से बे व ब्वेई तथा ईजा बन गया । अं तथा  जी केलुप्त होने से ब्वे बन गया। इसी तरह से अंब न रहने से ईजा रह गया। अंबा भी और इन शब्दों में बहुत समानता है।

तो दोस्तों, यह है मेरा शोधपत्र। इससे यह मालूम करने का प्रयास किया कि ब्वेई, ईजा, ईजी व आमा शब्दों की कहां से उत्पत्ति हुई। अब यह साफ हो गया है कि ये शब्द संस्कृत के अंबाजी से निकले हैं। ये शब्द तब से हैं, जब से यहां कुलिंदों का शासन था। बाद में कत्यूरों, पंवारों व चंदों के समय इनके साथ मां शब्द भी प्रयोग में होने लगा था। नयी पीढ़ी अब तो शहरों की तरह गांवों में भी ब्वे और ईजा, ईजी बोलने की बजाए मम्मा-पापा कहने लगी है। हमारे पुरखों के दिए शब्द विलुप्ति की ओर अग्रसर हैं। इनको न बचाया गया तो एक दिन गायब हो  जाएंगे।  इनको बचाना हमारा कर्तव्य है।

तो, दोस्तों यह थी मां के लिए उत्तराखंड व नेपाल में प्रयोग हो रहे ब्वेई, ईजा व आमा शब्दों की उत्पत्ति की गाथा। आपको कैसी लगी,अवश्य लिखें। आपके पास कोई जानकारी हो तो वह भी शेयर करें। यह चैनल हिमालयी लोगों की संस्कृति, इतिहास, लोग, सरोकार आदि को देश-दुनिया के सामने रखने का प्रयास कर रहा है। आपका सहयोग चाहिए। इसलिए हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलाना। जै हिमालय- जै भारत।

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