कौन थे हिमालयी के राक्षस —हिमालयी की प्राचीन जातियां-एक

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परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली

बंधुओं इन बार आपके लिए हिमालयी क्षेत्र में रहने वाली प्राचीनतम जातियों विशेषतौर पर राक्षसों को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। इस वीडियो में वैदिक व पौराणिक काल सहित प्राचीन कालखंड की बात करुंगा। आज राक्षसों के बारे में पहले तो पौराणिक तौर पर और फिर इतिहास की दृष्टि से जानकारी दूंगा। इस वीडियों में इतिहास के साथ ही हमारी पौराणिक मान्यताओं को आधार बनाया गया है।

हम सभी बचपन से राक्षसों के बारे में सुनते आए हैं। मान्यता है कि प्राचीन समय में राक्षस रहते थे। लंकाधिपति  रावण को भी राक्षस कहा जाता है। हिमालयी क्षेत्र में भी राक्षसों से संबंधित लोककथाएं- कहानियां मिलती हैं। उत्तराखंड में बीरा बैण समेत कई लोग कथाओं में राक्षस भी एक पात्र हैं।  हिमाचल प्रदेश में देवी के रूप में पूजी जाने वाली हिडिंबा भी राक्षस कुल की थी। हिमाचल प्रदेश में तो राक्षस नृत्य भी होता है। कुछ लोग राक्षस और असुरों को एक ही मान लेते हैं, जबकि दोनों ही अलग-अलग हैं। इस बारे में विस्तार से बताने से पहले आपको हिमालयी क्षेत्र में मानव  सभ्यता के विकास पर भी कुछ जानकारी दे देता हूं।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सृष्टि की उत्पति हिमालयी से हुई। केदारखंड के पास ही प्रथम पुरूष मनु और प्रथम नारी शतरूपा का मिलन हुआ।  सुखसागर यानी श्रीमद्भागवत  के अनुसार सृष्टि की रचना के लिये ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में विभाजित किया  था। इनके नाम ‘का’  और ‘दूसरे का नाम या’  अर्थात काया पड़। इन दो भागों में से एक से पुरुष तथा दूसरे से स्त्री की उत्पत्ति हुई। पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा था। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण वे मानव कहलाये।

सनातनी मान्यता है की प्राचीन मानव सभ्यता हिमालयी क्षेत्र से ही पनपी थी।  वेद और महाभारत में विभिन्न स्थानों पर  वर्णन मिलता है कि आदिकाल में हिमालयी क्षेत्र में प्रमुख तौर पर देव, दैत्य, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व,  वसु, अप्सराएं, पिशाच, सिद्ध, मरुदगण, किन्नर, किरात, नाग, मानव, वानर आदि जातियां रहती थीं। उस कालखंड में  देवताओं को सुर और दैत्यों को असुर कहा जाता था। पौराणिक ग्रंथों में प्राचीनकाल की कई मानव जातियों का उल्लेख मिलता है। इनमें देव,  असुर, दानव, राक्षस, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग आदि प्रमुख हैं। ऋषि कश्यप की  कई पत्नियां थीं। उनकी पत्नी अदिति से देवताओं की उत्पत्ति हुई। जबकि दिति से असुर, दनू से दानव तथा कद्रू से नाग उत्पन हुए। हिमालय क्षेत्र यक्षों का निवास स्थल भी रहा है। महाभारत में जेष्ठ पांडव  युधिष्ठर और यक्ष के बीच संवाद का वर्णन मिलता है। कुछ लोग यक्षों को ही खस मानते हैं। पूर्व वैदिक काल में हिमालय की ढलानों यानी शिवालिक पहाडियों- घाटियों में देवों के साथ ही दानव यानी  दस्यु भी रहने लगे थे। बाद के कालखंड में इन क्षेत्रों में राक्षस भी रहते थे।

ये राक्षस कौन थे? यह अब बता रहा हूं। राक्षस वास्तव में एक मानव जाति थी, जो कि मानव मांस का भक्षण करती थी।  राक्षसों को पिशाच भी कहा जाता था। पिशाच कच्चे मांस के शौकीन थे और हिमालय के उत्तरी छोर के निवासी थे। वास्तव में राक्षस एक प्रवृति है, जो समाज के नियमों को नहीं मानती है। जो दूसरों की हर वस्तु को हडप लेना चाहता है, वही राक्षस है। समाज में राक्षस आज भी हैं। इसीलिए ब्राह्मण कुल में जन्में रावण को राक्षस कहा गया। रामायण काल में उनके समाज के कई लोग भी मानव मांस का भक्षण करते थे। महाभारत काल तक राक्षसों के  होने के प्रमाण मिलते हैं। हालांकि उनकी संख्या कम होने लगी थी। महाभारत काल में हिडिंब राक्षस का उल्लेख मिलता है। वह हिमालयी क्षेत्र के महादैत्य वन में राक्षसों का राजा था। उसकी बहन का नाम  हिंडिबा था। पांडव भीम के साथ युद्ध में हिडिंब मारा गया था। इसके बाद  कुंती की सहमति से हिडिंबा  का भीम से विवाह हुआ। उन दोनों का घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। हिमाचल प्रदेश के मनाली में इन दोनों माता हिडिम्बा और पुत्र घटोत्कच के मंदिर आज भी हैं।

यह भी कहा जाता है कि राक्षस प्राचीन काल की एक प्रजाति का नाम है। रक्ष धर्म को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। माना जाता है कि इसकी स्थापना लंकेश रावण ने की थी। राक्षसों की उत्पति को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलन में हैं। कहा जाता है कि राक्षस दो ऋषियों वैश्रव और पुलत्स्य ऋषि के के वंशज हैं। जबकि एक अन्य कथा के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। उनमें से कुछ प्राणियों ने रक्षा की जिम्मेदारी संभाली तो वे राक्षस कहलाए। जिन्होंने यक्षण यानी पूजन  करना स्वीकार किया वे यक्ष कहलाए। जल की रक्षा करने के महत्वपूर्ण कार्य को संभालने के लिए ये जाति पवित्र मानी जाती थी। कहा जाता है कि प्रारंभ में यक्ष और रक्ष,  यही दो तरह की मानव जातियां थीं। राक्षस लोग पहले रक्षा करने के लिए नियुक्त हुए थे, लेकिन बाद में इनकी प्रवृत्तियां बदलने के कारण ये अपने कर्मों के कारण कुख्यात होते गए। संपुर्ण भारत वर्ष में राक्षस पाए जाते थे।

अब इतिहास की बात करते हैं। राक्षसों को पैशाच भी कहते हैं। यह जाति पश्चिमोत्तर भारत यानी आज के अफगानिस्तान के क्षेत्रों में रहती थी।  इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल चारण अपनी पुस्तक – कुलिंद जनपद का प्राचीन इतिहास- एक में लिखते हैं कि अनुश्रुतियों के अनुसार दरद लोग नर-मांस या कच्चा मांस भी स्वाद से खाते थे। उन्हें  पिशाच और  उनकी बोली को पैशाची का जाता था। संस्कृत के विद्वानों ने पैशाची प्राकृत का अध्ययन किया था। दरद जनों की वर्तमान भूमि दरदिस्तान के अंतर्गत पूर्व से पश्चिम की ओर के क्षेत्र आते हैं। इनमें गिलगित, कश्मीर, सिंधु और स्वात नदियों के प्रदेश, कोहिस्तान, चित्राल, और काफिरिस्तान शामिल हैं। दरद बोलियां तिब्बत में भी बोली जाती थीं। हिमालय के जम्मू-कश्मीर,  हिमाचल, उत्तराखंड से लेकर पश्चिमी नेपाल तक इन बोलियों का असर दिखता है। पैशाची भाषा उस प्राकृत भाषा का नाम है जो प्राचीन काल में भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेश में प्रचलित थी। पश्तो तथा उसके समीपवर्ती दरद भाषाएँ पैशाची से उत्पन्न एवं प्रभावित हुई पाई जाती हैं।

वास्तव में राक्षस और पैशाची ऐसी जीवन शैली थी, जो सभ्य समाज में मान्य नहीं थी। भारतीय परंपरा में आठ प्रकार के विवाह- ब्रहम, दैव, आर्ष, प्रजापत्य, असुर, गंधर्व, राक्षस तथा पैशाच बताए गए हैं।  इनमें ब्रहम विवाह को सर्वोत्तम माना जाता है जबकि राक्षस और पैशाच विवाह को निम्नतम माना जाता है। किसी कन्या को मदहोश करके अथवा सोती हुई अवस्था में हरण करके उससे बलात् विवाह करना पैशाच विवाह कहलाता है। इसी तरह अचेतन अवस्था में उस कन्या से सम्बन्ध बनाकर उसका अपहरण करना, बलात्कार करके उसकी इच्छा के विरुद्ध उसका अपहरण आदि करना, सब पैशाच विवाह की श्रेणी में आते हैं। यह सभी प्रवृतियां भी उन मानवों को राक्षसों की श्रेणी में ले गई थी। इनके साथ ही वे नरभक्षी भी थे। इसलिए राक्षस कहलाने लगे।

राक्षस और असुरों में अंतर भी बता देता हूं। कई लोग राक्षस और असुर को एक ही मानते हैं, लेकिन पुराणों में ऐसा नहीं है। राक्षस और असुरों में बड़ा अंतर है। पुराणों के अनुसार राक्षस दो ऋषियों – वैश्रव और पुलत्स्य ऋषि के वंशज हैं। जबकि असुर कश्यप ऋषि के वंशज हैं। इस प्रकार राक्षसों और असुरों के पिता अलग हैं। यह पहला अंतर है। असुर भूमि के नीचे, पाताल लोक में रहते हैं और उनके नगर का नाम हिरण्यपुरा है। जबकि राक्षस, जंगलों में रहते हैं। असुर और राक्षस  अलग-अलग ऋषियों के वंशज हैं। उनके शत्रु भी अलग हैं। राक्षस यक्ष और ऋषियों के साथ युद्ध करते हैं, जबकि असुर देवताओं के साथ। यक्षों के पास धन होता है। इसलिए यक्षों का धन पाने के लिए राक्षस उनके साथ लड़ते हैं। वैसे असुरों व राक्षसों को बदसूरत, भयंकर बताया गया है। उनके सींग और बडे-बड़े दांत होते हैं। राक्षसों को जानवरों की तरह नरभक्षी बताया गया है। जो कि मानव मांस की गंध को सूंघ सकता है। वे उड़ सकते थे, गायब हो सकते थे वे मायावी थे उनमें जादुई शक्तियां थीं। वे इच्छानुसार किसी भी प्राणी के रूप  बदलने में सक्षम थे।

वास्तव में मानव सभ्यता के इस विकास में मानव की कई प्रजातियां नरभक्षण करती रही हैं। राक्षस भी इनमें शामिल रहे हैं। 19वीं शताब्दी तक  दक्षिण प्रशांत महासागरीय कुछ देशों की संस्कृति में नरभक्षण के प्रमाण मिलते हैं। कहा जाता है कि  मेलेनेशिया में तो  मानव मांस के बाजार लगते थे। फिजी को कभी ‘नरभक्षी द्वीप’ यानी कैंनिबल आइलैंड के नाम से जाना जाता था। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि निएंडरथल लोग नरभक्षण किया करते थे।  क्रोएशिया में क्रापीना गुफा में  उनके मानव मांस खाने के सबूत भी मिले हैं। भीषण अकाल काल में भी कभी-कभी नरभक्षण करने की घटनाएं हुई हैं। इतिहासकार मानते हैं कि 15 हज़ार साल पहले कई मानव जातियां मनुष्य का मांस खाते थे। वे मांस से हड्डियां अलग करके उन्हें भी चबा लेते थे।

मनुष्य के नरभक्षी होने के सबूत निएंडरथल आदि मानव के कई ठिकानों से भी मिले हैं। फ्रांस में मिले निएंडरथल मानव के क़रीब एक लाख साल पुराने अवशेष भी इसी ओर संकेत करते हैं।  निएंडरथल मानव शायद अपने दुश्मन आदि मानवों का शिकार करते थे, या फिर अपने ही लोगों में से कुछ को मारकर खा जाते थे। वर्ष 2016 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार बेल्जियम की एक गुफ़ा में निएंडरथल मानव जो हड्डियां मिली हैं उससे पता चलता है कि यहां वे एक दूसरे का शिकार करते थे। इसके अलावा उत्तर स्पेन की गुफाओं में 49 हज़ार साल पहले जो निएंडरथल आदि मानव रहते थे वो भी नरभक्षी थे।

इसी तरह के मानव हर जगह रहे हैं। तो यह थी राक्षसों की कहानी। आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं। हिमालयी लोग चैनल को लाइन व सब्सकराइब करना न भूलना। जै हिमालय- जै भारत।

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