बहुत पुरानी बात हह। उत्तराखंड के सभी गावों की तरह डंणु गांव के लोग भी अपने ग्राम देवता की पूजा करने के लिए हर मौसम में मंदिरों में जाते थे। थे। गांव के सभी लोग उस देवता की कृपा से सुखी और संपन्न रहते थे। वे हर फसल के कट चुकने पर देवताओं को चढ़ावा चढ़ाने दूर एक स्थान...
बहुत पुरानी बात है। किसी गांव में सात भाई रहते थे। वैसे तो वे बड़े प्यार से मिलकर रहते थे, लेकिन कभी-कभी उनमें झगड़ा हो जाया करता था। छह भाई तो एक ओर हो जाते, एक भाई अकेला पड़ जाता था। जो अकेला पड़ जाता था, वह सबसे छोटा था। वे सब मिलकर उसे बहुत तंग करते थे।
एक दिन...
फूलों को कुचलते हुए दौड़ रहे हैं
दिशाहीन हो
हमारी नदियों और झरनों को रोक रहे हैं
दिशाहीनता में
इनकी दिशाहीनता अन्यमनस्कता में हृदयहीनता में
हम पीड़ा ग्रस्त हो रहे हैं
यह पृथ्वी रोगाक्रांत हो रही है
यहां बैठकर मैं स्वयं को खा रहा हूं।
मेरे हृदय में चरचरा रहे घाव की
यह पीड़ा मात्र है,
सिर्फ दर्द और टीस है।
तुम जाओं इसी विश्वास में
मैं भीगा लथपथ बैठा हूं।
तुम...
किसी जंगल में एक लोमड़ी का परिवार रहता था। जब मादा लोमड़ी गर्भवती हुई तो उसने अपने पति से घर का इंतजाम करने को कहा। इस पर पति लोमड़ी बहुर्त ंचंतित हो गया, लेकिन उसने वादा किया कि वह घर का इंतजाम जरूर कर देगा। जब बच्चों के जन्म का समय आया तो लोमड़ी अपनी पत्नी को बाघ की...
एक गांव में एक दर्जी रहता था। उसने एक बकरी पाली हुई थी। वह बकरी बातें करती थी। उस दर्जी के तीन बेटे थे। वे दर्जी-पुत्र जब बड़े हुए तो दर्जी ने उन्हें बकरी चराने का काम सौंपा। वह बकरी दिन भर चरती और भर पेट खाती। पर जब दर्जी शाम को उस पर हाथ फेर कर उससे हाल...
( मां वैष्णों देवी के दरबार में अखरोट और सूखा सेब प्रसाद के तौर पर मिलता है। इससे जम्मू-कश्मीर के उत्पाद की बिक्री होती है और स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ती है। लेकिन उत्तराखंड के तीर्थ स्थानों में मैदानी क्षेत्रों से पैक सामान ही प्रसाद के तौर पर मिलता है। क्या उत्तराखंड सरकार को इस दिशा में नहीं सोचना...
जलते अंगारों के कुंड में क्या कोई मानव चल सकता है? जी हां ऐसे दृश्य देखते हैं तो उत्तराखंड चले आइए। यहां जागरों व देव पूजन के समय यह सब देखा जा सकता है।
हाल में भी केदारघाटी यक्षराज (जाख देवता) की पूजा के समय ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। यहां मंदिर परिसर में आग का कुंड बनाया गया...
पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ के निर्माता पारासर गौड़ अब सात समंदर पार कनाडा में रहते हैं। 1983 में बनी इस फिल्म के आने के बाद उत्तराखंड में गढ़वाली और कुुमांउनी फिल्मों के निर्माण के दरवाजे खुल गये। अब तक दो दर्जन से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं।
पारासर को गढ़वाली फिल्मों के दादा साहेब फालके कहा जा सकता है। उनका...
उत्तराखंड का 71 फीसदी हिस्सा जंगल है। जिसमें से 16 फीसदी हिस्से पर सिर्फ चीड़ के जंगल हैं, जो कि 34 हजार हेक्टेयर भूमि है। चीड़ खुश्क इलाके के पहाड़ी क्षेत्र में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम पाइनस राक्सवर्गाई है। जो कि विलियम राक्सवर्ग के नाम पर आधारित है। चीड़ हिमालय का मूल वृक्ष है, जो कि 500...
यह प्रेम कथा विश्व की महान प्रेम कथाओं में से एक तो है ही अदभुद भी। गहरी नींद में देखे सपनों में भी प्यार हो सकता है। कहानी पन्द्रहवीं शताब्दी की है। कत्यूर राजवंश के राजकुमार मालूशाही और शौका वंश की कन्या राजुला की प्रेम कथा है। इस कथा के 40 रूप मौजूद हैं।
एक बार पंचाचूली पर्वत श्रृंखला के...