फूलों को कुचलते हुए दौड़ रहे हैं
दिशाहीन हो
हमारी नदियों और झरनों को रोक रहे हैं
दिशाहीनता में
इनकी दिशाहीनता अन्यमनस्कता में हृदयहीनता में
हम पीड़ा ग्रस्त हो रहे हैं
यह पृथ्वी रोगाक्रांत हो रही है
यहां बैठकर मैं स्वयं को खा रहा हूं।
मेरे हृदय में चरचरा रहे घाव की
यह पीड़ा मात्र है,
सिर्फ दर्द और टीस है।
तुम जाओं इसी विश्वास में
मैं भीगा लथपथ बैठा हूं।
तुम उजाला लेकर आओगे-इस विश्वास में
इस निर्जन रात्रि में मैं जाग रहा हूं,
लोगों के लिए निर्दिष्ट दिशा में उपहार
लेकर तुम जाओगे-इसी विश्वास में
मैं खुश हो रहा हूं
मैं प्रसन्नता से पुलकित हो कर
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा हूं
(साहित्य अकादमी से पुरस्कृत नेपाली काव्य संग्रह ‘हिपोक्रिट चांप -गुरांस और अन्य कविताएं’ से साभार यह कविता दे रहे हैं। सिक्किम निवासी गिर्मी सेर्पा नेपाली के श्रेष्ठतम कवियों में से एक हैं। उनके इस कविता संग्रह को १९९१ में पुरस्कृत किया गया था। उनका पहला कविता संग्रह ‘बांझी दिनमथि पलाहिका केही फूल’ को भी सराहा गया था।
यहां हिपोक्रिट चांप -गुरांस कविता की अंतिम पंक्तियां दे रहे हैं )