पहली गढ़वाली फिल्म ‘जग्वाल’ के निर्माता पारासर गौड़ अब  सात समंदर पार कनाडा में रहते हैं। 1983 में बनी इस फिल्म के आने के बाद उत्तराखंड में गढ़वाली और कुुमांउनी फिल्मों के निर्माण के दरवाजे खुल गये। अब तक दो दर्जन से ज्यादा फिल्में बन चुकी हैं।
पारासर को गढ़वाली फिल्मों के  दादा साहेब फालके कहा जा सकता है। उनका जन्म पौड़ी गढ़वाल की असवालस्यूं पट्टी के मिरचोरा गांव में 3 मार्च 1947 को हुआ। पिता पंडित टीकाराम गौड़ प्रसिद्द ज्योतिषी थे और दिल्ली में रहते थे। शुरूआती शिक्षा उत्तराखंड में करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चले आए। साहिबाबाद, गाजियाबाद के लाला लाजपत राय डिग्री कॉलेज से  बीए किया। शुरू से ही उनमें रंगमंच के प्रति लगाव था। दस साल की उम्र में राजा हरिश्चंद्र में उन्होंने रोहताश का किरदार निभाया। पहाड़ में स्कूली दिनों में भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे। 1967 में मात्र 20 साल की उम्र में उन्होंने पहला गढ़वाली नाटक ‘ओंस की रात’ लिखा। जिसे पहली बार 28 फरवरी 1969 को मंच पर  उतारा गया। इसके बाद उनके लिखे चोली, रिहर्शल, तिमला का तिमला खत्या जैसे नाटकों का कई बार मंचन किया गया। उन्होंने लगभग 60 गीत भी लिखे हैं, जिनका आकाशवाणी केंद्र दिल्ली से प्रसार भी हो चुका है व विभिन्न समाचार पत्रों-पत्रिकाओं में छप चुके हैं।  पिता की याद में पारासर ने गढ़वाली साहित्य पुरस्कार शुरू किया था।

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