जलते अंगारों के कुंड में क्या कोई मानव चल सकता है? जी हां ऐसे दृश्य देखते हैं तो उत्तराखंड चले आइए। यहां जागरों व देव पूजन के समय यह सब देखा जा सकता है।
हाल में भी केदारघाटी यक्षराज (जाख देवता) की पूजा के समय ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। यहां मंदिर परिसर में आग का कुंड बनाया गया था। वहां हजारों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में जाख देवता ने  नृत्य किया।   दोपहर को यक्षराज जाख देवता के पश्वा (मदन सिंह) ढोल-दमाऊं और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नारायणकोटि गांव से नृत्य करते हुए कोठेड़ा और देवशाल होते हुए ढाई बजे जाख मंदिर में पहुंचे। 15 अप्रैल को यहां जलते अंगारों के कुंड में जैसे ही जाख देवता ने प्रवेश कर नृत्य करना शुरू किया तो पूरी केदारघाटी यक्षराज (जाख देवता) की जयकारों से गूंज उठी। इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए मंदिर परिसर में हजारों श्रद्धालु मौजूद थे। नृत्य के बाद कुंड की पावन राख को श्रद्धालु अपने- अपने घर ले गए। जाखधार में तीन दिवसीय आयोजित जाख मेले के अंतिम दिन सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। दोपहर को यक्षराज जाख देवता के पश्वा (मदन सिंह) ढोल-दमाऊं और पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ नारायणकोटि गांव से नृत्य करते हुए कोठेड़ा और देवशाल होते हुए ढाई बजे जाख मंदिर में पहुंचे।
मंदिर परिसर में पुजारियों ने देवता की विशेष पूजा-अर्चना कर वैदिक मंत्रोच्चारण और वाद्य यंत्रों से आह्वान किया। दोपहर करीब ढाई बजे 10 से अधिक ढोल-दमाऊं की जोडिय़ों की थाप और रणसिंह की गर्जना के बीच जाख देवता ने अग्निकुंड में नृत्य कर उसके कई चक्कर लगाए। यह दृश्य देखने के लिए सुबह से भी मंदिर में एकत्रित होने लगे थे। मंदिर परिसर में बीते तीन दिन से आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई थी। कोठेड़ा के पुजारियों, देवशाल के वेदपाठियों और नारायणकोटि के सेवक- श्रद्धालुओं द्वारा जाख मंदिर परिसर में अग्निकुंड की रचना की गई। इसी में देवनृत्य हुआ।
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