एक था सियार। एक दिन वह अपने शिकार की तलाश में जा रहा था। उसने दूर से देखा-एक आदमी एक बाघ के आगे-आगे चल रहा है। उसे दाल में कुछ काला नजर आया और वह नजर बचाकर चलने लगा। तभी उसे आदमी की आवाज़ सुनाई पड़ी, ‘मंत्री जी, मंत्री जी, जरा रुकिए।’ सियार ने अनसुनी-सी करते हुए अपनी चाल...
बहुत पुरानी बात है। हिमालय पर्वत की घाटी में एक ऋषि रहते थे। वे गोरे-चिट्टेथे, उनकी श्वेत धवल दाढ़ी था और कंद, मूल, फल खाते थे । अपना अधिक समय वह तपस्या में व्यतीत करते थे। कभी-कभी बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच अकेले वह उदास हो जाते। उदासी तोड़ने के लिए अक्सर वह जोर से बोलने लगते। उन्हीं...
घुघुती -बसूती, क्या खैली, दुधभाती!
याद है आपको मां की सुनाई यह लोरी
घुघुती -बसूती, क्या खैली, दुधभाती,
कु देलो, मां देली----
याद है आपको यह लोरी। बचपन में मां-दादी, नानी, मौसी आदि की सुनाई यह लोरी आज भी हमारे मन-मस्तिष्क में छाई है। लेकिन अब इसे हम भूलते जा रहे हैं।
शहरों में रह रहे उत्तराखंडी शायद ही अपने बच्चों को इसे सुनाते...
प्राचीन समय की बात है एक ब्राह्मण था। वह अपने जीवन से बड़ा दुखी रहा करता था। घर में कुछ खाने को नहीं था। स्वयं को खाने के लिए कुछ था ही नहीं तो दूसरों को क्या खिलाता? नाते-रिश्तेदार भी उसी की इज्जत करते हैं जो व्यक्ति धनवान होता है। इन सब चीजों से दुखी होकर ब्राह्मण ने कहीं...
बहुत पुरानी बात है। उत्तराखंड के जंगल में एक विधवा बुढ़िया रहती थी। उसके सात बेटे थे और एक प्यारी-सी बेटी थी । बेटी का नाम था बीरा। कुछ दिनों बाद जब बुढ़िया की मृत्यु हो गई, तो उसके ये बच्चे अनाथ हो गए। सातों भाई शिकार खेलने के शौकीन थे।
एक दिन वे सातों भाई मिलकर एक साथ शिकार...
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कश्मीर की लोक कथा : अकनंदुन — उस जोगी ने क्यों मांगा राजकुमार अकनंदुन का मांस
admin -
कश्मीरी लोक कथा- अकनंदुन
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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लोककथाएं भी अदभुद होती हैं। सदियों से लोगों की स्मृतियों में रजी-बसी रहती हैं और एक-दूसरे को सुनाने से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चली जाती हैं। हिमालयी क्षेत्र की लोककथाएं बहुत प्यारी हैं। इनमें मनुष्य के दुःख-सुख और उसकी इच्छाएं, अभिलाषाएं सभी प्रदर्शित होती...
बाठ गोडाई क्या तेरो नौं च,
बोल बौराणी कख तेरो गौं च?
बटोई-जोगी ना पूछ मै कू,
केकु पूछदि क्या चैंद त्वै कू?
रौतू की बेटी छौं रामि नौ च
सेटु की ब्वारी छौं पालि गौं च।
मेरा स्वामी न मी छोड़ि घर,
निर्दयी ह्वे गैन मेई पर।
ज्यूंरा का घर नी जगा मैं कू
स्वामी विछोह होयूं च जैं कू।
रामी थैं स्वामी की याद ऐगे,
हाथ कूटलि छूटण...
एक गांव में एक विधवा औरत और उसकी 6-7 साल की बेटी रहते थे। किसी प्रकार गरीबी में वो दोनों अपना गुजर बसर करते थे। एक बार माँ सुबह सवेरे घास के लिए गयी और घास के साथ काफल भी तोड़ के लायी। बेटी ने काफल देखे तो बड़ी खुश हुई। माँ ने कहा कि मैं खेत में काम...