कश्मीर की लोक कथा : अकनंदुन — उस जोगी ने क्यों मांगा राजकुमार अकनंदुन का मांस

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कश्मीरी लोक कथा- अकनंदुन

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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लोककथाएं भी अदभुद होती हैं। सदियों से लोगों की स्मृतियों में रजी-बसी रहती हैं और एक-दूसरे को सुनाने से  एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चली जाती हैं। हिमालयी क्षेत्र की लोककथाएं बहुत प्यारी हैं। इनमें मनुष्य के दुःख-सुख और उसकी इच्छाएं, अभिलाषाएं सभी प्रदर्शित होती हैं। आइए अब इस कश्मीरी लोक कथा अकनंदुन सुनते हैं। बहुत पुरानी बात है। कश्मीर के संघिपत नगर में राजा राज करता था। यह जगह अब जलमग्न हो गई है और उसकी जगह अब झील वुलर है। मान्यता है कि प्राचीनकाल में महापद्म देवता इस झील के अधिदेवता थे और उनके नाम पर इस झील को महापद्मसर कहा जाता था। झील का अकार बड़ा होने से यहां दोपहर में बड़ी लहरें उठती हैं जिससे इसकी शांत सतह पर देखते-ही-देखते ऊंची और ख़तरनाक लहरें उठने लगती हैं। संस्कृत में इन कूदती हुई लहरों को उल्लल  कहा जाता है और इससे ही बिगड़कर इस झील का नाम वुलर पड़ गया।

संघिपत नगर के राजा का कोई पुत्र न था। उसकी रानी का नाम रत्नमाला  था। राजा और उसकी रानी  पुत्र पाने की इच्छा से साधु संतों की बड़ी सेवा किया करते। एक दिन उनके महल में एक जोगी आया। उन्होंने उस जोगी की बड़ी आव-भगत की और अपनी मनोकामना उसके सामने प्रकट की। जोगी ने कहा कि -राजन् आपको पुत्र प्राप्त होगा, परंतु,एक शर्त पर।

राजा-रानी ने एक साथ कहा कि महाराज कहिए वह कौन सी शर्त है, हम भी तो सुनें?

यह उत्तर पाकर जोगी ने कहा कि- शर्त कठिन है। संभवत: आप स्वीकार न करें। वह यह है कि यदि मेरी कोशिश से आपके पुत्र जन्मेगा तो वह केवल ग्यारह वर्ष तक आपका होगा, और उसके बाद आपको उसे मुझे सौंपना होगा। कहिए, क्या आपको यह शर्त स्वीकार है?

राजा और रानी कुछ समय तक एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे और फिर बाद में बोले-जोगी महाराज! हमें पुत्र चाहिए, चाहे वह ग्यारह वर्षों तक ही हमारे पास रहे। हमें आपकी शर्त मंजूर है।

सुन कर जोगी ने उत्तर दिया-अच्छा, तो आज से नौ मास के बाद आपके यहां पुत्र होगा। कह कर वह उन्हें आशीर्वाद देकर चला गया।

रानी ने सचमुच ही यथा समय एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। उसका नाम अकनंदुन रखा गया। अकनंदुन बड़ा होकर पाठशाला में पढ़ने लगा तो वहां वह अपनी कक्षा के छात्रों में सबसे बुद्धिमान गिना जाने लगा। दिन बीतते गए और उसका ग्यारहवां जन्म दिन आया। उस दिन वही जोगी न मालूम कहां से फिर आ पहुंचा और राजा-रानी से बोला-अब आप अपनी शर्त पूरी कीजिए और अकनंदुन को मेरे हवाले कीजिए।

भारी मन से राजा-रानी ने अकनंदुन को पाठशाला से बुलवाया और जोगी से कहा-जोगी महाराज, यह है आपकी अमानत। उसे देखते ही जोगी गंभीर होकर बोला- तो फिर देर क्या है? मैं भूखा हूं, इसका वध करके, इसके मांस को पकाइए और मुझे खिलाइए। जल्दी कीजिए मुझे भूख सता रही है।  राजा-रानी ने रो-रो कर जोगी को इस घृणित और क्रूर कार्य से रोकने का प्रयत्न किया, पर वह एक न माना और क्रोधित होकर बोला-इसके सिवा मुझे और कुछ स्वीकार नहीं। हां एक और बात, इसका वध तुम दोनों के हाथों ही होना भी जरूरी है। खैर रोते-धोते और मन में इस दुष्ट जोगी को बुरा-भला कहते हुए उन्होंने अकनंदुन को मार डाला। उसका मांस रसोईघर में जब पक कर तैयार हुआ तो जोगी बोला-अब देर क्या है? इसे चार थालियों में परोसो। एक मेरे लिए, दो तुम दोनों के लिए और चौथी स्वयं अकनंदुन के लिए। अकनंदुन की थाली का नाम सुनकर वहां उपस्थित लोग क्रोध से लाल-पीले और हैरान हो उठे। पर जोगी की आज्ञा का पालन करके चार थाल परोसे गए। सभी अपने-अपने आसन पर बैठे। राजा-रानी के नेत्रों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। इतने में ही जोगी बोला-रानी रत्नमाला ! उठो और खिड़की में से वैसे ही अपने पुत्र को बुलाओ जैसे रोज बुलाती हो। जल्दी करो खाना ठण्डा हो रहा है।

रानी रत्नमाला भारी हृदय से उठकर खिड़की की ओर गई और रोते-विलाप करते हुए उसने अकनंदुन का नाम पुकारा। उसके पुकारने की देर थी कि सीढ़ियों पर से दिन प्रतिदिन की तरह ‘आया मां’ कहता हुआ अकनंदुन वहां पहुंच गया। रत्नमाला और राजा से लपक कर उसे गले लगा। पर यह क्या? जब उन्होंने थालियों और जोगी की ओर देखा तो वहां न तो जोगी ही था और न वे परोसे गए थाल ही। जोगी की हर जगह तलाश की गई पर वह कहीं न मिला। वह कहां से आया था और कहां गया, इसका भी किसी को पता न चला। राजा-रानी अकनंदुन को पुन: पाकर अत्यंत प्रसन्न हो गए। फिर वे सुख पूर्वक रहने लगे।

इस लोककथा को कश्मीरकी कवि रमजान भट ने गीत- गाथा के रूप में कविताबद्ध किया है। यह गाथा-गीत कश्मीरियों का एक लोकप्रिय गीत है। मोहम्मद रमजान भट का उपनाम मशाल सुल्तानपुरी था।  कश्मीर के सुल्तानपुर बारामूला में 1937 में जन्में मोहम्मद रमजान भट ने उर्दू और कश्मीरी भाषाओं में उन्नीस काव्य पुस्तकें लिखीं ।  वे कश्मीरी कवि, लेखक और आलोचक थे।

 

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार कश्मीरी लोक कथा- अकनंदुन – को लेकर आया हूं। जब तक लोककथा सुनाऊं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज । 

दोस्तों यह थी कश्मीरी लोक कथा अकनंदुन । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

 

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