घुघुती -बसूती, क्या खैली, दुधभाती!
याद है आपको मां की सुनाई यह लोरी

घुघुती -बसूती, क्या खैली, दुधभाती,
कु देलो, मां देली—-
याद है आपको यह लोरी। बचपन में मां-दादी, नानी, मौसी आदि की सुनाई यह लोरी आज भी हमारे मन-मस्तिष्क में छाई है। लेकिन अब इसे हम भूलते जा रहे हैं।
शहरों में रह रहे उत्तराखंडी शायद ही अपने बच्चों को इसे सुनाते होंगे। घुघूती हो या घंड्यूड़ी, हम सभी के जीवन में इस कदर छाए हैं कि आज उनसे अलग हो पाना संभव नहीं है। यह हमारे पुरखों की सोच का कमाल था कि अपने बच्चों को इस तरह के गीतों के माध्यम से उन्होंने प्रकृति से जोड़ दिया। घुघुती तो हमारे दुख-दर्द से लेकर लोक संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है।
घुघुती ना बासा, घुघुती ना बास, आमा की डाई मा घुघुती ना बासा——
यह लोकगीत भी आपको याद होगा। इस तरह की यादें आपके पास हैं तो हिमालयी लोग पोर्टल से बांटिए।

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