द कश्मीर फाइल्स- धर्मांध व जेहादी मानसिकता के लोगों के कुकर्मों का वीभत्स चेहरा

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

 हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार व‍िवेक अग्न‍िहोत्री के निर्देशन में कश्मीरी पंड‍ितों पर बनी द कश्मीर फाइल्स  (The Kashmir Files) और कश्मीर के इतिहास पर बात करूंगा। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

 व‍िवेक अग्न‍िहोत्री के निर्देशन में कश्मीरी पंड‍ितों पर बनी द कश्मीर फाइल्स  (The Kashmir Files) ने धूम मचाने के साथ ही लोगों के मन- मस्तिष्क को भी झकझोर दिया है। द कश्मीर फाइल्स -1990 के दशक में कश्मीरी पंड‍ितों के नरसंहार और उन पर हुए अत्याचारों पर आधार‍ित है। ये अत्याचार धर्मांध लोगों ने किए जो पाकिस्तान  के टुकड़ों पर पलते रहे हैं। कश्मीर के इन धर्मांध व जेहादी मानसिकता के लोगों के कुकर्मों का यह वीभत्स चेहरा पूरी दुनिया को दिखाना बहुत  आवश्यक था। जिसे विवेक अग्निहोत्री ने दिखाने का प्रयास किया है।परंतु इस फिल्म के आने से भारत का कथित लिबरल सेक्युलर परेशान हैं।

द कश्मीर फाइल्स की कहानी नब्बे के दौर में घाटी में हुए कश्मीरी पंडितों के निष्कासन और इस दौर के राजनीतिक माहौल पर आधारित है। फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पुनीत इस्सर, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में हैं। विवेक अग्निहोत्री ने इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के रहस्य पर द ताशकंद फाइल्स बनायी थी। इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने इतिहास के पन्नों में धूल के अटी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या की सच्चाई दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी।

अब कश्मीर फाइल्स के माध्यम से उन्होंने  भारत के इत‍िहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक को बॉलीबुड के बड़े पर्दे के माध्यम से सामने रखने का प्रयास किया है। जो बॉलीबुड स्मगलरों, हत्यारों, गुंडों पर फिल्में बनाता रहा है, परंतु मानवीय संवेदना से भरी घटनाओं पर नहीं। खासतौर पर जब यह घटना हिंदुओं से जुड़ी हो। बॉलीबुड में ७० के दशक के बाद की पअधिकतर फिल्मों में ब्रह्मण को लालची, ठाकुर को अत्याचारी तथा बनिया को ठग दिखाया गया, जबकि मसजिद के इमाम को संसार का सबसे भला मानस बताया जाता रहा है। पाकिस्तान के कराची शहर में बैठे डी कंपनी के इशारे पर बॉलीबुड चलता रहा। इसलिए कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों परफिल्म बनाने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई। अब देश में राजनीतिक हालात बदलने से ही यह रास्ता खुला है।

 फिल्म 1990 में हुए कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचारों की कहानी है जिसे 700 से ज्यादा परिवारों का इंटरव्यू लेने के बाद तैयार किया गया। यह 90 के दशक में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं के नरसंहार और पलायन की कहानी है। फिल्म में कश्मीरी पंडितों के दर्द, पीड़ा, वेदना को तथ्यों के आधार पर दर्शाने की कोशिश की गई है। यह फिल्म कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म और आज के युवा के मन में चल रहे कश्मकश की कहानी है। फिल्म में अतीत है और वर्तमान भी. उन दो पीढ़ियों का द्वंद है।

स्वतंत्र भारत में कश्मीर पंडित ऐसी समाज है जिसे उनके घर से बेदखल कर दिया गया। परंतु मुसलमानों के तुष्टिकरण को ही धर्मनिरपेक्षता मानने वाले मक्कारों राज करते हुए इसे मुद्दा बनने ही नहीं दिया। इस मामले में सरकारी टुकड़ों  व सम्मानों पर पलने वाले कथित सेक्युलर पत्रकारों ने भी कश्मीरी पंडितों के दर्द को अपने समाचार माध्यमों में जगह नहीं दी। जबकि यही लोग आतंकियों के पक्ष में हमेशा खड़े रहते हैं। तब केंद्र में उस वीपी सिंह की सरकार थी, जो कि भारत को जातीय संघर्ष में धकेलने का जिम्मेदार था। उनकी सरकार के गृहमंत्री  मुफ्ती मोहम्मद सईद उस कश्मीर का था।

कश्मीर को जानना है तो कल्हण की राजतरंगिणी को पढ़ लेना। भारत के लोग जानते ही हैं कि कश्मीर के सभी मूल निवासी कभी हिन्दू ही थे। कश्मीरी पंडितों की संस्कृति पांच हजार साल पुरानी है। यहां का प्राचीन विस्तृत लिखित इतिहास राजतरंगिणी में है। जिसे महान कवि कल्हण ने 12वीं सदी में लिखा था। तब तक यहां पूर्ण हिन्दू राज्य रहा था। यह सम्राट अशोक के साम्राज्य का हिस्सा भी रहा। तभी यहां बौद्ध धर्म का आगमन हुआ, जो आगे चलकर कुषाणों के अधीन समृद्ध हुआ। उज्जैन के महाराज विक्रमादित्य के शासन में यहां छठी शताब्दी में एक बार फिर से हिन्दू धर्म की वापसी हुई। उनके बाद ललितादित्य हिन्दू शासक रहा, जिसका काल 697 ई. से 738 ई. तक था। अवन्तिवर्मन ललितादित्या का उत्तराधिकारी बना। उसने श्रीनगर के निकट अवंतिपुर बसाकर अपनी राजधानी बनाया। जो एक समृद्ध क्षेत्र रहा। उसके खंडहर अवशेष आज भी शहर की कहानी कहते हैं। यहां महाभारत युग के गणपतयार और खीर भवानी मन्दिर आज भी मिलते हैं। चौदहवीं शताब्दी में यहां मुस्लिम शासन आरंभ हुआ। इस्लामी आक्रांताओं ने यहां बड़ी संख्या में लोगों को बलात मुसलमान बना दिया था।

कश्मीर की कोटा रानी अंतिम हिंदू रानी थी। कश्मीर घाटी की इस रानी की बहादुरी और सुंदरता के किस्से-कहानियां आज भी जम्मू और कश्मीर की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनाई देती है। कोटा रानी ने 13वीं सदी में कश्मीर पर राज किया था। वह कश्मीर की अंतिम हिंदू रानी थीं, जिन्‍होंने मुस्लिम सत्ता आने से पहले तक घाटी पर राज किया। उन्होंने कश्मीर पर मुगलों के आक्रमण के सामने आखिरी दम तक मुकाबला किया था। एब अवसर ऐसा भी आया कि उसने अपनी  जान ही दे दी।  

आदि शंकराचार्य भी यहां आए थे। यहां उनका मंदिर भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां  भगवान शिव की पत्नी देवी सती रहा करती थीं । यह भी  कहा जाता है कि यहां की झील में कछुआ बहुत थे। इसलिए इस  क्षेत्र का नाम कछुओं की झील यानी कश्यपमर  से कश्मीर नाम हो गया। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कैस्पियन सागर यानी कश्यप सागर  और कश्मीर का प्राचीन नाम पड़ा। कहा जाता है कि कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। इस बारे में कहा जाता है  कि कश्यप ऋषि ही कश्मीर के पहले राजा थे। कश्मीर शब्द  खस व मीर से बना दिखता है।कैस्पियन सागर के असपास से खस जब इस क्षेत्र में आए तो इसका नाम खशमीर यानी खस देश पड़ गया। प्रसिद्ध भाषविद रामविलास शर्मा का कथन है कि मीर शब्द मध्यएशियाई शब्द है और स्लाव भाषा में अभी भी इसका प्रयोग होता है । पामीर में पाए जाने वाला मीर पद भी यही है और जिसका अर्थ होता है चरवाहों का देश। हालांकि भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार खदियानयार, बारामूला में पहाड़ों के धंसने से झील का पानी बहकर निकल गया और इस तरह कश्मीर में रहने लायक स्थान बन गए। इसी अपनी ही भूमि से कश्मीरसी पंडित बेदखल कर दिए ग थे। इन कथाओं के भारतीय लोगों को सबक लेना होगा। इस हिमालयी क्षेत्र के कश्मीरी पंडितों  पर हुए अत्याचारों पर बनी फिल्म को अवश्य देखना चाहिए।

यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल  तथा संपादकीय न्यूज चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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