कश्मीर की अंतिम हिंदू कोटा रानी के बाद घाटी में कैसे फैला इस्लाम

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा /

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली /

कश्मीर घाटी –  ऋषि कश्यप के वंशजों की इस घाटी  में  हिंदू साम्राज्य कैसे ढह गया और कैसे वहां इस्लाम फैलता चला गया। लंबे समय बाद फिर से कैसे फिर से हिंदू शासन आया। यह रोचक कहानी है। यह  आश्‍चर्य  का विषय है कि  भारत के इतिहास के पुस्तकों के पन्ने हिमालय के वीर-वारांगनाओं व महान हस्तियों के बारे में चुपी ओढे हैं। इनमें एक नाम है कोटा रानी। कश्मीर घाटी की इस रानी की बहादुरी और सुंदरता के किस्से-कहानियां आज भी जम्मू और कश्मीर की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनाई देती है। कोटा रानी ने 13वीं सदी में कश्मीर पर राज किया था। वह कश्मीर की अंतिम हिंदू रानी थीं, जिन्‍होंने मुस्लिम सत्ता आने से पहले तक घाटी पर राज किया। यह वह कालखंड था जब कश्मीर के शासक विदेशी  मुस्लिम आक्रांताओं से लड़ने का साहस नहीं कर पा रहे थे, तब कोटा रानी ने  कभी पिता और कभी भाई के साथ हर मोर्चे पर संघर्ष किया। अंत में सब खोने के बाद भी वह कभी झुकी नहीं और अपनी जान देना उसने बेहतर समझा। वह सुंदर थी। उसकी सुंदरता के चर्चे दूर-दूर तक थे, परंतु वह युद्ध कला और नीतियां बनाने में भी कुशल थीं।  उन्‍होंने अपने कश्‍मीर को बचाने के लिए अपनी सुंदरता का इस्‍तेमाल पुरुषों को जीतने के लिए बखूबी किया। उन्होंने कश्मीर पर मुगलों के आक्रमण के सामने आखिरी दम तक मुकाबला किया था। एब अवसर ऐसा भी आया कि उसने अपनी  जान ही दे दी।  

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कोटा रानी (sklTk rani)कश्मीर (Kashmir ) में लोहारा वंश के राजा सहदेव के प्रधानमंत्री और सेनापति रामचंद्र की बेटी थी।  सहदेव ने  सन 1301 में कश्मीर (Kashmir )की गद्दी संभाली। उनके दो विश्वासपात्र थे, लद्दाख से भाग कर आए बौद्ध राजकुमार रिनचेन और स्वात घाटी से आया मुस्लिम प्रचारक व सैनिक शाहमीर। सहदेव एक कमज़ोर राजा थे । यह भी कह सकते हैं कि सहदेव के नाम पर उनके प्रधानमंत्री और सेनापति रामचंद्र ही वास्तविक शासन चला रहे थे। रामचंद्र की सुंदर और मेधावी बेटी कोटा भी इस काम में उनका सहयोग करती थी। इसी दौरान तिब्बत से भागा हुआ एक राजकुमार रिनचेन या रिनचिन या रिंचन  अपने सैनिकों के साथ कश्मीर पहुंचा। उसका पूरा नाम लाचेन रिग्याल बू रिनचेन था।  रिनचेन  के पिता तिब्बती राजपरिवार और भूटियाओं के बीच छिड़े गृहयुद्ध में मारे जा चुके थे। रिनचेन  को रामचंद्र ने  शरण दे दी थी। उसी दौरान स्वात घाटी से शाह मीर नाम का एक मुस्लिम सैनिक अफसर भी अपने परिजनों के साथ कश्मीर आ गया।  सहदेव और रामचंद्र ने उसे भी शरण दे दी। इस तरह अब सहदेव के राज को रामचंद्र, कोटा रानी, रिनचेन और शाह मीर मिलकर चलाने लगे थे। 

उसी दौरान सन 1319-२० में मध्य एशिया के एक तातार शासक दुलाचा ने झेलम घाटी के रास्ते कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। राजा सहदेव और उसका भाई उदयन देव युद्ध करने की बजाय भागकर किश्तवाड़ चले गए। दुलाचा ने आठ महीने तक कश्मीर में भयंकर उत्पात मचाया। नगरों और गांवों को नष्ट कर दिया और हजारों हिंदुओं का नरसंहार कर दिया। हजारों हिंदुओं को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया। सैकड़ों हिंदू जो इस्लाम कबूल नहीं करना चाहते थे, उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। कई वहां से जान बचाकर भाग गए थे। मुसलिम आक्रांता दुलाचा ने बड़ी संख्या में कश्मीरियों को गुलाम बनाकर तातार भेज दिया। उसने कश्मीर को पूरी तरह बर्बाद कर दिया था। कुछ माह बाद दुलाचा एक हिमस्खन में  फंसकर अपनी सेना सहित मारा गया। दुलाचा की मृत्यु  के बाद किश्तवाड़ के राजाओं ने कश्मीर (Kashmir ) पर काबिज होना चाहा, लेकिन रामचंद्र ने उन्हें पराजित कर खुद को कश्मीर का राजा घोषित कर दिया।  रामचंद्र को राजा बनते देख रिनचेन की भी महत्वाकांक्षा जाग उठी । रिनचेन ने शाहमीर के साथ मिलकर धोखे से रामचंद्र की हत्या कर दी। इसके बाद रिनचेन कश्मीर की गद्दी पर बैठ गया।

 पिता रामचंद्र की हत्या के बाद कोटा रानी के जीवन में नया मोड़ आ गया। कोटा के सामने कोई रास्ता नहीं बचा रह गया था। उसने रिनचेन से विवाह कर लिया। यह भी कहा जाता है कि दोनों में प्यार था। रिनचेन बौद्ध था तो कोटा हिंदू, एक कश्मीरी पंडित। अक्टूबर 1320 में रिनचेन कश्मीर का शासक बन गया था।  हालांकि लोककथाओं के अनुसार कोटा रानी ने कश्मीर में अपनी संस्कृति और हिंदू शासन कायम रखने के लिए अपने पिता के हत्यारे रिनचेन से विवाह रचाया। यह भी कहा जाता है कि विवाह का प्रस्ताव भी कोटा रानी ने ही दिया था।  विवाह के बाद कोटा रानी ने धीरे-धीरे रिनचेन को हिंदू धर्म और संस्कृति का इतना प्रेमी बना दिया कि वह हिंदू धर्म स्वीकार करने को तैयार हो गया था। रिनचेन  ने कोटा के भाई यानी रामचंद्र के बेटे रावणचंद्र को भी शासन में प्रमुख स्थान देकर संभवतः उसे सेनापति नियुक्त कर लिया था।कश्मीर में 1318 से 1338 के बीच के बीस साल भारी उथल-पुथल के रहे. इस दौर में युद्ध, षड्यंत्र, विद्रोह और मार-काट का बोलबाला रहा। दूसरी ओर सूफियों के कारण कश्मीर में लोग इस्लाम के संपर्क में आने लगे थे। सन1301 से 1320 तक राजा सहदेव के शासनकाल में बड़ी संख्या में कश्मीरी लोग इस्लाम को स्वीकार कर चुके थे।

रिनचेन अंतत: हिंदू धर्म अपनाने को राजी भी हो गया था। परंतु हिंदुओं के एक वर्ग ने रिनचेन को  हिंदू बनाने का विरोध कर दिया। कहा जाता है कि उस समय के कश्मीरी शैव गुरु ब्राह्मण देवस्वामी ने रिनचेन को हिन्दू धर्म में शामिल करने से इनकार कर दिया। इसके  तीन मुख्य कारण बताए जाते हैं। एक- रिनचेन तिब्बती बौद्ध  था।  दूसरा -वह अपने ससुर और हिन्दू राजा रामचंद्र का हत्यारा था। तीसरा- यदि वह हिन्दू धर्म अपना लेता तो उसे उच्च जाति में शामिल करना पड़ता। दरअसल,  रिनचिन  हिंदू बनने की इच्छा से रिनचिन शिव मंदिर गया। कहा जाता है कि मंदिर के सर्वोच्च पुजारी देवा स्वामी ने कहा कि –हम तुम्हें  किस जाति में रखेंगे?। ऐसा कहकर उसे हिंदू धर्म में लेने से इंकार कर दिया। अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार पीठ के पुजारी ने कहा था कि तुम्हें एक कठिन परीक्षा पास करनी होगी और जो ज्ञान अभी तक तुमने अर्जित किया है उसे भूलना होगा।।

हिंदुओं का इस व्यवहार से  रुष्ट होकर रिनचेन  ने इस्लाम धर्म अपना लिया और मुसलमान बन गया था। उसने अपना नाम ‘सदर-उद-दीन’रख दिया।  सदर-उद-दीन का अर्थ है- धर्म यानी इस्लाम का मुखिया। इस तरह रिनचेन कश्मीर का पहला मुस्लिम शासक बन गया।  रिनचेन को मुसलमान बनवाने के  मामले में एक सूफी फकीर बुलबुल शाह का नाम भी सामने आता है। वह तुर्किस्तान से कश्मीर (Kashmir )आया था। कहा जाता है कि रिनचेन ने धर्म के चुनाव को लेकर शाह मीर से चर्चा की तो उसने इस्लाम अपनाने की सलाह दी। जबकि वह जानता था की रिनचेन के  मुसलमान बन जाने के बाद वह कभी कश्मीर का सुल्तान नहीं बन पाएगा।  लेकिन उसने  इस्लाम की विजय पताका फहराने  का यह उचित अवसर देखा। दुविधा में फंसे रिनचेन ने तय किया कि अगली सुबह  जिस प्रार्थना की आवाज उसे सबसे पहले सुनाई देगी,  उसी के धर्म को अपना लेगा। सूफी संत  बुलबुल शाह को इसी का इंतजार था। उसे यह बात पता चल गई। वह रात में उसके सामने की इमारत में छुप गया। सुबह भोर काल में ही उसने अजान पढ़नी शुरू कर दी,जिसे रिनचेन से सुन लिया। इसके बाद रिनचेन ने अपनी घोषणा के अनुसार इस्लाम अपना लिया।  रिनचेन के मुसलमान बन जाने के बाद उसके कई बड़े अधिकारी भी बुलुबुल शाह के प्रभाव में मुसलमान बन गए। इस तरह बुलबुल शाह  इस्लाम को कश्मीर का राजकीय धर्म बनाने के अपने मिशन में सफल हो गया। दूसरी ओर हिंदू थे कि रिनचेन को अपने में लाने का विरोध कर रहे थे। यह  हिंदुओं की मूर्खता थी। जिसका फल आज भी भुगत रहे हैं। बहरहाल, मुसलमान बनने पर रिनचेन ने ही  श्रीनगर में कश्मीर की पहली मस्जिद  बनवाई। यह भी कहा जाता है कि  उस दौर में कश्मीर की इस्लाम तेजी से फैल रहा था। माना जाता है कि रिनचेन के इस्लाम धर्म अपनाने के पीछे मुस्लिम बहुल होती जा रहे कश्मीर में राजनीतिक सुरक्षा और महत्वाकांक्षा भी एक कारण था।

परंतु, अभी इतिहास एक और करवट लेने जा रहा था।  सदरुद्दीन यानी रिनचेन की मौत के कुछ समय बाद फिर से हिंदू (Hindu) शासन का दौर आया। लेकिन यह बहुत कम समय के लिए था। दिवंगत राजा सहदेव के भाई उदयन देव ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। हालांकि यह युद्ध हार गया, परंतु इस हमले में रिनचेन गंभीर रुप से घायल हो गया और 1326 में उसकी मौत हो गई। वह मात्र तीन साल ही शासन कर पाया। रिनचेन की मौत के बाद उसका छोटा बेटा हैदर गद्दी पर बैठा, लेकिन राजकाज की बागडोर कोटा रानी के हाथ में ही थी। इधर, एक बार फिर उदयनदेव कश्मीर की गद्दी पर काबिज हो गया था।  कहा जाता है कि कश्मीर की सुरक्षा व अपनी संस्कृति को बनाए रखने की ललक के चलते कोटारानी ने उदयन देव के साथ विवाह कर लिया था।  शासन की बागडोर फिर भी कोटा रानी के हाथ में ही रही। कोटा रानी के दो विश्वासपात्र थे-एक भिक्षण देव और दूसरा शाह मीर। भिक्षण देव रानी कोटा का भाई था। इधर, कश्मीर में तातार सेनाओं ने फिर हमला कर दिया। उदयन देव मुकाबला करने की बजाए कश्मीर और रानी को छोड़ कर तिब्बत भाग गया। कोटा रानी ने मोर्चा संभाला।  उसने अपने भाई भिक्षण भट्ट और शाहमीर की मदद से तातारों को खदेड़ दिया। युद्ध समाप्त होने पर उदयन देव वापस आया।  इस तरह कश्मीर पर एक बार फिर से  हिंदू शासन (Hindu) बनाए रखने में रानी सफल रही। सन 1341 में उदयन देव की मृत्यु हो गई। उस समय कोटा रानी और उदयन देव का बेटा छोटा था, इसलिए कोटा रानी ने एक बार फिर से राजकाज संभाल लिया।

 उदयन देव की मृत्यु के बाद शाहमीर कश्मीर का शासक बनने के सपने देखने लगा। उसने पहले तो रानी के भाई भिक्षण भट्ट को अपनी साजिश में शामिल करने के लिए लालच दिया, जब वह नहीं माना तो उसकी धोखे से हत्या करा दी। फिर उसने कोटा रानी के खिलाफ विद्रोह कर उसे  युद्ध में हरा दिया। कहा जाता है कि  शाहमीर युद्ध जीतने के बाद कोटा रानी से शादी करना चाहता था। वह उनकी सुंदरता पर फिदा था, लेकिन रानी शाहमीर से शादी की इच्छुक नहीं थी। कहा जाता है कि शाहमीर ने कोटा रानी को निकाह के लिए मजबूर कर दिया था। जब वह रात में उसकी प्रतीक्षा कर रहा था, तो उसके सामने पूरा सिंगार करके आई कोटा रानी ने अपने पेट में खंजर घोंपकर आत्महत्या कर ली थी। रानी के अंतिम शब्द थे– यह है मेरा उत्तर।

कोट रानी की मृत्यु के बाद शाह मीर  कश्मीर का सर्वोसर्वा बन गया। इस तरह कश्मीर घाटी में अंतिम हिंदू रानी की मृत्यु के बाद हिंदू धर्म भी  अवसान की ओर बढ़ने लगा था। कश्मीर में इस्लाम का राज शुरू हो गया। सूफी फकीर बुलबुल शाह और मीर शाह का सपना सच हो गया था। मीर शाह कश्मीर का शासक बन बैठा। इस तरह कश्मीर में इस्लाम का शासन शुरू हो गया था। जो कि महाराजा रणजीत सिंह और डोगरा शासन आने तक कश्मीर में बना रहा।

अब कश्मीर  के इतिहास पर दृष्टि घुमाते हैं।  ऋषि कश्यप के वंशजों की इस धरा में सदियों तक सनातन धर्म की पताफा फहराती रही। खसों की इस भूमि का नाम उनसे ही खस-मीर यानी खसों की भूमि। पुराणों में इसे शिव- पार्वती का क्षेत्र बताया गया है।  राजतरंगिणी में कश्मीर को लेकर कहा गया है कि इसका नाम –कश्यपमेरु- था। कश्यप ऋषि ब्रह्मा के पुत्र ऋषि मरीचि के पुत्र थे। राजतरंगिणी में कश्मीर का इतिहास वर्णित है जो महाभारत काल से आरम्भ होता है। इसका रचना काल सन ११४७ से ११४९ तक बताया जाता है । राजतरंगिणी के प्रथम तरंग यानी अध्याय में कहा गया है कि कश्मीर में पांडवों के सबसे छोटे भाई सहदेव ने सबसे पहले राज्य की स्थापना की थी और उस समय कश्मीर में केवल वैदिक धर्म ही प्रचलित था। फिर सन 273 ईसा पूर्व कश्मीर में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ। यहां 13वीं सदी तक कश्मीर में हिंदू (Hindu)शासकों का शासन रहा। इस कालखंड में महान सम्राट अशोक ने भी कश्मीर पर शासन किया। कश्मीर में हिंदू (Hindu)शासन को समाप्त करने का पहला प्रयास इस्लाम के जन्म के लगभग 300 वर्षों बाद किया गया। मोहम्मद बिन-क़ासिम सिंध विजय के बाद कश्मीर की ओर भी आया, परंतु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली। इसी तरह भारत पर डेढ़ दर्जन आक्रमण करने वाले गजनी के आक्रांता महमूद ने प्रयास किया, परंतु वह हर बार ही विफल रहा। परंतु 13वीं सदी में वह अवसर आ गया। जब इस्लाम को सत्ता मिलने का रास्ता खुल गया था। तब कश्मीर में सहदेव का राज था। जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि सहदेव के शासनकाल में मंगोल आक्रांता दुलाचा ने कश्मीर पर आक्रमण किया। यह आक्रमण नादिर शाह का दिल्ली पर किए हमले जैसा ही था। दुलाचा की तलवारों ने पुरुषों के खून से अपनी प्यास बुझाई, जबकि महिलाएं और बच्चों को गुलाम बना लिया गया।जिस समय कश्मीर में यह चल रहा था, लगभग उसी समय तिब्बत में मंगोल कुबलाई खान की रियासत में, उसकी मौत से राजनीतिक उठा-पटक शुरू हो गई। कुबलाई खान की मौत का समाचार तिब्बत पहुंचने पर बाल्टिस क्षेत्र में विद्रोह हो गया। स्थानीय प्रतिनिधि ल्हा चेन दुगोस ग्रुब मारा गया। लेकिन उसका  पुत्र रिनचेन  जोजिला दर्रे से कश्मीर पहुंच गया। तिब्बत की अस्थिरता ने वहां के एक राजकुमार रिनचेन  को कश्मीर जाने को विवश कर दिया था। रास्ते में ही रिनचेन की मुलाकात राजासहदेव के सेनापति रामचंद्र से हुई। दोनों में मित्रता हुई और रिनचिन रामचंद्र के घर मेहमान बनकर रहने लगा। रिनचेन को रामचंद्र की बेटी कोटा से प्यार हो गया। रिनचिन ने रामचंद्र की हत्या की और कश्मीर का मुकुट अपने सिर पहन लिया। कोटा को इस बात की जानकारी थी कि रिनचेन  ने ही उसके पिता की हत्या की है लेकिन प्यार और ऊपर से राजनीति।   रिनचेन के कश्मीर का राजा बन जाने पर कोटा रानी ने राजनीतिक दृष्टि से उसका साथ रहना ही उचित समझा था। रिनचेन  के इस्लाम  अपनाने के बाद कश्मीर में  लंबे समय तक मुसलमानों का राज रहा। मुगलों के समय भी कश्मीर में बड़ी संख्या में धर्मांतरण हुआ।

जो कि सिख  महाराजा रणजीत सिंह और डोगरा शासन में ही कश्मीर घाटी से इस्लाम का राज खत्म हो गया। डोगरा शासन में कश्मीर घाटी में फिर से हिंदू राज तो लौट आया था,परंतु  वहां हिंदू धर्म अल्पमत में आ चुका था। इसलिए हिंदुओं को इन शब्दों को बोलना बंद कर देना चाहिए कि – हस्ती मिटती नहीं हमारी। कश्मीर,पाकिस्तान, अफगानिस्तान इसके उदाहरण हैं।

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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार कश्मीर घाटी की अंतिम हिंदू कोटा रानी के बारे में जानकारी लेकर आया हूं। ऋषि कश्यप के वंशजों की इस घाटी  में उस कालखंड में हिंदू साम्राज्य कैसे ढह गया और कैसे वहां इस्लाम फैलता चला गया। लंबे समय बाद फिर से कैसे फिर से हिंदू शासन आया।  यह बताने से पहले आप लोग इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। समसामयिक घटनाओं को लेकर सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज भी देखते रहिएगा,सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।

दोस्तों यह था कश्मीर घाटी की अंतिम हिंदू कोटा रानी  तथा इस्लाम में आगमन की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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