लद्दाख के राजा जमयंग नमग्याल को जब स्कर्दू के शासक अलीमीर ने बनाया अपना दामाद

0
566

 

तिब्बत को भी घुटनों के बल बैठाने वाले लद्दाख का इतिहास

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

लद्दाख के उल्लेख के बिना हिमालयीलोग की  गाथा अधूरी सी है। जम्मू-कश्मीर से धारा- 370 निरस्त करने तथा प्रदेश के पुनर्गठन के बाद लद्दाख अब केंद्र शासित प्रदेश है।  बौद्ध धर्म के केंद्र लद्दाख का अर्थ लद्दाखी में -उच्च दर्रों की भूमि-  है।  इसे लाताग,  मर- यूल, तथा खा-चन- पा आदि नामों से भी जाना जाता रहा है। मर-यूल का अर्थ लाल भूमि तथा खा-चन-पा का अर्थ दिव्य भूमि होता है। चीनी यात्री  फाइह्यान ने किए-चाह तथा सातवी शताब्दी में एक अन्य चीनी बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने  मा-लो-फा के नाम से लद्दाख का उल्लेख किया। अब इसे लद्दाख या लदाग के नाम से जाना जाता है। यह भी माना जाता है कि इस क्षेत्र का मूल नाम  मोलूसूओ या मार्स का राज्य मार्च-युल है। इसके साथ ही मो-लो-तो, सुवर्णगोत्रा ​​या सुवर्णभूमि यानी स्वर्ण की भूमि के साथ सान-पो-हो बॉर्डर्स भी कहा जाता है। लद्दाख को चन्द्रभूमि का नाम भी दिया  गया है।

लद्दाख को लेकर इस बात के प्रमाण हैं कि यह क्षेत्र नवपाषाण काल से बसा हुआ है। यहां के लोगों को लेकर पुराणों में भी उल्लेख है। माना जाता है कि ईसा की पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। दूसरी शताब्दी में कश्मीर से पश्चिमी लद्दाख तक बौद्ध धर्म में फैल गया था। ईसा से लगभग 50 वर्ष पूर्व तिब्बत का एक शक्तिशाली शासक हुआ । उसका नाम नाम  न-ठि- चन-पो था। मंगोल लेखक सवांग सेनजेन के अनुसार न-ठि- चन-पो  भारत के प्रसिद्ध लिच्छिव वंश का राजकुमार था। सम्राट अशोक से हार जाने के बाद  वह राजकुमार तिब्बत चला गया था। तिब्बत में उस राजकुमार का भारी स्वागत हुआ और उसे तिब्बत का राजा स्वीकार कर लिया गया। लद्दाख ( Ladakh) का क्रमबद्ध इतिहास 1580 ई से स्पष्ट रूप से सामने आता है।  इसी वंश का वंशज छेवांग नमग्याल को  लहासा से निष्काषित कर दिया गया  था। इसके बाद वह लद्दाख चला गया। वहां उसने अपना राज्य स्थापित किया। उसने एक बड़े भूभाग को जीतकर विशाल साम्राज्य स्थापित किया और भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा स्थापित की ।

उसके बाद उसका छोटा भाई जमयंग नमग्वाल (Jamyang Namgyal ) राजसिंहाशन पर बैठा। उसे जमैया नामग्याल भी कहा जाता है। उसे सभी सामंतों ने राजा स्वीकार कर लिया था, परंतु एक सामंत ने स्वीकार नहीं किया। इस पर जमयंग नमग्वाल (Jamyang Namgyal )क्रोधित हो गया। वह उस सामंत को दंडित करने स्वयं चल पड़ा। परंतु रास्ते में भारी बर्फबारी के कारण उसकी सेना फंस गई। स्कदूर् के शासक अली मीर की सेना ने रास्ते में नामग्याल की सेना पर हमला कर दिया और उन्हें तब तक वहां रोके रखा जब तक कि सभी दर्रे और घाटियां बर्फ से अवरुद्ध नहीं हो गईं। नमग्याल को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा । नामग्याल को कैद कर लिया गया। इसके बाद अली मीर ने  मौके पर लाभ उठाते हुए विशाल सेना भेजकर लद्दाख पर आक्रमण कर दिया। लद्दाख को अली मीर ने तहस-नहस कर दिया। उसने मंदिर व मठ फूंक दिए । भगवान बुद्ध की  विशाल प्रतिमा तोड़ दी। पुस्तकालयों को जलाकर पुस्तकें सिंधु नदी में फेंक दीं। लद्दाख की सांस्कृतिक व धार्मिक सामग्री को नष्ट कर  दिया। चूंकि लद्दाख जैसे दुर्गम पहाड़ी इलाके का प्रशासन चलाना उसके बस का नहीं था इसलिए अली मीर वापस स्कर्दू लौट गया । उसने जमयंग नमग्वाल को मुक्त कर दिया और अपनी बेटी का विवाह उससे कर दिया। इस तरह  अली मीर ने अपनी बेटी ग्याल खातून का विवाह राजा जमयंग नमग्वाल से करके उसे अपना दामाद बना दिया।

 लद्दाख लौटने पर जमयंग नमग्वाल का  शानदार स्वागत हुआ। उसने फिर अपने राज्य का विस्तार किया और लद्दाख की सीमाएं  बढ़ाईं। ग्याल खातून से जमयंग नमग्वाल के दो पुत्र हुए। जम्यांग नमग्याल का 1616 में निधन हो गया। उसकी मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र सिंग्गे नमग्याल  ने सत्ता संभाली। उसने बड़े सैनिक अभियान चलाए और अपने राज्य का विस्तार किया। उसी दौरान बाल्टिक के शासक अहमद खान ने जहांगीर की सहायता से लद्दाख पर आक्रमण कर दिया। परंतु लद्दाख के वीर सिंग्गे नमग्याल (Sengge Namgyal (Sen-ge-rnam-rgyal) ने उसे परास्त कर दिया। सिंग्गे नमग्याल  तिब्बत पर भी आक्रमण करने  की तैयारी करने लग गया था, लेकिन लहासा के एक प्रतिनिधिमंडल ने लद्दाख आकर उसे बहुमूल्य आभूषणों की  भेंट दी। इसके बाद सिंग्गे नमग्याल (Sengge Namgyal (Sen-ge-rnam-rgyal) ने तिब्बत कर आक्रमण का विचार बदल दिया। इस तरह तिब्बत को भी उसने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था।

 सिंग्गे नमग्याल (Sengge Namgyal (Sen-ge-rnam-rgyal) के शासन काल को लद्दाख के इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।  लद्दाख बाद में मुसलमानों से भी लगातार सघर्ष करता रहा। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह (1792-1857) और  उनके जनरल जोरावर सिंह ने 1834 में लद्दाख पर आक्रमण किया। महाराजा रणजीत सिंह ने लद्दाख को अपने साम्राज्य में मिला दिया। इस तरह नामग्याल राजवंश 1842 में समाप्त हो गया था। इसके बाद लद्दाख कश्मीर की डोगरा रियासत का हिस्सा भी रहा। देश की स्वतंत्रता के बाद वह  भारत का हिस्सा बन गया।

————————–  

 

दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार  हिमालयी राज्य लद्दाख के गौरवशाली इतिहास और राजा जमयंग नमग्याल की गाथा सुना रहा हूं, जिसे स्कर्दू के शासक अलीमीर ने अपना दामाद बना लिया था। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।

दोस्तों यह थे लद्दाख के गौरवशाली इतिहास के कुछ अंश। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here