पहाड़ी भूत क्यों कहा जाता है हिम  तेंदुआ !

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  परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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मैं हूं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा। आप सभी के प्यार और स्नेह से उत्साहित होकर अब हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण, ग्लेशियर, वन्यजीव, इकोलॉगी, अपराध आदि सरोकारों से लेकर नये रोचक समाचारों को भी यहां देने जा रहा हूं। पहली बार हिम तेंदुओं  ( Snow leapord) को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

यह समाचार इसी मार्च २०२२ की है। यह प्रसन्नता की बात है कि हिमालय के उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में स्नो लेपर्ड  यानी हिम तेंदुआ  ( Snow leapord) अब भी विचरण कर रहा है। यह  तेंदुआ अब अंत्यत दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीव की श्रेणी में है। इसलिए यह समाचार सुखद है कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुआ की फोटो कैमरों में कैद हुई हैं। भारत-तिब्बत सीमा पुलिस यानी आईटीबीपी (ITBP) के जवानों के कैमरों में कैद हिम तेंदुए की ये फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं। आईटीबीपी ने ट्वीटर पर  यह वीडियो  शेयर किया है।

इसे आप भी देख सकते हैं। बिल्ली परिवार का यह   वन्यजीव अब दुर्लभ जाति के प्राणियों में शामिल है। हिमाचल प्रदेश  में  लगभग दो हजार 500 फीट की ऊंचाई पर स्पीति घाटी में हिम तेंदुआ देखा गया। इसी तरह उत्तराखंड भी हिम तेंदुआ देखा गया। उत्तराखंड के नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के जोशीमठ रेंज में अलग-अलग जगहों पर ट्रैप कैमरे लगाए गए थे। इन कैमरों में एक हिम तेंदुए  ( Snow leapord)की फोटो कैद हो गई। यह इसी साल दो  फरवरी की बताई जा रही है।

परंपरागत चीनी दवाओं में इनके शरीर के अंगों का इस्तेमाल होता है। इसलिए अवैध रूप से इनका शिकार कर व्यापार किया जाता है। इसी वजह से इन तेंदुओं की संख्या तेजी से कम हो रही है। इसलिए  हिम तेंदुआ  ( Snow leapord)अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ( IUCN) की लाल सूची में विलुप्तप्राय प्रजातियों में सूचिबद्ध है। वर्ष 2013 में लगाए गए अनुमानों के अनुसार इन तेंदुओं की वैश्विक आबादी 4,080 से 6,590 के बीच थी। इसे पैंथेरा अनिसया सिंक. अनिसया भी कहते हैं। यह एक बड़ी बिल्ली है जो मध्य और दक्षिण एशिया के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाती है। हिम तेंदुए भारत, नेपाल, भूटान, चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान और रूस समेत 12 देशों में पाए जाते हैं। हिमालय में समुद्र से 3000-5400 मीटर की उंचाई पर तेंदुए पाए जाते हैं। मंगोलिया और रूस में यह प्रजाति समुद्र से 1000 मीटर की ऊंचाई पर भी पाई जाती है। चीन में हिम तेंदुआ की कुल आबादी के करीब 60 प्रितशत तेंदुए हैं। मंगोलिया के कुछ हिस्सों से ये विलुप्त हो चुके हैं। कभी मंगोलिया इनका मुख्य निवास स्थान हुआ करता था।   हिमालय में हिम तेंदुआ (Snow Leopard) उच्च हिमालयी और ट्रांस-हिमालयी क्षेत्र  के पांच राज्यों जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश के भूभाग (Himalayan States) में पाया जाता है. पिछले कुछ समय में हिम तेंदुआ उत्तराखंड (Snow Leopard) में नहीं दिखने से चिंता बढ़ी थी। परंतु अब इनको देखा जाने लगा है।

हिम तेंदुआ ( Snow leapord) को पहाड़ों का बादशाह भी कहा जाता है। यह बड़ी बिल्ली-तेंदुआ, शेर और बाघ आदि के परिवार का सदस्य है। यह हिमालय की बर्फीले पहाड़ियों पर रहता है, और शिकार के लिए उन पर ऐसे दौड़ता है कि ग्रेविटी भी उसकी काबिलियत के आगे कमजोर नजर आती है. इसका रंग और रूप चट्टानों में गुम हो जाने वाला होता है। अपने रहस्यमयी स्वभाव के कारण इन्हें गोस्ट ऑफ़ द माउंटेन (Ghost Of The Mountain) अर्थात पहाड़ी भूत भी कहा जाता है। ये संसार भर में अपने खूबसूरत फर  के लिए प्रसिद्ध हैं। इसके पलक झपकते बदलते ठिकानों से कई बार ऐसा लगता है कि जैसे ये लुकाछुपी का कोई मायावी खेल खेल रहे हों। बीहड़ पहाड़ी ऊंचाई के ठंडे और बर्फीले बंजर परिदृश्य में रहने के लिए पूरी तरह अनुकूल शरीर होने के बावजूद भी मानवीय खतरों ने इनके अस्तित्व के लिए खतरे खड़े कर दिए हैं।

हिम तेंदुए  ( Snow leapord) स्वभाव से शर्मीले और एकांतप्रिय होते हैं। 2 साल की आयु में ये हिम तेंदुए अपनी मां का सहारा छोड़कर आत्मनिर्भर हो जाते हैं। एक रोचक तथ्य ये भी है कि ये प्रजाति अपने इलाके को चिह्नित करने के लिए अपने पिछले पैरों से ज़मीन को खरोंचकर और अपने मूत्र से निशानदेही कर देते हैं। अचरज की बात यह भी है कि हिम तेंदुए बाकी बड़ी बिल्लियों की तरह दहाड़ते नहीं हैं। बल्कि बिल्ली की तरह म्याऊ की आवाज़ निकालते हैं। इनके ना दहाड़ने की वजह भी उनके गले की आंतरिक बनावट में छुपी है।

इस वन्यजीव के संकट में होने के कारण ही हर साल 23 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस मनाया जाता है।  हिम तेंदुआ हिमाचल प्रदेश का राजकीय पशु भी है। हिम तेंदुआ, अफगानिस्तान और पाकिस्तान का राष्ट्रीय विरासत पशु है। पाकिस्तान में इसे नेशनल प्रिडेटर ऑफ पाकिस्तान (National Predator of Pakistan) के खिताब से नवाज़ा गया है। हिम तेंदुआ कज़ाकिस्तान के अलमेटी  की सरकारी मुहर पर प्रतीक चिह्न के रूप में इस्तेमाल होता है। अलमेटी, कज़ाकिस्तान की पूर्व राजधानी और सबसे बड़ा शहर है। कज़ाकिस्तान के पुराने करंसी नोट (Currency Note) पर भी हिम तेंदुए की तस्वीर छपती थी। किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक के आधुनिक चिह्न पर भी इसकी तस्वीर है।

हिम तेंदुआ  ( Snow leapord) तिब्बत और हिमालय के पहाड़ों में मिलने वाले नीले भेड़ यानी भारल का शिकार करते हैं। ये शक्तिशाली शिकारी अपने से तीन गुना अधिक वजन वाले पशुओं का भी शिकार कर सकते हैं। ये अपने से कई गुना छोटे जैसे मारमोट, खरहे और गेम बर्ड्स को भी खाते हैं। अन्य बड़ी बिल्लियों की तुलना में हिम तेंदुआ थोड़े से ही छोटे होते हैं लेकिन इनके आकार में विविधता देखने को मिलती है। आमतौर पर इनका वजन 27 से 55 किलो के बीच रहता है।  हिम तेंदुए खड़ी चट्टान क्षेत्रों और कंदराओं में निवास करना पसंद करते हैं। ये अपने शिकार का छिप कर इंतजार करते हैं और आमतौर पर 20 – 50 फीट की दूरी से हमला करते हैं। लंबे और शक्तिशाली पिछले हिस्से की वजह से हिम तेंदुआ 30 फीट की दूरी तक छलांग लगा सकता हैं। यह दूरी इनके शरीर की लंबाई के छह गुणा अधिक है। हिम तेंदुआ की आंखें हरी या ग्रे रंग की होती है जो बड़ी बिल्लियों में असामान्य है। आम तौर पर बड़ी बिल्लियों की आंखें पीली या सुनहरे रंग की होती है। हिम तेंदुए, सुबह और शाम में सक्रिए होते और जंगल में बहुत कम दिखाई देते हैं। अन्य बड़ी बिल्लियों के जैसे, हिम तेंदुए दहाड़ नहीं सकते। एकान्त में रहने वाले ये तेंदुए प्रजनन काल के दौरान ही सिर्फ जोड़ों में रहते हैं। हिम तेंदुआ  ( Snow leapord) एक सुंदर जानवर है, लेकिन इसकी गुर्राहट डराने के लिए काफी है। यह अत्यंत दुर्लभ जीव है। यह देश के कुछ खास चिड़ियाघरों में ही दिखाई देता है।  इसकी पूंछ की लंबाई करीब 90 सेंटीमीटर तक होती है, जबकि इसकी लंबाई एक मीटर के आसपास होती है।

सफेद रंग की खाल पर काले रंग के धब्बे इस तरह लगते हैं। इस रंग के कारण यह बर्फ और चट्टानों के बीच नजर नहीं आता। इससे इसे घात लगा कर शिकार करने में आसानी रहती है। हिम तेंदुए का जीवनकाल 15-20 वर्ष का होता है। हिम तेंदुए बर्फ से ढके निर्जन इलाकों में अकेले रहने के आदी होते हैं। ये प्राय: दिन में सोते हैं तथा रात में शिकार पर निकलते हैं। शिकार करने के लिए यह बिजली सी फुर्ती से छलांग लगाते हैं। चट्टानों पर छलांग लगाने में लंबी पूंछ इनकी सहायता करती है। जंगली बकरी, खरगोश, कस्तूरी मृग आदि इनका शिकार होते हैं। गड़रिये जब भेड़-बकरी चराने जाते हैं तो यह मौका देख भेड़-बकरियों का शिकार भी कर लेते हैं। अत्यधिक ऊंचाई पर प्राकृतिक आवास के कारण यह काफी हद तक सुरक्षित रहते हैं। आज इन्हें सबसे अधिक खतरा मनुष्य से ही है।

यह था  हिम तेंदुआ  ( Snow leapord) की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – नदियों के गीत — को भी सुन लेना। मेरे  कविता संग्रह- नदियों के गीत से लिया गया है। इसी चैनल में है। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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