नाथपंथी जोगी क्यों बने थे गढ़ नरेश अजै पाल

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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 मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गढ़वाल के सभी गढ़ों को जीतकर गढ़देश के संस्थापक पंवार नरेश अजै पाल के बारे में जानकारी दूंगा कि वे महान राजा आखिरकार अंत में जोगी क्यों बन गए थे।  जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

 छोटे-छोटे राज्यों को एकीकृत कर गढ़वाल के एकीकरण करने के लिए गढ़ नरेश अजै पाल या अजयपाल ( Garh Naresh Ajai Pal) का स्मरण किया जाता है। जिस तरह से गोरखा नरेश पृथ्वी नारायण शाह ने नेपाल का एकीकरण किया था, अजैपाल ने भी गढ़वाल को एकसूत्र में बांधा। मगध सम्राट अशोक जिस तरह से अंत में बौद्ध बन गयए थे, हिमालय का ये वीर राजा अजय पाल भी नाथपंथी साधु बन गए थे। भर्तृहरि और गोपीचंद की तरह राजपाठ छोड़कर राजा अजय पाल भी नाथपंथी जोगी हो गए थे। भरत कवि  रचित मनोदय काव्य में अजयपाल की तुलना भगवान श्री कृष्ण तथा हस्तिनापुर नरेश युधिष्ठिर से की गई है।  अजयपाल को गढ़वाल का सम्राट अशोक माना जाता है, क्योंकि जिस प्रकार से सम्राट अशोक ने।  कलिंग युद्ध के पश्चात बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। ठीक  उसी प्रकार राजा अजयपाल ने भी अपने जीवन के अंतिम समय में नाथ पंथ को स्वीकार कर लिया था । परंतु भारतीय इतिहासकारों का भेदभाव देखिए कि  उन्होंने राजा अजयपाल का उल्लेख तक नहीं किया।

इतिहासकार प्रो. अजय सिंह रावत अपनी पुस्तक- उत्तराखंड का समग्र राजनैतिक इतिहास पाषाण युग से 1949 तक– में लिखते हैं कि अजै पाल ( Garh Naresh Ajai Pal)अपने समय के महानतम नरेश थे। गोरखनाथ नाथ पंथ के ही प्रसिद्ध अन्य भर्तृहरी एवं गोपीचंद की श्रेणी में राजा अजय पाल को रखा जाता है। जॉर्ज डब्ल्यू व्रिग्स  ने अपनी पुस्तक- गोरखनाथ एंड द कनफटा योगीज- में लिखा है कि राजा अजै पाल गोरख नाथ संप्रदाय की एक पंथ के भी संस्थापक थे।  नवनाथ कथा तथा गोरक्ष स्तवांजार्ल के अनुसार जयपाल गोरख संप्रदाय यानी नाथ संप्रदाय  के 84 सिद्धों में से एक थे। उनकी तुलना भारतीय इतिहास के महान सम्राट अशोक से की जा सकती है। जिस प्रकार से  कलिंग युद्ध के नरसंहार से विक्षुब्ध होकर अशोक ने तलवार को सदा के लिए त्याग दिया था।  उसी प्रकार अजैपाल भी  52 गढ़ों को पराजित कर  गढ़राज्य स्थापित करके ऐश्वर्य को सदा के लिए त्याग कर नाथपंथ का अनुगामी बन गए थे। पंवार वंश के ही डॉ. शूरवीर सिंह के संग्रह में एक हस्तलिखित तांत्रिक विद्या से संबंधित ग्रंथ सांवरी ग्रंथ हैं, जिसमें अजय पाल को आदिनाथ कहकर संबोधित किया गया है।

गढ़वाल के महान राजा अजै पाल के बारे में विस्तार से बताने से पहले उत्तराखंड की तत्कालीन हालात की जानकारी दे देता हूं। उत्तराखंड में  कत्यूर शासन के पतन के बाद गढ़वाल में पंवार और कुमायुं में चंद राजवंश का उदय हुआ। कत्यूरियों के बाद गढ़वाल क्षेत्र कई छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया था। इनमें से एक  चांदपुर गढ़ भी था। यहां परमार वंश यानी पंवार राजवंश की स्थापना हुई। कनक पाल को इस वंश का संस्थापक माना जाता है। कुछ इतिहास कार भौनापाल को इस वंश का प्रथम शासक मानते हैं। अधकिकतर इतिहासकारों का मानना है कि चांदपुर गढ़ के शासक भानु प्रताप ने अपनी छोटी पुत्री  का विवाह कनक पाल से करके राजपाठ भी उन्हें सौंप दिया था।  माना जाता है कि कनक पाल वर्ष 688 में मालवा के धारा नगरी से यहां आए। उनके वंश में 37वें राजा अजय पाल थे। अजयपाल 15 गते कार्तिक संबंत 1415 को 1415 को गद्दी पर बैठे। 31 वर्ष शासन करने के उपरांत 59 वर्ष की उम्र में उसका निधन हो गया। वे राजा आनंदपाल के पुत्र थे । अजय पाल को ही गढ़वाल का प्रथम शासक भी माना जाता है। अजय पाल ने अपने शासनकाल के कुल 18 वर्षों तक युद्ध लड़े। संपूर्ण गढ़वाल के 52 गढ़ों को एकीकृत कर गढ़वाल शब्द व गढ़देश की नींव रखी। अजय पाल  चांदपुर गढ़ी से राजधानी हटाकर पहले तो देवलगढ़ और फिर श्रीनगर ले आए थे। गढ़वाल वास्तव में एक दुर्ग समान था, वहां प्रवेश के लिए चार कोट तथा द्वार थे। जो कि आज के कोटद्वार और हरिद्वार हैं।

गढ़ नरेश के मंत्री रहे पं. हरिकृष्ण रतूड़ी अपनी पुस्तक –गढ़वाल का इतिहास- में लिखते हैं कि –अजयपाल ने जिन राजाओं को युद्ध में जीता था, उनके वंशजों को समाप्त नहीं किया। बल्कि उन्हें जागीर, माफी व थोकदारियों तथा अपने सैन्य विभाग,  न्याय विभाग आदि उच्च पद देकर उनके हृदय को भी जीतने में सफलता पाई। इतिहासकार डा. संतन सिंह  सिंह नेगी अपनी पुस्तक — मध्य हिमालय का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में लिखते हैं कि इससे साफ है कि अजय पाल उच्च कोटि का राजनीतिक और कूटनीतिक व योग्य शासक था। यह मुगल सम्राट अकबर जैसा कार्य था, जिसने राजपूत राजाओं को जीत कर उन्हें उनके राज्य वापस करके अपनी सेना और न्याय विभाग के बड़े-बड़े पदों पर नियुक्त किया था। अजय पाल ने भी अपने राज्य की सीमा निर्धारित करके परगने व पट्टियों को व्यवस्थित किया।  अपने राज्य का नाम गढ़वाल रखा। अपने राज्य की आंतरिक शांति एवं सीमा ठिकानों की सुरक्षा के लिए  विभिन्न स्थानों में सेना का प्रबंध किया था।  

गढ़वाल में पांवड़ा भी प्रचलित है। इसके तहत अजय पाल सीमा सुरक्षा हेतु सैनिकों को निर्वाह के लिए जागीरें देता था। इससे सीमांत के सैनिक सच्चे दिल से राज्य की सुरक्षा करते थे। इससे एक गढ़वाल एक शक्तिशाली राज्य बन गया था व आंतरिक शांति भी निरंतर बनी रही ।

अजै पाल ( Garh Naresh Ajai Pal)ने माप तोल का मानकीकरण करते हुए अनाज मापने के लिए एक धुलीपाथा का निर्माण किया था। नापतोल पद्धति के लिए अजय पाल अपने राज्य में एक समान पद्धति लाया। उन्होंने एक निश्चित नाप का  पाथा बनाया। जो कि लगभग दो किलो के बराबर था। यह अन्न नापने के प्रयोग आता था। देवलगढ़ के गौरजा मंदिर के आंगन की दीवार पर शिलालेख है।– अजै पाल का धर्म पाथो भंडारी करों।  आज भी गढ़वाल में देव पूजन के समय पाथे अन्न भरकर उसके ऊपर दीप जला कर रखा जाता है। इसे द्यौ पाथा या देवलिया पाथा कहा जाता है।  गढ़वाल में इससे अनाज के साथ ही घी,तेल भी नपा जाता था। अजय पाल की सीमा निर्धारण को गढ़वाल की लोकोक्तियों में अजय पाल का ओडा कहा जाता है। यह उनकी तटस्थ सीमा को अंकित करता था।सांवरी नामक संस्कृत ग्रंथ में राजा अजयपाल को आदिनाथ के नाम से संबोधित किया गया है, राजा अजयपाल एक सिद्ध विभूति थे।

इसी तरह अजै पाल ने सामाजिक भेदभाव की समस्या को कम किया था। तब ब्राह्मण व राजपूतों की उपजाति में अनेक भेदभाव थे। वे एक-दूसर का पकाया  भोजन नहीं खाते थे। अजै पाल ने अपने पुरोहितों और रसोइया सरोला ब्राह्मणों के पकाए गए भात को सुचि यानी स्वच्छ मानने का प्रथा प्रचलित की। यानी  सरोलाओं के पकाए भात को सभी लोग खाने लगे थे। यह प्रथा आज भी गढ़वाल में चल रही है।

कुमायुं के चंद  नरेश कीतिचंद के साथ युद्ध और सम्मानजनक संधि के बाद उनका चंदों के साथ युद्ध का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।  चंद नरेश कीर्ति चंद के निधन के पश्चात अजै पाल के शासनकाल में कुमायुं नरेशों के साथ सीमा क्षेत्रों में शांतिपूर्वक संबंध रहे। इस काल में अजै पाल ने अपने राज्य की आंतरिक सुरक्षा में सुधार किया। उनके शासनकाल में दिल्ली के मुसलिम राजाओं के आपसी संघर्ष हो रहे थे। इस कारण दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में शांति बनी रही। प्रसिद्ध इतिहासकार डा.शिव प्रसाद डबराल चारण के अनुसार  मैदानी क्षेत्रों में हिंदुओं पर मुसलमानों के अत्याचार होने से उनकी दशा अत्यंत दयनीय थी। इसलिए मैदान से कुछ हिंदू गढ़वाल में बसे। बिना भेदभाव के अजै पाल ने सभी को आश्रय दिया।

अंग्रेज लेखक एटकिंसन ने अजै पाल  ( Garh Naresh Ajai Pal)के श्रीनगर के राजप्रसाद का विस्तार से वर्णन किया है। यह राजप्रसाद कलात्मक ढांचा था।  श्रीनगर  में अजय पाल की निर्मित राजधानी के अवशेष वर्तमान समय में विद्यमान नहीं है। 1803 के भूकंप में यह ध्वस्त हो गई थी और इसके अवशेषों को सन 1894 में अलकनंदा की बाढ़ ने बहाकर पूर्णता समाप्त कर दिया था। पं. हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार सन 1512 में अजै पाल ने देवलगढ़ में सत्य नाथ भैरव के मंदिर तथा राजराजेश्वरी के यंत्र की स्थापना की। अजय पाल का नाथ पंथ से घनिष्ठ संबंध था।  इस बात का उल्लेख अनेक ग्रंथों में मिलता है। नाथ सिद्धों में राजा भर्तृहरि व गोपीचंद के नाम के साथ ही नाथ या पाद शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। अजै पाल को नाथ गुरु में पांचवा स्थान दिया गया है ।  संभवत: इसलिए कि उन्होंने गढ़वाल में नाथ पंथ के प्रचार प्रसार में भारी योगदान दिया था। डा. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल के अनुसार अजय पाल की सत्यनाथ के प्रति अपार श्रद्धा उनके नाथ पंथ से संबंध की द्योतक है । डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार अजय पाल गुरुगोरख नाथ की शिष्य परंपरा के थे और उन्होंने कपिलानी शाखा का विकास किया।

अजै पाल से कई रोचक कहानियां और तथ्य जुड़े हुए हैं। कहा जाता है कि अजै पाल अल्प जब अल्प अवस्था के थे तो उनके पिताजी की अकस्मात मृत्यु हो गई  थी। इस कारण वे अल्प आयु में ही गद्दी पर बैठे । परंतु इस अवसर का लाभ उठाकर एक स्थानीय राजा ने उन पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में बालक अजय पाल के आंखों के सामने उनके प्रधान सेनापति को मार दिया गया। इससे भयभीत बालक अजै पाल युद्ध क्षेत्र छोड़ कर एक ऊंचे पहाड़ पर चले गए । वे कई दिन तक वहां रहे। कहा जाता है कि एक दिन उस बालक अजै पाल पर सतनाम भैरव की दृष्टि पड़ गयी। भैरव ने अजै पाल को वरदान दिया कि आज से इस संपूर्ण क्षेत्र पर तेरा अधिकार होगा और तू युद्ध में कभी पराजित नहीं होगा। जिसके बाद अजयपाल ने पुन: सेना का संगठन कर उस राजा को पराजित कर लिया था।

यह भी कहा जाता है कि एक बार राजा अजै/ अजयपाल ( Garh Naresh Ajai Pal)आखेट करने के लिए श्री क्षेत्र यानी श्रीनगर गए। जहां उनके साथ उनका शिकारी कुत्ता भी था। वह बहुत ख़तरनाक था। कुत्ता कई मील दूर होने वाली छोटी सी हलचल को भी भांप लेता था व अजै  पाल के अंगरक्षकों से पहले ही खतरे को भांपकर उसे खत्म कर देता था। परंतु उस दिन अचानक कंही से एक बाण आया और कुत्ते को लग गया। इससे कुत्ते की मृत्यु हो गयी। कुत्ते की मृत्यु से अजै पाल बहुत  दु:खी हुआ। परंतु उसे आश्चर्य हुआ की जो कुत्ता कई मील दूर तक की छोटी सी हलचल को भी भांप लिया करता था,  वह आज इस घटना को क्यों नहीं भांप पाया। राजधानी चांदपुर गढ़ी लौटने पर अजै पाल को स्वपन में मां राजराजेश्वरी ने दर्शन दिए और आदेश दिया की अपनी राजधानी श्रीनगर स्थापित कर दे। जब तक तेरी राजधानी वहां रहेगी तू अपराजित रहेगा। तेरे बाद भी तेरे वंशज सैकड़ों सालों तक वंहा राज्य करेंगे। अजै पाल को यह भी कहा  कि जिस बाण से कुत्ते की मौत हुई,वह बाण तेरे लिए था, परंतु दैव कृपा से तेरे प्राणों की रक्षा हुई। बाण  पाल  मां राजराजेश्वरी का आदेश का पालन कर 1517 ई में अपनी राजधानी श्रीनगर ले आए। वहां उन्होंने श्रीयंत्र राजराजेश्वरी की स्थापना की।

अजै पाल ( Garh Naresh Ajai Pal) के जीव वृतांत, उसके लिए निर्णयों, कार्यप्रणाली से लेकर सामरिक एवं प्रशासनिक उपलब्धियों से विदित होता है कि वे एक महान विजेता, सेनानायक, कुशल शासक तथा राष्ट्र निर्माता थे।  अजै पाल की सामरिक एवं प्रशासनिक उपलब्धियों से विदित होता है कि वे एक महान विजेता, सेनानायक, कुशल शासक तथा निर्माता थे। अजै/ अजयपाल के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए भरत कवि लिखता है कि अजय पाल के नाम को सुनकर शत्रुओं के हृदय कंपित होते थे। वे युद्ध में युधिष्ठिर के समान थे। वे गुणवानों के आश्रय दाता थे। गदा युद्ध में भीमसेन के समान थे। उनको कुबेर के समान ऐश्वर्य संपन्न तथा धरती पर देवताओं व विद्वानों  से घिरे इंद्र और कृष्ण के समान माना जाता था।  राहुल सांकृत्यायन ने भरत कवि के इस उल्लेख को सही माना है। अजै पास सभी धर्मों एवं संप्रदायों का सम्मान करने वाले राजा थे। अजय पाल की गणना गढ़वाल ही नहीं, संपूर्ण हिमालय क्षेत्र व भारत के महानतम शासकों में की जाती है। इस नरेश ने विकट परिस्थितियों में भी छोटी छोटी गढ़ियों को जीतकर गढ़वाल राज्य की स्थापना की थी। पराजित गणपतियों के साथ सहानुभूति पूर्वक व्यवहार किया। अजै पाल ने गढ़वाल को एकता के सूत्र में बांध दिया था।  उनका नाम सदैव महानतम व श्रेष्ठतम राजाओं में गिना जाएगा।

यह था गढ़वाल को एक सूत्र में बांधने वाले महान राजा अजैपाल  ( Garh Naresh Ajai Pal)की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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