अकबर ने की उत्तराखंड समेत भारत के चीतों को विलुप्त करने की शुरुआत

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मुगल राजा अकबर के पिंजड़े में थे नौ हजार चीते

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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 आप को यह तो मालूम ही होगा कि भारत में चीते (Chita/ Cheetah ) विलुप्त  हो चुके हैं। कहीं- कहीं चिडियाघरों में चीते अवश्य दिख जाते हैं। लेकिन जंगलों में एक भी चीता (Chita/ Cheetah ) नहीं है। विश्व में मात्र अफ्रीका और ईरान में ही चीते बचे हैं। भारत सरकार 1952 में चीता को विलुप्त प्रजाति घोषित कर चुकी है। बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के दस्तावेजों के अनुसार भारत में तीन अंतिम चीतों को 1947 में छत्तीसगढ़ के कोरिया क्षेत्र के रामगढ़ गांव के जंगल में राजा रामानुज प्रताप सिंहदेव ने मार गिराया था। रामानुज प्रताप सिंहदेव के निजी सचिव ने ही महाराज की तस्वीर के साथ पूरी जानकारी बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी को भेजी थी। इसके बाद भारत में कभी भी चीता को नहीं देखा गया।

चीता (Chita/ Cheetah ) शब्द संस्कृत के ‘चित्राकु’ शब्द का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ है धब्बेदार। पूरे विश्व में इसे चीता कह कर ही बुलाया जाता है। यह आश्चर्य का विषय है कि वन क्षेत्रों से जुड़े चरागाहों में रहने वाले संसार के इस सबसे तेज गति से दौड़ने वाले प्राणी को लुप्त करने में मनुष्य जाति ही जम्मेदार रही है। चीतों की विलुप्ति के कई कारण रहे हैं। एक तो पहले के राजा और बादशाह, नवाब आदि सभी शेर, चीता आदि का शिकार करना गर्व की बात समझते थे। इनकी खाल को पाने के लिए भी इसका शिकार होता रहा। इसके अलावा जानवरों के शिकार के लिये चीता को पालतू बनाया जाना भी दूसरा बड़ा कारण रहा। पिंजड़े या कैद में रहने पर चीता प्रजनन नहीं करते हैं। इस कारण उनका वंश भी घटता चला गया। दरअसल, पुराने राजा, नवाब, जमीदार आदि चीतों का प्रयोग शिकार के लिए करते थे। इनकी मदद से अन्य वन्य पशुओं को पकड़ा जाता था। यह कह सकते हैं कि चीते तब कुत्तों की तरह आसानी से पाले जाते थे।
प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शित्तप्रसाद डबराल चारण अपनी पुस्तक—उत्तराखंड के इतिहास भाग चार- गढ़वाल का इतिहास में लिखते हैं कि – युवावस्था में अकबर को शिकारी चीते (Chita/ Cheetah ) अति प्रिय थे। वह चीतों की सहायता से आखेट करने में बड़ा उत्सुक रहता था। अपने शासनकाल में अकबर ने लगभग नौ हजार चीते एकत्रित किए थे। गढ़देश के भाबर क्षेत्र चीतों की मांग सारे मुगल काल में बनी रही। आपस में लड़ाने के लिए नाना प्रकार के हिरणों को बढ़िया उपयोगी समझा जाता था। इसलिए भाबर के हिरणों की भी बड़ी मांग रहती थी।.
अकबर के पुत्र जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी में लिखा है कि उसके पिता ने अपने जीवनकाल में नौ हजार चीतों को पाला था। अर्थात अकबर ने 49 वर्षों के शासनकाल के दौरान अपने चिड़ियाघर में लगभग नौ हजार चीते (Chita/ Cheetah ) रखे थे। ऐसा नहीं है कि अकबर से पहले किसी ने चीते नहीं पाले थे। इतिहास में पहली बार चीता पालने का साक्ष्य संस्कृत ग्रंथ मनसोल्लास में मिलता है। इसकी रचना 1129 ई. में चालुक्यवंश के राजा सोमेश्वर तृतीय ने की थी। परंतु, अकबर ने इतनी बड़ी संख्या में चीते पाले कि इससे उसके दरबारियों व नबाबों, राजाओं ने भी बड़ी संख्या में चीते पालने शुरू कर दिए। इस तरह मध्यकालीन भारत में शिकार के लिये चीता का प्रयोग बढ़ गया था। मुगलों, नवाबों, राजाओं, ज़मीदारों और उनके बाद अंग्रेजअफसरों ने भी यही काम जारी रखा। शिकार के लिए चीता तथा उनके शावक बड़ी संख्या में जंगलों से लाए गए। यह सिलसिला 18वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में अपने चरम पर पहुंच गया था। तब किसी जंगल से पकड़ कर लाए गए चीते को छह महीने के अंदर प्रशिक्षित किया जा सकता था। इन चीतों को जंजीर से बांध कर रखा जाता था। कहा जाता है कि उस कालखंड में एक प्रशिक्षित चीते की कीमत 150 रुपए से 250 रुपए के बीच थी। जबकि जंगल से पकड़े गए किसी चीते की कीमत लगभग 10-15 रुपए होती थी। इस तरह धीरे-धीरे चीता भारत में इतिहास का हिस्सा बन गया। यह जानने लायक है कि अकबर को महान घोषित करने वाले दरिद्र मानसिकता के इतिहासकारों ने कभी भी उसके इस कुकर्त्य पर एक पंक्ति नहीं लिखी।
चीते (Chita/ Cheetah ) के विलुप्त होने का अन्य कारण यह है कि अंग्रेजों ने उसे हिंसक वन्य पशु घोषित कर दिया था। वर्ष 1880 में विशाखापत्तनम के गवर्नर के एजेंट ओबी इरविन पर शिकार के दौरान एक चीते ने हमला कर दिया। इससे उसकी मृत्यु हो गई। जबकि यह पालतू चीता विजयनगरम के राजा का था। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार ने चीता को हिंसक जानवर घोषित कर दिया और इसको मारने वालों को पुरस्कार की घोषणा कर दी।
इससे अलावा चीते (Chita/ Cheetah ) के विलुप्त होने का एक कारण यह भी है कि वह कैद होकर प्रजनन नहीं करते हैं। इससे उनके बच्चे नहीं होते हैं। जब हजारों चीते कैद हो गए थे तो उनका वंश भी घटता चला गया। इसके अलावा चीतों के बच्चे बड़ी मुश्किल से बचते हैं। यह भी इस जानवर के विलुप्त होने बड़ा कारण है। अफ्रीका में 90 के दशक में हुए एक अध्ययन के अनुसार चीतों (Chita/ Cheetah ) के 95 फीसदी बच्चे, वयस्क होने से पहले ही मर जाते हैं। हालांकि 2013 में अफ्रीका के एक अन्य अध्ययन से यह बात सामने आई कि चीतों के के बच्चों के बचने की उम्मीद 36 प्रतिशत तक ही होती है। एक कारण यह भी है कि मादा और नर चीता के बीच देह संबंध के अलावा कोई रिश्ता नहीं होता।इसलिए 7 से 9 बच्चों को पैदा करने के बाद मादा चीता को इन सभी की देखभाल अकेले करनी पड़ती है। इतने बच्चों के लिए शिकार लाना और इन बच्चों को दूसरे जानवरों से बचाना, मादा चीता के लिए बड़ी चुनौती होती है। चीतों के शावक आए दिन शेर, लकड़बग्घे, बबून और शिकारी परिंदों के शिकार हो जाते हैं।
भारत में विलुप्त हो चुके चीतों को फिर से बसाने के प्रयास भी होते रहे हैं। पहले तो 70 के दशक व फिर 2013 में भारत में चीता को बसाने की पहल हुई। 2013 में अफ्रीका से चीता लाने की योजना थी। योजना पर अमल के लिये मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 10 स्थानों का आरंभिक रूप से चयन भी किया गया था। परंतु 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चीतों (Chita/ Cheetah ) को फिर से बसाए जाने की योजना पर रोक लगा दी थी। बाद में जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ शर्तों के साथ अफ्रीका से चीता लाने को हरी झंडी दिखा दी। अब देखना है कि इस योजना पर कब अमल हो पाता है।
यह था चीता का विलुप्त होने की गाथा। जै हिमालय, जै भारत।
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