लुटेरे तुर्क-मुगलों को खदेड़ने वाले असम के वीर अहोम

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हिमालयी लोगों के साथ पक्षपात करते रहे हैं मैदानी इतिहासकार

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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यह सोचनीय विषय है कि  हिंदी भाषी लोग भारत (India) के अन्य क्षेत्रों के लोगों के बारे में बहुत कम जानते हैं। भारत का इतिहास भी दिल्ली के धर्मांध व लुटेरे तुर्कों, मुगलों (Mugal) पर केंद्रित होकर लिखा गया है। इस कारण भारत के कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों के महान राजाओं व लोगों की गाथाएं भुला दी गई हैं। असम के इन वीर  अहोमों ने धर्मांध व लुटेरे पठान, तुर्क व मुग़ल आक्रमणकारियों को भारत के पूर्वोत्तर भाग में घुसने नहीं दिया। जबकि ये लुटेरे मुगल पूरे भारत पर अपना अधिकार कर चुके थे।

हिमालय पर्वत श्रृंखला पूर्वोत्तर तक फैली हैं। इसी के तहत असम राज्य भी है। प्राचीन ग्रंथों में असम को प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता रहा है। पुराणों के अनुसार यह कामरूप राज्य की राजधानी था। महाभारत के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और असम की उषा नाम की युवती  का विवाह हुआ था। महाभारत काल में यहां का राजा नरकासुर था। उसके बाद उसका पुत्र भगदत्त राजा बना। महाभारत काल से लेकर सातवीं सदी के मध्य काल तक यहां भास्करवर्मन  के शासनकाल तक एक ही राजवंश का शासन रहा। महाकाव्यों और पुराणों के अनुसार यह भगवान विष्णु के वराह अवतार और पृथ्वी का पुत्र था। इसलिए इस वंश को भौम अर्थात भूमि का पुत्र भी कहा जाता है। इस राजवंश के शिलालेखों में दावा किया गया है कि राजा भागदत्त और उसके उत्तराधिकारियों ने कामरूप पर लगभग तीन हजार वर्षों तक शासन किया। उनके बाद पुष्यवर्मन राजा हुआ जो कि समुद्रगुप्त का समकालीन था। इसके बाद मध्यकाल में यहां अहोम लोगों का शासन आया। सन् 1228 में बर्मा के एक ताई विजेता चाउ लुंग सिउ का फा ने पूर्वी असम पर अधिकार कर लिया। वे अहोम वंश के थे, औरउन्होंने  अहोम वंश की सत्ता स्थापित की। अहोम वंश का शासन 1829 तक रहा। बाद में यहां अंग्रेजों का शासन रहा। असम को सामान्य तौर पर आसाम कहा जाता है।

मान्यता है कि असम (Assam) का नाम इसी अहोम राजवंश से कारण पड़ा। हालांकि यह भी कहा जाता है कि असम नाम संस्कृत के शब्द अस्म अथवा असमा का अपभ्रंश है। जिसका शाब्दिक अर्थ है, — वह भूमि जो समतल नहीं है। यह भी कहा जाता है की संस्कृत के असोमा शब्‍द से असम बना, जिसका अर्थ है अनुपम अथवा अद्वितीय। प्राचीन काल से यहां की पहाड़ियों और घाटियों में (Khas) खस व वैदिक आर्य, आस्ट्रिक, मंगोलियन, द्रविड़ समेत  विभिन्‍न जातियां समय-समय पर आकर बसती रहीं।  इन सभी ने मिलकर असमिया संस्कृति का निर्माण किया। इस तरह आज के अहोम लोग और उनकी संस्कृति मूलत: ताई संस्कृति, स्थानीय तिब्बती-बर्मी और हिंदू धर्म (Hindu) से मिलकर बनी है। मणिपुर को छोड़कर पूर्व के बाकी राज्य कभी असम में शामिल थे, परंतु  बाद में असम से ही छोटे-छोटे राज्य बना दिए गए।

अब असमिया समाज की बात करते हैं। अहोम उत्तरी बर्मा में रहने वाली शान जाति के लोग थे। अहोम साम्राज्य के संस्थापक छोलुंग सुकफा  थे।  इस वंश  ने 13वीं शताब्दी से 18 वीं सदी यानी छह शताब्दियों तक असम पर शासन किया था। छोलुंग सुकफा (Chaolung Sukapha)के नेतृत्व में अहोमों ने असम के पूर्वोत्तर क्षेत्र पर 1228  में आक्रमण कर इस पर अधिकार कर लिया। उस कालखंड में असम पर आक्रांता मुसलमानों के भी आक्रमण हो रहे थे। धीरे-धीरे अहोम लोगों ने असम के लखीमपुर, शिवसागर, दारांग, नवगांव और कामरूप जिलों में अपना राज्य स्थापित कर लिया। अहोम राजाओं की राजधानी शिवसागर ज़िले में वर्तमान जोरहाट के निकट गढ़गांव  में थी। इस तरह असम में अहोम राजाओं का राज्य सन 1228 से 1835 तक रहा। इस अवधि में 39 अहोम राजा गद्दी पर बैठे। अहोम लोगों का 17वां राजा प्रतापसिंह (1603-41) और 29वां राजा गदाधर सिंह (1681-83) बड़े प्रतापी  थे। प्रताप सिंह से पहले के अहोम राजा अपना नाम अहोम भाषा में रखते थे।  लेकिन प्रताप सिंह ने संस्कृत नाम अपनाया और उसके बाद के राजा लोग दो नाम रखने लगे-एक अहोम और दूसरा संस्कृत भाषा का। अहोम लोगों का पहले अपना अलग जातीय धर्म था, लेकिन बाद में उन्होंने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया। उनकी अपनी भाषा और लिपि भी थी। परंतु धीरे-धीरे उन्होंने असमिया लिपि को अपना लिया था।  यह संस्कृत व बांग्ला लिपि से मिलती जुलती है। कहा जाता है कि  अहोम राजाओं ने असम में अच्छा शासन प्रबंध किया। वे अपने शासन का पूरा लेखा रखते थे, जिन्हें बुरंजी कहा जाता था। इस कारण अहोम और असमिया दोनों भाषाओं में बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध है। अहोमों ने भुइयां यानी  जमींदारों की पुरानी राजनीतिक व्यवस्था को समाप्त कर एक नया राज्य बनाया था। अहोम राजाओं ने हमेशा ही कवियों और विद्वानों और रंगमंच को प्रोत्साहित किया। उनके शासन काल में संस्कृत कि कई महान रचनाओं का स्थानीय भाषा में अनुवाद किया गया। अहोम राजा राज्य की सेना का सर्वोच्च सेनापति भी होता था। युद्ध के समय सेना का नेतृत्व राजा स्वयं करता था और पाइक राज्य की मुख्य सेना थी।  ये पाइक दो प्रकार के होते थे।अहोम सैनिकों को गोरिल्ला युद्ध  में महारथ हासिल थी। उनकी जल सेना भी थी।

अहोम राजा हिन्दू थे। मुगलों ने इनके राज्य को अपने आधीन  करने के लिए कई अभियान चलाए परंतु उनको भी हार का सामना करना पड़ा। जिस तरह से राजस्थान के कई राजपूत घराने हमेशा ही मुगलों से ट्क्कर लेते रहे, उसी तरह असम के अहोम भी हमेशा मुगलों, तुर्कों,पठानों से लड़ते रहे और उनका मार भगाते रहे। एक आध बार मुगल अपने मकसद में सफल भी हुए परंतु बाद में उनको भार भगा दिया गया। विडंबना देखिए कि भारत के मैदानी क्षेत्रों के धूर्त इतिहासकारों ने उनका उल्लेख सही तरीके से नहीं किया। बाद में अंग्रेजों से समय 1832 में ब्रिटिश शासकों ने कुटिलता से अहोम राज्य को अपने नियत्रण में ले लिया था। इस तरह  अहोम राज्य पूरी समाप्त हो गया। देश की स्वतंत्रता के बाद असम भारत का एक राज्य बन गया।

दोस्तों यह थी असम के अहोम जाति का इतिहास। अगली कड़ी में महान अहोम वीर लाचित बोड़फुकन को लेकर जानकारी दूंगा।

 

 

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार आपको सूदूर मां कामाख्या के मंदिर क्षेत्र  के प्रांत असम ( Assam) के अहोम समाज को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। इसी अहोम ( The Ahom ) शब्द से असम का नामकरण हुआ है। जब तक मैं इस कहानी को आगे बढ़ाता हूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख Lutere Mugalon ko Khadedane wale assam ke veer Ahom को हिमालयीलोग वेबसाइट (www.himalayilog.com ) में पढ़ भी सकते हैं।

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