उत्तराखंड के लोकसंगीत जानिए
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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रणिहाट नि जाणो गजेसिंह । मेरो बोल्युं मान्याली गजेसिंह ।। आपने यह गीत अवश्य सुना होगा। कौथिग, मेलों में इसे लोग सामूहिक तार पर गाते रहे हैं। यह गीत इस तरह है।
रणिहाट नि जाणो गजेसिंह । मेरो बोल्युं मान्याली गजेसिंह ।।
हलजोत का दिन गजेसिंह । तू हौसिया बैख गजेसिंह ।।
छिः दारु नी पेणी गजेसिंह। रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह ।।
सया तीला बाखरी गजेसिंह । छाट्ट -छाट्ट छींकदी गजेसिंह ।।
बड़ा बाबू का बेटा गजेसिंह । रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह ।।
त्यरा कानू कुंडल गजेसिंह ।त्यरा हाथ धागुला गजेसिंह । ।
त्वे राणि लूटली गजेसिंह । रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह
तौन मारे त्यरो बाबू गजेसिंह । वैर्यों को बंदाण गजेसिंह ।।
त्वे ठोंरी मारला गजेसिंह । रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह
आज न भोल गजेसिंह । भौं कुछ ह्वे जैन गजेसिंह ।
मर्द मरि जाण गजेसिंह । रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह ।।
बैरियों का बदाण गजेसिंह, सांपू का डिस्याण, गजेसिंह ।।
बोल रइ जाण गजेसिंह । रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह ।।
तेरो बाबू मारेणे गजेसिंह, राणिहाट नी जाणू गजेसिंह
बड़ा बाबू को बेटा गजेसिंह, दरोलो नी होणो, गजेसिंह
मर्द मरी जाँदा गजेसिंह, बोल रई जांदा, गजेसिंह।
रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह । मेरो बोल्युं मान्याली गजेसिंह ।।
वास्तव में, हिमालयी क्षेत्र का लोक संगीत बहुत ही अदभुद और कर्णप्रिय है। वेदों और पुराणों की रचना इसी क्षेत्र में हुई। अर्थात वेदों की ऋचाएं भी यहीं गाई गईं। यही परंपरा आज भी जारी है। जन्म व विवाह के मांगल गीतों व देव पूजन के जागरों से लेकर विभिन्न अवसरों पर यहां गीत गाए जाते रहे हैं। दुख व पीड़ा के भी गीत हैं। प्रसन्नता के गीत भी हैं। इन गीतों में लोगों के सुख-दुख के साथ ही लोकगाथाओं का भी उल्लेख होता है। ये गीत क्षेत्र-विशेष की परंपराओं, लोकविश्वासों एवं ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित गेय आख्यान हैं। उत्तराखंड के लोकगीत व संगीत में आदिकाल के इतिहास की झलक भी मिलती है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए गाए जाने वाले जागर समेत विभिन्न विधाओं के गीत मिलते हैं। आदिकाल से ही संगीत और नृत्य को देवताओं को प्रसन्न करने का एक साधन माना जाता रहा है। इसलिए यहां केदारखंड में देवताओं के पूजन व कहानियों का उल्लेख भी गायन में मिलता है। इनमें रामायण से प्रेरित रम्माण, महाभारत से प्रेरित चक्रव्यू, पांडवों से प्रेरित पांडव नृत्य आदि प्रमुख हैं। वीरों की याद में पांवड़े भी गाए जाते हैं। यहां असंख्य गाथागीत परंपराओं के रूप में संरक्षित हैं । इनके अलावा उत्तराखंड में कई तरह के पारंपरिक लोकगीत भी हैं।
उत्तराखंड के पहले के गीतों में पीड़ा, विरह आदि बहुत दिखती है। परंतु समय बदलने के साथ इनका स्वरूप बदल रहा है। परंतु लोकगीत सदियों से अपनी विशेषताओं को लिए हुए हैं। खेतों में काम करते हुए या जंगल में चारा इकट्ठा करते हुए महिलाएं इन लोकगीतों को गाती रही हैं। इनके अलावा मेलों या सामूहिक तौर पर कई तरह के गीत गाए जाते रहे हैं। इनमें चौफला, झोडा और थदया प्रमुख विधा है। इनके साथ ही विरह के खुदेड गीतों का अपना महत्व रहा है। यहां के गीतों में प्रमुख तौर पर बसंती गीत, मांगल गीत, छोपाटी, होली गीत, बाजूबंद नृत्य गीत, खुदेड गीत, चौफला गीत, जागर, कुलाचार या विरुदावली गीत, चौमासा गीत आदी हैं। यहां के गीतों में दर्द भी है, मिठास भी है, उल्लास भी है। जीवन का हर रंग व रस इनमें है।
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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार उत्तराखंड की सबसे प्रसिद्ध चौफला– — रणिहाट नि जाणो गजेसिंह — की याद दिला रहा हूं। पहाड़ का यह लोकप्रिय गीत चौफला की श्रेणी में आता है। इस बारे में जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।
दोस्तों यह था– रणिहाट नी जाणू, गजेसिंह—चौफला के बहाने पहाड़ के गीतों का उल्लेख व आपकी स्मृतियों को खंगलाने का प्रयास। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।
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