परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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यह कहानी सिक्किम (Sikkim) की प्रसिद्ध लोक कथा है। बहुत पुराने समय की बात है। सिक्किम के राजा ने राज्य का पशु का निर्णय किया। परंतु प्रश्न यह था कि राज्य पशु कौन होगा ।इसके लिए राजा ने सभी पशुओं को बुलाया गया, ताकि राज्य पशु का चुनाव किया जा सके। इस उद्देश्य से उन्होंने सभी पशुओं की सभा बुलाई। राज्य के सारे सय समर पर पशु सभा में उपस्थित हो हुए। मंगन के जंगल से पांडा परिवार के नेता मिस्टर पांडीज्यान को विशेष रूप से इस सभा के लिए गंगटोक आमंत्रित किया गया था। उस सभा में पांडीज्यान (Panda) सिक्किम का राज्य पशु चुना गया।
राज्य पशु चुने जाने पर पांडीज्यान (Panda) बहुत प्रसन्न था। वह खुशी से फूला ना समा रहा था। वह सतरंगी सपने देखने लगा था कि अब उसका जीवन राजमहल के उद्यान में आराम से बीतेगा। उसे अच्छा खाना आदि मिलेगा। सेवक उसकी सेवा-सुश्रुषा करेंगे। उसकी मौज-मस्ती रहेगी। अब उसकी जिंदगी विलासिता से बगीचे में बीतेगी। राजमहल जाने से पहले ही उसका अपने साथियों के प्रति व्यवहार बदल गया था। उसे घमंड आ गया था। यह अहंकार से भर गया था। अब वह अपने मित्रों को नीचा समझने लगा था। पांडा (Panda) अपने मित्रों को भूल गया था। क्योंकि वह अब राज्य पशु जो चुन लिया गया था। जंगल के उसके साथी उसके इस व्यवहार पर दु:खी थे, किंतु वे कर भी क्या सकते थे।
कुछ दिनों बाद राजा के सिपाही जंगल आए और पांडीज्यान (Panda) को अपने साथ ले गए। पांडीज्यान खुशी-खुशी राजमहल आया। वहां उसे उद्यान के एक चिड़ियाघर में ले जाकर एक पिंजरे में कैद कर दिया गया। उस चिड़ियाघर में और भी कई पशु-पक्षी कैद थे१ कई पांडा भी वहां पहले से ही कैद थे। पहले तो पांडीज्यान (Panda) को कुछ समझ नहीं आया, किंतु धीरे-धीरे वहां की स्थिति ज्ञात होती गई। वहां उसे स्वतंत्रतापूर्वक घूमने की मनाही थी। उसके देखभाल की अच्छी व्यवस्था भी नहीं थी। खाने-पीने की स्थित भी खराब थी। कुछ दिनों में ही उसे जंगल के मौज-मस्ती भरे जीवन और अपने साथियों की याद आने लगी थी। उसे अपने साथियों के प्रति किये बुरे व्यवहार पर आत्म-ग्लानि भी महसूस होने लगी थी। राजमहल के चिड़ियाघर में रहते-रहते वह दु:खी हो गया। वह किसी भी तरह वहां से निकल भागना चाहता था। परंतु उसे कोई रास्ता दिखाई न पड़ रहा था। अब तो वह ढंग से खाता-पीता भी ना था। वह धीरे-धीरे दुर्बल होने लगा था। वह दिन भर पिंजरे के एक कोने में बैठा रहता था।
पांडा (Panda) पहले से ही दु:खी था, इस पर एक रात एक मुसीबत और उस पर टूट पड़ी। एक खूंखार चीते ने उस पर हमला कर दिया और उसे मौत के मुंह तक पहुंचा दिया। पांडीज्यान को लगा कि उसका अंत समय निकट है, किंतु साथी पशुओं ने उसके प्राण बचा लिए और उसे वहां से भागने में भी सहायता भी की। पांडीज्यान भागकर अपने घर मंगन के जंगल पहुंच गया। वहां वह अपने परिवार वालों और साथियों से मिला। उन्हें राजमहल के उद्यान का पूरी कहानी सुनाई । उसने अपने व्यवहार के लिए उनसे क्षमा मांग ली। सभी ने उसे क्षमा कर दिया था। पांडा पहले की तरह उनके साथ खुशी-खुशी जंगल में रहने लगा। अब जंगल में वह पिंजड़े से मुक्त होकर अपनों के बीच आराम से घूम-फिर रहा था। अब उसे किसी प्रकार का खतरा भी नहीं था। वहां वह स्वतंत्र था। पांडा (Panda) ने सबक सीख लिया था कि कि बड़ा बन जाने पर भी परिवार, संबंधियों और मित्रों को नहीं भूलना चाहिए। जीवन में कितनी ही प्रगति क्यों न कर लो, अहंकार से सदा दूर रहना चाहिए। दूसरों से सदा अच्छा व्यवहार करना चाहिए। पांडा को जीवन की शिक्षा मिल गई थी।
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दोस्तों जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार सिक्किम की प्रसिद्ध लोक कथा -कहानी पांडा की (Kahani Panda Ki Sikkim Ki Lok Katha) सुना रहा हूं। जब तक मैं इस लोककथा को शुरू करूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।
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