पूर्वोत्तर के लोगों को चिंकी कहने पर पांच साल की जेल क्यों न हो?
फाइलों में क्यों धूल फांक कर ही है बैजबरुआ कमेटी की रिपोर्ट
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राएं लंबे समय से दिल्ली विश्वविद्यालय में अपने लिए चिंकी(Chinki), मोमो, नेपाली, बहादुर, चाउमीन , चीनी जैसे संबोधन सुनते रहे हैं। परंतु कोराना वायरस के कहर के बाद पूर्वोत्तर के लोगों के लिए कोराना वायरस तक कहा गया। ऐसा नहीं है कि सिर्फ देश की राजधानी दिल्ली में ही ऐसा कहा गया हो, बल्कि अपने को सबसे ज्यादा आधुनिक कहने वाले मुंबई लोग भी इस ओछी हरकत में शामिल रहे। ऐसी ओछी हरकतें कई अन्य शहरों में भी होती रही हैं। यह कोई आरोप नहीं है, बल्कि उस दौर के समाचार पत्रों के समाचार भी इस बात के साक्षी हैं। अब प्रश्न यह है कि ये लोग पूर्वोत्तर के लोगों के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं? क्या आप भी सोचते हैं कि पूर्वोत्तर के लोगों को चिंकी जैसे संबाधन करने वालों को कम से कम पांच साल की जेल क्यों नहीं होनी चाहिए ?
यह बताना आवश्यक है कि शेष भारत के सभी लोग पूर्वोत्तर के लोगों के लिए चंकी जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं कहते हैं। अधिकतर लोग उनके साथ खड़े दिखते हैं। बस दिल्ली, मुंबई, चैन्नई, बंगलुरू समेत विभिन्न शहरों में कुछ मुठ्ठी भर लंपट हैं, जो कि ऐसी ओछी हरकतें करते हैं। इन लंपटों की हरकतों से पूर्वोत्तर के लोगों के मन में सभी शेष भारतीयों के प्रति गलत नजरिया बनता रहा है।
सबसे पहले दिल्ली विश्वविद्यालय की बात करते हैं। यहां के सभी नहीं, बस कुछ गिने-चुने आवारा किस्म के उदंड लड़के ही उत्तर-पूर्व के राज्यों से आने वाले स्टूडेंट्स के साथ फूहड़ मजाक करते हैं। उनको चिंकी(Chinki), मोमो, नेपाली, बहादुर, चाउमीन, चीनी जैसे शब्दों से पुकार कर परेशान करते हैं। मामला उनके नाम तक ही सीमित नहीं है, कई बार तो उन पर हंसा जाता है।उनके कपड़ों, हेयर स्टाइल, बोलने के लहजे का मजाक उड़ा या जाता है। यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा है। वैसे तो दिल्ली यूनिवर्सिटी के विभिन्न छात्र संगठन पूर्वोत्तर के छात्र-छात्रों की सहायता के लिए कई तरह के प्रयास करने का दावा करते रहे हैं, परंतु ये संगठन भी इन उदंड लड़कों के सामने असहाय हो जाते हैं।
अब प्रश्न यह है कि आखिरकार पूर्वोत्तर के युवक-युवतियों के नाक-नक्श, उनका चेहरा, उनके कपड़े, उनके हिंदी बोलने का लहजा आदि कुछ अलग है तो इसका अर्थ यह नहीं कि उनको हंसी का पात्र बनाया जाए। वे भी हमारी तरह भारतीय हैं। इसलिए भारत में यदि कोई भी उन्हें चिंकी, मोमो, नेपाली, बहादुर, चाउमीन, चीनी कहता है ता उसे कठोर दंड दिया जाना चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए संपूर्ण भारत और यहां तक कि विदेशों से भी छात्र –छात्राएं आते हैं। परंतु नश्लवाद का मामला पूर्वोत्तर के छात्र-छात्राओं के साथ ही सबसे अधिक है।
आप सभी को जनवरी, 2014 की घटना याद होगी। तब दिल्ली में पढ़ रहे अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तानिया के हेयर स्टाइल का लाजपत नगर मार्केट के कुछ दुकानदारों ने मजाक उड़ाया था। नीडो ने विरोध किया तो उसकी पिटाई कर दी गई। अगले दिन नीडो ने एम्स में दम तोड़ दिया था। पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट में नीडो की मौत का कारण सिर पर और चेहरे पर चोट बताया गया था। मामला तूल पकड़ने पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पूर्वोत्तर परिषद के सदस्य व रिटायर आईएएस अफसर एमपी बैजबरुआ की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। बैजबरुआ कमेटी को इस घटना के मद्देनजर देशभर में पूवोर्त्तर के लोगों की समस्याओं और उनके समाधान के लिए सुझाव देने के कहा गया। इस कमेटी ने दर्जनभर सिफारिशें की। इसमें एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 में संशोधन किया जाए। आईपीसी की धारा 153 और 153ए के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लिखित या मौखिक रूप से ऎसा बयान देता है जिससे साम्प्रदायिक दंगा या तनाव फैलता है या समुदायों के बीच शत्रुता पनपती है तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है। धारा 153-ए में प्रावधान है कि जो कोई भी धर्म, मूलवंश, जन्म स्थान, निवास स्थान और भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों और समूहों के बीच सौहार्द बिगाड़ने का अपराध करने पर पांच साल तक की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। परंतु लगता है कि इस कमेटी की रिपोर्ट भी लालफीताशाही की भेंट चढ़ गई। यदि इस पर काम हुआ होता तो कम से कम दिल्ली में ही पूर्वोत्तर के लोगों के लिए यह नश्लीय टिप्पणी बंद हो चुकी होती। क्योंकि कोरोना काल में तो और भी बेहूदी टिप्पणियां की गई। कुछ निर्लज्ज लोग ऐसे भी थे जो कि पूर्वोत्तर के लोगों को देखते ही कहते थे कि —चीनी लोग इतने बेशर्म हैं कि वे हर जगह कोरोनावायरस फैलाते हैं। इस तरह की टिप्पणी का प्रमाण तब के समाचार पत्रों की रिपोर्ट हैं। इन अपमानजनक टिप्पणियों को पूर्वोत्तर के लोगों को अनसुना करना पड़ता है। क्योंकि जो लोग यह टिप्पणी करते हैं, उनके ही लोग उस प्रदेश में पुलिस में भी हैं और वकील भी। ऐसे में पूर्वोत्तर के लोगों के पास चुप रहने का एक मात्र विकल्प बचता है।
यह बताना भी आवश्यक है कि पूर्वोत्तर के लोगों को चिंकी कहकर उनका मजाक उड़ाने वालों को वहां के लोगों के इतिहास को भी पढ़ लेना चाहिए। उनके साथ अपने पौराणिक संबंधों को भी जनने का प्रयास करना चाहिए । महाभारत काल में पांडव वीर अर्जुन का विवाह मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा के साथ हुआ था। यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मणी भी अरुणाचल प्रदेश की इदु मिश्मी जनजाति से थीं। इन जनजाति के लोग स्वयं को रुक्मिणी के बंधु-बांधव बताते हैं। इसी तरह लोहित नदी के किनारे भगवान परशुराम कुंड का इतिहास बताना आवश्यक है। मान्यता है कि भगवान परशुराम ने जब अपने पिता ऋषि जमदग्नि के आदेश पर अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग किया तो उनका फरसा उनके हाथ पर जुड़ा रह गया। फरसा हाथ से अलग ही नही हो रहा था। इस पर ऋषि जमदग्नि ने कहा कि मातृहत्या का पाप लगने सेऐसा हुआ है। इससे मुक्ति पाने के लिए विभिन्न पवित्र नदियों में स्नान करो। जिस नदी के जल से तुम्हें मुक्ति मिलेगी वहीं पर फरसा तुम्हारे हाथ से अलग हो पाएगा। देशभर की नदियों में स्नान करने के बाद अंतत: लोहित नदी के किनारे की कुंड में स्नान करने से ही उन्हें मुक्ति मिल पाई थी। इस घटना का उल्लेख पुराणों में भी है। इसी तरह मां कामाख्या के मंदिर का उल्लेख करना भी आवश्यक है। मां कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के निकट नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वत पर है। यह सिद्ध शक्तिपीठ मां सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा योनि-कुण्ड स्थित है। ये तो मात्र कुछ उदाहरण हैं। मेरा कहने का आशय यह है की पूर्वोत्तर के लोग भी उसी सनातन परंपरा से जुड़े हैं, जिनसे शेष भारत के लोग। ऐसे में पूर्वोत्तर के हिमालयी लोगों भला हमसे कहां अलग हैं। उनकी नाक-नक्श भले ही मंगोल फीचर हैं, परंतु वे भी हमारी तरह भारतीय हैं । उनके प्रति नश्लवादी टिप्पणियां करने वाले दुष्ट लोग यह क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि उनक इन हरकतों ने वे उनको भारतिय समाज की मुख्यधारा से अलग कर रहे हो। ऐसे उदंड लोगों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार एक महत्वपूर्ण विषय को लेकर आया हूं। जिस नश्लवाद से नार्थईस्ट यानी पूर्वोत्तर के लोगों को दिल्ली समेत मैदानी क्षेत्रों में आए दिन जूझना पड़ता है,उस बारे में जब तक मैं कुछ कहुं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।
दोस्तों यह है पूर्वोत्तर के लोगों की पीड़ा। अब उन लोगों को समझाने का प्रयास अवश्य कीजिए जो ऐसी ओछी हरकतें करते हैं। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।
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