भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मिणी  थी अरुणाचली कन्या !

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सिर को मुंडवा कर क्यों रखते हैं इदु मिश्मी जनजाति के लोग?

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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आज जानते ही हैं कि हिमालयी राज्य अरुणाचल प्रदेश भारत का उत्तर पूर्व का सीमांत प्रांत है। अरुणाचल का अर्थ उगते सूर्य का पर्वत होता है। अरुणाचल प्रदेश को पहले पूर्वात्तर सीमान्त एजेंसी यानी नॉर्थ ईस्ट फ़्रण्टियर एजेंसी- नेफ़ा के नाम से जाना जाता था। अरुणाचल प्रदेश बहुभाषिक एवं बहुजनजातिया राज्य है। अरुणाचल प्रदेश में लगभग 28 प्रमुख जनजातियां एवं उनकी सौ से भी अधिक उप जनजातियां पाई जाती हैं। इनमें से एक जनजाति है इदु मिश्मी। मिश्मी या देंग यह अरुणाचल प्रदेश के अलावा तिब्बत में भी बसा है। यह तीन कबीलों में बंटा है – इदु मिश्मी या इदु ल्होबा, दिगारू यानी ताराओं, दारांग देंग और मिजू मिश्मी यानी कामान देंग। मिश्मी लोग मध्य अरुणाचल प्रदेश के पूर्वोत्तर के छोर के मिश्मी हिल्स के आस पास लोहित नदी के दोनों किनारों पर दिबांग घाटीमें निवास करते हैं।

अब आपको अरुणाचल प्रदेश के इदु मिश्मी और रुक्मिणी को लेकर कथा सुनाता हूं।  इदु मिश्मी लोग  स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण की अर्धांगिनी रुक्मिणी के बंधु-बांधव बताते हैं।इन लोगों में मान्यता  है कि रुक्मणी वहां के भीश्मनगर की राजकुमारी थी।  रुक्मिणी के पिता राजा भीष्मक  और उनका एक भाई रुक्मी था।  रुक्मिणी को श्रीकृष्ण से प्रेम हो गया था। राजा भीष्मक ने रुक्मणी का विवाह श्रीकृष्ण से करने को तैयार हो गए। परंतु यह बात राजकुमारी के भाई रुक्मी को पसंद नहीं आई । उसने शिशुपाल के साथ रुक्मणी का विवाह तय कर दिया। इस पर रुक्मिणी ने गुप्त रूप से  यह सूचना श्रीकृष्ण तक पहुचा दी। श्रीकृष्ण इसके बाद रुक्मिणी को लेने आए। लेकिन रुक्मी ने उन्हें पहचान लिया। दोनों के बीच युद्ध हुआ।इस युद्ध में रुक्मी की हार हुई।  श्रीकृष्ण ने रुक्मी का वध करना चाहा, परंतु रुक्मिणी ने अपने भाई की प्राण की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण सेप्रार्थना की। कृष्ण मान गए परंतु उन्होंने हार के निशान के रूप में अपने सुदर्शन चक्र से रुक्मी के सिर के बाल काट कर उसे गंजा कर दिया। यही वजह है कि आज भी मिश्मी जनजाति के लोग अपने सिर को मुंडवा कर रखते हैं। इसलिए उन्हें असमिया में चुलीकटा कहा जाता है।

इसके बाद भगवान कृष्ण रुक्मिणी का अपहरण करके गुजरात, पोरबंदर के माधवपुर पहुंचे और वहां दोनों ने विवाह किया था। भगवान कृष्ण-रुक्मिणी विवाह की याद में पिछले पांच सौ साल से माधवपुर घेड़ में लोक मेला लगता है। गुजरात में माधवपुर महोत्सव भी बनाया जाता है। इसमें गुजरात के साथ ही अरुणाचल प्रदेश सरकार भी शामिल होती है। क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण गुजरात के द्वारका में रहते थे। पूर्वोत्तर भारत में और भी कई जनजातियां हैं जिनका संबंध प्राचीन भारतीय इतिहास से है। कई तो स्वयं को भारतीय प्राचीन पौराणिक इतिहास के वंशजों से जोड़ते हैं।

अरुणाचल प्रदेश में मालिनीथान तीर्थस्थान से भगवान श्री कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी ने द्वारका जाते समय यहां पर विश्राम किया था। उनके विश्राम के समय भगवान शिव और उनकी पत्‍नी पार्वती ने उनका स्वागत फूलों की हार से किया था। तब भगवान कृष्ण ने उनको मालिनी नाम दिया था। तब से इस स्थान को मालिनीथान और मालिनीस्थान के नाम से जाना जाता है। मालिनीथान अरुणाचल प्रदेश  के निचले सियांग जिले में है। यह असम और अरूणाचल प्रदेश की सीमा के पास लिकाबाली क्षेत्र में है। यहां से पर्वत श्रृंखलाएं शुरू हो जाती हैं। मालिनीथान खूबसूरत और पवित्र पर्यटन स्थल है। मालिनीथान का निर्माण 15वीं शताब्दी में शुतीया राजवंश के राजा लक्ष्मीनारायण ने किया था। मालिनीथान की प्रतिमाओं की खोज 1968-1971 ई. की श्रृंखलाबद्ध खुदाई के दौरान हुई थी। खुदाई में प्रतिमाओं के साथ स्तंभ और अनेक कलाकृतियां भी मिली हैं। इन्हें देखने के लिए बड़ी  संख्या में तीर्थयात्री और पर्यटक भी आते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार रुक्मणी का  जन्म हरिद्वार में हुआ था और वह वैदिक आर्य  जनजाति की एक शाही राजकुमारी थी। वह शक्तिशाली राजा भीष्मक की पुत्री थी। महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण के साथ  रुक्मणी का उल्लेख है। महाभारत में उल्लेख मिलता है कि विदर्भ देश के राजा भीष्मक के पांच पुत्र और एक पुत्री थी। पुत्री का नाम था रुक्मिणी। रुक्मिणी का स्वभाव बहुत ही सरल था और वह रूपवती थीं। उन्होंने श्रीकृष्ण के बारे में जब सुना तो वह उन पर  मोहित हो गईं। वह चाहती थीं कि वो श्रीकृष्ण की पत्नी बनें। ये मंशा उनकी पूर्ण भी हुई। रुक्मिणी का परिवार भी यही चाहता था। लेकिन उनका बड़ा भाई रुक्मी, श्रीकृष्ण से बैर रखता था। वह नहीं चाहता था कि उसकी छोटी बहन का विवाह श्रीकृष्ण से हो जाए। उसने अपने पिता भीष्मक से कहा कि रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश शिशुपाल से होना ज्यादा ठीक रहेगा।

रुक्मिणी दैवी स्वभाव की थी, जबकि सका भाई रुक्मी राक्षस स्वभाव का व्यक्ति था। रुक्मिणी अपने भाई के हठ को जान चुकी थीं। इसलिए उन्होंने एक पुरोहित के हाथ श्रीकृष्ण के पास प्रेम संदेश भेजा। श्रीकृष्ण ने उस प्रेम संदेश को पढ़ा। प्रेम संदेश में लिखा था , ‘मैं आपको पति मान चुकी हूं। लेकिन मेरा भाई शिशुपाल से विवाह करवाना चाहता है। मुझे प्राप्त करना इतना सरल नहीं है। पहले आपको शिशुपाल और जरासंध को मारना होगा तभी आप मुझे प्राप्त कर सकेंगे।’

शिशुपाल से मेरा विवाह तय हो गया है। विवाह के एक दिन पहले गौरी पूजन के समय आपको गौरी मंदिर आना होगा। यहां से में सामाजिक बंधनों को तोड़कर आपके साथ नए जीवन की शुरुआत करना चाहती हूं। पत्र पढ़ने के बाद तुरंत श्रीकृष्ण ने रथ बुलवाया और विदर्भ देश की ओर रवाना हो गए। श्रीकृष्ण जब विदर्भ पहुचे तो उन्होंने देखा कि विदर्भ देश की राजधानी कुंडिनपुर की शोभा अनूठी हो रही है। विवाह की तैयारियां बड़ी ही धूमधाम से हो रहीं थीं। शिशुपाल अपने परिजनों के साथ वहां पहुंच चुका था। इधर जब बलराम को पता चला की श्रीकृष्ण विदर्भ देश रवाना हो गए हैं तो उनकी चिंता करते हुए वह सेना लेकर वहां रवाना हो गए। उधर रुक्मिणी गौरी मंदिर में पूजा करने के लिए जाने लगीं। साथ में उनकी सहेलियां और सैनिक भी थे। रुक्मिणी जब पूजा के बाद घर लौटने लगीं तो देखा कि श्रीकृष्ण अपने रथ के साथ वहां खड़े हुए हैं। रुक्मिणी उनके पास पहुंचीं। श्रीकृष्ण ने रथ में उन्हें बिठाया और इस तरह रथ तेजी से आगे की ओर बढ़ चला। श्रीकृष्ण जा चुके थे बलराम अपनी सेना के साथ वहां पहुंच चुके थे। रुक्मी को जब पता चला तो वह अपनी सेना लेकर बलराम की सेना से युद्ध करने के लिए पहुंचा। संदेशवाहक से, बलराम का विदर्भ आने का समाचार सुनकर श्रीकृष्ण भी इस युद्ध में शामिल हो गए।उन्होंने रुक्मी को युद्ध में हरा दिया । इसके बाद श्रीकृष्ण का रुक्मिणी के साथ विधिपूर्वक विवाह हुआ। रुक्मी अपनी हार से इतना दुखी हुआ कि वह लौटकर विदर्भ नहीं गया। जहां बलराम और श्रीकृष्ण के साथ युद्ध हुआ था वह वहीं भोजकट नाम का नगर बसा कर वह रहने लगा।

यही कहानी अरुणाचल प्रदेश में भी सुना जाती है। इस कहानी के इतिहास में जाने की बजाए इसमें सुदूर प्रांत के इदु मिश्मी लोगों भी उन भावनाओं का सम्मान करने की आवश्यकता है जो कि उन्हें सनातन धर्म से बांधे हुए है।

 

 

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार एक अनूठी कथा लेकर आया हूं। सूदूर अरुणाचल प्रदेश की एक जनजाति इदु मिश्मी दावा करती है कि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी उनकी बेटी थी। जब तक मैं इस कहानी को कहूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं,सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज।

दोस्तों यह थी इदु मिश्मी समाज और भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मणी की कथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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