क्या यीशु मसीह भारत यानी हिमालय आए थे?

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है।

मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा । अक्सर हम पढ़ते रहते हैं कि ईसाई धर्म के प्रवर्तक  ईसा मसीह  (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) भारत आए थे। कहा जाता है कि वे ज्ञान की खोज में भारत आए थे। यहां उन्होंने धर्म और आध्यात्म का ज्ञान प्राप्त किया और फिर वापस जेरुसलम चले गए।  यह बात इसलिए भी सत्य प्रतीत होती है कि बाइबिल या इंजील में यीशु मसीह के जीवन कालखंड के13 से 30 वर्षों के बीच का कोई ‍ज़िक्र नहीं मिलता। बीबीसी भी इस मामले में एक डाक्यूमेंट्री बना चुका हैं और कई विदेशी,वह भी ईसाई लेखक भी अपनी पुस्तकों में इसका उल्लेख कर चुके हैं। कहा जाता है कि ईसा मसीह ने इस  13 से 30 साल की अवधि में भारत के हिमालयी क्षेत्र में आकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और वह बुद्ध के विचार और नियमों से प्रेरित थे। यह अलग बात है कि चर्च हमेशा ही इस बात को नकारता रहा है। इसलिए ईसा मसीह   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) के भारत, खासतौर पर हिमालयी क्षेत्र में आकर बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने के बारे में जो कुछ चर्चा में रहा है, वही बताने जा रहा हूं। एक बात यह भी कि जीसस क्राइस्ट को जो मान ईसा मसीह है, वह इस्लाम का दिया अरबी नाम है, इसका संस्कृत या भारत से कोई संबंध नहीं है।

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 ईसाई धर्म के प्रवर्तक  जीसस क्राइस्ट   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) को भारत में यीशु या यीशु मसीह या ईसा मसीह के नाम से जाना जाता है। ईसाई समाज उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र मानता है। ईसा मसीह की जीवनी और उपदेश बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट या नये नियम में दिये गये हैं। नया नियम या न्यू टेस्टामेंट, ईसाइयों के धर्मग्रन्थ बाइबिल का दूसरा भाग या उत्तरार्ध है। इसमें यीशु मसीह की जीवनी, शिक्षाएं, और उनके शिष्यों की ओर से धर्मप्रचार शामिल हैं। नया नियम 27 किताबों का संग्रह है, जो कि तीन भागों में विभाजित हैं। सुसमाचार,  कार्य  और पत्रियां। नए नियम  की इन 27 पुस्तकों को ईसाई धर्म में लगभग सर्वमान्य रूप से मान्यता दी गई है। आपको यह भी जानकारी दे दूं कि ईसा इस्लाम में जीसस का अरबी नाम है । यानी यीशु मसीह को इस्लाम में ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के पैगम्बरों में से एक माना जाता है।  इसलिए जो लोग इसे संस्कृत के ईश शब्द से जोड़ते हैं, वह बिलकुल गलत है। यही सत्य है कि ईसा जीसस का अरबी नाम है, भारतीय नहीं।

ईसाइयों के धर्म ग्रंथ बाइबिल के अनुसार ईसा मसीह   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) की माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाज़रेथ गांव की रहने वाली थीं। उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी यूसुफ नामक बढ़ई से हुई थी। विवाह के पहले ही वह कुंवारी रहते हुए ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गई। ईश्वर की ओर से संकेत पाकर यूसुफ ने उन्हें पत्नीस्वरूप ग्रहण किया। विवाह संपन्न होने के बाद यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम नामक नगरी में जाकर रहने लगे, वहां ईसा का जन्म हुआ। शिशु को राजा हेरोद के अत्याचार से बचाने के लिए यूसुफ मिस्र चले गए। हेरोद की मृत्यु के बाद यूसुफ लौटकर नाज़रेथ गांव में बस गए। ईसा लगभग 30 साल की उम्र तक उसी गांव में रहकर  बढ़ई का काम करते रहे। बाइबिल या इंजील में उनके 13 से 30 वर्षों के बीच का कोई ‍ज़िक्र नहीं मिलता। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना यानी जॉन से पानी में डुबकी यानी दीक्षा ली। डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा आई। 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे।

बाइबिल में ईसा मसीह के   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) जीवन के इन 17 वर्षों का विवरण ‘न्यू टेस्टामेंट’ में नहीं मिलता है। ईसा मसीह के जीवन के इन गुमनाम सालों को ‘साइलेंट ईयर्स’, ‘लॉस्ट ईयर्स’ या ‘मिसिंग ईयर्स’ भी कहा जाता है। (unknown years of Jesus , also called his silent yearslost years, or missing years) विदेशी लेखक लेवी एच डोलिंग ने 1908 में ‘एक्वेरियन गॉस्पेल ऑफ जीसस द क्राइस्ट’  पुस्तक लिखी।  इस में उसने दावा किया था कि उसे सारी जानकारी सुपरनैचुरल ताकतों से मिली है जो जीसस की जिंदगी की सच्ची कहानी है। उसने  अपनी पुस्तक में न्यू टेस्टामेंट से गायब 18 वर्षों का भी विवरण दिया।  इस किताब के अनुसार युवा अवस्था में ईसा मसीह ने भारत, तिब्बत, ईरान, ग्रीस और मिस्त्र देशों का भ्रमण किया था।  बीबीसी ने भी जीसस वाज अ बुद्धस्ट मोंक (Jesus Was A Buddhist Monk) नाम से एक डॉक्युमेंट्री बनाई थी। इस डॉक्युमेंट्री में बताया गया था कि ईसा मसीह एक बौद्ध भिक्षु थे। इसमें उनके जीवन के कई अनछुए पहलुओं को बताया गया था। यह भी कहा गया था कि जीसस को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था और जब वह 30 वर्ष के थे तो वे यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। उन्होंने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। (unknown years of Jesus , also called his silent yearslost years, or missing years)

कश्मीर के  श्रीनगर की एक इमारत रौज़ाबल के एक मकबरे को ईसा मसीह की कब्र बताया जाता है। हालांकि आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। इस बारे में यह भी कहा जाता है कि वह बात यहां के स्थानीय दुकानदारों ने फैलाई है , ताकि विदेशी  पर्यटक उनके क्षेत्र में आए।

वैसे इस मामले में कई  पुस्तकें भी लिखी गई हैं। किताबों में जीसस के भारत आने की बात कही जा चुकी थी। रूसी  विद्वान निकोलस नोतोविच ने 1887 में दावा किया था कि उसने लद्दाख में हेमिस मॉनेस्ट्री में रखे डॉक्युमेंट ‘लाइफ ऑफ सेंट ईसा, बेस्ट ऑफ द सन्स ऑफ मेन’ का अध्ययन किया था।  उसने इसका फ्रेंच में अनुवाद किया। नोतोविच की थ्योरी फ्रेंच भाषा में 1894 में प्रकाशित हुई थी। इसमें उसने दावा किया था कि  ईसा मसीह ने 13 से 30 वर्ष की उम्र में मॉनेस्ट्री में ज्ञान प्राप्त किया था। नोतोविच ने 19वीं शताब्दी में भारत, तिब्बत और अफगानिस्तान का दौरा किया था । कहा जाता है कि उसने लेह की एक तिब्बत बौद्ध मॉनेस्ट्री में काफी समय बिताया था। यह भी कह जाता है कि ईसा ने भारत के जगन्नाथ, राजगृह और बनारस में दीक्षा दी और इसकी वजह से ब्राह्मण नाराज हो गए और उन्हें बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद जीसस हिमालय चले गए और बौद्ध धर्म की दीक्षा लेना जारी रखा। जर्मन विद्वान होल्गर केर्सटन ने जीसस के शुरुआती जीवन के बारे में लिखा था और दावा किया था कि  ईसा सिंध प्रांत में बस गए थे। इस तरह कई अन्य लेखकों ने भी कमोबेश यही बातें कही हैं। unknown years of Jesus , also called his silent yearslost years, or missing years

महान विचारक ओशो ने भी लगभग ऐसा ही कहा था। उन्होंने कहा था कि –जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है, अनायास ही वह भारत आने के लिए उत्सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्य की खोज में पाइथागोरस भारत आया था। ईसा मसीह   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) भी भारत आए थे। ईसा मसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्लेख नहीं है और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था।  13 से 30 तक के इन 17 सालों का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकार्ड किया गया? ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्‍यु हो चुकी थी I गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे. पर बुद्ध ने इतना  विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्‍क उसमें डूबा हुआ था. अंतत: जीसस की मृत्यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस को नजरअंदाज करते रहे हैं। ओशो कहते हैं कि –गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्माआ को प्रेम कहने का कोई और उल्लेख नहीं है। उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्ता, भारत, लद्दाख और तिब्बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्कुल अपरिचित और अजनबी विचार धाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं। (unknown years of Jesus , also called his silent yearslost years, or missing years)

सवाल यह है कि जब बाइबल में यीशु   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) के भारत आने का कोई उल्लेख नहीं है। ऐसिहासिक तौर पर इस बात का कोई कोई प्रमाण भी नहीं है। तो यह भ्रांतियां कौन फैलाता रहा है कि यीशु भारत आए थे। क्यों कि कोई भी लिखित प्रमाणित लेख इस बात की पुष्टि नहीं करते। इसलिए इस मामले में शोध किए जाने की आवश्यकता है।

यह था ईसा मसीह   (Jesus of Nazareth or Jesus Christ) के भारत के हिमालय क्षेत्र में ज्ञान प्राप्त करने की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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