गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ का नाथ संप्रदाय और मुसलमान जोगी

0
779

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

E- mail- himalayilog@gmail.com

जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है।

मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  और गोरक्षपीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ और उनके नाथ संप्रदाय के बारे में जानकारी लेकर आया हूं। देश –दुनिया के अधिकतर लोग  योगी आदित्यनाथ के बारे में तो जानते हैं, परंतु जोगियों के नाथ संप्रदाय के बारे में अधिक नहीं जानते, जिससे वे संबंधित हैं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरक्षपीठाधीश्वर (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi) भी हैं। उनकी छवि कट्टर हिंदू नेता की है। परंतु यह बात कम लोग ही जानते हैं कि गोरखपुर स्थित इस  नाथ संप्रदाय की पीठ से जुड़े जोगियों में सिर्फ हिंदू ही नहीं है, बल्कि इनमें बड़ी संख्या में मुसलमान भी हैं। आप लोगों ने सारंगी बजाते हुए गोपीचंद- भर्तृहरि के भजनों का गाते हुए जोगियों को देखा होगा। ये जोगी ही नाथ संप्रदाय के जोगी या योगी हैं। आज भी गोरक्षपीठ के सानिध्य में आज भी बहुत से मुस्लिम जोगी हैं। गोरक्षपीठ की सबसे प्रामाणिक पुस्तक – गोरखबानी-में नाथ संप्रदाय के प्रति मुसलमानों के जुड़ाव का उल्लेख मिलता है। इन जोगियों के पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़ी संख्या में गांव हैं। आज भी गोपीचंद और भर्तहरि के भजनों को गाने वालों में बड़ी संख्या में मुसलमान योगी नाथपंथ से जुड़े गृहस्थ भी योगी हैं। वे अपने को जोगी कहते हैं।  इन मुसलमान जोगियों के गांव गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, संतकबीरनगर, आजमगढ़ और बलरामपुर में हैं। ये नाथ सम्प्रदाय के पथ पर चलते हैं।  (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi)हालांकि समय बदलने के साथ अब ये अपनी परंपरा को छोड़ते जा रहे हैं। मुसलमान जोगियों पर समुदाय के भीतर और समुदाय के बाहर दोनों तरफ से अपनी इस परंपरा को छोड़ने का दबाव बढ़ रहा है। दरअसल, समाज में धर्म के विवाद और कटुता बढ़ने के कारण अब ये जोगी भगवा वस्त्रों में खुद को असहज पाते हैं। वे घरों में नाथपंथ को तो मानते हैं, परंतु इस परंपरा से दूरी बनाने लगे हैं।  हिंदू जोगियों की तरह इनमें से कई तो ग्रहस्थ भी हैं व जोगी भी हैं। ये नाथ पंथियों की तरह भगवा वस्त्र पहनते  रहे हैं। इनके हाथों  में  भी सारंगी होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी गाकर यह बताते हैं कि किस तरह गुरु गोरखनाथ के प्रभाव में आ कर राजा गोपीचंद्र और राजा भर्तहरि  संन्यासी हो गए थे। देशभर में नाथ संप्रदाय के जोगी पीढ़ी दर पीढ़ी गुरु गोरखनाथ की महिमा का वर्णन करने वाले गीत व भजन सुनाते आ रहे हैं। हालांकि ये परंपरा अब लुप्त हो रही है।

अंग्रेज लेखक जार्ज वेस्टन ब्रिग्स ने अपनी पुस्तक  ‘गोरखनाथ एंड दि कनफटा योगीज’ में    भी मुसलमान जोगियों का उल्लेख किया है। जार्ज ने वर्ष 1891 जनसंख्या रिपोर्ट के आधार पर लिखा कि भारत में योगियों की संख्या 2 लाख,14 हजार,546 हैं। आगरा व अवध प्रांत में 5,हजार 319 औघड़, 2 लाख 8,8 हजार 169 गोरखनाथीऔर 78 हजार387 योगी थे। इनमें बड़ी संख्या में मुसलनान योगियों की है। 1891 की पंजाब की रिपोर्ट में बताया कि मुसलमान योगियों की संख्या 38 हजार137 है। वर्ष 1921 की जनगणना में हिंदू योगी 6,लाख 29हजार978 और मुस्लिम जोगियों की संख्या 31 हजार158 बताई गई हैं।  (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi)

 मुस्लिम जोगियों का यह भारत से बाहर पाकिस्तान और अफगानिस्तान तक रहा है। नेपाल के गोरखा समाज को लेकर भी कहा जाता है कि नेपाल का एकीकरण करने वाले महाराजा पृथ्वी नारायण शाह ने गुरु गोरखनाथ से प्रेरणा पाकर यह कार्य किया और अपनी सेना में शामिल जातियों को गोरखा नाम दिया था।

अब नाथ संप्रदाय (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi) को लेकर बात करता हूं। नाथ शब्द संस्कृत का है। नाथ शब्द का अर्थ प्रभु या रक्षक होता है।  जबकि इससे संबंधित संस्कृत शब्द आदिनाथ का अर्थ प्रथम या मूल भगवान है। यह नाथ सम्प्रदाय के संस्थापक  भगवान शिव के लिए प्रयुक्त होता हैl  18 वीं सदी से पहले नाथ सम्प्रदाय के लोगों को जोगी या योगी कहा जाता था। कहा जाता है कि आठवी सदी में 84 सिद्धों के साथ बौद्ध धर्म के महायान के वज्रयान की परम्परा का प्रचलन हुआ। वे सभी भी नाथ ही थे। सिद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अनुयायी सिद्ध कहलाते थे। उनमें से प्रमुख जो हुए उनकी संख्या चौरासी मानी गई है।  माना जाता है कि गुरु  गोरखनाथ के समय में धर्म में तंत्र-मंत्र, रूढ़ियां बढ़ गई थीं।  ऐसे में ऊंच-नीच, भेद-भाव, और आडम्बरों के विरोध में गुरु गोरखनाथ ने योग मार्ग का प्रचार किया। उनके नाथ सम्प्रदाय में बड़ी संख्या में अस्पृश्य जातियां शामिल हुईं। नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक थे। मुसलमान भी बड़ी संख्या में नाथ संप्रदाय  (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi) में शामिल हुए।

हिंदी के प्रथम पीएचडी व डी.लिट डा. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने  भी नाथ संप्रदाय पर लिखा। उन्होंने गुरु  गोरखनाथ   की   रचनाओं   का   संकुलन   गोरखबानी   नाम   से   किया   है।   हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नाथ संप्रदाय पर लिखी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि – नाथमत को मानने वाली बहुत सी जातियां घर बारी हो गई हैं।  देश के हर हिस्से में ऐसी जातियों का अस्तित्व है। इनमें बुनाई के पेशे से जुड़ी तमाम जातियां हैं। इनमें मुसलमान जोगी भी हैं। पंजाब के गृहस्थ योगियों को रावल कहा जाता है और ये लोग भिक्षा मांगकर, सड़कों के किनारे नाटक दिखाकर, हाथ देखकर अपनी जीविका चलाते हैं।  बंगाल में जुगी या जोगी कहने वाली कई जातियां हैं।  योगियों का बहुत बड़ा संप्रदाय अवध, काशी, मगध और बंगाल में फैला हुआ था। ये लोग गृहस्थ  थे और पेशे से जुलाहे या धुनिए का काम करते थे। धार्मिक रूप से इनका किसी तरह का स्थान नहीं था।  द्विवेदी लिखते है कि नाथ सम्प्रदाय के महापुरूष गोरखनाथ, धीरनाथ, छायानाथ और रघुनाथ आदि हैं। इनके गुरू और पुरोहित ब्राह्मण नहीं होते हैं, बल्कि इनकी अपनी ही जाति के लोग होते हैं। इनके यहां बच्चों के कान चीरने और मृतकों की समाधि देने की परंपरा है। नाथ संप्रदाय के जोगी दुनिया भर में भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धुनी रमाकर ध्यान करने वाले नाथ योगियों को ही अवधूत या सिद्ध भी कहा जाता है। ये योगी अपने गले में काली ऊन का एक जनेऊ रखते हैं जिसे ‘सिले’ कहते हैं। गले में एक सींग की नादी रखते हैं। इन दोनों को ‘सींगी सेली’ कहते हैं। इस पंथ के साधक लोग सात्विक भाव से शिव की भक्ति में लीन रहते हैं। नाथ लोग अलख  यानी अलक्ष शब्द से शिव का ध्यान करते हैं। परस्पर ‘आदेश’ या आदीश शब्द से अभिवादन करते हैं। अलख और आदेश शब्द का अर्थ प्रणव या परम पुरुष होता है। जो नागा (दिगम्बर) है वे भभूतिधारी भी उक्त सम्प्रदाय से ही है, इन्हें हिंदी प्रांत में बाबाजी या गोसाई समाज का माना जाता है। इन्हें उदासी या वनवासी आदि सम्प्रदाय का भी माना जाता है। नाथ साधु-संत हठयोग पर विशेष बल देते हैं। कनफोड़ जोगी भी नाथ संप्रदाय से जुड़े हैं।

सन्यास लेने के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ  यानी गोरखनाथ मंदिर के मठ में  (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi)रहा करते थे। वहां पर पूजा पाठ और गौ सेवा ही उनका प्रमुख कार्य था। गोरक्षपीठ  साधुओं के नाथ संप्रदाय का प्रमुख तीर्थ  है। यह सनातन धर्म का एक धार्मिक पन्थ है। नाथ सांप्रदाय के साधुओं को योगी या जोगी कहा जाता है। सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ,अवधूत,कौल,कालबेलिया आदि नामों से जाना जाता है। इन जोगियों में  हिंदुओं के साथ ही मुसलमान, जैन, सिख और बौद्ध धर्म से भी थे। प्राचीन काल से चले आ रहे नाथ संप्रदाय का उत्थान मध्यकाल में हुआ। नौ नाथों की परंपरा से 84 सिद्ध हुए। कई विद्वान मानते हैं कि सिद्ध परंपरा बौद्धों से शुरू हुई। इसमें बौद्ध, शैव तथा योग की परम्पराओं का समन्वय मिलता है। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है। भगवान शिव  नाथ संप्रदाय के प्रथम गुरु एवं आराध्य हैं। इस संप्रदाय में अनेक गुरु हुए। इनमें गुरु मच्छिन्द्रनाथ या मत्स्येन्द्रनाथ तथा गुरु गोरखनाथ सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। नाथ संप्रदाय  संपूर्ण भारत खंड में फैला हुआ है। गुरु गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। उन्होंने सिद्धों के वाममार्ग के पूजा पद्धित का विरोध कर नाथ संप्रदाय को योग से जोड़ा। गुरू गोरखनाथ ने ब्राह्मणवाद व बौद्ध परंपरा में अतिभोगवाद व सहजज्ञान में आई विकृतियों के खिलाफ विद्रोह किया। उन्होंने ऊंच-नीच, भेदभाव, आडम्बरों का विरोध किया। यही कारण रहा कि नाथ सम्प्रदाय में बड़ी संख्या में सनातन धर्म के हाशिए पर पड़ी अस्पृश्य जातियों के साथ-साथ मुसलमान भी शामिल हुए।

यह था  योगी आदित्यनाथ  (Yogi Aditya Nath  & Nath Sampradaya & Musalaman Jogi)के नाथ संप्रदाय और मुसलमान जोगियों की दास्तान। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here