राक्षसी के बोरे से कैसे बच निकला लिंडरया छोरा — उत्तराखंड की लोककथा

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परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली
दोस्तों, इस बार आपके लिए उत्तराखंड की लोककथा लेकर आया हूं। इस लाककथा को हम लोग बचपन में खूब सुनते रहे हैं। बुजुर्ग लोग गांव के शरारती बच्चों को डराते भी थे कि कहना मान लो, अन्यथा लिंडरया छोरा वाली राक्षसी आ जाएगी। हिमालयी क्षेत्र में राक्षसों से जुड़ी कई लोककथाएं हैं। संभवत; यह कहानियां कुलिंद कालीन हैं।

बहुत पुराने समय की बात है। उत्तराखंड के एक गांव में एक अनाथ छोटा लड़का रहता था। उसका नाम लिंडरया छोरा था। बचपन में ही उसके मां- पिता की असमय मौत हो जाने से वह गांव वालों के सहारे अपना जीवनयापन कर रहा था। वह लोगों की भेड़-बकरी, गाय बैल चराता था।उनके घरों के कामकाज कर लेता। इसके बदले में उसे भोजन मिल जाता था। इस तरह उसके दिन खुशी-खुशी बीत रहे थे।

गढ़वाल में छोरा -छोरी उन बच्चों को कहते हैं, जिनके मां-पिता की बच्चों के बचपन में ही मृत्यु हो चुकी होती है। कई जगह इस बच्चे का नाम इंदुछोरा भी बताया जाता है। उस इलाके में एक नरभक्षी राक्षसी भी रहती थी। वह भेष बदलकर आती और छोटे-छोटे बच्चों को पकड़ कर ले जाती थी। लोग उसके आतंक से बहुत परेशान थे। इधर, लिंडरया छोरा के घर के पास जामून का पेड़ था। बरसात का मौसम था। लिंडरया छोरा पेड़ पर चढ्रकर जामुन तोड़ रहा था। एक दिन वह राक्षसी उस पेड़ के पास से गुजरी। उसने लिंडरया छोरा को पेड़ पर देख लिया। राक्षसी ने उससे कहा कि अपनी आंखें बंद करके जामुन तोड़ो। इससे जामुन जल्दी पक जाएंगे। भोला-भाला लिंडरया छोरा वह आंखें बन्द कर के जामुन तोडऩे लगा। ऐसे में उसका पांव फिसला और वह पेड़ से नीचे गिर गया। राक्षसी ने अपने साथ लाए बोरे में उसे बंद किया और अपने साथ ले गई। राक्षसी नरभक्षी थी और अपने भोजन के लिए ळिंडऱया छोरा को ले जा रही थी। रास्ते में राक्षसी को प्यास लगी। वह नदी में पानी पीने चली गई।  उसने लिंडरया छोरा से भले बोरे को एक बड़े पत्थर के पास  रख दिया। इस बीच लिंडरया छोरा बचाओ, बचाओ चिल्लाता रहा। वहां आस-पास कुछ बच्चे गायों को चरा रहे थे। उन्होंने उसे बोरे से बाहर निकाल दिया। जबकि बोरे में पत्थर और ततैया डाल दी। रास्ते में ततैया राक्षसी को डंक मारते रहे तो वह सोचती रही कि यह लडक़ा नाखून मार रहा है। घर जाकर राक्षसी ने बोरो खोला तो देखा कि  उसमें बच्चे की जगह पत्थर व ततैया थीं। राक्षसी ने अगले दिन उसे फिर से पकड़ने की योजना बनाई।

वह राक्षसी अगले दिन भेष बदल कर फिर लिंडरया छोरा के घर के पास चल  पढ़ी। उसने भेष बदलने के साथ ही अपने दांतों पर सोने की कवर चढा दी थी। उस समय लिंडरया छोरा जामुन के पेड़ पर ही था।  राक्षसी ने लिंडरया छोरा से जामुन मांगे। लिंडरया छोरा ने राक्षसी से कहा कि तुम कल की तरह मुझे पकड़ कर ले जाओगी। राक्षसी ने साफ इनका करते हुए कहा की मैं वह नहीं थी। देखो मेरे दांत तो सोने के हैं। लिंडरया छोरा उस राक्षसी की बातों में आ गया। राक्षसी ने उसे ज्यादा से ज्यादा जामुन तोडऩे के लिए कहती रही। लिंडरया छोरा ने जैसे ही एक कच्ची  टहनी तक पांव रखा, वह टहनी टूट गई। लिंडरया छोरा नीचे गिर पड़ा। राक्षसी ने उसे पकड़ लिया और बोरे में बंद कर अपने घर ले गई।

घर में राक्षसी की बेटी थी। राक्षसी आग लाने के लिए दूसरे घर की ओर चल दी।  उसने अपनी बेटी से कहा क वह इस बोरे में बंद लड़के का ध्यान रखे। राक्षसी के बाहर जाने के बाद  बोरे में बंद लिंडरया छोरा ने उसकी बेटी से अनुरोध किया कि वह उसे बाहर निकाल दे। वह उसे बालों की चोटी बनाना सिखा देगा। राक्षसी की बेटी ने उसे बाहर निकाल दिया। लिंडरया छोरा ने राक्षसी की बेटी को पकडक़र उसके  मुंह में कपड़ा ठूंसा और उसे बोर में बंद कर दिया। वह खुद छत की धुरबोली में छुप गया। धुरबोली पहाड़ के घरों की छत की बीच की बीम को कहते हैं। उसके पास सामान रखने की जगह बनाई होती है। कुछ देर बाद राक्षसी आग लेकर आ गई। उसके लिंडरया छोरा  को मारने के लिए  बोरे पर बाहर से जोर-जोर से डंडे से मारने शुरू कर दिए। उसने सोचा कि इससे बोरे में बंद लिंडरया छोरा मर जाएगा और वह उसे भून कर खा जाएगी। चूंकि उसकी लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा था, इसलिए वह चिल्ला भी न सकी। राक्षसी ने  कुछ देर बाद बोरा खोला तो देखा कि उसमें  लिंडऱया छोरा की बजाए उसकी  बेटी  थी।  उसकी मौत हो चुकी थी।

धुरबोली में छिपे लिंडरया छोरा ने जोर- जोर से कहा कि दूसरों को धोखा देने वालों का यही फल होता है। इसके बाद वह भाग वहां से निकला। राक्षसी अपनी बेटी की मौत से बहुत दुखी हुई और उसकी भी मृत्यु हो गई।  इस तरह लोगों को  उस नरभक्षी राक्षसी से मुक्ति मिल गई। गांव के लोगों ने जब लिंडरया छोरा से उसकी आपबीती सुनी तो वे भी उसकी सराहना करने लगे। उस दिन से गांव के लोग उसे बहुत प्यार करने लगे। उसके एक नरभक्षी राक्षसी से मुक्ति जो दिला दी थी।

दोस्तों, यह थी, लिंडरया छोरा की कहानी। आपको कैसी लगी। अवश्य बताएं। इस वीडियो का टाइटल सांग भी पूरा अवश्य सुनना। इसी चैनल में है। मेरा ही लिखा है। हिमालयी लोग चैनल को लाइन व सब्सक्राइब करना न भूलना। जै हिमालय- जै भारत।

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