भारतीय गोरखे क्यों नहीं चाहते खुद को नेपाली कहलाना?

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हमें  नेपाली नहीं, भारतीय गोरखा कहिए

परिकल्पना डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालय लोग की प्रस्तुति /नई दिल्ली 

दोस्तों, इस बार आपको भारतीय गोरखा और नेपालियों में अंतर बताने आया हूं। जो गोरखा भारतीय नागरिक हैं, पाढ़ी दर पीढ़ी भारत में रह रहे हैं। यह भारतीय गोरखा समाज अपनी पहचान और भाषा का नाम के संकट से जूझ रहा है।

भारतीय गोरखा समाज अपनी पहचान नेपाल या नेपाली से नहीं जोड़ना चाहता है।वे चाहते हैं भारत समेत पूरे संसार के लोग उन्हें भारतीय गोरखा कहें। इसके लिए उनके ठोस तर्क भी हैं। भारतीय गोरखे खुद को नेपाली कहे जाने के विरोध में हैं। वे यह पसंद नहीं करते कि उनको  भारतीय नेपाली या नेपाली कहा जाए। वे कहते हैं कि हमें नेपाली बताए जाने से ऐसा लगता था कि हम भारत के नहीं बल्कि नेपाल के रहने वाले हैं। जबकि हम भारतीय गोरखा हैं, भारतीय नागरिक हैं, नेपाली नहीं। नेपाली वे हैं जो नेपाल के नागरिक हैं। पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषतौर पर दार्जिलिंग समेत प्रस्तावित गोरखालैंड के गोरखा लोगों की लंबे समय से यह मांग भी रही है कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में नेपाली की जगह गोरखा भाषा लिखी जानी चाहिए। उनकी ठोस दलील है कि जब  भारतीय सेना की एक रेजीमेंट का नाम गोरखा रेजीमेंट हो सकता है तो भाषा का नाम गोरखा क्यों नहीं। वे खुद को नेपाली के संबोधन को अपना अपमान जैसा मानते हैं। क्योंकि इससे बोध होता है कि वे भारतीय नहीं हैं, नेपाली हैं।  यह वीडियो इसी विषय पर है। मैं अब आपको विस्तार से जानकारी दे रहा हूं कि आखिर क्यों भारतीय गोरखा लोग खुद को नेपाली कहने से परहेज करते हैं ।

 इससे पहले यह जानकारी भी दे दूं कि असम प्रदेश में गोरखा समुदाय को अब गोरखा नाम से पहचान मिल गई है। प्रदेश सरकार 2017 में ही यह  निर्णय कर चुकी है। यह एक  ऐतिहासिक निर्णय है, जो वर्षों से अस्मिता के संकट से जूझ रहे भारतीय गोरखा समाज को  अन्य राज्यों में भी यही पहचान देगा। अब सबसे पहले तो यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि हिमालयीलोग चैनल भारतीय गोरखाओं की इस मांग के साथ ही गोरखालैंड राज्य बनाए जाने की मांग का भी पुरजोर समर्थन करता है। भारत के अन्य समाजों के लोगों को भी इस बहादुर गोरखा जाति की इस  पुरानी मांग के समर्थन में खुल कर सामने आना चाहिए। गोरखा लोग कब तक बंगालियों के शासन में रहेंगे। भारत में पश्चिम बंगाल के गोरखालैंड क्षेत्र, सिक्किम, असम समेत पूर्वोत्तर के लगभग सभी राज्यों में गोरखा हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में भी हैं। भारत में आमतौर पर लोग भारतीय गोरखाओं को नेपाली अथवा भारतीय नेपाली कह देते हैं।सिलिगुड़ी निवासी डा. मणिकुमार शर्मा कहते हैं कि हमें नेपाली कहने पर ऐसा लगता था कि हम भारत के नहीं बल्कि नेपाल के रहने वाले हैं। गोरखालैंड आंदोलन के प्रणेता सुभाष घीसिंग के निकट सहयोगी रहे डा. शर्मा ने नेपाली की जगह गोरखा भाषा का प्रयोग करने को लेकर – गोर्खाभाषानाम (एक समीक्षात्मक दृष्टि) भारतीय परिप्रेक्ष्य मा—पुस्तक भी लिखी है। डा. शर्मा कहते हैं—–

यह सत्य है कि नेपाली शब्द नेपाल का निवासी होने का बोध देता है। नेपाली शब्द भारतीय गोरखा भाषियों का परिचायक नहीं हो सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने भी एक बार कहा था कि नेपाली नाम विदेशी है। भारतीय गोरखाओं की इस बात में दम है की देशवासियों को यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि वे भारतीय हैं नेपाली नहीं है। यही सत्य है और इसे सभी के समक्ष लाना ही श्रेष्ठ है। परंतु दुख की बात है कि अब भी लोग उनको नेपाली कहकर सत्य से भाग रहे हैं। गोरखा लोग कहते हैं कि नेपाली कहकर लोग हमें नेपाली बनाए रखना चाहते हैं । यह देश और गोरखाओं में से किसी के भी हित में नहीं है। इसलिए भारतीय गोरखा लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि उन्हें नेपाली न कहा जाए। लेकिन दुख की बात यह है कि आज भी अधिकतर लोग यही गलती कर रहे हैं। यह मांग १९८०के दशक में तेजी से ठी थी। गोरखालैंड राज्य गठन की मांग को लेकर सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में वर्ष 1986 से 1988 के दौरान हुए उग्र आंदोलन के दौरान भारतीय गोरखाओं ने गोरखा भाषा का मुद्दा भी उठाया था।

गोरखा भाषा को लेकर लेखक डा. उदय नारायण तिवारी पुस्तक– हिंदी भाषा को उद्गम और विकास– में लिखते हैं कि  नेपाल की राजभाषा गोरखाली है इसके लिए नागरी लिपि का प्रयोग किया जाता है। नेपाल ने गोरखा भाषा को ही राजभाषा बनाया था और कालांतर में भी गोरखा भाषा को ही नेपाल की सार्वभौमिकता के आधार पर नेपाली नाम दिया।  नेपाली शब्द नेपाल की सार्वभौमिक का नाम होने के कारण यह नाम भारतीय गोरखाओं का  परिचायक नहीं है।  गोरखा नाम गोरखा जाति के नाम पर है और यह हमारा जातीय, एथनिक परिचायक है। जैसे कि बंगाली भाषा बंगालियों की परिचायक है। गोरखा और नेपाली शब्द भिन्न है जैसे कि भारतीय और नेपाली शब्द भिन्न हैं।

गोरखा भाषा को लेकर डा. मणिकुमार शर्मा की पुस्तक गोर्खाभाषानाम (एक समीक्षात्मक दृष्टि) भारतीय परिप्रेक्ष्य मा—पुस्तक में लिखा है की गोरखा भाषा को लेकर भी स्थित साफ होनी चाहिए। इस पुस्तक में भाषाविद डा. भोलानाथ तिवारी  के हवाले से कहा गया है कि भाषा के अर्थ में गोरखाली का प्रयोग नेपाली से पुराना है। शासकीय स्तर पर गोरखाली भाषा के लिए नेपाली नाम का प्रयोग 1932 से हुआ। डा. तिवारी  लिखते हैं जो लोग सोचते हैं की गोरखाली भाषा का विगत कुछ वर्षों से आविष्कार हुआ, वे गलत हैं। अत: भारत के गोरखा अपनी गोरखा भाषा को  भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की जो मांग करते हैं, वह न्यायोचित है। यह ऐतिहासिक भूल को सुधारने की मांग भी है। डॉ भोला दत्त तिवारी  गोरखा भाषा और नेपाली भाषा की पृथकता के बारे में लिखते हैं कि गोरखा भाषा को नेपाल की राष्ट्रभाषा बनाने के लिए नेपाली  नाम दिया गया। इस तरह नेपाली शब्द यह अर्थ देता था कि नेपाल के हर नागरिक नेपाली माने जाते हैं चाहे उनकी भाषा बांग्ला, भोजपुरी, मैथिली, अंग्रेजी ही क्यों न हो। हम भारत के गोरखे  भारतीय हैं हम नेपाली नहीं हैं। हमारी भाषा का नाम नेपाली नहीं हो सकती है। केवल नेपाल के नागरिक ही नेपाली को अपनी राष्ट्रभाषा मान सकते हैं। हम भारतीय गोरखों को नेपाली भाषा स्वीकार कराने के लिए बाध्य  करने का अर्थ हमारा अभारतीयकरण करने समान है। यह अधिकार किसी को नहीं है। यह भी जानने लायक है कि भारत के रक्षा मंत्रालय के दस्तावेजों में हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, पंजाबी, उर्दू, मराठी, उड़िया, मलयालम, तमिल, तेलुगू, कनड़ के साथ ही गोरखा भाषा शामिल है न कि नेपाली।

 

एक पक्ष यह भी है कि पाकिस्तान ने उर्दू भाषा को पाकिस्तानी नाम देने की गलती नहीं की ।  पश्चिम बंगाल ने भी अपना नाम बदलकर बांग्लादेश और भाषा को बंगलादेशी नहीं कहा। यदि उर्दू भाषा का नाम पाकिस्तानी भाषा और बांग्ला भाषा का नाम बांग्लादेशी भाषा होता तो क्या भारत के राज्य पश्चिम बंगाल एवं पड़ोसी राष्ट्र बांग्लादेश का नाम बांग्लादेश ही होता। क्या बांग्ला भाषी लोगों को भारतीय बांग्लादेशी कह सकते हैं?  क्या उर्दू भाषी लोगों को  भारतीय पाकिस्तानी कह सकते हैं ?  अब तो भारत में बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं।  नेपाली बोलने के कारण क्या सिक्किम का नाम नेपाल हो सकता है ?  बंगाली, सिंधी, तमिल जैसी जातियों की तरह गोरखाओं की  भी गोरखा भाषा है।  इन्हें भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची में सकते हैं, लेकिन यदि पाकिस्तानी, बांग्लादेशी, श्रीलंकन जैसे राष्ट्रीय नाम को नहीं रख सकते। इसी तरह नेपाली को रखना भी उचत नहीं है। उसकी जगह गोरखा भाषा लिखा जाना चाहिए। वास्तव में इस तरह के शब्द दूसरे देश और उसकी भाषा को संबोधित करते हैं।

 भारत के संविधान की आठवी सूची में शामिल 22 भाषाओं में नेपाली भी शामिल  है। भारतीय गोरखे इसे गोरखा भाषा करने की मांग करते आ रहे हैं। इनकी दलील है कि भारत और नेपाल दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। नेपाल की भाषा नेपाली है। नेपाली को नेपाल में ‘खस कुरा’, ‘खस भाषा’ या ‘गोर्खा खस भाषा’ भी कहते हैं। यह नेपाल में शासन करने वाली  खस जाति की भाषा है। कुछ सन्दर्भों में इसे ‘गोर्खाली’ एवं ‘पर्बतिया’ भी कहते हैं।  खस भाषा नेपाली की तरह नेपाल भाषा भी  नेपाल के राष्ट्रीय भाषा है। गोरखा या खस भाषा नेपाल के अलावा भारत के सिक्किम, पश्चिम बंगाल, पूर्वोत्तर राज्यों -असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, उत्तराखंड में भी बोली जाती है। भूटान, तिब्बत और म्यानमार के भी अनेक लोग यह भाषा बोलते हैं।

गोरखा नेपाल का एक जिला है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि नेपाल शब्द की उत्पति काफी बाद में हुई थी। यानि एक समय में हिमालय के इस भू-भाग पर नेपाल नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। काठमांडू उपत्यका को ही नेपाल कहा जाता था। नेवारों से यह शब्द उत्पन्न हुआ। एकीकरण के तहत राजा पृथ्वीनारायण शाह ने इन पहाडी राज्यों को मिलाकर नेपाल राज्य बनाया। गोरखा शब्द गुरू गोरखनाथ और उनके नाथ संप्रदाय से संबद्ध है। गुरू गोरखनाथ के अनुयायियों को कालांतर में गोरख, गोरक्षक अथवा गोरखा नाम से जाना गया। गुरू गोरखनाथ गोरक्षा के पक्षधर थे इसलिए गोरक्षा का अपभ्रंश गोरखा बना। राजा पृथ्वीनारायण शाह ने अपनी शुरू में सेना में जिन जातियों को शामिल किया वे गोरखा कहलाए। बाद में सभी नेपाली व नेपाल मूल के लोग खुद को गोरखा कहने लगे। अंग्रेजों ने भी गोरखाओं की भाषा को गोरखा माना था। यह दुखद है कि पहले तो  1932 और  फिर 1956 में और आज भी गोरखा भाषियों को सत्ताधारी लोग नेपाली बनाए रखना चाहते हैं। यह गलत कार्य रोकने की आवश्यकता है। यह मानिसकता न तो भारत के हित में है, न गोरखा लोगों के। भारत सरकार को शीघ्रातिशीघ्र संविधान के आठवीं अनुसूची में  नेपाली भाषा के स्थान पर गोरखा भाषा दर्ज करना चाहिए।

 

भारत में गोरखाली भाषा बोलने वाली सबसे बड़ी आबादी पश्चिम बंगाल में रहती है। 2001 की जनगणना के मुताबिक़, यहां 10.23 लाख लोगों की मातृभाषा गोरखाली थी। अब अब यह संख्या लगभग 15 लाख से भी अधिक हो चुकी है। इसी तरह  सिक्किम राज्य के 62.6 फ़ीसदी लोग गोरखाली भाषा बोलते हैं। भारत में सन 1977 से ही इस क्षेत्रों के लोग गोरखा भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने की मांग करते रहे। भारत सरकार ने लंबे संघर्ष के बाद 1992 में यह मांग मान ली। लेकिन गोरखा भाषा की बजाए नेपाली लिख दिया। इस मामले में जब संसद में बिल पर रखा गया था तो  दार्जिलिंग क्षेत्र के  तत्कालीन सांसद इंद्रजीत खुल्लर ने लोकसभा में इस पर चर्चा के दौरान यह मांग उठाई थी। उन्होंने कहा था कि नेपाली भाषा तो नेपाल की भाषा है। भारत-नेपाल 1950 की संधि तथा केंद्र सरकार और गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ) के बीच  23 अगस्त 1988 की संधि के तहत भारतीय गोरखाओं की भाषा का नाम गोरखा ही होना चाहिए।

नेपाली शब्द की वजह से एक भ्रम की स्थिति देती है। गोरखा भाषा और नेपाली, दोनों में अंतर स्पष्ट हो जाना चाहिए। संविधान की संघ सूची में अब इस भाषा को नेपाली कहने का कोई तुक नहीं है और इसे सीधे तौर पर गोरखा भाषा लिखा जाना चाहिए।  जीएनएलएफ ने पश्चिम बंगाल की विधानसभा के उस प्रस्ताव का भी विरोध किया था जिसमें बंगाल में नेपाली को स्टेट लैंग्वेज में शामिल करने का प्रस्ताव था। जीएनएलएफ का साफ कहना था कि नेपाली नेपाल की भाषा है भारतीय गोरखा की भाषा गोरखा भाषा है । लोकसभा के चुनाव में आम तौर पर हमेशा से ही गोरखालैंड के निर्माण और गोरखाली भाषा की मांग  प्रमुखता से उठती रही है लेकिन उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। ये मुद्दे सिर्फ चुनावी नारे तक सीमित रह जाते हैं।

वास्तव में यह एक ऐसी साजिश ही है जो भारतीय गोरखाओं को नेपाली कहकर उनके मन और मस्तिष्क में बार-बार अंकित करना चाहते हैं कि वे  नेपाली है। जबकि भारत के गोरखा तो यही जानते हैं, यही मानते हैं कि यह  भारत ही उनका देश है। भारतवासियों को हमेशा याद रखना चाहिए की भारत के राष्ट्रगान-जन गन मन — की धुन बनाई और आजाद हिंद फौज के गीत -कदम-कदम बढ़ाए जा—– की  मधुर धुन बनाने वाले राम सिंह ठाकुर भी गोरखा समाज से थे। नेपाली और भारतीय गोरखाओं ने भारत के लिए हमेशा ही त्याग बलिदान दिया है। इसलिए भारत सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिए कि भारतीय गोरखाओं की पहचान नेपाल वासियों से भिन्न रहे।

 

दोस्तों, यह है भाऱतीय गोरखा समाज और उनकी गोरखा भाषा को लेकर पीड़ा। यह वीडियो आपको कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। इस चैनल का टाइटल सॉन्ग भी सुनिए। इस चैनल में है। मेरा ही लिखा है। हिमालयीलोग चैनल को लाइक और सबस्क्राइब करना न भूलना। हिमालय भारत जय हिमालय जय भारत       

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