नाग जाति यानी हिमालय के आदिजन –हिमालय की प्राचीन जातियां
परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली
दोस्तों, हिमालय क्षेत्र की प्राचीन जातियों की जानकारी देने के क्रम में इस बार आपके लिए नाग जाति के इतिहास को लेकर आया हूं। भगवान भोलेनाथ और सांपों की पूजक यह जाति प्राचीन काल से हिमालयी क्षेत्र में वास करती रही है। यह भी कह सकते हैं की नागों की उत्पति हिमालय से हुई और फिर वे देश के अन्य क्षेत्रों में फैल गए। महाभारत काल में नाग जाति एक ताकतवर समाज के तौर पर उपस्थित थी। सर्प पूजक होने के कारण वे नागवंशी कहलाए। नाग सभ्यता में बैल को पवित्र पशु माना जाता था। भारत के विभिन्न राज्यों में नाग वंश के लोग हैं, जो आज भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। यह भी जानने लायक है कि भारत ही नहीं, विश्व के हर कोने में सांपों की पूजा की जाती है। इस वीडियों में यही जानकारी दे रहा । इसमें पौराणिक व ऐतिहासिक तौर पर सभी जानकारी शामिल है।
पहले पौराणिक साहित्य से शुरू कर रहा हूं। नाग प्राचीन मानव जातियों में एक प्रमुख जाति है। सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशियों की तरह ही नागवंशी भी हुए हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देव, असुर, दानव आदि की तरह नाग भी ऋषि कश्यप के वंशज हैं। ऋषि कश्यप की 17 पत्नियां थीं। इनमें से एक पत्नी कद्रू की कोख से दंदशूक नामक महासर्प उत्पन्न हुए। क़द्रू को सुरसा भी कहा जाता है । कश्यप और कद्रू के पुत्रों में अनंन्त यानी शेष, तक्षक , वासुकि ,ककोर्टक ,महापद्मम, पद्मम शंख,शंखपाल, क़लिक़,एलापात्र, अश्वत्तर तथा एरावत आदि बारह पुत्र हुए।
कहा जाता है कि सांपों की पूजा करने के कारण वे नाग कहलाए। कुछ विद्वान मानते हैं कि हिमालय के नागटोरम में निवास करने के कारण ये लोग नाग कहलाए। जबकि यह भी कहा जाता है कि वे एक फ़न , तीन फन व पांच फन या सात फन की माला व मुकुट धारण करते थे, इसीलिए नाग कहलाते थे । पौराणिक कथाओं के अनुसार सात तरह के पाताल में से एक महापाताल में नागलोक बसा था। पुराणों में नागों का वर्णन साहित्यिक तथा प्रतीकात्मक दोनों रूपों में मिलता है,क्योंकि नाग का अर्थ सांप, पवन , हाथी, बादल और पर्वत भी होता है । इन विविध पर्यायवाची शब्दों के कारण यह मान लिया जाता है कि वे सांप थे। जबकि कुछ लोग मानते हैं कि नाग और सर्प अलग-अलग हैं। कहा जाता है कि सभी नाग कद्रू के पुत्र थे जबकि सर्प क्रोधवशा के। ऋषि कश्यप की पत्नी क्रोधवशा से सांप या सर्प, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा हुए। अथर्ववेद में भी कुछ नागों के नामों का उल्लेख मिलता है। अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है।
नागों का हिमालय से घनिष्ठ संबंध रहा है। पुराणों के अनुसार नाग वंश के सभी लोग हिमालय में ही रहते थे। कश्मीर का अनंतनाग क्षेत्र अनंत यानी शेषनाग वंश का गढ़ था। कश्मीर के बहुत से क्षेत्र भी कद्रु के दूसरे पुत्रों के अधीन थे। नाग कुल का पहला राजा अनंत था, जिसे शेषनाग भी कहते हैं। नागों के कुलों की संख्या को लेकर अलग-अलग धारणाएं हैं। कुछ आठ और कुछ पांच कुल बताते हैं। शेषनाग भगवान विष्णु और उनके छोटे भाई वासुकी भगवान शिव के भक्त थे। नागों को देवताओं की श्रेणी में स्थान मिला है। भगवान विष्णु की शैया शेषनाग ही हैं। नाग वंशावलियों में शेषनाग को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। उनके बाद वासुकी हुए। वासुकी के बाद तक्षक और पिंगला ने शासन संभाला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था । माना जाता है कि नाग राजा तक्षक ने ही तक्षकशिला यानी तक्षशिला को बसाया। उनके नाम पर तक्षक वंश चला। इसी तरह नागवंश कर्कोटक, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अनत, अहि, मनिभद्र, अलापत्र, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना आदि ने भारतवर्ष के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राज स्थापित किए। इनके नामों पर नाग वंश भी चले।
देव-दानव संघर्ष के दौरान समुद्र मंथन के लिए भी वासुकी नाग को रस्सी के दौर पर लिया गया था।नागों के साथ आर्य जातियों के रोटी-बेटी के संबंध शुरू से रहे हैं। भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग को परास्त किया था। पांडव कुल के कुंती पुत्र अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से विवाह किया था । उनके पुत्र अरावन का दक्षिण भारत में मंदिर है और हिजड़े लोग उनको अपना पति मानते हैं। दुर्योधन ने जब भीम को विष दिया तो वे अपने नाना आर्यक नाग के पास ही पहुंचे थे। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह भी नागकन्या अहिलवती से हुआ था। उनका पुत्र वीर योद्धा बर्बरीक था। जो कि नेपाल के किरात वंश के संस्थापक राजा यलंबर के नाम से जाने जाते हैं। राजस्थान के श्याम खाटू महाराज भी वही हैं। इसी तरी तक्षक नाग ने पांडव कुल के राजा परीक्षित की हत्या कर दी थी। बाद में परीक्षित के पुत्र जन्मजेय ने तक्षक से बदला लिया था।
एक मान्यता यह भी है कि नागों का प्रभुत्व खत्म होने के बाद भारत में वैदिक सभ्यता पनपी। इसलिए नागों को असुर की माना जाता है। ऐतिहासिक तौर पर माना जाता है कि नागवंश का संस्थापक शिशुनाग था। शिशु नाग वंश का शासन काल लगभग 412 ई माना जाता है, जो कि मगध नरेश बिम्बिसार और अजातशत्रु के बाद था। माना जाता है कि समुद्रगुप्त के समय पद्मावती के भारशिव नागवंश का शासक नागसेन था। प्रयाग प्रशस्ति में उसका उल्लेख मिलता है। मथुरा में समुद्रगुप्त के समय में गणपतिनाग का शासन था। तीसरी शताब्दी के अंत में पद्मावती तथा मथुरा के नाग लोग मथुरा, धौलपुर, आगरा, ग्वालियर, कानपुर, झांसी आदि भूभागों तक फैल चुके थे। माना जाता है कि भारत में आज नाग, सपेरा या कालबेलियों की जाति के लोग भी नागवंशी हैं।
अब हिमालय और नागों की बात करते हैं। प्राचीनकाल में नाग भी मानवों की एक जाति थी। सर्पों की पूजा करते थे। इसलिए नाग और सर्प एक दूसरे के पयार्यवाची बन गए। नाग जाति के लोग कश्मीर में निवास करते थे। हिमालयी क्षेत्र में पौराणिक व एतिहासिक तौर पर यक्ष, गंधर्व, नाग, किरात, आदि कई जातियां रहती थीं। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागवंशी फैल चुके थे। विशेष तौर पर हिमालय की पर्वत श्रेणियों में वे खसों से पहले से थे और किरातों के समकालीन माने जाते हैं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में खसों और नागों के संघर्ष की कहानियां आज भी लोगों की स्मृतियों में हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई जगह नागों को खसों का दास बनकर रहना पड़ा था। कांगड़ा, कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ी इलाकों में नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है। पश्चिम बंगाल और बिहार में भी नाग जाति के लोग हैं। नाग वंशावली के पिंगला या पिंगली नाग जाति का पूरे हिमालयी क्षेत्र में आधिपत्य रहा। नाकुरी क्षेत्र को मानसखंड में नागपुरी कहा गया। उत्तराखंड में भी नागपुर क्षेत्र है।
माना जाता है कि कुषाणों के पतन के बाद मध्यभारत तथा उत्तर प्रदेश के भूभागों पर शक्तिशाली नागवंशों का उदय हुआ। कहा जाता है कि महाराष्ट्र का नागपुर शहर नागवंशियों ने ही बसाया था। वहां की नदी का नाम नाग नदी भी है। प्रसिद्ध इतिहासकार ए न बनर्जी भी नागों को असुरों की एक शाखा को नाग जाति मानते है । गियर्सन के अनुसार नाग जाति अनार्य थी और वे कश्मीर के हुंजा क्षेत्र के निवासी थे । कुछ विद्वान नागों को द्रविड़ मानते हैं। कुछ इतिहासकार नागों को शकों की एक शाखा मानते हैं, जो हिमालय के पार रहती थी । तिब्बतवाले अपने को नागवंशी और अपनी भाषा को नाग भाषा कहते हैं ।
यह भी कहा जाता है कि सिकंदर भारत की ओर हमला करने आया तो तक्षशिला में उसे एक नागवंशी राजा मिला । वह पंजाब के पौरव राजा से वैर रखता था । सिकंदर के साथियों ने देखा कि तक्षशिला के राजा ने सांप पाल रखे थे। उनकी पूजा करते थे। नागवंश के कुछ सिक्कों पर बृहस्पति नाग, देवनाग और गणपति नाग नाम लिखे प्राप्त हुए हैं। इससे नागवंश का शासनकाल 150 से 250 विक्रम संवत के मध्य प्रतीत होता है।
प्राचीन काल से ही भारत में नागों की पूजा की परंपरा रही है। नाग से संबंधित कई बातें आज भारतीय संस्कृति, धर्म और परम्परा का हिस्सा बन गई हैं, जैसे नागपंचमी, नाग देवता, नागलोक, नागराजा-नागरानी, नाग मंदिर, नागवंश, नाग कथा, नाग पूजा, नागोत्सव, नाग नृत्य-नाटय, नाग मंत्र प्रमुख हैं। माना जाता है कि 3000 ईसा पूर्व काल में भारत में नागवंशियों के कबीले रहा करते थे, जो सर्प की पूजा करते थे। यही कारण था कि प्रमुख नाग वंशों के नाम पर ही जमीन पर रेंगने वाले नागों के नाम पड़े थे। बंगाल में नाग ब्राह्मणों तथा कृषकों की भी उपाधि है। ओड़िशा के अधिकांश राज परिवार नागेश्वर गोत्र के हैं। आज देशभर में नाग वंशी लोग ब्राह्मण, क्षत्रिय, जाट, ओबीसी, दलित आदि सभी समुदायों में शामिल हैं। हिमालयी क्षेत्र में वे अपना अस्तित्व लगभग खो चुके हैं।
तो दोस्तों, यह थी नागों की गाथा। आपको कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। जै हिमालय-जै भारत।
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