परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार यह बताने जा रहा हूं कि गौरैया के घर में आने व उसके घोसला बनाने को लेकर ज्योतिष में क्या कहा गया है। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।
हर साल २० मार्च को विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) मनाया जाता है। गौरैया के संरक्षण के उद्देश्य से साल 2010 में इस दिवस को मनाने की शुरुआत की गई थी। इसकी आवश्यकता इसलिए आ पड़ी कि घरों के आंगन में चहकने वाली गौरैया की संख्या लगातार घटती जा रही है। गढ़वाल में नर गौरैया को घण्ड्वा और माना गौरैया को घंड्यूडी कहा जाता है। जिनका बचपन पहाड़ों में बीता है, उनका गौरैया और घघूती से अलग ही सबंध रहा है। जो अपनापन का अहसास दिलाता है। उत्तराखंड में मान्यता है कि यदि गौरैया किसी के घर में घोसला बनाती है तो यह सुख-शांति और सौभाग्य आने का संकेत माना जाता है।
मान्यता है कि चिड़िया का घर में घोंसला बनाना शुभ होता है। आमतौर पर चिड़िया गर्मी के मौसम में घरों में घोंसला बनाती हैं। किसी भी चिड़िया का घोंसला बनाना शुभ और सौभाग्य का संकेत ले कर आता है। ज्योतिष व वास्तु शास्त्र के अनुसार गौरैया के घर में घोसला बनाने से कई तरह के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। ऐसे में गौरैया के घोसले को कभी भी हटाना नहीं चाहिए। ज्योतिष के अनुसार यदि गौरैया अपना घोसला घर के पूर्वी भाग में बनाती है, तो मान-सम्मान में वृद्धि होती है। आग्नेय कोण पर घोसला बनाने से पुत्र का विवाह शीघ्र होता है । दक्षिण दिशा में ये घोंसला बनाए तो धन की प्राप्ति होती है। दक्षिण-पश्चिम कोण में घोसला बनाने पर परिजनों को दीर्घ आयु मिलती है। पश्चिमी भाग में घोंसला बनाएं तो लक्ष्मी की कृपा बरसती है. उत्तर-पश्चिमी कोण पर गौरैया का घोंसला बनता है तो सुख देने वाला होता है। इसी तरह उत्तर दिशा और ईशान कोण का घोंसला बनता है तो सुख-सुविधाएं प्रदान करता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार गौरैया के घर में घोसला बनाने से दस तरह के वास्तुदोष दूर होते हैं। इस तरह गौरैया का आना व घोसला बनाना हर तरह से शुभ है। यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि ये घोसले घर के खुले हुए हिस्से में होने चाहिए। घर के आंगन, पेड़, आंगन और बगीचे में चिड़ियों के घोसले शुभ माने जाते हैं। छत और चारदीवारी वाले हिस्से में इन्हें शुभ नहीं माना जाता है।
सनातन धर्म के ऋषि- मुनियों ने पशु-पक्षियों को भी धर्म व देवताओं से जोड़कर सभी प्राणियों की रक्षा और सम्मान करने की संस्कृति विकसित की। हिन्दू धर्म में देवी देवताओं के वाहन पक्षी हैं। जैसे कि भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर, माता सरस्वती का वाहन हंस, भगवान विष्णु का गरुड़, शनिदेव का वाहन कौवा और माता लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है। ये सभी वाहन पूजा स्थान में अपने देवों और दवियों के साथ पूजा ग्रहण करते हैं। इसलिए जब भी कोई भी पक्षी घर में आए तो उनका स्वागत करना चाहिए। उन्हें दाना-पानी देने का प्रयास करना चाहिए। यह हो सकता है कि वे शुभ सूचना ले कर आ रहे हैं। वैते तो घरों में गौरैया और कबूतर ही अपना घोंसला बनाते हैं। कबूतर को मां लक्ष्मी का भक्त माना जाता है। माना जाता है कि उनके निवास करने से घर में सुख शांति आती है। कबूतरों के निवास को उजाड़ना अशुभ माना जाता है। इसलिए उनके निवास को कभी उजाड़ना नहीं चाहिए। शहरों में बहुमंजिला मकान बनने से अब कबूतर ही ज्यादा दिखते हैं।
उत्तराखंडी समाज में यह नन्हीं चिड़िया (World Sparrow Day) सबसे अधिक प्रिय है। भारत में पाई जाने वाली चिड़ियों में लगभग की प्रजाति की अकले उत्तराखंड में पाई जाती हैं। देशभर में मिलने वाली पक्षियों की 1300 प्रजातियों में से आधे से अधिक यहां चिह्नित हैं। इसके बावजूद राज्य में गौरैया की संख्या में कमी देखी गई है। पहले लगभग हर आंगन में गौरैया चहकती थी, परंतु अब बीते कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या में तेजी से कमी आ रही है। यह बहुत चिंताजनक बात है।
भारतीय उपमहाद्वीप में गौरैया (World Sparrow Day) की छह प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें यूरेशियन ट्री स्पैरो, रसेट स्पैरो, हाउस चेस्ट नेक्स्ट स्पैरो, चेस्टनेट सोल्डर स्पैरो, एलो थ्रोट स्पैरो शामिल हैं। ये प्रजातियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यामांर, श्रीलंका, नेपाल समेत तमाम देशों में पाई जाती हैं।गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। यह पासेराडेई परिवार का हिस्सा है। विश्व के अधिकतर देशों में यह पाई जाती है। यह कह सकते हैं कि गौरैया ही एकमात्र पक्षी है जो दुनिया के लगभग सभी देशों में पाई जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार अंटार्कटिका और आर्कटिक को छोड़कर गौरैया दुनिया के सभी देशों में पाई जाती है।गौरैया के शहरों की बजाए गांवों में रहना पसंद करती है। वहां उसे दाना, पानी व ठिकाना आसानी से मिल जाता है। शहरों में तो कबूतर इन नन्ही चिड़िया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। शहरों में जब से बहुमंजिला इमारतें बनी हैं गौरैया विलुप्त होती जा रही है।
गौरैया का इकोलाजी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका है। वह जो लारवा और कीट का सेवन करती है, जिससे प्रकृति में कीड़े-मकोड़ों का संतुलन बना रहता है। गौरैया खेतों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेती है और किसानों की फसल बर्बाद होने से बचाती है। गौरैया की संख्या में कमी के कई कारण बताए जाते हैं। गांवों से शहरों में पालयन हो जाने से घर-आंगन में उन्हें दाना मिलना बंद हो गया है। इसी तरह खेतों में अब फसल के कीड़ों को मारने के लिए किसान कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं, इसका असर भी गौरैया पर दिख रहा है। भारत भर में अस्सी के दशक के बाद पहाड़ पर भी भवन निर्माण की परंपरागत शैली बदलना शुरू हो गई थी। लोग पहले लकड़ी और पटाले यानी पत्थर की स्लेट वाली छत वाले मकान बनाते थे। इन मकानों के अगले हिस्से पर छोटे से सुराख बनाकर इसलिए छोड़ दिए जाते थे कि गौरैया उनमें अपना आशियाना बना ले। जिंगलों में भी उनको घोसले मनाने की जगह मिल जाती थी। परंतु अब सीमेंट के घर बनने लगे हैं। ऐसे मकानों में गौरैया के आवास जगहही नही बची है। इसलिए भी अब पहाड़ पर गौरैया की चहचहाट कम हुई है। (World Sparrow Day)
हिमालयी के साथ ही पूरे देश में चिड़ियों की आबादी में भारी कमी देखी जा रही है। स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड रिपोर्ट- 2020 के अनुसार भारत में 867 पक्षी प्रजातियो में से करीब 80 प्रतिशत आबादी पिछले पांच छह साल के दरमियान कम हुई है। यह बात सभी सामने आई है कि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में 1700 और 2400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित जंगलों में चिड़िसंख्या गट रही है। फूलों से पराग और पौधों के बीज लेकर जैव विविधता में मददगार चिड़िया और खेत खलिहानों और बागानों में कीड़ों को खाने वाली चिड़िया भी कम हो रही हैं।
शहरों में गौरैया की संख्या घटने के लिए कई कारण हैं। बहुमंजिली इमारतों में गौरैया को रहने के लिए पुराने घरों की तरह जगह नहीं मिल पाती। इनमें कबूतर ज्यादा पनप रहे हैं। अब फ्लैट हैं, इनमें आंगन नहीं हैं। अब नयी संस्कृति में पंसारी की दूकानें घट रही हैं। इससे गौरेया को दाना नहीं मिल पाता है। मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। इससे इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है इससे गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है। एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि जंगल बहुत कम होता जा रहा है। अतः मांसाहारी पक्षियों ने शहरों गावों जहां जहां भी गौरैया चिड़िया रहती हैं, अपना बसेरा बना लिया है। घरों की छतों व गली मोहल्लों में छोटे बाज दिखने लगे हैं। वे गौरया को अपना शिकार मना रहे हैं। (World Sparrow Day)
इस विश्व गौयैया दिवस (World Sparrow Day) पर आवश्यक है कि हर घर-आंगन में चहकने और फुदकने वाली नन्हीं गौरैया को विलुप्ति से बचाया जाए। इसके लिए शहरों में रह रहे लोगों को कुछ कदम उठाने होंगे। एक तो अपने सीमेंट के मकानों के पास लकड़ी का ढांचा बनाकर रखलें। ताकि गौरैया उसमें घोंसला बना सके। यदि गौरैया आपके घर में घोसला बनाए तो उसे बनाने दें उसे हटाए न। प्रत्येक दिन अपने आंगन,बालकनी, खिड़की आदि के बास दाना-पानी रखें।गर्मियों में गौरैया के लिए रोज पानी रखें।
यह था गौरैया की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।