वसंत पंचमी: उत्तराखंड में दरबाजों पर क्यों लगाते हैं गोबर के साथ गेहूं-जौ कि बालियां

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वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार वसंत पंचमी को लेकर जानकारी लेकर आया हूं।

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वसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami) के दिन विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा की जाती है।वसंत या  बसंत पचमी को श्री पंचमी और ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है । माघ की शुक्ल पंचमी के दिन यह त्योहार मनाया जाता है | ऋषियों ने पूरे वर्ष को छह ऋतुओं में  बांटा है। इसमें वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद ऋतू , हेमंत और शिशिर ऋतु शामिल हैं। वसंत को सभी ऋतुओं  का राजा माना जाता है। इसी दिन से बसंत ऋतु प्रारंभ होती है। खेतों में फसलें लहलहा उठती है और फूल खिलने लगते हैं।  फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों के पीले फूल खिल जाते हैं। गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। आमों के पेड़ों पर बौर आ जाती हैं। रंग-बिरंगी तितलियां भी मंडराने लगती हैं। लंबी ठंड के बाद सुहावना मौसम होने लग जाता है।

मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था इसलिए बसंत पचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है । मां सरस्वती को विद्या एवम् बुद्धि की देवी माना जाता है। मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी समेत कई नामों से पूजा जाता है। वे विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण उन्हें संगीत की देवी भी कहा गया है। बसन्त पंचमी के दिन को मां सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।इस दिन लोगों को पीले रंग के कपडे पहन कर पीले फूलों से मां सरस्वती की पूजा करके उनसे विद्या, बुद्धि, कला, मधुर वाणी  एवं ज्ञान का वरदान मांगा जाता है। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए भी माघ महीने के पांचवें दिन यह त्योहार मनाया जाता है।इसमें  भगवान विष्णु और कामदेव की भी पूजा  की जाती है। उत्तराखंड में  इसी दिन बद्रीनाथ धाम स्थित  भगवान बद्री विशाल के मंदिर के कपाट खोलने की तिथि तय की जाती है। यह प्रक्रिया  पूर्व टिहरी रियासत के नरेंद्र नगर स्थित महल में शुरू होती है।

बसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami)उत्तराखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस दिन दान और स्नान का विशेष महत्त्व है। पवित्र नदियों व प्राकृतिक जल श्रोतों में स्नान करना शुभ माना जाता है। इस दन महिलाएं घरों की लिपाई- पोताई करती हैं। दरवाजे के पास दीवार पर गोबर से गेहूं –जौ की हरी पत्तियों को चिपकाया जाता है। घर की देहली पर सरसों के पीले फूल डाले जाते हैं।  इस दिन पकवान भी बनाए जाते हैं। इसी दिन खेतों को जातने का कार्य का शुभारंभ किया जाता है।  इस दिन नयी फसल को भगवान को भी चढ़ाया जाता है।

बसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami)का दिन अत्यंत शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिन बिना मुहूर्त निकाले कोई भी कार्य किया जा सकता है। इसमें बच्चों को कलम पकड्रकर उसके पढ़ने- लिखने की शुरआत की जाती है। छोटे बच्चों का अन्नप्राशन, कान- नाक छेदन, यज्ञोपवीत संस्कार,  सगाई व विवाह जैसे शुभ कार्य किए जाते हैं। इसके अलावा इसी दिन से होली के त्योहार का भी शुभारंभ होता है।

धार्मिक  शास्त्रों में बसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami)को ऋषि पंचमी भी कहा गया है। बसन्त पंचमी कथा सृष्टि से जुड़ीहै। सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों, विशेष तौर पर मनुष्य योनि की रचना की। परंतु वे अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से अनुमति लेकर अपने कमण्डल से जल छिड़का। पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था। जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया।  तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। ऋग्वेद में भी भगवती सरस्वती का वर्णन मिलता है।

पौराणिक कथा के अनुसार सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण और ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती की पूजा की थी।  देवी सरस्वती ने जब  भगवान श्री कृष्ण को देखा तो वह उनपर मोहित हो गयी और पति के रूप में पाने के लिए इच्छा करने लगी। इस बात का भगवान श्री कृष्ण को पता लगने पर उन्होंने देवी सरस्वती से कहा कि वे तो राधा के प्रति समर्पित है। परन्तु सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने मां सरस्वती को वरदान दिया कि विद्या की इच्छा रखने वाले माघ महीने की शुल्क पंचमी को तुम्हारा पूजन करेंगे। इस वरदान को देने के बाद सर्वप्रथम  भगवान श्री कृष्ण ने मां सरस्वती की पूजा की | यह भी मान्यता है कि इस दिन सबसे पहले पीतांबर धारण करके भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती का पूजन किया था। तभी से बसंत पंचमी के दिन  पीले वस्त्र पहनकर मां सरस्वती का पूजन किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार पीले रंग का संबंध गुरु ग्रह से है,  जो ज्ञान और धन के कारक माने जाते हैं।

इस त्योहार का पौराणिक महत्व भी है। कहा जाता है की भगवान राम भी मांता सीता को खोजते हुए इसी दिन शबरी के आश्रमआए थे। वसंत पंचमी का दिन  महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। इसी दन उन्होंने लुटेरे मोहम्मद गौरी  को शब्दभेदी बाण से मार डाला था।  यह घटना 1192 ई की वसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami)के दिन ही हुई थी। वसंत पंचमी से लाहौर निवासी वीर हकीकत से भी गहरा संबंध है। इसी दिन धर्मांध मुसलमानों ने उन्हें मृत्युदंड दे दिया था। पाकिस्तान में  वीर हकीकत राय की स्मृति में वसंत पंचमी (Vasant Panchami, Basant Panchami) पर पतंगें उड़ाई जाती हैं। पाकिस्तान की तरह भारत में भी कई जगह इस दिन पतंगबाज़ी भी की जाती है। वैसे तो पतंग उड़ाने का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुंचा।

यह था वसंत पंचमी की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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