एक थे राजेंद्र धस्माना

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस वीडियो में पत्रकार, लेखक, नाटककार, यायावर, आंदोलनकारी से लेकर संपूर्ण गांधी वांग्मय के प्रधान संपादक तथा दूरदर्शन व आकाशवाणी के समाचार संपादक रहे दिवंगत राजेंद्र धस्माना जी की स्मृति को समेट रहा हूं। जब तक मैं धस्माना जी के बारे में बताना शुरू करूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

राजेंद्र धस्माना (Rajendra Dhasmana)। 1990 के दशक में यह नाम बहुत चर्चित था। तब  ९० के दशक के शुरआती दौर में समाचार देखने एक मात्र चैनल दूरदर्शन ही था। तब आज की तरह के चौबीसों घंटे शोर शराबा मचाने वाले खबरिया चैनलों की भरमार न थी। आकाशवाणी ही समाचार सुनने का माध्यम था। राजेंद्र धस्माना इन दोनों संचार माध्यमों के न्यूज एडीटर थे। सरकारी विभाग में यह आज के संपादक जैसा पद था। धस्माना जी को चूंकि हिंदी की तरह अंग्रेजी पर भी कमांड थी। इसलिए दूरदर्शन पर हिंदी व अंग्रेजी के समाचारों के बाद बुलेटिन समाप्त होते ही अंत में नाम आता था- समाचार संपादक- राजेंद्र धस्माना। और उस दौर में टीवी पर यह देखकर सभी उत्तराखंडी गदगद हो जाते थे।

धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana) की अहमियत इसी बात से मालूम हो जाती है कि  जब हरिजन शब्द को लेकर बसपा देशभर में महात्मा गांधी को निशाने पर ले रही थी तो तब के सबसे प्रमुख अखबारों में शामिल जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी ने गांधी जी की प्रासंगिकता को लेकर लेख लिखने के लिए राजेंद्र धस्माना जी से आग्रह किया था।  गांधी जी ने अपने जीवन काल में जो कुछ किया, लिखा व कहा, उसे संग्रहित करने के लिए भारत सरकार ने जो सौ खंडों में संपूर्ण गांधी वांग्मय प्रकाशित कराया, उसके अंतिम दस खंडों के प्रधान संपादक राजेंद्र धस्माना ही थे। वैसे इन सौ खंडों में से 77 खंडों के प्रकाशन से धस्माना जी जुड़े रहे। उत्तराखंड, गांधी समेत हर विषय के वे इनसाइक्लोपीडिया थे।

एक और बात। जिसका मैं स्वयं साक्षी हूं। संयुक्त उत्तर प्रदेश के समय उत्तराखंड का नेता जो कि विधायक था, व फिर मंत्री बन गया, जब भी लखनऊ से दिल्ली आता था तो हर बार धस्माना जी से मिलने के लिए मुझसे अनुरोध करता था। तब मैं नया-नया पत्रकारिता में आया था। जनसत्ता से पत्रकारिता सीख ही रहा था। पहाड़ से नया-नया आया था, इसलिए पहाड़ीपन पूरा था। तब मुझे गलतफहमी थी कि विधायक, सांसद और मंत्री से मिलना बहुत बड़ी बात होती है। उस विधायक व फिर मंत्री बने नेता के आग्रह पर उसे मैं धस्माना जी से मिलवाता और धस्माना जी उसकी कोई बाइट लेकर उसका चेहरा दूरदर्शन पर  दिखा देते थे। तब दूरदर्शन पर चेहरा दिखाना बहुत बड़ी बात थी। बाद में वह नेता उत्तराखंड का मुख्यमंत्री भी बना और केंद्र में मंत्री भी। जैसे कि आमतौर पर पहाड़ी नेता होते हैं, मतलब निकल जाने पर पहचानते भी नहीं। धस्मानी जी  (Rajendra Dhasmana)के दूरदर्शन से संपूर्ण गांधी वांग्मय में जाते ही उस नेता ने भी धस्माना जी को कभी याद नहीं किया। उस कालखंड में धस्माना जी से मिलने के लिए आतुर रहने वाले उत्तराखंड के ऐसे कई नेता थे।  उत्तराखंड में आई लगभग सभी प्रदेश सरकारों का हाल यह रहा कि वहां कई फर्जी लोग तो उत्तराखंड राज्य के आंदोलनकारी घोषित कर दिए गए। परंतु राजेंद्र धस्माना जैसे  असंख्य लोगों को भुला दिया गया। जबकि धस्माना जी भारतीय सूचना सेवा के अफसर होते हुए व नौकरी में रहते हुए भी   उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में सक्रिय तौर पर भाग लेते रहे। खैर छोड़िए। बात आगे बढ़ाता हूं।  

उत्तराखंड में धस्माना गंगाड़ी ब्राह्मणों की एक प्रमुख जाति है। इनके प्रथम पुरुष श्रद्धेय हरदेव, वीरदेव, माधोदास उज्जैन से संवत 1723 में उत्तराखंड आए। धस्माणा लोग गौड़   हैं। गढ़वाल के धस्मण गांव में बसने से धस्माना कहलाए। इसी कुल में राजेंद्र धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana) का जन्म हुआ। राजेंद्र धस्माना जी दूरदर्शन और  ऑल इंडिया रेडियो के साथ ही संपूर्ण गांधी वांग्मय (Sampurna Gandhi Vangmay) के प्रधान संपादक भी रहे। जो कि अंग्रेजी में कलेक्टेट वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी (Collected Works of Mahatma Gandhi ) के नाम से प्रकाशित हुआ। संपूर्ण गांधी वांग्मय (Sampurna Gandhi Vangmay, Collected Works of Mahatma Gandhi )

के तहत – गांधी जी ने जो कुछ किया, कहा और लिखा, उसे संग्रहित किया गया। यह संपूर्ण वांग्मय  सौ खंडों में हैं। इस वांग्मय के हिंदी व अंग्रेजी के संस्करणों के अंतिम  10 खंडों के प्रधान संपादक राजेंद्र धस्माना जी थे। यह कह सकते  कि उनके प्रधान संपादक रहते हुए यह परियोजना  पूरी हो पाई थी। वे लेखक भी थे, नाटककार भी। सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय रहते थे। यायावर यानी घुमक्कड़ भी थे।सरकारी नौकरी में रहते हुए भी उत्तराखंड आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वे  दिल्ली के गढ़वाल भवन की संस्था गढ़वाल हितैषिणी सभा  और  उत्तराखंड पत्रकार परिषद के अध्यक्ष भी रहे। 16 मई 2017 को  धस्माना जी   81 साल की  उम्र में अतंत यात्रा पर चले गए।

धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana)से मेरा परिचय दिल्ली आने के बाद ही हुआ। तब मैं भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता का डिप्लोमा कर रहा था। तब वे मोती बाग रहते थे। एक दिन शाम को मैं उनके घर चला गया। मन में दुविधा, झिझक व संकोच था कि जिस व्यक्ति का नाम मैं रोज टीवी पर देखता हूं, कैसे होंगे। मिलने पर पाया कि वे बहुत सहृदय थे। मिलनसार थे। विद्वान थे। गांधी और उत्तराखंड समेत लगभग हर विषय के ज्ञाता थे। उन्हें जो एक बार मिल  जाता था, उनसे हमेशा के लिए जुड़ जाता था। मैं लंबे समय बाद पत्रकारिता में स्थापित हो जाने के बाद पत्रकारिता में पीएचडी कर रहा था तो उसी दौरान धस्माना जी से उनके जीवन, कार्यक्षेत्र तथा विभिन्न मुद्दों पर लंबी बातचीत की थी। उसी बातचीत के आधार पर आइए जानते हैं  राजेंद्र धस्माना जी को राजेंद्र धस्माना जी के शब्दों से, जो उन्होंने 2011-12 के दौरान मुझसे कहे थे। उन्हें पुस्तकें संग्रह करने की आदत थी । यह कह सकते हैं कि उनकी एक लाइब्रेरी भी थी ।

मैंने पूछा कि अपने परिवार के बारे में बताइए। धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana) ने कहा—मेरा जन्म नौ अप्रैल, 1936 को बग्येली गांव में  हुआ। हालांकि सरकारी कागजों में जन्म तिथि  10 जून 1937 है।  जैसा कि पहले सभी के साथ होता था। बग्येली गांव  पौड़ी जिले के एकेश्वर ब्लॉक व पाटीसैण क्षेत्र के पास है। यह  गांव पट्टी उत्तरी मौंदाड़स्यू, तहसील लैंसडौन के तहत है। मेरे दादाजी अमला नंद जी थे। वे प्रसिद्ध ज्योतिषी थे।वे पहले कराची रहे फिर अमृतसर, फिर पंजाब और फिर हापुड़ में रहे। उन्होंने ज्योतिष की गई पुस्तकें भी लिखी थी। मेरे पिताजी चंडी प्रसाद वैद्य थे। वे आर्य समाजी थे, वे अकेले भाई थे। इसलिए ज्योतिष का क्रम छूट गया। हमारा बड़ा परिवार था। हम कुल आठ भाई बहन थे । इनमें पांच भाई और  तीन बहनें। मैं उन में सबसे बड़ा था इसलिए जिम्मेदारी भी मेरे पर हिस्से में ज्यादा आ गई।

यह पूछने पर कि बचपन कैसे बीता? धस्माना जी ने कहा कि–मैं बहुत समृद्ध परिवार से था बचपन में खाते परिवार से था। 10- 12 साल तक कोई भी कमी नहीं थी, परंतु उसके बाद जीवन में ऐसी परिस्थितियां आई कि भोजन तक के भी लाले पड़ गए।  एक समय तो मुझे 12 या 14 दिन तक भोजन भी नहीं मिल पाया। मैं  एक धर्मशाला रहता था। वहां मैं बीमार हो गया था। उन्होंने मेरी गंभीर हालत देखकर मुझे बाहर सड़क पर फेंक दिया था। उधर से गुजरते हुए नया जमाना के संपादक राधा कृष्ण कुकरेती जी ने मुझे पहचान लिया और  हॉस्पिटल ले गए थे। इस तरह मेरी जान बच गई।

अपनी शिक्षा को लेकर धस्माना जी ने बताया था कि—  पांचवी तक मैंने गांव में पढ़ाई की। उसके बाद मैं हापुड़ आ गया था। हापुड़ में छठी से बारहवीं तक पढ़ाई की।  फिर मैंने बीए और एमए किया।

पत्रकारिता में कैसे आए इसके जवाब में धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana) ने बताया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में मेरा प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में चयन हो गया  था। मैंने दिसंबर 1960 में वहां ज्वाइन किया। चार साल तक प्रशिक्षण कार्य किया और अंत में मुझे पत्रकारिता में भेजने की बजाए मुझे प्रूफ रीडिंग में डाल दिया गया। इसके विरोध  मैं 1964 में अदालत चले गया। वहां मैं केस  जीत भी गया लेकिन मैंने फिर हिंदुस्तान टाइम्स ज्वाइन नहीं किया। उन्होंने यह भी बताया था कि महात्मा गांधी (Mahatma Gandi)के पौत्र राजमोहन गांधी गांधी भी उनके साथ ही थे । हिंदुस्तान टाइम्स  के संपादक तब मूलगांवकर थे। चूंकि पत्रकारिता में मेरा कोई गॉडफादर नहीं था इसलिए मुझे प्रूफ्र रीडिंग में डाल दिया गया था। प्रूफ्र रीडिंग के तहत छपने से पहले अखबार में लिखी खबरों को पढ़कर गलतियां ढूंढनी पड़ती हैं।

इसके बाद धस्माना जी ने आगे बताया कि – हिंदुस्तान टाइम्स को अलविदा कहने के बाद हेमकुंड प्रेस में नौकरी की। वहां स्कूल की किताबें छपती थी।  वहां मात्र १६ माह रहा।  मुझे नौकरी से मुझे हटा दिया गया था। क्योंकि वहां  विवाद हुआ था । मैं फिर से कोर्ट में गया और केस जीत गया। परंतु मैंने वहां भी नौकरी ज्वाइन नहीं की। फिर  नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल यानी राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद में पीआरओ बन गया। मैं डेली वेज पर था। बहुत कम पैसा देते थे, इसलिए ५-६ माह ही रहा। फिर लगभग एक साल तक छोटे-मोटे काम करता रहा। लगभग बेरोजगार जैसे रहा। कर्ज लेकर परिवार चलाया।

अप्रैल 1966 में मैं संपूर्ण गांधी वांग्मय आ गया। यह केंद्र सरकार के प्रकाशन डिवीजन का हिस्सा था। कुछ साल काम करने के बाद मैं  मिनिरल एक्सप्लोरेशन कारपोरेशन में पीआरओ नियुक्त होकर रांची चला गया था। परंतु मात्र तीन माह के भीतर ही इस्तीफा देकर वापस संपूर्ण गांधी वांग्मय आ गया। 1979 में मैं ऑल इंडिया रेडियो में आया और अंग्रेजी में न्यूज एडीटर रहा। आखिरी डेढ़ साल हिंदी में रखा गया, क्योंकि वहां हिंदी वाला कोई नहीं था।  फिर 1987 में दूरदर्शन में न्यूज एडीटर बन कर आया। उसके बाद फिर 1993 में मैं संपूर्ण गांधी वांग्मय में चला आया। संपूर्ण गांधी वांग्मय (Sampurna Gandhi Vangmay, Collected Works of Mahatma Gandhi )  के अंतिम 10 वॉल्यूम  यानी खंड मेरे चीफ एडिटर रहते हुए प्रकाशित हुए। यानी मैंने ही उनका संपादन किया। इसके बाद संपूर्ण गांधी वांग्मय परियोजना भी संपन्न हो गई थी। मैं 1995 में सरकारी सेवा से रिटायर हो गया।

 जीवन की उपलब्धियों को लेकर धस्माना जी ने कहा था कि उपलब्धियां तो  कभी गिनी ही नहीं । यह देखा ही नहीं कि मेरी उपलब्धियां क्या हैं। बस काम करता रहा। नदी की तरह बह रहा हूं। समुद्र में जाकर मिलना है, वहां भी खारा ही होना है। नदी की तरह जीवन  जिया। नदी की क्या उपलब्धि हो सकती है। वह तो बस बह रही है।

पुनर्जन्म को लेकर उनका कहना था कि पुनर्जन्म में विश्वास नहीं है। मेरे हिसाब से यह हो नहीं सकता है। आत्मा एक व्यक्ति है मेरा यह मानना है और जब आत्मा शरीर से चली गई तो पता नहीं कहां गई। वह दोबारा नहीं आती है। एक वृक्ष का पुनर्जन्म नहीं हो सकता है । फल का बीज हो सकता है। मनुष्य का बीज उसकी संतान होती हैं। यदि पुनर्जन्म हो तो पापुलेशन कंट्रोल नहीं हो सकती है।

अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर उन्होंने  (Rajendra Dhasmana) कहा कि –महत्वाकांक्षा कभी नहीं रही। किसी एक के पीछे नहीं रहा । जो काम मिलता रहा, बस उसे करता रहा।  मैं करियर के बारे में स्पष्ट नहीं था।  काम के प्रति भी नहीं था । मंत्रियों, नेताओं से नहीं मिलता था। यदि ऐसा होता तो कभी का बहुत कुछ झपट देता है । इन चीजों की इच्छा नहीं होती थी । जैसे कि मैंने पहले कहा कि मैं नदी की तरह बस जीवन जीता रहा हूं, पहले महत्वाकांक्षा नहीं थी।  लोगों के बीच  जतना ज्यादा काम करोगे,  उससे ज्यादा लोग जुड़ेंगे। सिर्फ स्वार्थ के लिए काम करोगे तो लोग कट जाएंगे। समाज के लिए काम करोगे तो वह झलकता है। मेरा प्रयास रहा कि लोगों के बीच रहूं। मैं पहाड़ में बहुत घूमा। लोगों से मिलता रहा। गढ़वाल और कुमायुं, दोनों जगह बराबर घूमा हूं।

अपने संघर्ष को लेकर धस्माना जी ने कहा था कि –मैंने संघर्ष किया नहीं। भारत में संघर्ष करना पड़ता है। भारत की परिस्थितियां ही ऐसी है कि उनके कारण लोगों को बिन चाहे संघर्ष करना पड़ता है। गरीब लोगों की अस्तित्व की इतनी लड़ाई है। लोकतंत्र में यह सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह गरीबों को कपड़ा दे, नौकरी दे। यहां संघर्ष गरीब परिवार का होता है। वैसे संघर्ष कोई भी चीज नहीं होती है। अपनी रोजी-रोटी, पढ़ाई का खर्च निकालना संघर्ष मान लिया जाता है। जब साधन नहीं होते हैं तो वही उसका संघर्ष है।

आप किस से प्रभावित रहे। इस पर धस्माना जी का कहना था कि मैं किसी को अपना प्रेरणा स्रोत नहीं मानता। किसी से प्रभावित होने वाला व्यक्ति भी सीमित हो जाता है। वह स्वतंत्र काम नहीं कर सकता है। प्रेरणा शब्द का प्रयोग कवि ज्यादा करते हैं  (Rajendra Dhasmana)। कविता लिखने में यह सब चलता है।  परिवार से भी प्रेरणा की बात नहीं हो सकती है। परिवार में प्रेरणा नहीं बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी से काम होता है।

आप ईश्वर को मानते हैं? इस पर धस्माना जी ने कहा था कि  जब सवालों के जवाब नहीं मिलते तो ईश्वर का नाम दे दिया । उन्हें ईश्वर के नाम पर सौंप दिया। सबसे बड़ा ईश्वर तो मनुष्य ही है।

 आपने क्या खोया ? इसके उत्तर में धस्माना जी ने कहा था कि – मैंने सिर्फ समय व नींद खोई। ज्यादातर समय बड़े परिवार के लालन-पालन में खोया। परिवार में अट्ठारह उन्नीस लोग थे।  20- 25 साल तक, वह भी राजधानी दिल्ली में। सबके पालन-पोषण में लग गया। नींद और समय खोया।

परिवार से कभी कुछ छिपाया? धस्माना जी ने कहा था कि मैंने खुद कोई भी चीज कभी नहीं छुपाई। मेरे बारे में सभी कुछ बच्चों को भी पता है। मैंने पैसा, चिट्ठी, मन की बात आदि कुछ नहीं छुपाया। भूल कर रह जाए, याद न रहे तो अलग बात है। जानबूझकर कभी कुछ नहीं छुपाया।

दिल्ली में कब आए व दिल्ली के उत्तराखंडी समाज को लेकर क्या सोचते हैं? इस पर धस्माना जी ने कहा था कि —रोजगार के लिए मैं दिल्ली 1960 में आया। हालांकि 1947 में पहली बार दिल्ली आया था। उत्तराखंडी समाज को लेकर धस्माना जी ने कहा था कि— गढ़वाल में कमिश्नर रहे अंग्रेज अफसर पी मैसन ने उत्तराखंडी, विशेषतौर पर गढ़वालियों के तीन गुण बताएं थे कि वे परिश्रमी हैं, ईमानदार हैं और विश्वसनीय हैं। परंतु मेरा विचार यह है कि ये सभी गुण होने के बावजूद इनमें एकता नहीं है। जो कोई अच्छा काम करता है, उसकी टांग खिंचाई करते हैं। इनकी एक  विशेष प्रवृत्ति यह है कि  अपने को बड़ा और दूसरों को छोटा मानते हैं। अपनों में से किसी का नेतृत्व स्वीकार न करना, यह बड़ा अवगुण है। टांग खिंचाई करने वाले ज्यादा हैं। यदि इनमें एकता होती तो आज दिल्ली में इनके कई विधायक होते।  गरीब रहने तक एक- दूसरे पर निर्भर रहने वाला समाज है, लेकिन जैसे ही इस समाज में समृद्धि आने लगी, उसके बाद एकता खत्म होती चली जाती है। यह प्रक्रिया  सतत जारी है।

जेरासना मांद्रध नाम से आप ही लिखते थे न।  इस पर धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana) ने कहा था कि यह मेरा ही नाम था। राजेंद्र धस्माना को आगे पीछे करके यह नाम दिया। दरअसल, किसी व्यक्ति को मेरे ज्यादा लेख चाहिए थे। हर लेख पर एक ही नाम होता तो यह ठीक नहीं लगता। पहले तो मैंने कुछ दिन बसंत राजे के नाम से भी लिखता रहा। इस नाम में मेरी पत्नी बसंती व राजेंद्र को जोड़ा गया था। परंतु किसी ने कहा कि राजे होने से यह महिला का नाम लगता है। इसलिए अल फिरदौसी व जेरासना मांद्रध नाम से लिखता रहा।

आपके मित्रों में हर उम्र के लोग  शामिल हैं। इस पर इस पर धस्माना जी ने कहा था कि दोस्ती अपने से कम उम्र के वालों से करनी चाहिए। युवाओं में नयी  बात को स्वीकार करने की क्षमता ज्यादा होती है। जबकि बुजुर्ग लोग जड़ हो जाते हैं। बूढ़ा आदमी बेतुके व अर्थहीन तर्क देता है। वह परिवर्तन को जल्दी स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है। वह सोचता है कि वह जो सोचता है वही श्रेष्ठ है।  बाकी सब अंधकार ही अंधकार है । इसलिए आज जो जनरेशन गैप है वह इसीलिए की बुजुर्ग लोग जवानों से मिलते नहीं हैं। मैं बूढ़ा नहीं हूं, मुझे कोई बूढ़ा कहे तो बुरा लगता है।

आपने कभी प्रेम किया। इस पर इस पर धस्माना जी ने बेबाकी से कहा था कि हां मैंने खूब प्रेम  किया। लेकिन प्रचारित नहीं किया। जब प्रेम असफल होता है तो प्रसारित भी हो जाता है। (Sampurna Gandhi Vangmay, Collected Works of Mahatma Gandhi )

आपने संपादन, नाटक और लेखन के बारे में बताइए। इस पर इस पर धस्माना जी ने कहा था कि आकाशवाणी और दूरदर्शन के अलावा मैं संपूर्ण गांधी वांग्मय (Sampurna Gandhi Vangmay, Collected Works of Mahatma Gandhi ) के सौ खंडों में से ७७ खंडों से जुड़ा रहा हूं। इसके अंतिम  10  खंड मेरे प्रधान संपादक रहते हुए प्रकाशित हुए। इसके अलावा कई लेख उत्तराखंड व गांधी पर भी लिखे। नौकरी के साथ ही मैं स्वतंत्र पत्रकारिता भी करता रहा।  परिवलय नाम से मेरा कविता संग्रह भी है। कई नाटक भी लिखे व उनका मंचन भी किया। मैंने 1975 में गढ़वाली नाटक जंकजोड़ लिखा। इसी तरह अर्धग्रामेश्वर भी लिखा। भवानी दत्त थपलियाल के नाटक प्रह्लाद  को गढ़वाली में लिखा। कन्हैया लाल डंडरियाल के नाटक कंसवध  को मैंने जनता सरकार के समय कंसानुक्रम में बदला।  महेश एलकुचवार के कोंकणी नाटक को गढ़वाली में — पैसा न धल्या, गुमान सिंह रौतेल्या– में रूपांतरित किया। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान जय भारत, जय उत्तराखंड नाटक लिखा व मंचन भी किया। इन सभी के कई शो हुए। मैंने सबसे ज्यादा मेहनत  माधो सिंह भंडारी नाटक लिखने पर की, परंतु उसका एक भी मंचन नहीं हो पाया। विभिन्न संस्थाओं के लिए कई स्मारिकाएं भी निकाली। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान मैं नौकरी में था। इसके बावजूद मैंने मुजफ्फरनगर कांड के पीड़ितों के बयान भी दर्ज कराए थे। बाद में उन बयानों का हलफनामा कोर्ट में दिया गया था।  कुछ दिनों एक पार्टी में भी रहा, परंतु जल्दी ही छोड़ दी।

संपूर्ण गांधी वांग्मय (Sampurna Gandhi Vangmay, Collected Works of Mahatma Gandhi ) के प्रधान संपादक होने के नाते गांधी जी को लेकर कोई एक महत्वपूर्ण बात बताइए। इस पर धस्माना जी  (Rajendra Dhasmana)ने कहा था कि गांधी (Mahatma Gandi)को लेकर एक बात गलत फैलाई गई। वह यह कि गांधी ने कहा था कि कोई एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल भी दे दो। उन्होंने कभी भी ऐसा नहीं कहा। यह गलत  प्रचारित किया गया था । संपूर्ण गांधी वांग्मय को देखिए, गांधी (Mahatma Gandi)ने कहीं भी ऐसा नहीं कहा था। गांधी जी की लेकर जनसत्ता के प्रधान संपादक प्रभाष जोशी ने भी एक लेख मुझसे लिखवाया था। वह लेख था- प्रासंगिक हैं गांधी (Mahatma Gandi) ।

 आपके जीवन में पत्नी की क्या भूमिका रही? इस पर धस्माना जी ने कहा था कि- बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही। जितना मैने कष्ट सहा, उसने भी सहा। उस पर ज्यादा बोझ रहा।

यह था राजेंद्र धस्माना जी के जीवन पर लघु कहानी। यह उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि है। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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