अपनी मामी से शादी करके भी जागरों में पूजा जाने लगा अत्याचारी राजा

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— और राग बन गया- मामी तिलै धारो बोला…..

हिमालय के दिलचस्प राजा- दो

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

हिमालय के दिलचस्प नरेशों की कड़ी में इस बार एक ऐसे राजा के बारे में बताने जा रहा हूं, जो कि सबसे बड़े अत्याचारी के तौर पर याद किया जाता है। उस कत्यूर नरेश ने अपनी मामी से जबर्दस्ती शादी कर ली थी। आप लोगों ने पहाड़ में गीतों के साथ एक राग पंक्ति भी सुनी होगी– मामी तिलै धारो बोला। यह भी इसी प्रकरण के बाद शुरू हुई थी। यह भी जानने लायक है कि तमाम अत्याचारों के बावजूद उस राजा को जागरों में पूजा जाता है।

उत्तराखंड के जागरों में इस राजा के अत्याचारों का वर्णन मिलता है। कत्यूरी वंश का वह अंतिम राजा था। तब कत्यूर वंश बर्बादी की तरफ चल पड़ा था। कहा जाता है कि वह अंतिम कत्यूर राजा अपने भंडार से गेहूं पीसने को देता था तो उल्टी नाली से देता था, जो कि लगभग दो सेर के बराबर होता था। इसी तरह वह  कूटने के लिए भी उल्टी नाली से अन्न देता था और सीधी नाली से वसूलता था। यानी देता दो सार था और लेता चार सेर था। यह कह सकते हैं कि बहुत कम अनाज कूटने को देता था और ज्यादा वसूलता था। पिसवाए आटे को सात छलनियों से छान कर लेता था। कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे अपनी पुस्तक कुमायुं का इतिहास में लिखते हैं कि प्रत्येक गांव को यह बेगार देनी पड़ती थी। इस आटे को छानने के लिए जहां बांस की सात चटाइयों को लगाया जाता था,  वह पत्थर  कत्यूर के तैलीहाट गांव में मौजूद है। मालगुजारी धन के रूप में नहीं, बल्कि संपत्ति के रूप में ली जाती थी। उसके राज में कर का कोई नियम नहीं था। जैसा मन में आया कर लगा दिया जाता था।

प्रजा में जो भी सुंदर लड़के- लड़कियां होते थे उनको दास- दासिया बनाने के लिए जबरदस्ती घर से मंगा लिया जाता था।  राज महल से लगभग 6 मील दूर कौसानी के निकट हथछीना नौला का मीठा व स्वास्थ्यवर्धक पानी कत्यूर राजाओं के पीने के लिए रोज आता था। अब तक उस नौले का नाम धामदेव,  ब्रह्मदेव का नौला है। वहां से पानी लाने के लिए रास्ते पर दोनों ओर से बर्तन लाने व ले जाने के लिए रात दिन दासों की कतार खड़ी रहती थी।  जो हाथों हाथ पानी महल तक पहुंचाते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिव प्रसाद डबराल चारण अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि वह अत्याचारी राजा  प्रजा से जवान युवक और युवतियों तथा मोटे बकरों को छीन लेता था। प्रजा से बेगार लेता था। प्रजा के पुत्र-पुत्रियों को दास-दासी बना लेता था। सुंदर युवतियों को अपने रनिवास में डाल देता था।

यह कहानी है कत्यूर वंश के अंतिम शासक ब्रह्मदेव (Katyhur naresh viram dev)की। जागरों में उसे वीरमदेव या वीरदेव कहा गया है। माना जाता है कि आसंतिदेस ने कत्यूर राज्य की स्थापना की । इसी वंश का अंतिम शासक ब्रह्मदेव था। वह अत्याचारी व कामुक शासक था। प्रजा उसके अत्याचारों से त्रस्त थी। वीरमदेव के कार्यकाल को लेकर इतिहासकार एक मत नहीं हैं। माना जाता है कि उसका कार्यकाल ११वीं से १२वीं सदी के बीच रहा है। अनुश्रुतियों से मालूम होता है कि कटारमल के शासन के अंतिम दिनों में कत्यूर वंश की एक अन्य शाखा में उत्पन्न वीरमदेव ने कत्यूरी राज्य के बड़े भूभाग पर अधिकार कर लिया था। लोक गाथाओं के अनुसार (Katyhur naresh viram dev)वह  चंद नरेश थोरचंद का समकालीन था।

इस अत्याचारी राजा (Katyhur naresh viram dev)ने अपनी मामी को अपनी रानी बना दिया था। बद्रीदत्त पांडे लिखते हैं कि उसने यहां तक अत्याचार कर दिया था कि प्रजा को चढ़ाने  लिए अपनी मामी से जबरदस्ती विवाह कर लिया था।  कहते कि –मामी तिलै धारू बोला–  यह ग्रामीण राग तभी से चल पड़ा। उसकी मामी का नाम तिला उर्फ तिलोत्तमा देवी था। हालांकि डा. डबराल उसका नाम दुला या तिलू पदानी मानते हैं। राजा वीरमदेव ने अपनी मामी से व्यभिचार करके अपने पाप के घड़े को भर दिया था।

वह राजा कहीं भी आने-जाने के लिए  डांडी यानी पालकी का प्रयोग करता था। पालकी उठाने वाले कहारों के कंधों को छेद कर उनमें लोहे का कड़ा डाल देता था। उन कड़ों में डांडी के डंडों को बांध  दिया जाता था। ताकि डांडी वाले राजा से बदला लेने के लिए उसे पहाड़ी से नीचे न गिरा दें। अंतत: दो बहादुर लोग मिल ही गए। उन्होंने सोचा कि हमारा जीवन तो बर्बाद हो ही गया  है, बाकी लोगों का जीवन बचा लेना चाहिए। उन्होंने सोचा कि इस अन्यायी राजा को क्यों छोड़ा जाए।  एक दिन उन लोगों ने गुप्त मंत्रणा कर राजा को पहाड़ी से नीचे फेंकने की योजना बनाई । उन दोनों लोगों के कंधों में डंडे बंधे थे । राजा पालकी में था। वे दोनों डांडी यानी पालकी के साथ पहाड़ से नीचे कूद गए। इस  तरह जालिम राजा वीरम देव मारा गया। बद्रीदत्त पांडे अपनी पुस्तक कुमायुं का इतिहास में लिखते हैं कि उस जालिम राजा की मृत्यु के बाद उसकी संतानों में भारी युद्ध छिड़ गया था। भाई- भाई में भारी लड़ाई हुई। सारा कत्यूर राज्य  छिन्न-भिन्न  हो गया। कत्यूर वंश के लोगों ने सारा राज पाठ आपस में बांट लिया था। वे पहले जहां के प्रांतीय शासक या फौजदार थे, वहां उन्होंने अपने को स्वतंत्र नरेश घोषित कर लिया था। इस तरह वीरमदेव के पापों के कारण कत्यूर राज्य बिखर गया। यह भी जानने लायक है कि आज भी कुमायुं और गढ़वाल में उस अत्याचारी राजा वीरमदेव की पूजा होती है। जागरों यानी देव गायन में उसके अत्याचारों का वर्णन मिलता है।  उसे पूजा इसलिए जाता है कि तब मान्यता था कि कहीं उसका भूत लोगों पर चिपट न जाए। अर्थात उसका भूत लोगों पर न आ जाए। (Katyhur naresh viram dev)

यह थी अत्याचारी राजा वीरम देव (Katyhur naresh viram dev) की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें।आपसे अनुरोध है कि हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला—और अंतिम गीत – नदियों के गीत को भी सुन लेना। मेरे ही लिखे हैं और  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – न्यूज लाइन –को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

 

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