ग्वाल टिल्ला- हिमाचल प्रदेश की लोककथा

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कैसे अनजान होने पर भी एक-दूसरे के लिए प्राण दे दिए थे

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

हिमालयी क्षेत्र में प्रेम की अदभुद लोककथाएं हैं। जिनको लोग बहुत कम जानते हैं। बंबइया फिल्में बन जाने से लैला- मजनू, हीर-रांझा आदि को तो सभी जानते हैं, परंतु हिमालयी क्षेत्र की इन अदभुद और अनूठी प्रेम कथाओं को मैदानी लोग नहीं जानते। खुद अधिकतर पहाड़ी लोग भी नहीं जानते। यह पहाड़ी लोगों की भी कमी है कि वे अपने इतिहास, संस्कृति, भाषा आदि को लेकर अधिक सचेत नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश के पालमपुर की यह लोककथा भी ऐसी है कि जब एक दूसरे को बिना जाने ही, बिना देखे ही यह प्रेमी जोड़ा मर मिटा था।  हिमाचल प्रदेश में रांझू- फुलमो और कुंजू- चंचलो की प्रसिद्ध प्रेम कहानियां भी हैं। इनके बारे में  अलग से बताऊंगा। अभी पालमपुर के इस प्रेमी जोड़ी की कहानी सुन लेते हैं।  

हिमाचल प्रदेश के पालमपुर क्षेत्र के भेड़ बकरी पालक अपनी दंत कथाओं में इस  कहानी का उल्लेख करते हैं । यहां पालमपुर को हमीर पुर से मिलाने वाली सड़क पर ११ किलोमीटर दूरी पर भवारना कस्बा है। वहां से लगभग १७ किलोमीटर आगे जाने पर थुरल नामक स्थान आता है। इसी थुरल से दो किलोमीटर दूर एक छोटी सी नदी के पार स्थित एक टीला है। उसे  ग्वाल टीला कहा जाता है। कहानी इसी से जुड़ी है। बहुत पुरानी बात है। कहा जाता है कि बहुत पहले इस ग्वाल टीले के पास से एक बारात डोली ले कर जा रही थी। तब वे बाराती पैदल ही पालकी ले कर जा रहे थे। चढ़ाई चढ़ कर आ रहे बाराती लोग और कहार थक चुके  इसलिए उन्होंने कुछ देर आराम करने की सोची। वे टीले के पास पीपल के वृक्ष की छाया में बैठ गए। बारात के साथ आई महिलाओं ने दुल्हन को ताजी हवा देने के लिए डोली के सब परदे उठा दिए। पास ही टीले के ऊपर एक ग्वाला लड़का अपनी गाय-भैंस चरा रहा था। चरवाहे को हिमाचल प्रदेश में ग्वाला भी कहते हैं।

उस ग्वाले ने भी उस दुल्हन को देख लिया। खूबसूरत लाल दुपट्टे का घूंघट ओढ़े बैठी दुल्हन को देख कर उस ग्वाले के मुंह से अनायस ही निकल पड़ा—‘आर जरारी पार जरारी, लाल घुंडे वाली मेरी लाड़ी।’ अर्थात् इधर झाड़ी उधर भी झाड़ी, बीच बैठी लाल घूंघट वाली मेरी लाड़ी (पत्नी)। बात इस तरह कही गई कि दुल्हन के साथ ही  उस की सखियों ने भी सुन लिया।  यह बात दूल्हे और बाकी बारातियों तक जा पहुंची। उन में नोक-झोंक आरम्भ हो गई। किसी ने ग्वाले को ताना मारते हुए कहा कि इस सुन्दर लाड़ी का इतना ही शौक है तो इस टीले से छलांग लगा दे। देखें तेरा प्रेम सच्चा भी है या नहीं। बात मजाक में कही गई थी। परंतु चरवाहे को भी जाने क्या सूझा उसने आव देखा न ताव, झट ऊंचे टीले से गहरी खाई में छलांग लगा दी। जब तक कोई समझ पाता, ग्वाले के प्राण पखेरू उड़ गए थे। उसकी मृत्यु हो चुकी थी।

इससे  बाराती घबरा गए। वे अपना डेरा उठा कर वहां से भागने की तैयारी करने लगे। लेकिन तभी दुल्हन ने वहां से जाने से इन्कार कर दिया। वह कहने लगी कि ऐसे सच्चे प्रेमी को छोड़ कर वह नहीं जा सकती, वह तो उस ग्वाले की लाश के साथ ही सती हो जाएगी। लोग उसे समझाने लगे, परिवार की इज्जत का वास्ता भी दिया। परंतु दुल्हन ने तो जैसे जिद पकड़ ली थी। अभी लोग इस समस्या का हल सोच ही रहे थे कि दुल्हन जरा सा मौका पाकर भाग निकली और जब तक लोग कुछ समझते उसने भी उसी टीले से कूद कर जान दे दी।

यह विचित्र भी बात है कि ग्याला और दुल्हन एक-दूसरे से अनजान थे। एक एक दूसरे को जानते तक नहीं थे, जिन्होंने एक दूसरे को ठीक से देखा भी नहीं था, इस तरह एक- दूसरे के लिए प्राण दे बैठे।  जैसे कि एक-दूसरे के लिए लिए ही बने थे। बारात का जाना रुक गया। आने जाने वाले भी इन अन्जाने प्रेमियों के सम्मान में रुक गए। उन्होंने इन अपरिचित प्रेमियों का दाह संस्कार एक ही चिता पर रख कर दिया। बाद में उस स्थान पर गोल-गोल पत्थरों की समाधि बना दी गई। जो भी इस राह से गुजरता उन प्रेमियों की श्रद्धांजलि स्वरूप एक पत्थर वहां अवश्य  लगा देता।इस तरह यह कथा और वे दोनों ही प्रेभी  ग्याल टीले के तौर पर लोककथाओं में अमर हो गए। इस तरह एक-दूसरे से अनचान दो प्रेमी इतिहास का हिस्सा बन गए। लोगों की कथाओं के पात्र बन गए।

 

 

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार हिमाचल प्रदेश की लोककथा ग्वाल टील्ला लाया हूं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज.

 

दोस्तों यह थी ग्वाल टीले की कथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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