परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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देवों के देव महादेव भगवान भोलेनाथ का वाहन नंदी है। यानी बैल। भगवान शिव के मंदिर में हम सभी नंदी को देखते हैं। जहां भी शिव होंगे वहां नंदी भी होंगे। शिवजी की प्रतिमा या शिवलिंग होगा, वहां नंदी को भी विराजमान होते हैं। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार लगभग सभी देवी-देवता के वाहन हैं, वे पशु-पक्षी हैं। आपने कभी सोचा है कि आखिर नंदी कैसे भगवान शिव का वाहन बन गया ? इस बारे में पहले तो शिवपुराण में कही बातें बताता हूं, उसके बाद असमी लोकसथा Shivji Ka Vaahan Nandi- Assam ki Lok-Katha।
शिवपुराण के अनुसार प्राचीन काल में शिलाद नाम के ऋषि थे। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की थी। जिसके बाद भगवान शिव ने उनको नंदी के रूप में पुत्र दिया था। एक बार शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुण नामक दो संत आए थे। जिनकी सेवा का जिम्मा शिलाद ऋषि ने अपने पुत्र नंदी को सौंपा। नंदी ने पूरी श्रद्धा से दोनों संतों की सेवा की, संत जब आश्रम से जाने लगे तो उन्होंने शिलाद ऋषि को दीर्घायु होने का आशिर्वाद दिया, पर नंदी को नहीं दिया। इस बात से शिलाद ऋषि परेशान हो गए, अपनी परेशानी को उन्होंने संतों से बात का कारण पूछा। तब संत पहले तो सोच में पड़ गए, पर थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, नंदी अल्पायु है। यह सुनकर मानों शिलाद ऋषि बहुत परेशान हो गए । ऋषि बहुत परेशान रहने लगे। एक दिन पिता की चिंता को देखते हुए नंदी ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है, आप इतना परेशान क्यों हैं पिताजी’। शिलाद ऋषि नंदकी को उन संतों की कही बात बता दी। नंदी ने जब पिता की परेशानी का कारण सुना तो वह बहुत जोर से हंसने लगा और बोला, ‘भगवान शिव ने मुझे आपको दिया है। ऐसे में मेरी रक्षा करना भी उनकी ही जिम्मेदारी है, इसलिए आप परेशान न हों’।
नंदी पिता को शांत करके भुवन नदी के किनारे भगवान शिव की तपस्या करने लगा। दिनरात तप करने के बाद नंदी को भगवान शिव ने दर्शन दिए। शिवजी ने कहा कि क्या इच्छा है तुम्हारी वत्स। नंदी ने कहा, मैं ताउम्र सिर्फ आपके सानिध्य में ही रहना चाहता हूं।
नंदी से खुश होकर शिवजी ने नंदी को गले लगा लिया। शिवजी ने नंदी को बैल का रूप देकर उन्हें अपना वाहन, अपना मित्र, अपने गणों में सबसे उत्तम रूप में स्वीकार कर लिया। इसके बाद ही शिवजी के मंदिर के बाद से नंदी के बैल रूप को स्थापित किया जाने लगा । तब से लेकर आज तक जहां-जहां शिवजी मौजूद रहते हैं वहां नंदी की उपस्थिति अनिवार्य है
यही कहानी असम की लोककथा के तौर पर इस तरह है। बहुत पहले की बात है। तब भगवान शिव के पास कोई वाहन नहीं था। उन्हें पैदल ही जंगल-पर्वत की यात्रा करनी पड़ती थी। एक दिन मां पार्वती उनसे बोलीं, ‘आप तो संसार के स्वामी हैं। क्या आपको पैदल यात्रा करना शोभा देता है?’ इस पर भोलेनाथ ने हंसते हुए कहा कि देवी, हम तो रमते जोगी हैं। हमें वाहन से क्या लेना-देना? भला साधु भी कभी सवारी करते हैं? इसके जवाब में मां पर्वती ने दुखी होकर कहा कि जब आप शरीर पर भस्म लगाकर, बालों की जटा बनाकर, नंगे-पांव, कांटों-भरे पथ पर चलते हैं तो मुझे बहुत दुख होता है। इसलिए एक वाहन रख लेना चाहिए। शिव जी ने उन्हें बार-बार समझाया परंतु वह अपनी जिद पर अड़ी रहीं। वह हर हालत में शिवजी के लिए सवारी चाहती थीं। अंतत: भोलेनाथ मान गए। अब प्रश्न यह था कि किसे अपना वाहन बनाया जाए। उन्होंने देवताओं को बुलवा भेजा। नारद मुनि ने सभी देवों तक उनका संदेश पहुंचाया। अन्य देवताओं को चिंता सताने लगी कि कहीं भगवान शिव उनके वाहन को न ले ले। इसलिए वे कोई-न-कोई बहाना बनाकर अपने-अपने महलों में बैठे रहे। मां पार्वती परेशान थीं। भगवान शिव ने जब देखा कि कोई देवता नहीं पहुंचा तो उन्होंने उन्होंने एक हुंकार लगाई। इस बर जंगल के सभी पशु-पक्षी आ पहुंचे। भोलेनाथ ने उन से कहा की देवी पार्वती चाहती है कि मेरे पास कोई वाहन होना चाहिए। तुम में से मेरा वाहन कौन बनना चाहता है।
लगभग सभी पशु-पक्षी तैयार हो गए। वे खुशी से झूमने लगे। सबसे पहले छोटा-सा खरगोश फुदककर आगे बढ़ा और उसने कहा की –प्रभु, मुझे अपना वाहन बना लें, मैं बहुत मुलायम हूं। इस पर सभी खिलखिलाकर हंसने लगे। इस के बात शेर ने गुर्राते हुए कहा कि — खरगोश, मेरे होते, तेरी सामने आकर बोलने की हिम्मत कैसे हुई ? डर कर खरगोश चुपचाप कोने में दुबक गया। शेर ने भोलेनाथ से कहा कि प्रभु, मैं जंगल का राजा हूं। शक्ति में मेरा कोई सामना नहीं कर सकता। मुझे अपनी सवारी बना लें। शेर की उसकी बात समाप्त होने से पहले ही हाथी बीच में बोल पड़ा- ‘मेरे अलावा और कोई इस काम के लिए ठीक नहीं है। मैं गर्मी के मौसम में अपनी सूंड में पानी भरकर महादेव को नहलाऊंगा। इसी तरह अन्य पशु-पक्षी भी अपना-अपना पक्ष रखने लगे और अपना-अपना दावा जताने लगे। भगवान शंकर भोलेनाथ ने सबको शांत करते हुए कहा कि– कुछ ही दिनों बाद तुम सभी से मैं एक चीज मांगूंगा। जो मुझे वह ला देगा, वही मेरा वाहन होगा।’
नंदी बैल भी वहीं खड़ा था। उस दिन के बाद से वह छिप-छिपकर शिव-पार्वती की बातें सुनने लगा। वह घंटों भूख-प्यास की परवाह किए बिना वह छिपा रहता था। एक दिन उसे पता चल गया कि भोलेनाथ बरसात के मौसम में सूखी लकड़ियां मांगेंगे। । इसलिए नंदी ने पहले से ही सूखी लकड़ियां एकत्रित कर लीं।
बरसात का मौसम आया। सारा जंगल पानी से भर गया। ऐसे में भगवान शिव ने पशु-पक्षियों से सूखी लकड़ियां मांगी। इस पर वे सभी एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे। परंतु नंदी बैल बहुत सी लकड़ियों के गट्ठर ले कर आ गया। भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। मन-ही-मन वे जानते थे कि बैल ने उनकी बातें सुनी हैं। फिर भी उन्होंने नंदी बैल को अपना वाहन चुन लिया। इस तरह नंदी तब से भगवान भालेनाथ का वाहन बन गया। भगवान भोलेनाथ के मंदिर के प्रांगण में नंदी विराजमान होते हैं।
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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार असम लोककथा लेकर आया हूं। शिवपुराण में भगवान शिव के वाहन नंदी के होने की जो कथा है, असमी लोककथा में वह भिन्न है। जब तक मैं असमी लोककथा सुनाऊं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज.
दोस्तों यह थी नंदी के भगवान भोलेनाथ का वाहन बनने की कथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।
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