मां वैष्णोदेवी- जम्मू की लोक-कथा

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परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली

दोस्तों इस बार आपके लिए मां वैष्णोदेवी की कथा लेकर आया हूं।आप सभी ने जम्मू की वैष्णो माता का नाम अवश्य सुना होगा। इस बार मां वैष्णोदेवी की कथा और उनके पवित्र धाम तक पहुंचने का रास्ता भी बताऊंगा।

मां वैष्णो देवी  की गुफा हिमालयी राज्य जम्मू-कश्मीर में है। यह गुफानुमा मंदिर त्रिकुटा या त्रिकुट पर्वत पर स्थित है।मां  वैष्णो देवी को सामान्यतः माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रसिद्ध गुफा में तीनों देवियां विराज मान हैं। दांई और  महाकाली,  बांई ओर  महासरस्वती  तथा  बीच में महालक्ष्मी  पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों पिण्डियों के इस सम्मि‍लित रूप को वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। माता के मंदिर से लगभग  तीन किलोमीटर दूर भैरोंनाथ का मंदिर भी है। मान्यता है कि इसी स्थान पर माँ वैष्णो देवी ने भैरौंनाथ का वध किया था। मांता का थान जम्मू जिले के कटरा नगर के समीप है। यह समुद्रतल से 5,200 फ़ीट की ऊंचाई पर कटरा से लगभग 12 किलोमीटर  दूर है। इस मंदिर की देख-रेख श्री माता वैष्णो देवी तीर्थ मंडल न्यास करता है।

मांता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक  मान्यता के अनुसार बहुत पहले श्रीधर नाम के व्यक्ति मां वैष्णो देवी के परम  भक्त थे। वे वर्तमान कटरा कस्बे के पास हंसली गांव में रहते थे। एक बार उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए छोटी बालिकाओं को बुलवाया। माँ वैष्णों भी कन्या रूप में उनके बीच आ बैठीं। बाद में जब अन्य कन्याएं चली गईं परंतु मां वैष्णों नहीं गईं। उसने  श्रीधर से कहा- लोगों को अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस कन्या की बात मान ली और आस-पास के गाँवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। लौटते समय गोरखनाथ व भैरवनाथ जी को भी उनके चेलों सहित न्यौता दे दिया। भंडारे में आए लोग यह जानने को उत्सुक थे कि यह कन्या कौन है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है। श्रीधर  के आवास पर आए लोगों को उस कन्या ने एक विचित्र पात्र से भोजन परोसना आरंभ किया। इन लोगों में  भैरवनाथ भी थे। जब वह कन्या भैरवनाथ के पास पहुंची तो उसने मांस व मदिरा की मांग कर दी।

-ब्राह्मण के भंडारे में यह सब नहीं मिलता।’ कन्या ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया।

लेकिन भैरवनाथ अपनी मांग पर अड़ गया। वह कन्या उसकी चाल भाँप गई थीं। वह पवन का रूप धारण कर त्रिकूट पर्वत की ओर उड़ गईं। भैरव ने भी उनका पीछा किया। माता के साथ उनका वीर लंगूर भी था। एक गुफा में माता ने शरण ली और नौ माह तक तप किया। भैरव भी उनकी खोज में वहां  पहुंचा।

भैरों को एक साधु ने उससे कहा, ‘जिसे तू साधारण नारी समझता है, वह तो महाशक्ति हैं। लेकिन भैरव ने साधु की बात अनसुनी कर दी। माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। माता ने  भैरव को लौटने की चेतावनी भी दी किंतु वह नहीं माना। माता एक गुफा के भीतर चली गईं। द्वार पर वीर लंगूर था। उसने भैरव से युद्ध किया। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा तो माता वैष्णो ने चंडी का रूप धारण किया और भैरव का वध कर दिया। भैरव का सिर भैरों वहां से कुछ दूर जा गिरा। अंत समय में भैंरो को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने मांता से क्षमा मांग ली। देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरौंनाथ की प्रमुख इच्छा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने भैरौंनाथ को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति देने के साथ ही उसे यह भी वरदान दिया देवी मां के दर्शन के बाद भैरौंनाथ के मंदिर के भी दर्शन करें। यानी उसे वरदान दिया कि जो भी मेरे दर्शनों के पश्चात भैरों के दर्शन करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी।  वैष्णो देवी ने तीन पिंडियों यानी सिर सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार  मां वैष्णो देवी ने दक्षिण  भारत के रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। देवी बालिका के जन्म से एक रात पहले से वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे। मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने  पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति मांगी। भगवान राम तब माता सीता की खोज करते हुए अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे तो उनकी दृष्टि ध्यान में लीन उस बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने भगवान राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। इस पर भगवान राम ने उससे कहा कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। भगवान राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में स्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। त्रिकुटा ने रावण पर भगवान राम की विजय के लिए  नवरात्र मनाने का निर्णय लिया।  माना जाता है कि इसीलिए लोग  नवरात्र के  9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। भगवान राम ने  त्रिकुटा को वचन दिया कि समस्त संसार में मां वैष्णो के रूप में उनकी  स्तुति गाई जाएगी। त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।

यह थी मां वैष्णों की कहानी। अब आपको बताता हूं कि इस धाम तक कैसे जाया जा सकता है। मां वैष्णोदेवी का मंदिर या भवन  कटरा से  13.5 किमी की दूरी पर स्थित है। यह जम्मू शहर से लगभग 50 किमी दूर है। मंदिर तक की यात्रा इसी शहर से शुरू होती है। कटरा से त्रिकुटा पर्वत तक पहुंचने के लिए पदयात्रा के अलावा पालकियां, घोड़े तथा विद्युत-चालित वाहन भी मौजूद हैं। हेलीकॉप्टर सेवा भी उपलब्ध है। कटरा सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है। रेल से भी कटरा तक पहुंचा जा सकता है।

यह थी मां त्रिकुटा यानी वैष्णों माता की कथा। आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना।  जै हिमालय- जै भारत।

 

 

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