नेपाल के सोशल मीडिया में क्यों छाए हैं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

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परिकल्पना- डा.हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयीलोग की प्रस्तुति /   नयी दिल्ली दोस्तों,

आपको मालूम है कि उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नेपाल के सोशल मीडिया में भी छाए हैं। ऐसा क्यों है, यही इस वीडियो में है।नेपालियों को धामी क्यों प्रिय लग रहे हैं, इस बारे में बताने से पहले कुछ इतिहास की बात कर लेते हैं।

धामी उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के खटीमा क्षेत्र से विधायक हैं। यह क्षेत्र पड़ोसी देश नेपाल के सूदूर पश्चिम प्रांत के कंचनपुर जिले से जुड़ा है। मैं उस कालखंड की बात तर रहा हूं, जब भारत देश की बजाए भारतवर्ष था। इसमें भारत या नेपाल की मौजूदा भौगोलिक सीमाएं जैसी कोई बात नहीं थी। आज के उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और चंपावत जिलों के सीमांत क्षेत्र कभी कुमायुं  के चंद राजवंश के आधीन रहते थे तो कभी नेपाल के डोटी राज्य के मल्ल राजाओं के आधीन। ये राज्य ऐसे ही थे,जैसे कि गढ़वाल और कुमायुं। डोटी राज्य के निर्माण कत्यूर राजवंश ने ही किया था।

उत्तराखंड के ऊपरी क्षेत्रों में कभी जोशीमठ के कत्यूरी शासक राज करते थे। बाद में वे  अपनी राजधानी कुमायुं के बैजनाथ  ले गए। 13 वीं शताब्दी में कत्यूर राजवंश कमजोर होने लगा था। इस राज्यवंश के आठ राजकुमारों में यह राज्य विभाजित हो गया। ये राज्य थे- बैजनाथ-कत्युरी, द्वारहाट, डोटी, बारामंडल, असकोटसिरा, सोरा, सुई यानी काली कुमायुं। इसलिए कुमायुं के पिथौरागढ़ और चंपावत के सीमांत क्षेत्रों और नेपाल के सुदूर पश्मिच और कर्णाली प्रातों की संस्कृति बहुत मिलती है। दोनों क्षेत्रों की भाषा, बोली, रित-रिवाज भी मिलते हैं। दोनों क्षेत्रों में राटी-बेटी के रिश्ते भी हैं। कुलदेवता भी एक हैं और पूजा की संयुक्त रूप में होती है। दोनों क्षेत्रों में सरनेम भी एक ही हैं। वास्तव में एक ही जित संज्ञा नाम के लोग एक ही कुल के हैं। उनके पूर्वज एक ही थे। दोनों ओर जो सरनेम मिलते हैं, उनमें ऐरी, कठायत,बस्नेत, बस्न्यात, विष्ट, बिष्ट्, बन्सी, बर्मा, बरुवाल, बानियां, बाम, बुढाथोकी, बोहरा, चंद, उहान, चुहान,  छेत्री, क्षेत्री, डांगी, दानी, धामी,घर्ती,हमाल, कटुवाल, जोशी, अधिकारी, कुंवर, खड़का, कार्की, खत्री, खाती, मल्ल, पांडे, पंत, भंडारी,लोहानी,पाल, राणा,  रानाभाट, राउत, रावत, रावल, देबुआ, राथौर, राठौर,सिंह,सिलवाल ,सेन, शाह, शाही, राया आदि प्रमुख हैं।  अर्थात धामी जाति के लोग उत्तराखंड में भी हैं और नेपाल में भी।

पिथौरागढ़ मूल के  वरिष्ठ पत्रकार और भारतीय जन संचार संस्थान में पत्रकारिता के प्रोफेसर डा. गोविंद सिंह कहते हैं कि भारत और नेपाल के सीमांत क्षेत्रों में आपसी रिश्तेदारी है।  कुछ सदियों पहले तक देशों की आज जैसी इस तरह का  विभाजन रेखा नहीं थी। इसलिए काली नदी के दोनों तरफ एक समान समाज के लोग  बसे हैं। डा. गोविंद सिंह जी की बात को आगे बढ़ाते हुए इस मामले को इस तरह से समझ सकते हैं कि जिस तरह से नेपाल के प्रधानमंत्री केपीएस ओली के सरनेम के लोग कुमायुं उत्तराखंड में हैं, उसी तरह धामी लोग नेपाल में भी हैं। ओली कुमायुं के ब्राह्मण होते हैं। नेपाल में तो ओली को कुमैं बाहुन यानी कुमायुंनी ब्राह्मण कहा जाता है। कुमायुं केसरी  बद्रीदत्त पांडे अपनी पुस्तक- कुमायुं का इतिहास – में लिखते हैं कि धामी लोग राणा वंश के हैं और चित्तौड़ गढ़ से आए थे। धामी सेरनेम के लोग पंजाब में भी मिलते हैं। जाट समाज में भी धामी सरनेम है। गढ्रवाल में जागर लगाने वाले यानी देवपूजा गायन करने वालों को धामी कहा जाता है। धामी   सरनेम मिलने से ही नेपाल के लोग खुश दिख रहे हैं। वे सोशल मीडिया में लिख रहे हैं कि– नेपाली बना उत्तराखंड का मुख्यमंत्री–। कुछ नेपाली तो यह भी दावा कर रहे हैं कि धामी के पूर्वज नेपाल के दार्चुला जिले से थे और उनके दादा कंचनपुर के सीमावर्ती खाती में बसे थे।

यह एक दावा है। जबकि सच्चाई यह है कि पुष्कर सिंह धामी का जन्म जनपद पिथौरागढ़ की ग्राम सभा टुण्डी, तहसील डीडीहाट में हुआ है। यह उनका गांव है। हालांकि उनका पुश्तैनी गांव डीडीहाट ब्‍लॉक का अनजान गांव हड़खोला है। यह गांव टनकपुर-तवाघाट हाईवे पर कनालीछीना से ओगला के मध्य खिरचिना नामक स्थान से चार किमी की चढ़ाई पर है। यह ग्राम पंचायत तोली चुफात के तहत है। हालांकि धामी के पिताजी बाद में कनालीछीना के छडऩदेव के टुंडी गांव में भी रहने लगे थे। यहां उनका मकान भी है, लेकिन बाद में उनका परिवार खटीमा चला गया। यानी धामी के दो पुश्तैनी गांव हैं। हड़खोला और टुंडी गांव । धामी के कुलदेवता हर सैम का मंदिर हड़खोला में है। कुमायुं में एक लोकोक्ति प्रचलित है। हरू, आये हरियाली लाये, हरू जाये  सब कुछ नष्ट हो जाये। हरू यानी हरजू देवता के साथ हमेशा सैम देवता के भी मंदिर होते हैं। हरू और सैम दोनों भाई हैं। हरू और सैम के जीवन की गाथा हरू-सैम के जागरों में गायी जाती हैं।

प्राचीन काल में हरजू देवता उत्तराखंड के चंपावत क्षेत्र के एक दयालु और प्रसिद्ध राजा थे। उनकी मृत्यु के बाद वो लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे। हरजू देवता की माँ का नाम कालानीरा था और उनके भाई का नाम सैम देवता था, सैम देवता भी हरजू देवता की भांति पूजे जाते है और हरजू देवता को गोल्ज्यू देवता का मामा कहा जाता है। हरजू और सैम देवता को एक साथ पूजा जाता है, हरजू और सैम देवता के मंदिर भी ज्यादातर एक साथ होते है और इन्हें समृद्धि और सीमाओं के रक्षक देवता भी कहा जाता है।   यह भी जानने लायक है की हर सैम देवता पश्चिमी नेपाल में भी पूजे जाते हैं। कत्यूरी सम्राट पिथौराशाही और उसके पुत्र दुलाशाही और पौत्र मालूशाही के शासनकाल में कुमायुं में सेम देवता की मान्यता हुई। लोक गाथाओं में  सैम देवता को  गुरु गोरखनाथ का शिष्य, कालितारा का पुत्र, राजा निकंदर का दौहित्र,  गौरिल देवता  का मामा और हरिचंद्र हुरू का भाई बताया जाता है। दूसरी जनश्रुति के अनुसार सैम के जन्म और धर्म जागृति का समय 1389  से 1424 तक का था। तब कत्यूर राज था। हरु और सैम को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं।

एक कथा के अनुसार वे निकन्दर नाम के राजा की पुत्री कालानीरा के पुत्र थे। गुरु गारख नाथ के आश्रम में उनका जन्म हुआ। जबकि अन्य कथा के अनुसार सैम की जन्मभूमि ड्यूटी नेपाल थी। वहां वे स्फुटिक स्तंभ से पैदा हुए। वहां उनका नाम भुटालिंदेव है। यानी नेपाल के डोटी क्षेत्र और उत्तराखंड की सौर घाटी यानी पिथौरगढ़ में एक समान संस्कृति, भाषा होने के कारण ही मुख्यमंत्री धामी इन सभी कारणों से ही नेपाल के सोशल मीडिया में छाए ।

यह स्टोरी कैसी लगी, अवश्य बताएं। हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना ने भूलना। और अंत में एक बात और।इस वीडियो का टाइटल सॉन्ग मेरा ही लिखा है।यह गीत  पर्यावरण को समर्पित है । इसी चैनल में है। इस गीत को अवश्य सुनिएगा। जै हिमालय- जै भारत। ———————–

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